क्या आप भविष्य या भूत में जा सकते हैं? और जान सकते हैं की भूत की कहानी क्या हैं? या भविष्य में क्या सम्भावनाएँ हैं या भविष्य कैसा होगा? वो भूत या भविष्य बताने वाले आते हैं ना? पुराने जमाने में तो आते थे। अब? अब वो सिर्फ बताने नहीं आते, सिर्फ दिखाने या सुनाने भी नहीं आते। बल्कि हकीकत में अनुभव कराने आते हैं। आपके आसपास ही, शायद आपके अपने घर में? आपके अपने बहन, भाइयों, भतीजा, भतीजियों की जिंदगी के माध्यम से। कहीं बुजुर्गों की ज़िंदगी के माध्यम से, तो कहीं युवाओं की ज़िंदगियों के माध्यम से। कहीं बिमारियों के माध्यम से, तो कहीं लोगों को बेवक़्त उठा के। कहीं शादियों के माध्यम से, तो कहीं बच्चों की ज़िंदगियों के माध्यम से। तो कहीं जबरदस्ती, इधर से उधर धकेली जाती हुई, ज़िंदगियों के माध्यम से।
कुछ थोड़े पास के अपनों के माध्यम से, तो कुछ थोड़ा दूर के अपनों या परायों के माध्यम से। उनकी ज़िंदगियों के उतार-चढाव, कहीं आपको दिल्ली टाइम की सैर करवाते हैं तो कहीं US की या उसके बाद ज़िंदगी की। कैसे संभव है ये? अतीत की यात्रा? समझते-समझते समझ आया, की ये चल क्या रहा है? कैंपस क्राइम सीरीज, उसे पूरा क्यों नहीं करने दिया जा रहा? क्या दिक्कत है?
कैंपस क्राइम सीरीज और उसी का एक खास बढ़ाया-चढ़ाया हुआ पहलु। कोविड-कोरोना। वो आपको एक अलग ही तरह की यात्रा पे ले जाता है। हादसों, बिमारियों की यात्रा पे और कैसे होते हैं या किए जाते हैं ये सब?
और इसी दौरान आप सालों बाद, वापस अपनी जन्मभूमि आ टिकते हैं। वही बचपन का घर। वही पुराने लोग? नहीं। यहाँ गड़बड़ है। फाइलों के माध्यम से यथार्थ में उतारी गई, इन चलती-फिरती गोटियों को समझना और इनकी ज़िंदगियों को समझना, एक अलग ही दुनियाँ है ये।
आप किसी को नहीं जानते यहाँ। ना ही कोई आपको जानता। शायद बहुत वक्त, बहुत दूर रह लिए। या शायद कभी पास थे ही नहीं। वो आपके रुप में किसी ऐसे किरदार को जानते हैं, जो उन्हें इस पार्टी या उस पार्टी द्वारा दिखाया गया है। आप उनकी ज़िंदगियों को ऐसे-ऐसे किरदारों में ढलते देख रहे हैं, जो हकीकत से बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर या तोड़-मरोड़ कर पेश किए जा रहे हैं। इन लोगों की ज़िंदगी के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े निर्णय कोई और ही ले रहे हैं। और इन्हें अहसास तक नहीं, की ऐसा संभव ही नहीं है, बल्कि हो रहा है। किन्हीं और के अतीत के अलग-अलग पन्नो के वक्त पे, धकेली जाती हुई इनकी ज़िंदगियाँ। मगर ये इनका आज है, जिसमें आप किसी बीते हुए कल के, इसके या उसके किरदारों को, थोड़े अलग-अलग रूप में देख रहे हैं। और उसी कल के, थोड़े बहुत ज्ञान की वजह से आप डरने लगते हैं, की यहाँ ये हादसा हो सकता है और यहाँ ये। क्यूँकि, आप उस कल को देख चुके, सुन चुके या भुगत चुके, जो इनका आज घड़ा जा रहा है या आने वाला कल है। जिनके कुछ किरदारों और कुछ हिस्सों को आप जानते हैं। कितने ही तरह के लोगों के भूत के इर्द-गिर्द घूमता है ये आज? बहुत से ऐसे भी, जिनके बारे में खुद मुझे ABC से आगे नहीं पता, या एक वक्त से आगे की खबर नहीं। जितना पता है, वो भी सालों बाद, यहाँ-वहाँ से बताया गया या सुनाया गया। तो इन्हें कैसे खबर होगी? सामान्तर घढ़ाईयाँ
