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Thursday, November 23, 2023

महारे 16-नंबरी

एक ने रक्खा 19 वाला रोड़ा 

वो ले आए 29 और ऐसे ही बढ़ाते रहे अपने खेल (जुए को आगे) 

19 वाले की शादी नहीं हुई या 29 वालों की? या उनके बच्चे नहीं हुए? 


16 को तो शिव का नंबर कहते हैं ना? फिर 16 वालों की इतनी बीरान-माटी क्यों?  

कौन-कौन हैं तुम्हारे आसपास 19 या 29 के जन्मदिन वाले? या शादी वाले? बताना कहाँ-कहाँ हैं, वो? या क्या कर रहे हैं? थोड़ी-सी निगाह तो अपने ही अड़ोस-पड़ोस या भाई-बँधो पे घुमा लो। सब ठीक-ठाक है या गड़बड़?   

और कौन-कौन हैं ये 16 के जन्मदिन वाले? या 16-नंबरी भक्ती वाले?  

16 को जहाँ मरण दिन बना दिया, उसपे इतने सारे हिसाब-किताब लगा दिए। तो क्या बचेगा, ऐसे हिसाब-किताब के बाद उनपे? तो वहाँ तो या आप शिव-भक्ती वाली राजनीति को नकारोगे या मरण-मरण ही रहोगे? ऐसा शिव और उसकी भक्ती किस काम की? उसपे शिव के नाम पे रखवा दिए, फलाना-धमकाना पथ्थर। तो इंसानों जैसी ज़िंदगी न जीकर, पथ्थरों जैसी-सी ही जिओगे। नहीं तो दे मारो, उन पथ्थरों को पथ्थर और कर दो उनका घमंड चूरचूर। कैसे काम के ऐसे पथ्थर, जो ज़िंदगी ही बना दें पथ्थर?

शिव और 16 तो पवित्र होना चाहिए? आइये जानते हैं, ऐसे नंबर वाले लोगों से ये राजनीती और ये कलाकार क्या-क्या करवाते हैं?

एक दिन एक गन्दा कालीन धोने के लिए रख दिया। एक 16 नंबरी आया और उसे पास ही रक्खी एक छोटी-सी सोफा कुर्सी पे रख गया। अजीब इंसान है? मगर पीने के बाद इतना होश कहाँ रहता है? उस कालीन को गुस्से में नीचे पटक दिया गया। मगर अगले दिन फिर वही। लगता है, उतरी नहीं अभी? कई दिन चला ये सांग। ज्यादा पीने वालों में दिमाग तो बचता नहीं। तो क्या तो बोलो और क्या ना बोलो? ऐसे-ऐसे मानव रोबोटों को? उनसे जो करवाया जाएगा वो कर देंगे, अपना दिमाग लगाए बगैर।    

यहाँ तक होता तो भी चल जाता। एक दिन, अपने 16-नंबरी परदे के पीछे डंडा रख गए और लड़खड़ाती जुबान गाए, "मारो साली को" । पता नहीं किसकी साली को मार दें, ये पीने वाले? अब साला या साली तो, ऐसे लोगों की कक्षा का क ख ग होता है। उससे आगे तो पता ही नहीं क्या-क्या आता है। गालियों से नफरत करने वालों को इनकी क्लास अटैंड जरूर करनी चाहिएँ। जुबान सिर्फ बेहुदा ही नहीं, बल्की कुछ खतरनाक भी गा रही थी। परदे के पीछे छुपा डंडा, उसका संकेत भर था। इधर-उधर से सावधान करने वालों के संकेत भी चल रहे थे, की गाँव से निकलवाने वाले, कहीं पुरे घर को ना खा जाएँ। ये खास भड़काने वाली पार्टियों की तरफ ईसारा था। जिनके कारनामों, खास तरह के भडकावों का खूँखार रूप, ये घर पहले ही भुगत चुका था। और उसे बहुत वक़्त भी नहीं हुआ था। मगर किन्हीं बाहरी पार्टियों को क्या कहोगे आप, जब आसपास से ही ऐसी-ऐसी साज़िशें चलने लगें? या कहना चाहिए की बहुत आसान होता है दिमाग से पैदल लोगों को, कोई भी भावनात्मक भड़काव पैदा कर, अपने फायदे के लिए उनका दुरुपयोग करना। और भी कई तरह के डरावे थे। कभी इस रंग का चाकू तोड़ के कहीं रख जाना। कभी उस रंग का चाकू तोड़के कहीं रख जाना। मगर, पीले रंग का चाकू, बिना तोड़े बैड पे रख जाना। वो भी किन्हीं खास-खास तारीखों को, वो भी चदर इधर-उधर फैंक के। एक तरफ ये 16-नंबरी के कारनामे। 

