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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Wednesday, March 29, 2023

District Court Rohtak

Supreme court is listening, watching and even reading?

But district court, Rohtak ?

-- is unable to understand even this much that why someone is not there in front of a judge even after writing a book on a crime, which she has not done. She had been charged with, whatever she had complained about! 

She has been harassed, bullied and had to go through the organized violence at campus. She had been dragged in so many crafted and drafted cases after her joining back in 2017 to the time period, when she had been enforced to leave that place, after a kidnapping drama and jail in 2021.

Her working environment, that is office as well as living place, that is campus home was a hell. I had complained about all that to the concerned authorities. Neem case was just one of such hellish craft and draft.

Neem Case

Plants Tales: Andhere Ujaale! 

Plants Tales: Andhere Ujaale!                                                                                                                                                                                                                                                                                Blurb                                                                                                                                                          Click on: Plants Tales: Andhere-Ujaale!                                                                                                                                                                                                                                                                         Amazon                                                                                                                                                     Click on: Plants Tales: Andhere Ujaale!         

I had already sent a copy of this book to my advocate. But wonder, if he put any evidence from this case book in front of the judge?

I had sent mails to my advocate. But wonder, if he forwarded the same to the concerned judge or gave the print of any of that mail to the concerned judge?

You are calling someone every time to the court, just to sign on something, without considering the facts?

If this is the behaviour with an educated person then what common person and not so much educated person, could expect from this system?

In a world, where online world, if can be a problem then can also be a solution to so many problems, world is facing today.

Can we expect any official email id of the case, where charged person/s can send direct responses to the concerned judge along with advocate or direct to the justice holder? 

So many such unnecessary and targeted cases, just to kill someone's life or keep on dragging the cases for years and years to weaken the case and targeted person every possible way, can be dealt better and in less time period.

विज्ञापन और राजनीति (Advertisements and Politics)

Manifestations and Manipulations?

आम आदमी की जरूरतें 
"रोटी, कपड़ा और मकान" 
बस?
ईज्जत की कमाई से 
या? 
गुंडों के "इसका इलाज़ जरूरी है"
जैसे "Organized Crime" से? 
या 
भीख़ से?
गुंडों द्वारा किए गए, हर गुनाह को नजरअंदाज करके? 

विज्ञापन आजकल: 


 इस विज्ञापन का Big Boss House 30, Type-4 से 
या Big Boss House 16, Type-3 से 
या उनसे जुड़े अपराधों से कोई लेना-देना नहीं है! 

विज्ञापन उन दिनों 
Big Boss House 16, Type-3 के दिन 
डाक बंगला?   


राजनीति आजकल? 
ये कांग्रेस या राहुल-बँगला, वाद-विवाद क्या है? 
और क्या है, इसके पीछे की राजनीति?
आनंद भवन? 
स्वराज भवन?   
मेरी राजनीतिक समझ या यूँ कहुँ की किसी भी आम-आदमी की राजनीतिक समझ, लगता है बहुत कमजोर है? 

Tuesday, March 28, 2023

मानव रोबोट

अगर पहले पढ़ चुके तो भी इसे फिर से पढ़िए :

अगर आपको कपड़े धोने हैं, तो कैसे धुलेंगे? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या बताया जायेगा। फिर दिमाग़ बताएगा, आगे क्या-क्या करना है या चाहिए। वो सब मिल गया और आपने (मस्तिक संचालित, शरीर ने) कर दिया तो हो गया।  

अगर आपको सफ़ाई करनी है, तो कैसे होगी? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या उसे बताया जायेगा। फिर उस काम को करने के लिए, जो-जो चाहिए, वो लेंगे और सफाई करेंगे।     

बस इतनी सी बात, इसमें क्या खास है? तो यही काम, आपकी बजाय, किसी मशीन को देना है। कैसे बनी होगी वो मशीन? इंसान के शरीर की तरह, एक बॉडी चाहिए, एक दिमाग, काम को करने की योज़ना (Programming) और काम को करने का तरीक़ा, विधि या प्रकिर्या (Processing). 

मानव-रोबोट बनाना और मानव को रोबोट्स की तरह प्रयोग करना 

                                                                      (To some extent also brain washing)

दिमाग़ 

योजना 

शरीर 

काम को करवाने का तरीका या विधि या प्रकिर्या 

चलो एक-आध उदाहरण लेते हैं 

बच्चे को कैसे सिखाते हैं, बैठना, बोलना, चलना, खाना-पीना और फिर क्या सही है और क्या गलत, का व्यावहारिक ज्ञान? कौन से घरों या मौहाल के बच्चे, ये सब जल्दी सीखते हैं? शाँत वातावरण में रहने वाले ज़्यादातर बच्चे भी शांत परवर्ती के होते हैं। चीखने-चिल्लाने वाले माहौल के बच्चे भी, चीखने-चिल्लाने लगते हैं। जुबान, भाषा और  व्यवहार भी, उसी  माहौल का दिया हुआ होता है। ज़्यादातर उन इन्सानो की कॉपी होती है, जिनके साथ वो ज़्यादातर समय  बिताते हैं। 

क्या ये सिर्फ बच्चे पे लागु होता है? या बड़ों पे भी?

कुत्ते को या किसी भी पालतु जानवर को प्रशिक्षण कैसे दिया जाता है? शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे बच्चे को।    

खाने की वस्तु दिखाना और एक तयशुदा बर्तन या जगह पे डालना 

एक तयशुदा समय पर ही खाना या चारा डालना   

हर रोज़ उसी समयसारणी को बरतना 

कौन अपने हैं या कौन पराये का आभाष करवाना 

मलमूत्र के लिए निश्चित जगह दिखाना और बार-बार वहीँ लेके जाना 

और भी कितनी ही इस तरह के प्रशिक्षण होते हैं 

इन सबमें कुछ बातें अहम् हैं और एक जैसी हैं। जैसे 

दिखाना या देखना 

 सुनाना या सुनना 

बारबार जो करवाना है, वही बताना, या अहसास करवाना 

कुछ चीज़ें निश्चित करना, जैसे समय, वक्त, जगह आदि 


Automation मतलब automatic शवचालित, अपने-आप कोई काम करना -- प्रशिक्षित मशीन  

Semi automatic कुछ हद तक शवचालित, बाकी manual इंसानों द्वारा किया जाना -- कुछ हद तक प्रशिक्षित मशीन


Manual इंसानों द्वारा किया जाना (विधि अनुसार)  

Enforced जबरदस्ती (Either by Hook or Crook) 

साम, दाम, दंड, भेद आ चुका। 


सिस्टम Automation पे कितना है?  Semi automatic कितना है?

या फिर Manual और Enforced कितना है?

और उसका प्रभाव आम-आदमी पर कैसे और कितना है? 

कैसे और कहाँ-कहाँ वो आपको रोबोट्स की तरह प्रयोग कर रहा है? 

अपने आसपास का कोई भी केस उठाओ और जानने की कोशिश करो, कहाँ-कहाँ और किस हद तक वो अपने आप हुआ है और कहाँ-कहाँ वो करवाया गया है, जो होना ही नहीं था? इन्हे parallel cases भी कहा जाता है और created भी। ज्यादातर, ऐसे cases में इंसान रोबोट्स की तरह प्रयोग हुए हैं। सबसे बड़ी बात इन cases में Campus Crime Series से भी ज्यादा खामियाँ मिलेंगी। Parallel Cases का मतलब सिर्फ अदालती मुकदमों से नहीं है, बल्कि आपकी ज़िंदगी के हर पहलु से है। 

कैसे? आगे की किन्ही पोस्ट्स में। 

मशीन, रोबोट्स और इंसान रुपी रोबोट्स

Machines, Robots, Humanoids

Programming and Processing  

इन्सान और मशीन के पुर्जों से बनी मशीन को इंसान रुपी रोबोट (humanoids) भी कहते हैं।  इस तरह के रोबोट्स में दिमाग़ के साथ-साथ, नसों और अलग-अलग तरह की कोशिकाओं के प्रयोग होते हैं। जिनसे उनकी जानने, सोचने, समझने, महसूस करने की क़ाबिलियत बढ़ाई जा सके। 

ये सब कैसे संभव है? इंसान रुपी मशीन को जानकार, समझकर। जितना ज़्यादा वो समझ विकसित होगी, उतनी ही ज़्यादा, ऐसी मशीने बनाने की काबलियत। इंसान ने ज़्यादातर मशीने, प्रकृति से सीख कर ही बनायीं हैं। जैसे, पक्षी कैसे उड़ते हैं? हम क्यों नहीं उड़ सकते हैं? मछलियाँ कैसे तैरती हैं? हम या हमारी मशीने क्यों नहीं तैर सकती? वैसे ही, इंसान कैसे सोच सकता है? महसूस करता है? खतरे में अपना बचाव करता है? पढ़ सकता है? लिख सकता है? जोड़, घटा सकता है? बोल सकता है। विश्लेषण कर सकता है। तो मशीने क्यों नहीं कर सकती? 

