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Wednesday, November 29, 2023

सतर्कता और रोकथाम, ईलाज से ज्यादा अहम है (Prevention is better than cure)

बिमारी कैसे होती हैं?  

संक्रमित खाने से 

संक्रमित पीने से 

संक्रमित हवा में साँस लेने से 

और जीवन शैली (Lifestyle Problems) की वजह से। खाने-पीने की अधिकता या कमी की वजह से। शरीर के ज्यादा या कम प्रयोग की वजह से। 

कैसे पैदा की जाती हैं?

खाने के माध्यम से 

पीने के माध्यम से 

और हवा के माध्यम से 

कितनी ही तरह के संक्रमण इनके माध्यम से किए जा सकते हैं। जहाँ खाना-पीना और हवा जीवन के लिए जरूरी है, वहीँ संक्रमित खाना-पीना या हवा मतलब, बीमारी।   

उसके बाद है जीवन शैली। किसी भी चीज की अधिकता या कमी भी बिमारियों की वजह होती हैं। ऐसे ही शरीर का ज्यादा या कम प्रयोग। मतलब खाने-पीने और उसको पचाने का संतुलन न होना। 

इसलिए आपका स्वास्थ्य काफी हद तक आपके अधीन है। आप क्या खाते हैं, क्या पीते हैं और कैसी हवा में सॉंस लेते हैं, अगर उस पर नियंत्रण कर सकें तो। आम आदमी को पहली बात तो उसका पता ही नहीं होता। हो भी जाए तो नियंत्रण नहीं करना आता। 

थोड़ा बहुत पता भी हो और नियंत्रण भी करना आ जाए, तो भी बहुत से गुप्त तरीके होते हैं, खाने-पीने के माध्यमों से ही संक्रमण करने के। इसलिए अगर आपको लग रहा है की ऐसा कुछ हो रहा है तो अपने खाने-पीने को बदल कर देखें। जहाँ तक हो सके ताजा खाएँ। और जहाँ तक हो सके जिस किसी खाने में संक्रमण की संभावना नजर आए, वो ना खाएं। फिर भी बात ना बने तो जगह बदली करके देखें। कम से कम, एक-दो महीना तो करें। थोंपे हुए संक्रमण का यही इलाज है। संक्रमण, मतलब किसी भी तरह का दर्द। दर्द, मतलब डॉक्टर के पास या हॉस्पिटल जाना। 

अगर संक्रमण किया हुआ है, मतलब दर्द दिया हुआ है। तो इससे आगे आपको कुछ नहीं करना। आप खुद को बीमार करने वालों के और ज्यादा हवाले करने जा रहे हैं। चैक करना, टैस्टिंग, जिसे डायग्नोस्टिक (Diagnostic) भी कहते हैं, संक्रमण को बढ़ाने-चढ़ाने की अगली सीढ़ी है। यहाँ खास तरह के कमीशन होते हैं और खास तरह की हेराफेरी। उसके बाद डॉक्टर के हवाले। प्राइवेट हॉस्पिटल में तो वैसे ही उन्हें कमाने और अपने स्टाफ को देने के लिए भी काफी कुछ चाहिए होता है। कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, प्राइवेट स्कूल को। यहाँ पे इंफेक्शन को कितना भी घटाया या बढ़ाया जा सकता है। कितने भी दिन, महीने या साल, आपको ऐसे भी और वैसे भी लूटा जा सकता है। और राम नाम सत्य करके, ऊपर भी पहुँचाया जा सकता है। तो जितना और जहाँ तक हो सकता है, हॉस्पिटल जाने से ही बचें। 

जो कहते हैं फलाना-धमकाना उम्र के बाद, फलाना-धमकाना टैस्ट हर साल या एक या दो साल में जरूर करवा लें। ऐसे हालातों के मध्यनजर, हट्टे-कट्टे इंसानो के लिए तो वो बिलकुल जरूरी नहीं है।  

किसी बच्चे को माँ के जाने के बाद 1-19, 2023 मई तक पीलिया नहीं हुआ था। ये एक सामांतर घड़ाई थी। अगर अपने मेडिकल के फरहों को और पुरे घटनाक्रमों को, इन सामांतर घड़ाईयों के जानकारों को दिखा और बता दोगे तो वो बता देंगे की वो क्या था। 

ऐसे ही, जैसे किसी माँ को M.Tech Exams Fraud के आसपास कोई पथ्थरी नहीं थी। वो एक सामांतर घड़ाई थी। 

ऐसे ही जैसे, मुझे कोरोना से पहले कोई पथ्थरी का दर्द नहीं था। बल्कि संक्रमित खाना-पीना उसकी वजह था। अगर मैं भी डायग्नोस्टिक और डॉक्टर की मान कर, Gall Bladder Stone के ईलाज की हामी कर देती तो माँ की तरह कट चुकी होती। उसके विपरीत, मैं बैग पैक कर घर पहुँच गई। और वो दर्द छु मंतर? भला कैसे?  

आते हैं ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, दर्द और बिमारियों पे भी। जहाँ कभी-कभी लगता है, की तुम इसे या उसे बचा सकते थे शायद। क्यूँकि तुम्हें कहीं शक थे। शक (doubt), किसी भी observation की पहली सीढ़ी होती है। 

अपने हॉस्पिटल के जितने भी फरहे हैं, उन्हें संभाल कर रखें। वो आपके और आपके बच्चों के स्वास्थ्य ज्ञान की अहम सीढ़ी हैं। कोई भले इंसान, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी बिमारियों से, खामखाँ के धक्कों से और उसपे बेवजह के खर्चों से बचा सकते हैं शायद।    

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