आओ माहौल घड़ते हैं। ऐसा माहौल जो आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। क्या है ये माहौल?
वातावरण? संगत?
या सही शब्द होगा शायद, मीडिया। मीडिया, मतलब किसी भी जीव की संतुलित ग्रोथ के लिए जरुरी तत्वों का मिश्रण। ये प्राकृतिक भी हो सकता है, जैसे feotus liquid medium (Amniotic Fluid)। या जैसे लैब में तैयार किया जाता है, कृत्रिम ग्रोथ माध्यम।
बायोलॉजी में मीडिया का मतलब होता है, किसी भी जीव का जीने और फलने-फूलने का वातावरण। जो कृत्रिम रूप से लैब के कंट्रोल वाले वातावरण में प्रदान करवाया जाता है। जिसपे अक्सर अलग-अलग तरह के प्रयोग भी किए जाते हैं। अलग-अलग तरह के मीडिया में अलग-अलग तरह के जीवों पे। अलग-अलग तरह के पोषक तत्वों की मात्रा को घटाकर या बढ़ाकर। या किसी पोषक तत्व की कमी करके या उसे इस मीडिया से हटाकर या अधिकता करके। या कुछ पोषक तत्वों की बजाय, कुछ हलके या ज्यादा जहरीले तत्व उस ग्रोथ मीडिया में डालकर। अलग-अलग तरह के तत्वों वाले मीडिया का असर, अलग-अलग तरह के जीवों पे देखने और जानने के लिए। ये बच्चों जैसे-से प्रयोग हैं। अलग-अलग विषयों के ज्ञाता, इससे कहीं ज्यादा जटिल प्रयोग करते हैं। इतने नियंत्रित वातावरण में बहुत ही आसान होता है, किसी भी जीव को अपने अनुसार पैदा करवाना, आगे बढ़ाना या रोककर रखना या खत्म कर देना। और इन सबके कितने ही तरीके हो सकते हैं।
बायोलॉजी की लैब से परे, जो सामाजिक मीडिया है, वो भी यही सब करता है। लैब में ये सब करने के कायदे-नियम होते हैं। मगर राजनीती के रण में ज्यादातर नियम-कायदे, अक्सर ताक पर होते हैं। सत्ताओं के हिसाबों के अनुसार, ढलते और बदलते रहते हैं। इसलिए जरूरी होता है, अपने आसपास के मीडिया पे नजर रखना और जो आगे बढ़ने के लिए जरूरी हो, सिर्फ उस मीडिया को आसपास रखना। या जो आगे बढ़ने में अड़चन हो, उससे थोड़ा दूर बचकर रहना और लोगों को भी बचाकर रखना। वो कहते हैं ना, की किसी भी बाग पे कितनी मेहनत हो रखी है, या उसने कैसे-कैसे वातावरण झेले हुए हैं, ये उसको देखते ही बताया जा सकता है। जिस बाग पे जितनी ज्यादा मेहनत होती है, वो उतना ही ज्यादा हरा-भरा मिलेगा। मगर कितनी भी मेहनत किसी काम की नहीं रहती, अगर उसका माहौल या ग्रोथ-मीडिया सही नहीं है तो। उसमें किसी भी तरह के जहरीले तत्व, किसी भी रूप में मौजूद हैं तो। आम-आदमी की समझ यहाँ मार खा जाती है। जब उसे लगने लगता है, की इतनी मेहनत करके भी, मेहनत के हिसाब से नहीं मिल रहा। क्यूँकि, या तो उसे अक्सर ऐसे जहरीले तत्वों की जानकारी ही नहीं होती। या जानकारी होते हुए पता नहीं होता, की उनसे निपटा कैसे जाए? तो एक तो सीधा-सा तरीका होता है, की ऐसे माहौल से थोड़ा इधर-उधर खिसक जाएँ, जहाँ माहौल आपके आगे बढ़ने के लायक हो। हालाँकि, वो भी इतना आसान नहीं होता, जितना कहना या लिखना।
चलो इस माहौल को राजनीती और इसके षड्यन्त्रों से थोड़ा परे लेकर चलते हैं। खामखाँ की खबरों और बेवजह के मीडिया से थोड़ा दूर, अपने-अपने कामधाम की खबरों और मीडिया के आसपास लेकर चलते हैं। पहले तो अपने माहौल या इस ग्रोथ मीडिया के प्रकार को जानने की कोशिश करें।
आपका माहौल या मीडिया --
आपको आगे ले जा रहा है
या पीछे धकेल रहा है?
रस्ता दिखा रहा है
या रस्ता रोक के खड़ा है?
बढ़ोतरी में सहायक है
या नीरा घाटे का सौदा?
जिंदगी आसान बना रहा है
या जिंदगी को मुश्किल बना रहा है ?
आपका माहौल या मीडिया --
आपकी अच्छाईयों को बढ़ा-चढ़ा रहा है
या उन्हें रोंदने का काम कर रहा है?
कुरड़ पे कचरे का ढेर जैसे?
माहौल ही है,
जो जितना आप करते हैं
कम से कम उतना तो वापस देता है
या सिर्फ और सिर्फ आपसे लेने का काम कर रहा है?
आपको खत्म करने की तरफ धकेल रहा है ?
Manipulations, twisting facts. Amplifying or trying to delete the good and add bad. If anyhow fails in that, then atleast try to show or present you like that? जैसे गुड़ का गोबर करना।
तो मीडिया को जानना और समझना बहुत जरूरी है। बच्चों के लिए भी, और बड़ों के लिए भी। पहले, बच्चों से और उनके काम की खबरों के मीडिया के आसपास चलते हैं। उसके बाद धीरे-धीरे, बड़ों के कामधाम के मीडिया पे आएंगे।
No comments:
Post a Comment