जीव-विज्ञान के अनुसार, इंसान एक तरह की मशीन ही है। किसी भी मशीन की तरह, उसके रखरखाव की जरूरत होती है। तेल-पानी (खाना-पीना) होता है।  किसी मशीन की उम्र उतनी ही बढ़ती जाती है, जितना उसका रख रखाव बढ़ता जाता है। जैसे किसी भी कीमती वस्तु के रख रखाव और संभाल की जरुरत है, साफ़ करने की ज़रूरत होती है, टूटे-फूटे को ठीक करने की ज़रूरत पड़ती है, वैसे ही किसी भी मशीन को नया-सा दिखने के लिए। जैसे एक इंसान बीमार है, तो उसका सही इलाज कराने वाला ज़्यादा चलेगा या ईलाज ना करवाने वाला? या ग़लत ईलाज करवाने वाला? यहाँ, शायद फ़र्क ये भी हो सकता है, की बहुतों को गलत या सही की जानकारी ही न हो। तो कोई आपको चपत भी लगा सकता है। इंसान के लिए इसे जानना, मशीनो से ज़्यादा अहम् है। क्यूँकि, हम उस दुनिया में हैं, जहाँ इंसान रुपी रोबोट्स ही नहीं, बल्कि इंसानो का ही प्रयोग रोबोट्स की तरह हो रहा है और अंजान इंसानों को इसकी ख़बर तक नहीं। कैसे? ये सब आप आने वाली कुछ पोस्ट्स में पढ़ेंगे।    

ज्यातार मशीनो और इंसान में एक फर्क होता है। दिमाग का। इसी दिमाग की ऊपज, ये मशीने और सुख-साधन के जुगाड़ हैं। कुछ इंसान द्वारा बनाई मशीनो में भी थोड़ा बहुत दिमाग़ होता है। जैसे कंप्यूटर। जैसे रोबोट्स, स्वचालित मशीने (robots) । ये स्वचालित मशीने, आज की प्रयोगशाला में तेजी से बढ़ते अविष्कारों का विषय हैं । रोबोट्स को ज़्यादा से ज़्यादा सक्षम बनाने के तरीके हैं। उनमें जितना ज़्यादा दिमाग़ और अलग-अलग तरह का मानवीय-कोशिकीय प्रवेश बढ़ता जाएगा, उतना ही उनके इंसान की तरह काम करने के तरीक़े भी। 

जो काम कोई भी जीव कर सकता है, वो मशीने क्यों नहीं कर सकती? सोचो, मशीने अगर वो सब करने लगी, तो ये जीव या इंसान क्या करेंगे? एक बड़ा मानव आबादी का हिस्सा मानता है, की हम सबको किसी भगवान ने पैदा किया है। सोचो, अगर इंसान भगवान वाले काम करने लगा, तो इंसान और भगवान में फ़र्क क्या रहेगा? सोचिये, भगवान को किसने बनाया है? शायद किसी इंसान ने ही? अगर हम बच्चे को भगवान के बारे में बताएं ही ना या बचपन से ही भगवान या भगवानों पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू कर दें, तो क्या होगा? बच्चा क्या सीखेगा? यही की इंसान ही भगवान है? या भगवान जैसी शक्ति पे संदेह है? या भगवान होता ही नहीं? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे बच्चे को आप पैदा कहीं भी करें, मगर वो क्या बनेगा, और क्या सीखेगा, ये उसकी परवरिश करने वालों और उसके आसपास के माहौल पे निर्भर करता है। जैसे किसी भारत में पैदा हुए बच्चे को, अमरीका या इंग्लैंड में कोई गोद ले ले? तो वो कौन सी भाषा, बोलचाल या रहन सहन सीखेगा? वैसे ही, किसी अमेरिका या युरोप में पैदा हुए बच्चे को आप भारत के किसी भारतीय तोर-तरीकों वाले घर में पालें तो? शायद वही जो उसे सिखाया जाएगा। इसे परवरिश का असर (Environmental Conditioning) भी कहा जाता है। मतलब, हमारी जुबाँ, हमारे रहने-सहने के तरीके, सिर्फ़ हमारे बारे में नहीं बताते। वो हम कैसे माहौल में रह रहे हैं, उसके बारे में शायद कहीं ज़्यादा बताते हैं।  

आप कितनी स्वचालित मशीने प्रयोग करते हैं? या कितनी ऐसी मशीनो के बारे में जानते हैं?

शायद सेमि-आटोमेटिक या आटोमेटिक वाशिंग, वैक्यूम क्लीनर, Microwave, AC, Green House, Drones, व्हीकल्स आदि? या तो इनमें से कोई न कोई प्रयोग कर रहे होंगे या सुना होगा। कैसे काम करती हैं ये मशीने? इनकी काम को करने की योज़ना (Programming) या काम को करने का तरीक़ा या विधि (Processing) कैसे होती है? कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे आपके दिमाग़ संचालित शरीर (मशीन) की। 

अगर आपको कपड़े धोने हैं, तो कैसे धुलेंगे? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या बताया जायेगा। फिर दिमाग़ बताएगा, आगे क्या-क्या करना है या चाहिए। वो सब मिल गया और आपने (मस्तिक संचालित, शरीर ने) कर दिया तो हो गया।  

अगर आपको सफ़ाई करनी है तो कैसे होगी? पहले आपके दिमाग़ में आएगा या उसे बताया जायेगा। फिर उस काम को करने के लिए, जो-जो चाहिए, वो लेंगे और सफाई करेंगे।     

बस इतनी सी बात, इसमें क्या खास है? तो यही काम आपकी बजाये किसी मशीन को देना है। कैसे बनी होगी वो मशीन? इंसान के शरीर की तरह एक बॉडी चाहिए, एक दिमाग, काम को करने की योज़ना (Programming) और काम को करने का तरीक़ा या प्रकिर्या, काम करने की विधि (Processing). 

आपके यहाँ गर्मी बहुत है। तापमान 40-45 पहुँचा हुआ है। क्या करेंगे? AC प्रयोग करेंगे, जो अपने आप, आपके कमरे या घर को वातानुकूलित कर सके। कैसे करता है, वो ये सब?   

Green House में ज़्यादा गर्मी या सर्दी के मौसम में भी अलग अलग मौसम की फसलें उगाई जा सकती हैं, ऐसे ही वातानुकूलित जग़ह बनाकर। आपको पानी देने की जरूरत भी नहीं।  वो भी अपने आप हो जाएगा। ये भी एक तरह की programming या processing ही है। 

ड्रोन्स (Drones), आदमी रहित कार या विमान, ही नहीं, शायद और भी बहुत सारी मशीने, आप अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करते होंगे या उनसे रूबरू होते होंगे। वो खेत की मशीने हो सकती हैं, अस्पताल की या शायद आपके ऑफिस की। 

ये तो हुआ, आदमी के काम आसान करने वाली मशीने बनाना। 

क्या हो, अगर आदमी को रोबोट्स की तरह प्रयोग किया जाए या किया जा रहा हो? 

सामाजिक घड़ाई (Social Engineering)

आपके अपने आसपास से ही, आने वाली, आगे की कुछ पोस्ट्स में। कोशिश रहेगी, किसी एक के केस या कुछ के cases को सीधे-सीधे न लिख कर, सिर्फ़ उन पहलुओं के बारे में विचार हो। यहाँ पे मक़सद सिर्फ़ आपको एक ऐसे सिस्टम की जानकारी देना है, जो आपकी जानकारी के बैगर, आपको खुद अपने ख़िलाफ़ और आपके अपनों के ख़िलाफ़ प्रयोग कर रहा है। और किसी भी तरह से, आम आदमी के हक़ में नहीं है। उस सबकी जानकारी, काफी हद तक, उसके दुष्प्रभावों को रोक सकता है।  

Friday, March 24, 2023

Manifestations and Manipulations ((Parrallel Cases Studies)

Manifestations and Manipulations  हिंदी में कहें तो शायद, "शाम, दाम, दंड, भेद", कुछ-कुछ ऐसा ही है। 

चालकियाँ, षड्यंत्र, बदलना, छीनना, झपटना, आँख में धुल झोंकना और भी बहुत कुछ ऐसा ही -- सत्ता के साधन थे, हैं और रहेंगे। 

मगर ये सब -- आम आदमी के लिए कितना सही है ? प्रश्न सिर्फ और सिर्फ ये है। क्यूँकि भुगतान ज्यादातर, आम आदमी सबसे पहले और सबसे ज्यादा करता है। 
इससे पहले की सामाजिक ताने-बाने की घड़ाई के पहलुओं पर जाएँ या सीधा सामाजिक घड़ाई वाले cases की studies पर, कुछ प्रश्नो से और जहाँ तक हो सके, उनके उत्तरों से रूबरूँ होते हैं।  

क्या कोई किसी को control कर सकता है? 