तो दूसरी तरफ, किसी पड़ोस से खास तरह का प्रचार, फलाना-धमकाना की पत्नी को फलाना-धमकाना ने ऐसे-ऐसे पीटा। वो भी खास तरह के इफेक्ट्स के साथ। चद्दर या कपड़ों वाले स्पेशल इफेक्ट्स। वो बच्चे जो आपके लैपटॉप से मारपिटाई के विडियो उड़ा दें, बगैर ये जाने-समझे, की उनकी कॉपी पता ही नहीं कहाँ-कहाँ पड़ी हैं। वो ऐसा कुछ गाएँ? दोगली सोच, व्यवहार या मानव रोबोट बन जाना?    

सबसे बड़ी बात, आसपास के लोगों द्वारा बच्चे को जिस तरह से किडनैप किया गया। और बच्चे ने फिर जो कुछ बताया। उसे कुछ खास ऐसे कहा गया या उसके सामने बहुत कुछ ऐसा बार-बार गाया गया। उसपे उसकी पढ़ाई का भठा बिठाने की कोशिश। वो लोग जो बच्चे पे मरते हैं, वो ऐसा कैसे कर सकते हैं? उससे सबकुछ छीनने की कोशिशें। जब ये सब पता करने की कोशिश की, तो वही इल्जाम मुझपर फेंकने की कोशिश हुई, उन्हीं लोगों द्वारा। बेवकूफ लोगों के दिमाग में अजीबोगरीब शुभ-अशुभ भर के, ईधर ऐसे भड़काओ और उधर वैसे? फुट डालो, राज करो विभाग?        

मतलब सबको आपस में ही भीड़ा-भीड़ा के मार डालो। इससे बढ़िया मानव रोबोटों वाली, एक के बाद एक, क्रूर  सामान्तर घढ़ाईयों की कोशिश, मैंने तो इतने पास से देखी, सुनी या अनुभव नहीं की ज़िंदगी में। कैंपस क्राइम सीरीज, फीकी पड़ गई, इन सबके सामने। कालीखी विभाग? ऐसे लोगों के लिए 16-नंबर, शिव या किसी भी भगवान के क्या मायने हो सकते हैं? सिवाय, उस माध्यम से राजनीति कूटने और अपनी स्वार्थ  सिद्धि के?   

ऐसी-सी ही कुछ कहानियाँ बीमारियों, लोगों को हॉस्पिटल तक पहुँचाने और वहाँ से उठाने, खास तरह के ऑपरेशन करने, या वापस घर भेजने की हैं। इतने तरह के enforced एजेंडा, इतने तरह के लोगों को, कितनी ही तरह से काबू करना और कितने ही तरह के यहाँ-वहाँ सूक्षम कंट्रोल। मानव संसाधनों और टेक्नोलॉजी का कितना दुरुपयोग? कितनी ही तरह से? कितनी ही तरह के मानव द्वारा ईजाद किए गए दुख, परेशानियाँ और हादसे? सबसे बड़ी बात, आम आदमी को अहसास तक ना होने देना की ये सब कैसे किया जा रहा है। और साहब लोग चाहें, की लोगबाग ज़ुबानों को सील कर बैठ जाएँ? कलमों को पेंसिल बना दें या तोड़ डालें? लैपटॉप, इंटरनेट से दूर रहें या उन्हें वायरस के हवाले कर दें। दिमाग बंद कर, बस उनके भक्त बने रहें?   

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