जैसे एक बच्चे के केस में। उसे पढ़ाई से दूर, किसी टोनी वाले दौर की तरफ धकेला जा रहा है। क्यूँकि, उसका स्कूल उस पार्टी से संभंधित है? बड़ों के किस्से-कहानियों को इतने छोटे बच्चों पे घड़ने की कोशिशें? अब इसका असर उस बच्चे पे क्या होगा? धकेलने वालों को इससे कोई लेना-देना नहीं। उन्हें अपने-अपने कुर्सियों के नंबर घड़ने हैं।
मेरी नौकरी वाला डिपार्टमेंट, एक गौरवमई भारत की कहानी जीने वाला डिपार्टमेंट है। जिसके रोज-रोज दोहराए जाने वाले किस्से-कहानियों से तंग आ, आप उनसे मुक्ति की तरफ निकलते हैं। मगर वहाँ से मुक्ति की बजाय और पीछे धकेल दिए जाते हैं। PhD और M.Sc. के वक़्त के, किस्से-कहानियों के इर्द-गिर्द। इसी डिपार्टमेंट वापस जाना चाहते थे ना आप? पढ़ाई-लिखाई करने, रोज-रोज के तमाशों से दूर रहने? मगर तमाशे वालों के पास तो सिर्फ और सिर्फ तमाशे होंगे। उनके पास सिर्फ अतीत है, वो भी उनके हिसाब-किताब का अतीत। आप किसी भी अतीत से, बहुत पहले, बहुत दूर निकल चुके और आज में जी रहे हैं। जिसमें सिर्फ और सिर्फ भविष्य है। मगर गिराने में सिद्धि हासिल लोग, तो सिर्फ गिराना या पीछे धकेलना जानते हैं। ठीक वैसे, जैसे आसमान से गिरे, तो झाड़ पे अटके। आपको आगे जाना है और वो हैं की पीछे धकेले जा रहे हैं।
गाँव में आके आप किसी और वक्त को थोड़ा बेहतर जानने की कोशिश में, कुछ और पन्नो को भी उठा लेते हैं। इसका मतलब उस वक्त को भी जाना जा सकता है, जो पापा या चाचा के वक्त का है? जो दादा के कुछ खतों में और डायरी में मौजूद है? शायद कुछ हद तक? ऐसे ही बढे-चढ़े, तोड़े-मरोड़े किरदारों के रूप में। वैसे ही जैसे, ना होके भी किसी ज़िंदा डायरी की तरह? अजीब संसार है ना? भूत! मगर, आज और कल, यहाँ या वहाँ, एक साथ लिए हुए जैसे?
किसी ने शायद सही कहा है, तुम्हारा भविष्य तुम्हारी नौकरी से आगे की तरफ बढ़ता है। ना की उससे पीछे के किस्से-कहानियों से। उससे पीछे के घटनाक्रमों को जानने या समझने की कोशिश बस इतनी भर हो, जितना किसी किताब को पढ़कर, उस अलमारी में या उससे भी पीछे कहीं, किसी पीछे वाले कमरे में चलता कर देना। क्यूँकि, भूत, भूत है। आज, आज। और कल, भविष्य।
"वो जो पीछे की तरफ धकेलते हैं, यादें हैं। वो जो आगे की तरफ लेकर जाते हैं, सपने" -- Time Machine ?
थोड़ा बदलाव --सपने जो हम खुली आँखों और दिमाग को साथ लेकर देखते हैं। रोबोट बनकर नहीं।
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