ऐसा, पहले से ही हो रहा है। कर सकता है जैसा, प्रश्न ही नहीं है। हाँ। फर्क, इतना है की किसी को कम तो किसी को ज्यादा। प्रश्न है, तो ये की किस तरह के इंसान, जल्दी काबू में किये जा सकते हैं? और, किस तरह के इंसान, टेढ़ी-खीर साबित हो सकते हैं?   

कमजोर आदमी, किसी भी तरह से हो, जल्दी क़ाबु में आएगा। वो कमजोरी भावनात्मक हो सकती है, पैसे की हो सकती है और गुंडागर्दी के माहौल में muscular भी। खासकर जब न्यायतंत्र ख़िसका हुआ हो। इनके परे भी, बहुत तरह की और कमजोरियाँ हो सकती हैं। जो आपको आगे आने वाले case studies से पता चलेंगी। 

दूर बैठा, आपकी मानसिक या भौतिक स्थिति जानकार, उनमें आपकी जानकारी के बैगर, बदलाव ला सकता है ? 

अगर हाँ, तो किस हद तक? और कैसे? 

अगर, आपको मौसम की जानकारी हो, तो क्या-क्या वो कर सकते हैं, जो बिना जानकारी नहीं कर सकते? मौसम विभाग, जो सुचनाएं देता है, वो कैसे प्राप्त करता है? और आप तक कैसे पहुँचाता है?  

कब, कहाँ और कितनी बारिश होगी? कहाँ आंधी या तूफ़ान आएगा? कहाँ, कितनी धूंध रहेगी? कितना दिखाई देगा? वातावरण में, कितना जलवाष्प है? सुबह, श्याम या रात का तापमान कितना रहेगा? 

इनसे भी परे क्या भूकम्प, आँधी, तूफान या बारिश जैसी प्राकृतिक परिस्तिथियाँ घडी भी जा सकती हैं? 

Google Map,  Google  Earth और ऐसे कितने ही Apps देशों, शहरों, गलियों, खास-खास इमारतों, कहीं-कहीं तो घरों और उनके 3D तक की जानकारी कैसे देती हैं? उन्हें कैसे पता चलता है, कहाँ पानी है, जलाशय हैं? मतलब तालाब, झील, सागर, नदी, झरने आदि। और कहाँ-कहाँ रिहायशील इलाके, मैदान, पहाड़, जंगल या रेगिस्तान। कहाँ छोटी सड़कें, राज्यस्तरीय सड़के, राजमार्ग या अंतर्देशीय? किस और कितने इलाके में कौन-सी फसल उगती है? ऐसी ही और भी ढेर सारी जानकारियाँ, दुनियाँ के इस कोने में बैठा इंसान, दुनिया के दूसरे कोने में कैसे जान सकता है या पहुँचा सकता है? 

शायद आप में से बहुत-से, ये सब पहले-से जानते हैं।  इसमें नया क्या है?

क्या जलाशयों को भरा या खाली किया जा सकता है? रेगिस्तान को हरा-भरा और हरे-भरे को रेगिस्तान बनाया जा सकता है? मैदान को पहाड़ और पहाड़ को मैदान बनाया जा सकता है? जो फसलें किसी इलाके में उगती हैं, उन्हें खत्म कर, नयी उगाई जा सकती हैं और पुरानी खत्म की जा सकती हैं? धरती का पानी का स्तर कम या ज़्यादा किया जा सकता है? धरती के खारे पानी को मीठे में और मीठे को कड़वे में बदला जा सकता है? अगर हाँ, तो किस हद तक?     

अगर आप इन सबके उत्तर जानते हैं तो आपके घरों में या आसपास में जो हो रहा है, उसे समझना मुश्किल नहीं होगा।   

क्या आम आदमी को रोबोट्स की तरह रिमोट कंट्रोल किया जा सकता है? 

ये भी पहले से ही हो रहा है। फ़र्क, सिर्फ़ इतना है, किस हद तक? और कैसे?  जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी (technology) बढ़ रही है, उसमें नए-नए अविष्कार हो रहे हैं, और उनका विस्तार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आमजन को नियंत्रण करना आसान हो रहा है। 

अगर ऐसा समाज में हो रहा है, तो कौन हैं वो, जो ये सब कर रहे हैं? 

और जिनके साथ हो रहा है, उन्हें इसकी कितनी जानकारी है? 

क्या-क्या तरीके हैं, ये सब करने के? और कैसे जान सकते हैं, की आप कहाँ-कहाँ और कितना रिमोट कंट्रोल हो रहे हैं? 

सँचार माध्यमों की भुमिका ऐसे में बहुत अहम् है। मगर क्या हो, अगर सन्चार माध्यम भी, आम आदमी के साथ न हों? 

राजनीतिक पार्टियों के, आपसी लड़ाई के माध्यम-मात्र हों? कोरोना जैसी, युधि-जंगे, आदमख़ोर की तरह, आम-इंसान को खा जाती हैं। और ज़्यादातर तबके को पता ही नहीं चलता, की हो क्या रहा है? इससे बड़ा विश्वस्तर पर, आमजन को रिमोट कंट्रोल का उदाहरण, भला और क्या हो सकता है? 

कोरोना को अगर आँखबंद नज़र अंदाज़ भी कर दें, तो भी, आम आदमी की ज़िंदगी इस तरह के नियंत्रण के माहौल में जो हिचकोले खाती है, उसका अंदाज़ा तक आम-आदमी को नहीं है। उसे लग रहा है, वो सब खुद कर रहा है। मगर हक़ीक़त, इसके काफ़ी हद तक विपरीत है। 

कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे एक पार्टी इधर खींचे, दूसरी उधर, तो इधर-उधर के जाली ताने-बाने में फंसे लोगों का क्या होगा? इधर या उधर के जालों से परे, वो अपनी ज़िंदगी, अपने हिसाब से कब जियेंगे?  

ये जाली ताने-बाने ही रिमोट कंट्रोल हैं। 

किस तरह के इंसान, जल्दी काबू में किये जा सकते हैं? 

किस तरह के इंसान, टेढ़ी-खीर साबित हो सकते हैं?  

इसके पीछे विज्ञान है या जादू?

कैसे निपटा जा सकता है, ऐसे दुष्प्रभावों से, और ऐसा करने वाले लोगों से

Wednesday, March 22, 2023

Manifestations and Manipulations (Parrallel Cases Creations)

 Manifestations and Manipulations

हिंदी में बोलें तो, मैं जो चाहूँ, वो मैं पाऊँ, बस इतना-सा ख़्वाब है। 

मतलब, आप जो सोचें वो आपको मिल जाए? क्या ये किसी जादू से संभव है ? या तरीके हैं उसे पाने के? आपको जो चाहिए, उसके अनुसार मेहनत करनी पड़ेगी।   

आप जो चाहें, वो पा जाएँ। क्या ये संभव है ? अगर हाँ, तो कितना ? और कैसे ?

एक बच्चे को खिलौना या खाने-पीने की चीज़ें चाहियें। कैसे मिलेंगी ?

एक विद्यार्थी को एक क्लास से दुसरी क्लास जाना है ? कैसे जाएगा ?

एक वयस्क को घर चाहिए, गाड़ी चाहिए, पैसा चाहिए। कैसे मिलेगा ?

ज़्यादातर जानते हैं, इन कैसे का ज़वाब। क्या-क्या करने से मिलेगा। 

एक नेता को कुर्शी चाहिए। कैसे मिलेगी ?

एक पार्टी को सत्ता चाहिए। कैसे मिलेगी ?

विपक्ष को सत्ता चाहिए। कैसे मिलेगी ?

एक कुवाँरे को शादी। 

एक शादीशुदा को पत्नी या पति से मुक्ति। 

दो या तीन को एक ही वस्तु चाहिए। वो कोई भौतिक वस्तु भी हो सकती है। जैसे मकान, धन दौलत आदि। किसी भी तरह का रिस्ता भी हो सकती है।

ज़्यादातर जानते हैं, ये सब कैसे पाया जा सकता है। 

लेकिन अगर कोई कहे, मुझे तो सामने वाले को नियंत्रण (control) करना है? अपने वश करना है। या अपने कहे अनुसार चलाना है। वो सामने वाला कोई एक भी हो सकता है या हजारों, लाखों, करोड़ों आम नागरिक भी। कौन चाहता है ऐसा करना? और क्यूँ ? दूसरों पे राज करने की चाहत? 

क्या कोई किसी को control कर सकता है? दूर बैठा, आपकी मानसिक या भौतिक स्थिति जानकार, उनमें आपकी जानकारी के बैगर, बदलाव ला सकता है ? 

अगर हाँ, तो किस हद तक? और कैसे? क्या आम आदमी को रोबोट्स की तरह रिमोट कंट्रोल किया जा सकता है? अगर हाँ तो कैसे? किस तरह के इंसान, जल्दी काबू में किये जा सकते हैं? और किस तरह के इंसान, टेढ़ी-खीर साबित हो सकते हैं?  

अगर ऐसा समाज में हो रहा है, तो कौन हैं वो, जो ये सब कर रहे हैं? और जिनके साथ हो रहा है, उन्हें इसकी कितनी जानकारी है? 

क्या-क्या तरीके हैं, ये सब करने के? इसके पीछे विज्ञान है या जादू?

कैसे निपटा जा सकता है, ऐसे दुष्प्रभावों से, और ऐसा करने वाले लोगों से

Manifestations and Manipulations  हिंदी में कहें तो शायद शाम, दाम, दंड, भेद, कुछ-कुछ ऐसा ही है। 

चालकियाँ, षड्यंत्र, बदलना, छीनना, झपटना, आँख में धुल झोंकना और भी बहुत कुछ ऐसा ही, आम आदमी के लिए कितना सही है ? 

Sunday, March 19, 2023

Parrallel Cases Creations (Manifestations and Manipulations)

समान्तर cases बनाना या घड़ना 

साथ-साथ चलती उन लाइन्स की तरह हैं, जो साथ-साथ तो चल सकते हैं, मगर बिल्कुल एक जैसे नहीं हो सकते। हर केस, अलग है, वैसे-ही, जैसे हर इंसान, हर घर, मोहल्ला, शहर या देश। 

दो या ज़्यादा नाम एक जैसे होने से भी, वो एक जैसे नहीं हैं। उनके माँ-बाप, उनके भाई-बहन, रिश्ते-नाते, घर का और बाहर का माहौल, पढ़ाई-लिखाई सब अलग है। उनके सपने, उमीदें, ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव, अनुभव और चुनौतियाँ, सब अलग हैं। मगर फिर भी राजनीतिक पार्टियाँ कोशिश करती हैं, उन्हें बिलकुल एक-जैसा दिखाने की, अपनी-अपनी घड़ाई के अनुसार। राजनीतिक ज़रूरतों के अनुसार, एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की। 

सबसे बड़ी बात, जो आम आदमी की जरूरतें हैं, राजनीतिक पार्टियों की जरूरतें वो हैं ही नहीं। उनकी कुर्सियाँ, खासकर भारत जैसे देश में, आम आदमी की जरूरतों को पुरा करने से नहीं चलती। बल्कि शौषण करने से चलती हैं। इसीलिए आम आदमी यहाँ नेताओँ को साहब समझता है और सलाम ठोकता है। जिस दिन वो पलट जाएगा, उस दिन भारत भी गरीबों का अड्डा नहीं रहेगा। एक तरफ़ आसमान छूती इमारतें और दुसरी तरफ़ झुगी झोपड़ी नहीं दिखेंगीं। 

इसे कुछ यूँ भी समझ सकते हैं : 
एक परिवार में एक बच्चा है, लाड प्यार से पला बढ़ा।  दूसरे में कई, मगर उसी हिस्से में पलते-बढ़ते हैं। 
एक में, लड़का-लड़की बराबर हैं। दूसरे में, लड़की के पैदा होते ही माथे पे त्यौरियां पसर जाती हैं। हाय-तौबा मच जाती है। हर हाल में उन्हें लड़का चाहिए। चाहे, पैदा करने वाली के शरीर तक के हालात न हों। 
एक परिवार पढ़ा-लिखा है, शहर रहता है। या विदेश।  दूसरा कम पढ़ा-लिखा और गांव या झुगी झोपड़ी। 
एक की सुबह पढ़ने-लिखने से शुरू होती है, दूसरे की झाड़ु-पोचे से। 
एक घर में हर वक़्त शांति रहती है, दुसरे में चैचै-पैंपैं। 
एक में राम-राम, नमस्ते, हाय-हेल्लो से सुबह-श्याम, दूसरे में गाली-गलौज। 
उनके बच्चे बड़ों के साथ-साथ, बड़ों की सी राजनीतिक सतरंज खेलना सीखने हैं। और आपको ये भी न पता हो, ये खेल क्या होते हैं? 
उनके बच्चे अलग-अलग भाषा, बातों-बातों में या रहन-सहन से ही सीख लें और आपके?
उनके बच्चे पैदा होते ही नए-नए गैजेट्स चलाना सीख जाएँ। नयी-नयी टेक्नोलॉजी के अभ्यस्त, रहन-सहन के तरीकों से ही हो जाएँ। और आपको उन  सबका अंदाज़ा ही न हो, की वो बला क्या हैं? 
और भी कितनी ही अलग-अलग या विपरीत परिस्थियाँ हो सकती हैं। 

क्या ऐसी विपरीत परिस्थियों में, नाम एक जैसे होने से, ज़िंदगियाँ भी एक जैसी हो सकती हैं? ऐसे ही सामान्तर cases हैं। ज़्यादातर में परिस्तिथियाँ बहुत ही अलग-अलग हैं, मग़र फिर भी राजनीतिक पार्टियाँ, उन्हें एक-जैसा दिखाने या घड़ने की कोशिश करें, तो क्या होगा? और आम आदमी भी उसका हिस्सा बन जाए तो?

मतलब, आम-आदमी, अपनी ज़िंदगी या परिवार या मोहल्ले के लिए काम न करके, मुफ्त में राजनीतिक पार्टियों के लिए काम कर रहा है। मतलब, खुद ही अपना और अपने परिवार का शौषण करवा रहा है। 
यही नहीं, आपस में भी बँट गया है या बाँट दिया गया है। कहीं-कहीं तो एक दूसरे के खिलाफ ही खड़ा हो गया है। तो क्या होगा?

आप शौक पालें अमीरों के, और काम करें गरीबी लाने वाले? शायद ऐसा ही कुछ?

Manifestations and Manipulations 
(चालकियाँ, षड्यंत्र, बदलना, छीनना, झपटना, आँख में धुल झोंकना और भी बहुत कुछ)
 या यूँ कहो, आम-आदमी को रोबोट्स की तरह रिमोट कंट्रोल करना -- आगे की किसी पोस्ट्स में।   

Saturday, March 18, 2023

Parallel Cases Creations and Enforcements

In society, such cases creations and enforcements are even more visible and dangerous. Ditto, Campus Crime Series and loopholes.

"Whatever is happening in the office, is happening in the campus house and surrounding. Also, happening in the home (village) and surrounding, also happening in the relatives, friends and surrounding, also happening in the politics of this party or that party or government" --  2017 या 2018 में, पहली बार नोटिस किया। तभी से ये केस-स्टडीज, किसी न किसी form में जारी हैं। 

How is that possible?

कैसे सम्भव है की जो आफिस में चल रहा हो, वैसा ही कुछ कैंपस घर और उसके आसपास? जो वहाँ हो रहा हो, वैसा ही कुछ गांव वाले घर और आसपड़ोस में? वैसा ही कुछ रिश्तेदारों और दोस्तों के घरों और उनके आसपड़ोस में? क्या ऐसा कुछ अपने आप सम्भव है? 

आदमी अलग, जगह अलग, विचार अलग, ज़िंदगियाँ अलग, कई बार तो रहन-सहन इतना अलग, जैसे ज़मीन और आसमान। मगर प्रतीत ऐसा हो, जैसे एक जैसा-सा ही हो रहा हो। वो भी अपने आप?

अपने आप जैसा कुछ नहीं है। हर जगह, जबरदस्ती, कुछ-कुछ वैसा ही करने की कोशिशें हो रही हैं। जितना हो जाए, उतना बढ़िया। बाकी बातों से लपेट दो। कौन हैं ये लोग, जिनकी इतनी पहुँच है, की वो यहाँ भी हैं, और वहाँ भी? वहाँ भी हैं, और वहाँ भी ? 

राजनीतिक पार्टियाँ और उनकी पैठ, समाज के हर हिस्से पे है। Universities, Schools से लेकर, मंदिर-मस्जिद तक। किसान से लेकर बाज़ार, व्यवसायों तक। अस्पताल से लेकर, फौज तक। दुनिया के इस कोने से लेकर, उस कोने तक। 

जाने, कौन हैं ये लोग, जो ऐसे-ऐसे parallel cases की घड़ाई कर, दुनिया भर की ज़िन्दिगियाँ बर्बाद करते हैं? दिमाग़ तो दिमाग़ वाले लगाते हैं, मगर वो ये सब करवाते हम सबसे ही हैं। हमारे अपने खिलाफ़, हमारे अपनों के खिलाफ़। इस खेल में सबसे खतरनाक वो लोग हैं, जो आपको दिन-रात 24 घंटे सुन सकते हैं, देख सकते हैं। उससे पता चलता है की आपकी या आपके परिवार की या आसपास की कमजोरियाँ कहाँ-कहाँ हैं, ताकि उनको बढ़ा-चढ़ा कर खुद आपके खिलाफ या आपके अपनों के खिलाफ प्रयोग किया जा सके। आपस में भिड़ाया जा सके। अलग-थलग किया जा सके। मन में एक दुसरे के खिलाफ नफ़रत भरी जा सके। 24 घंटे, सुनने-देखने की क्षमता रखने वाले सिर्फ आपकी कमजोरियाँ ही नहीं जानते, आपकी ताक़त भी जानते हैं। उसे भी धीरे-धीरे खत्म करने की कोशिशें होती हैं। ये हो गया तो समझो उनका खेल पुरा हुआ। 

मेरे आसपास, इस सबको मैं, पिछले कई सालों से प्रतिदिन नोटिस कर रही हूँ। इस राजनीतिक तानेबाने की बेहुदगी की हदें, अक्सर मौतों पे ज़्यादा साफ़ साफ़ और अपने क्रूर रूप में दिखती हैं। 

अभी दो दिन पहले की बात है, बच्चा आपको बोलता है, मेरी अलमारी की सफाई करवाओ। नयी क्लास की किताबें आएँगी और कुछ जगह भी खाली करनी है। आप लग जाते हैं साथ में। इस दौरान कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिससे लगता है, ये सब बच्चे के पास कहाँ से आ रहा है? और आप बोलते हैं, ये सब आपके लिए नहीं है, केवल वही रखो, जो आपके लिए अच्छा हो। वो मान जाती है। 

मगर, उस सबके काफी देर बाद, वो कुछ लेकर आती है, और पूछती है, ये कैसा है? 

मैंने कहा, ये अच्छा नहीं है। बहुत ही अजीब-सा है। तुमने बनाया? 

उसने कहा, नहीं, मम्मी के किसी student ने। 

तभी। क्यूँकि ये रंग तो आपके किये हुए लग ही नहीं रहे। 

अच्छा! 1st या 2nd क्लास में बच्चा क्या बनाएगा? 

पता नहीं क्यों, पर ये ड्राइंग मुझे बड़ी अटपटी लग रही थी। फिर मैंने कहा, लेकिन ये रंग थोड़े ज़्यादा dark हैं शायद। ये बदले जा सकते हैं, और भी कुछ अच्छा add किया जा सकता है। 

उसने मेरी तरफ़ देखा और फिर बोली, पता है ये क्या है? उधर देखो -- एक पेड़ की तरफ़ इशारा किया और बोली, तूफ़ान।  

इससे पहले की मैं कुछ आगे बोलती, उसने कहा चलो छोड़ो, drawing करते हैं, दिवार पे। उधर बहार वाले कमरे की दीवारों पे। ये कमरा, उसका खेलने का कमरा भी है। 

मगर, वो कमरे से एक कुर्सी निकाल के लायी और बाहर वाले बाथरूम की दिवार पे कुछ बनाना शुरू कर दिया। ज़्यादा देर नहीं लगी समझने में, ये सब कहाँ से आया होगा?

ये कमरा और बाथरूम , 16. 4 . 2 0 1 0 तक दादा जी का था।  जैसे दादा जी के आसपास, चीज़ों की घड़ाई और कहानियाँ गुँथी गयी, वैसे ही वक़्त के साथ-साथ, इस कमरे और बाथरूम का भी रंग, रूप, स्वरुप और इसे प्रयोग करने वाले या इससे बेदखल होने वाले। 

ऐसा ही हाल घरों का या किसी भी ऑफिस का है। राजनीतिक पार्टियां जो रचती हैं, वो सिर्फ एक जगह नहीं होता, बल्कि जहाँ-जहाँ उनकी पार बसाती है, वहाँ-वहाँ होता जाता है। ये दख़ल, जितना ज़्यादा होता है, वो case उतना ही, वैसा-वैसा सा ही दिखने लगता है। वही parallel cases हैं। 

जहाँ-जहाँ पता चले, की यहाँ कुछ गलत हुआ है, और ऐसा ही कुछ कहीं और घड़ने की कोशिश हो रहीं हैं, तो उसे रोकना आसान हो जाता है। इसीलिए इन्हें घड़ने वाले ज़्यादातर, इनके दुष्प्रभावों से बच निकलते हैं, मगर आम-आदमी मारा जाता है। 

Friday, March 17, 2023

Political Gambling and Cryptic World-2

How is that possible?

बुरा वक्त सिर्फ प्रश्न नहीं लिए होता, बल्कि, कभी-कभी जवाब भी साथ लिए होता है? 

ऐसा ही कुछ, इस दौरान हुआ और शायद हो रहा है।

1st Feb, 2023

"दीदी, ये क्या हो रहा है ?"  

"राजे-महाराजों के युद्ध में आखिरी लाइन की गोटियाँ हो, जो सबसे पहले खत्म होती हैं। जिनके पास न दिमाग़ है, और न ही पैसा। दोनों में से एक भी हो, तो कुछ हद तक तो बचाव हो ही जाता है। "

2nd, Feb, 2023 

"ये कुत्ता यहाँ क्या करने आया है? जले पे नमक छिड़कने?"

"राजनीती है ये। सिर्फ़ जले पे नमक नहीं।"

"इग्नोर मारो। ज़्यादा भेझे पे लेने की जरुरत नहीं। "

3rd, 4th 2023  

"कौन कितना लूटी, कौन कितना पीटी और भी पता नहीं क्या-क्या! कहानियाँ ही कहानियाँ!" 

और उसके बाद टॉपिक ही बदल गया। थोड़ी दूरी पे, एक और औरत की मौत हो गयी थी। उसकी मौत की कहानियाँ, ऐसे आ रही थी, जैसे बताने वाले के पास ही सारा सच है। इधर वाला, इधर की घड़ाई घड़ रहा था। उधर वाला, उधर की। इससे ये भी कुछ-कुछ समझ आया, की लोग जितने ज़्यादा ठाली हैं, उतनी ही ज़्यादा तरह की घड़ाई हैं।

इसी दौरान, कुछ और भी शुरू हो चुका था, जो ज़्यादा अहम् था। या मौलड़ ही कुछ ज़्यादा हैं? -- की, जाने वाली को अभी, दो-दिन नहीं हुए, नयी लाने वालों के चर्चे शुरू हो गए! या शायद, एक ख़ास किस्म की पढ़ाई का असर, जो कहीं न कहीं,  इस या उस राजनीतिक तानेबाने से परोसी जा रही है? क्यूँकि, ऐसा व्यवहार करने वाले खुद कहीं न कहीं भुक्तभोगी हैं। और परिस्थितिवस, राजनीतिक शौषण और मानसिक दुहन का शिकार भी? 

इसका साफ़-साफ़ असर, बच्चे के अचानक बदले व्यवहार और अजीबोगरीब प्रश्नों से समझा जा सकता था। तेहरवीं तक के वक़्त की दूरी में ही, उस अपरिपक्कव दिमाग़ में, इतना कुछ आ चुका था या ठूसा जा चूका था, जो सिर्फ़ और सिर्फ, राजनीतिक किस्म की घड़ाई से आ सकता है। या कुछ हद तक, जो आसपास उसने सुना, उसके असर से भी? 

ज़मीन जायदाद की बातें। दिमाग के ऊपर से निकलती हुयी, इधर-उधर की बातें। काम की बातों से परे, बेक़ाम की बातें। मगर बच्चों के साथ अच्छा ये होता है, की ऐसी पढ़ाई, बहुत-ही क्षणिक असर वाली होती है। उसपे, वो जल्दी ही उड़ेल भी देते हैं, की किसने क्या कहा! 

बहुत बार, बहुत-सी चीज़ें, आप ये सोचकर जाने देते हैं, की पता नहीं सामने वाला किस परिस्थिति से गुजर रहा है। ऐसी बहुत-सी परिस्थितियों में जो समझ आया, वो ये, की शायद parallel cases घड़ने की, कुछ ज़्यादा ही कोशिशें  हो रही हैं। हक़ीक़त, जो घड़ने की कोशिश है, उसके आसपास भी नहीं है। इस पार्टी की कुर्सियाँ, ये घड़ने से चलती हैं। तो, उस पार्टी की, वो घड़ने से। इस घड़ाई में, आम-आदमी की चिंता या फ़िक्र है ही कहाँ? वो फिर चाहे बच्चा ही क्यूँ न हो। 

Ditto, Campus Crime Series and loopholes. That's why I said, " In society, such cases creations and enforcements are even more visible and dangerous." 

राजनीती के इन जालों में उलझकर बहुत से आम आदमी यही भूल गए हैं, की ये रस्साकस्सी राजनीतिक है। उनकी ज़िंदगी का हिस्सा ही नहीं है। फिर क्यों वो जबरदस्ती उस रस्साकस्सी का हिस्सा बन रहे हैं? 

Political Gambling and Cryptic World-1

(Part of Political Gambling and Cryptic World)

Semiautomation and Highly Enforced

1st Feb, 2023 or 01, 02, 2023?

One of the worst and totally unexpected, happened in last few years. How things were before that? How things are after that? What's happening right now? 

Rather question must be, who is next in line, the way enforcement agendas are under way? Whose enforcement agenda? Who are these enforcers? And who are the ones, who are "looking like" doing all?

16   4     2010

16   4, 2023, can join back your job?

Or 16, 6   (1   66?)?

17 or 15 or ?

Or 70, 71, 72 or 51, 52, 53 or 41, 42, 43 or 31, 32 or 31

52, what's so special about it?

Who lives life like that?

Gamblers?

Political System works like that?

Academic institutes run like that?

Courts judges, like that?

Judges, not just politicians behave like that?

A society under such kinda system known as automation? Semiautomation? Highly Enforced Political Designs?

How could it affect even a child or an elder?

Remember, my earlier posts, "Whatever is happening in the office, is happening in the campus house and surrounding. Also happening in the home (village) and surrounding, also happening in the relatives, friends and surrounding, also happening in the politics of this party or that party or government"

How is that possible?

Thursday, March 16, 2023

फुट डालो, राज करो-- राजनीती!

उन्हें ये तो मालुम है, की जो कुछ हो रहा है, वो सही नहीं हो रहा। मगर, ये सब गड़बड़ क्यों और कैसे हो रहा है, ये नहीं मालूम।  

ज़्यादातर बच्चे इस कुंबे में माँ-बाप में से किसी एक ने पाले हैं, क्यूँकि दूसरा किसी भी कारणवश दुनियाँ में ही नहीं रहा। इस कुन्बे की ज़्यादातर लड़कियाँ युवावस्था में ही, किसी भी कारणवश वापस घर बैठ गयी। और भी कुछ-कुछ ऐसा ही, इस दौरान सुनने में आया। काफ़ी हद तक हकीकत भी। क्या कारण हो सकते हैं?  ये सब सुनकर या जानकार, सीधा सा प्रश्न दिमाग़ में यही आएगा। 

किसी भी मौत के बाद का शौक समय, खासकर तेहरवीं तक का, मेरे लिए पहली बार इतने पास से देखने-समझने का था। इतने सारे सवालों के साथ-साथ, कहीं न कहीं, बहुत से जवाब भी लिए हुए था।  

राजनीती 

उनमें, राजनीती और उसकी क्रूरता और निर्दयता एक है। मौत पे भी राजनीतिक जुआ! -- Kinda Checkmate! आप राजनीती को पसंद करते हैं या नहीं? आपके आसपास कोई राजनीती में है भी, या नहीं?  ये सब भी जरूरी नहीं है। राजनीती फिर भी, आपकी ज़िंदगी का हर पहलु तय करती है। 

फुट डालो, राज करो 

ये वो जुआ है, जिसमें राजे-महाराजों ने पुरे समाज को ही एक दुसरे के ख़िलाफ़ खड़ा किया हुआ है। जो जितने बेवकूफ़ हैं, वो उतने ही राजे-महाराजों के सैनिक ज्यादा हैं। वो, जो ये तक नहीं सोच सकते, की इसमें तुम्हारा अपना या अपनों का कितना भला है? 

फुट डालो राज करो, जैसे उनकी माँ, बेटी या बेटे की आपस में नहीं बनेगी, तो तुम्हारा भला होगा। वो या ये, घर बैठेगी या बैठेगा, या इसकी या उसकी आपस में बिगड़ेगी, तो मेरा वैवाहिक वक़्त ठीक होगा। वो गाँव आ गया या आ गयी तो हमारी नैया पानी में गयी। वो शहर गया या गयी तो हमारी। और भी पता नहीं क्या-क्या! वैसे इसमें अज़ीब जैसा क्या है? इंसानी फिदरत है। खासकर, अंदर से असुरक्षित या कमज़ोर इन्सान की? या कुछ ज़्यादा ही ठाली इंसानो की? 

या शायद कुछ और भी है? राजनीतीक जुआ? और इन असुरक्षित मह्सूस करने वाले इंसानों के दिमाग़ में, अलग-अलग पार्टीयों द्वारा, भेझे में ठूस-ठूस कर भरा गया कूड़ा? ये वो है, जो होता है, मगर दिखता नही। या यूँ कहें , "जो होता है, वो दिखता नहीं और जो दिखता है, वो होता नहीं"? या शांत दिमाग से देखने-समझने लगो -- दिखेगा भी, और समझ भी आने लगेगा, की जो दिख रहा है या सुन रहा है, उसके पीछे वज़ह क्या हैं?   

इसका सबसे बुरा असर किसपे होता है? शायद बच्चों पे? और बुज़र्गों पे? 

Sunday, March 12, 2023

Semiautomation and Highly Enforced!

Semiautomation and "Highly Enforced, either by hook or crook" -- parallel cases creations in society.

गावँ में अपनी एक छोटी-सी, पढ़ने-लिखने की जगह बनाने की वजह, किन्हीं कारणोंवस या जिज्ञासावस, लगता है, ग़लत निर्णय नहीं था। अब उसमें परिस्थितिवस, कुछ और भी आ जुड़ा है। गाँव का रस्ता मेरे लिए, बहुत से प्रश्नों के उत्तर जानने की जिज्ञास्यावश भी था और एक तरह की मजबुरी भी। मजबुरी, जहाँ आप सुरक्षित महसूस कर सकें, अपनों के बीच महसूस कर सकें -- अजीबोग़रीब फाइल्स के इकट्ठा करने के बावज़ूद। इस गुजरे वक़्त में तक़रीबन फाइल्स को मैं निपटा चुकी हूँ। इसलिए मुझे अब उनकी सुरक्षा कैसे हो, वो ख़तरा नहीं है। 

कहते हैं, आपकी खुशियाँ या आपकी समस्याएँ, ज़्यादातर जहाँ आप रहते हैं, वहाँ की देन होती है। अगर आपको लगता है, की ज़िन्दगी में कुछ सही नहीं जा रहा, तो अपनी जगह बदल लीजिए। शायद कुछ सही हो जाए। मगर, यहाँ वो जगह बदलने का मतलब, कुछ किलोमीटर इधर या उधर से नहीं है। क्यूँकि राजनीती का प्रभाव ज्यादा कोई खास नहीं बदलाता। उल्टा, ज्यादातर ज़िंदगी एक वातारण में रहने के आदि होने के बाद, उससे बाहर सामजस्य बनाने में, शायद थोड़ा वक़्त भी लगता है। हाँ! उटपटाँग फाइल्स से मुक्ति मिल गयी। काफी हद तक cases से भी, शायद। लिखाई-पढ़ाई का अगला जो क़दम है, उसका रास्ता भी यहीं से गुजरता है। दूर बैठकर वो सब जानना-समझना मुमकिन ही नहीं था। 

इस थोड़े से वक़्त में कई उतार-चढ़ाव देखे।  कुछ भले के लिए, तो कुछ, ज़िंदगी को, एक घर को, जैसे पटरी से ही उतार गए। हर इंसान का अपना एक महत्व होता है। किसी की ज़िंदगी में थोड़ा कम, तो किसी की ज़िंदगी में ज़्यादा। मौतें, पहले भी कई देखी। मगर ऐसे माहौल में, मैं ज्यादा कभी रुकी नहीं। कोशिश रहती थी, जल्दी से जल्दी ऐसे माहौल से निकल लेना। दिमाग को ठिकाने रखने के लिए। जितना जल्दी हो सके, वापस ऑफिस ज्वाइन कर लेना।  जितना हो सके, खुद को वयस्त रखना। मगर, अबकी बार जिम्मेदारी अलग तरह की थी। इस वक़्त के दौरान जो देखा और महसूस किया, यूँ लगता है, कई सारी case-studies एक साथ लिखी जा सकती हैं --समाज के तानेबाने की घड़ाई की। राजनीती के रंगों की बुनाई की। जिसे जानकार लोगों ने automation बोला।  मगर मेरे अनुभवों ने, semiautomation।  

उस semiautomation में छिपा हुआ अब, बहुत कुछ नहीं है।  बल्कि, कई जगह तो, जद्दोजहद के बाद, बड़ी मुश्किल से बचाया हुआ है। कितना बचेगा, कितना और बिखरेगा, ये तो वक़्त के गर्भ में है। मगर, राजनीती का जो निर्दयी और भद्धा पक्ष, इस दौरान उजाग़र हुआ है, उसे आमजन के लिए जानना बहुत जरूरी है। ये भी जानना जरूरी है की पढ़ा-लिखा मगर शातिर-वर्ग, उसमें कौन सी और कैसी भूमिका निभा रहा है? किसके लिए काम कर रहा है? समाज के लिए? या राजनीतिक पार्टियों के लिए? 

Saturday, March 11, 2023

एक शांत दिमाग़

एक शांत दिमाग़ कितना ज़रूरी है 

शान्ति के लिए 

आगे बढ़ने के लिए 

अवरोधों से निपटने के लिए 

धुंध के पार निकलने के लिए 

जालसाज़ी ताक्तों से पार पाने के लिए 


बड़े-बड़े षड्यंत्रकारियों के 

राजे महाराजों के 

जब जाले साकार नहीं होते 

कभी-कभी तब भी  

अशान्ति होती है 

गुस्से फूटते हैं, गरीबों के मोहल्लों में 

मगर तब भी अथाह शान्ति दिखती है 

अमीरों के, राजे महाराजों के मोहल्लों में 


और गरीबों को खबर तक नहीं होती 

वो क्यूँ फुट रहे हैं?

किसपे फुट रहे हैं?

उनके दिमाग़ में उतारे गए विस्फ़ोटक 

कहाँ-कहाँ से और कैसे, वहाँ तक पहुँच रहे हैं?


एक शान्त दिमाग़ ये सब देख सकता है 

जान सकता है और बच भी सकता है 

ख़ास गुफ़ाओं से होते हुए इस जाले को 

क्यूँकि उसमें ताक़त है 

शांति से सुनने की, समझने की 

तर्क-वितर्क करने की 

चीखने-चिलाने या भागने-भगाने की नहीं  

विचलित न होकर, स्थिर रहने की 

Friday, March 10, 2023

होलिका दहन (7.3.2023)

बचपन से बहुत बार होलिका दहन देखा या ज्यादातर सुना। बहुत सालों बाद, अबकी बार जो देखा, वो होलिका दहन के नाम पर एक डरावना-सा सांग था। किसी मंदिर के नाम पे कोई राजनीतिक तांडव जैसे। आगे ट्रैक्टर, पीछे ट्रॉली। ट्रॉली में आग की लपटें ऐसे जैसे -- (some assisted murder). 

(I will write with time about that in details, how that happened? Rather must say kinda enforced by creating such conditions? And creations of such conditions are not that difficult by experts of political designs and political fights. Common people must be aware about such things to stop them). Read somewhere some term about that I guess, Cult Politics? Sinister designs, by twisting or altering, manipulative ways to represent something contrary? 

उन लपटों से पहले आसमान में धुएँ का कहर, सामने गली से ऐसे गुजर रहा था, जैसे लीलता जा रहा हो, गली दर गली, धुआँ ही धुआँ। 

कहते हैं, किसी समाज को, वहाँ के जनमानस को, उनकी खुशहाली या समस्याओं को जानना है तो उनके रीतिरिवाज़ों को जानना बहुत जरूरी है। रीतिरिवाज़ बताते हैं वो समाज अपने जनमानस को कैसे जोड़ता है या तोड़ता है। ऐसे ही, शायद जानना जरुरी है उन रीतिरिवाज़ों में आते बदलाओं को -- क्यूँकि वो बदलाव आईना होते हैं उस बदलते समाज का, भले के लिए या बुरे के लिए। बदलाव आगे बढाते हैं या पिछड़ा बनाते हैं? औरतोँ को, बच्चोँ को, समाज के कमज़ोर तबके को शशक्त करते हैं या दबाते हैं?        

Thursday, March 9, 2023

अज़ीब समाजों की अजीबोग़रीब कहानियाँ

कुटाई की कहानियाँ 

लुटाई की कहानियाँ 

पियकड़ों की कहानियाँ 

कौन कितना कुटी 

कौन कितना पिटी 

और कैसे-कैसे 

और किसने-किसने पिटा 

कितना-कितना पीटा 

गा रहें हैं वो ऐसे 

जैसे --

इस अनोखे (?) समाज की 

गिना रहे हों उप्लभ्धियाँ जैसे!


यहाँ से वहाँ, और वहाँ से वहाँ 

और जाने कहाँ से कहाँ 

लायी गयी, ले जाई गयी 

गाएं-भैंसों की तरह धकाई गयी 

इस उम्र से, उस उम्र तक की 

औरतों की बिक्री की कहानियाँ 

Wednesday, March 8, 2023

मानव-संसाधन और सामाजिक-घड़ाई

थोड़ी दिशा मिले तो 

चल निकलेंगे 

ऐसा मेरा विश्वास है 

बेकार नहीं हैं वो 

दिशाहीन कह सकते हैं 

वो भी, अज्ञानता की वजह से 


मानव संसाधन (Human Resource) का ज्यादा ज्ञान तो नहीं मुझे, पर शायद थोड़ी-बहुत समझ  जरूर है।  इंसान, बेरोज़गार तो हो सकते हैं, मगर बेकार नहीं।  बेकार है तो वो सिस्टम, वो सामाजिक-राजनितिक तानाबाना, जो उन्हें सही दिशा नहीं दे पाता। क्यूँकि अपने-अपने निहित स्वार्थों के लिए उन्हें ठाली लोगों की एक फ़ौज़ चाहिए। सब अपने-अपने काम लग गए, तो "टुकड़े डालो, कुत्ते पालो" या प्रश्न करने वालों के लिए "लठ्ठ लाओ, मार भगाओ", वाली सोच की राजनीती कैसे चलेगी?

फुट डालो, राज करो के शिकार हैं ये। जिन्हे अपने ही आसपास के लोगों को नीचे गिरने या गिराने में अपना फायदा नजर आता है। जहाँ से ये प्रचंड चल रहे हैं और जो लोगों को अपने शिकार कर रहें हैं, उन लूकी-छिपी-सी गुफाओं की समझ भी नहीं है इन्हे। वैसे ही, जैसे मुझे नहीं थी। इन्हें मालूम ही नहीं की इनका रोबोट्स की तरह इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ी, दूर बैठे भी कैसे इनकी ज़िंदगियों को रिमोट कंट्रोल कर रहे हैं। इन्हें लगता है, सबकुछ ये खुद ही कर रहे हैं। 

 हक़ीकत हाँ में भी है और ना में भी 

हाँ -- क्यूँकि ऐसा होता प्रतीत हो रहा है, दिख रहा है 

ना खुद नहीं कर रहे -- क्यूँकि इन्हें मालूम ही नहीं लैब कैलिब्रेशन्स (Lab Calibrations) कैसे होते हैं? और सामाजिक घड़ाई (Social Engineering) क्या है?

कौन और कैसे उन्हें बदल सकता है? तोड़, जोड़, मरोड़ सकता है? विचलित या भर्मित कर सकता है ? चालाकी से, धूर्तता से, दिमाग से इधर से उधर कर सकता है? वो, जो उन्हें चोबीसों घंटे अध्ययन या अवलोकन पर रखता है। उसे इंटेलीजेंसीआ भी कहते हैं। वैज्ञानिक, डॉक्टर, प्रोफेसर, इंटेलिजेंस शाखाएँ -- सिविल या फ़ौज़ और पत्रकार शायद यही सब करते हैं। 

समाज अपने आप में एक बड़ी लैब है --सामाजिक घड़ाई (Social Engineering) अर्थात सामजिक तानेबाने को समाज के हित के लिए सँरचना, घड़ना।  घड़ना, वैसे ही, जैसे कुम्हार घडता है। जुलाहा बुनता है। कुछ-कुछ वैसे ही जैसे पक्षी बुनते हैं, रेशमी कीड़ा बुनता है, मधुमखी बुनती है।  सुनार तापता है।    

या सामाजिक घड़ाई (Social Engineering) -- राजनीतीक लाभ के लिए या बड़ी-बड़ी कंपनियों के फायदे के लिए, राजे-महाराजों के लिए करना। कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे गीद्ध झपटता है,  मकड़ी बुनती है, शेर, चीता घात लगाते हैं, शिकार करते हैं --छुपकर, स्फुर्ति से, कोई छद्धम युद्ध जैसे। 

मोबाइल आज के वक़्त, सामाजिक घड़ाई (Social Engineering) का सबसे बड़ा हथियार है। और प्रोद्योकी  (technology), किसी भी फॉर्म में उसका अभिन्न अंग।  ज्यादातर ऐसे लोगों को आज भी पता नहीं है की दिनरात जिस मोबाइल को वो साथ लिए घुमते हैं, वो क्या-क्या करता है? और  किन-किन के लिए करता है? कैसे ये लोगों की ज़िंदगियों को रिमोट कंट्रोल करता है? छद्धम युद्ध के सैनिकों की तरह कौन-कौन इसमें घुसे बैठे हैं?   

मानव-संसाधन के लिए इन सबकी जानकारी, ज्यादा नहीं तो थोड़ी बहुत लाभकारी तो जरूर होगी। 

पथ्थरों में भगवान या मंदिर?

भगवान या मंदिर  

तुम्हारे मन में, दिमाग में, शरीर में वास करता है 

तुम्हारे अपनों में, तुम्हारे रहने की जगह में वास करता है 

मन की शांति का रास्ता, तुम्हारे अपने दिमाग में बसता है 

अगर ये वहाँ नहीं है, तो कहीं भी नहीं है 

अगर तुम किसी रोड़े को, किसी पत्थर को 

किसी ईमारत को भगवान का घर मान सकते हो 

तो तुम तो जीते जागते इंसान हो 

और जीते जागते लोगों के बीच रहते हो 

अगर वो भगवान जीते जागते इंसानों में नहीं है 

तो इन जीवन से रहित पत्थरों में कहाँ से आएगा?


मंदिरों में शांति मिलती है? 

या शांत तन-मन में, शांत वातावरण में शांति मिलती है?

शांत लोगों के बीच शांति मिलती है?

तन-मन तुम्हारा अपना है 

और अपने रहने के वातावरण को ऐसा बनाना तुम पर निर्भर है 


ये कैसे और कौन से मंदिर हैं?

जिनके लाउड स्पीकर्स शांत वातावरण का चीरहरन करते हैं?

सुबह हो या शाम दूर-दूर कानों में गूंजते हैं 

पढ़ने वालों को डिस्टर्ब करते हैं

परीक्षा के दिनों में भी नहीं बक्शते हैं 

अगर आपका नाता पढ़ाई लिखाई से, किताबों से नहीं भी है 

तो सुबह श्याम सैर पे निकलिए, या व्याम, एक्सरसाइज कीजिये 

स्वस्थ शरीर में, साफ़-सुन्दर, शांत जगह में शांत मन वास करता है 

ये कैसे और कौन से मंदिर हैं?

जो डीजे के कानफोड़ू संगीत पे अपने इवेंट्स का आयोजन करते हैं?

कानफोड़ू चीज़ें, चीखने-चिलाने जैसी-सी ही हैं 

वो मन मस्तिक ही नहीं, शशीर को भी नुकसान करती है 

भूकंप की सी तरंगे जैसे, आसपास को भी भड़काती हैं


अपने मंदिर को, अपने भगवानो को खुद में बसा के चलो 

तुम जहाँ हो, भगवान वहीं हो 

शांत तन, शांत मन, शांत वातावरण ही मंदिर है 

Tuesday, March 7, 2023

चौक्कने हो जाइए!

चौक्कने  हो जाइए! 

अगर आपके आसपास मंदिरों के कर्म-काण्ड बढ़ रहे हैं 

हाँ! ये समझो राजनीती के षड्यंत्र और काण्ड बढ़ रहे हैं 

ये समझो, नासमझों-नादानो को फ़साने के तरीक़े बढ़ रहे हैं 

वो घुस आये हैं आपके घरों में, आपकी ज़िंदगियों में 

आपके रिश्ते-नातों में, दरारें बढाने के लिए 

आपको आपस में भिड़ाने के लिए 

आपके अपनों को दरबदर करने के लिए 

आपके अपनों को बेमौत उठाने के लिए 

ये कालिख़ धंधे हैं 

ऐसा भी नहीं की नए हैं, मगर तरीक़े बदलते रहते हैं 

कालिख़ के रूप में उतर आएं हैं 

अलग-अलग रंगो के धागों में

अलग-अलग तरह की मालाओं में, झंडों में 

जैसे युद्ध के डंकों में 

ये जादू नहीं है कोई, न ही सम्मोहन है 

विज्ञानं है, मगर राजनितिक 

कुछ-कुछ वैसा ही, जैसा कोरोना काल था 

मगर ये वैसे ही दिखेगा भी नहीं 

जब तक इसे समझने वाले उस आमजन को दिखाएंगे नहीं 

चौक्कने  हो जाइए 

कभी-कभी, आस्था से ज्यादा दिमाग़ काम आता है 


सोचिये तुम्हारे आसपास,

इतना कर्मकाण्ड मंदिरों के नाम पे कब होता था?

कब और कैसे शुरू हुआ ये सब?

और कौन हैं इन सबके पीछे?

बाहर का आपके घर में बढ़ते असर का मतलब 

चाहे वो मंदिर ही क्यों न हों 

आपके घर, जो अपने आप में होने चाहियें  एक मंदिर

उनकी सुखशांति खत्म हो रही है

जिसे आप अपने घर में ही ढूंढने और बनाने की बजाए 

बाहर ढूंढने लगे हैं 

जैसे गीद्ध कमजोर पे हमला करता है 

वैसे ही, ये भी कमजोर होते समाज का, घरों का आईना है 

ये ऐसे कमजोरों की शरण-शथली कम, गीद्ध ज्यादा हैं 

इसलिए, चौक्कने  हो जाइए! 

Monday, March 6, 2023

थोड़ी देर का गुस्सा

थोड़ी देर का गुस्सा 

लील देता है, कितनी ही अच्छाईयों को 

तार-तार कर देता है, कितने ही रिश्तों को 

कितने ही सीधे-साधे से रस्तों को 

न्यौता देता है, कितनी ही बीमारियों को 

बना देता है अमीर, कितने ही अस्पतालों को  

और लूट लेता है, आम आदमी का बचा-खुचा भी! 


गरीबों के मोहल्लों में तो खासकर, रोज ही मिलता है ये 

अलग-अलग खुराक में 

फूटता-सा निकलता है, फटता-सा निकालता है 

अजीबोगरीब शोर के रूप में 

कभी इधर से, तो कभी उधर से!

दुबके से रहते हैं, ज़्यादातर बच्चे और औरतें 

चिड़चिड़े से रहते हैं, सब ऐसे माहौल में 

अच्छे भले शांत माहौल को, भंग कर निकलता है 

भला क्या फलता-फूलता होगा, ऐसे माहौल में?

बेरोजगारों के अड्डे

एक तरफ स्कूल बस 

और दूसरी तरफ 

निठल्लों की गुड़गुड़ 

एक तरफ बच्चों का खाना 

और दूसरी तरफ धुआँ-धुआँ 

सुबह हो, श्याम हो, या हो दोपहर 

हुकपानी के नाम पे, साँसों में घुलता ज़हर 

भाई-चारे का पैगाम या बिमारियों की सौग़ात?


दुनिया जहाँ की बुराइयाँ करते 

या फेकम-फेक, बिना सिर-पैर के

लुगाई-पताई करते 

औरतों और बच्चों का स्पेस छीनते 

कबुतरबाज़ी, हवाबाज़ी के अड्डे 

टाइम पास के अड्डे 

बदज़ुबाँ, गाली गलौच को 

मुहहगदोरों की तरह यहाँ-वहाँ उड़ेलते 

बिना सोचे-समझे बोलते

शराबियों के अड्डे  

ज्यादातर, दिशाहीन बेरोजगारों के अड्डे!