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Tuesday, March 26, 2024

EC से पास हुआ Resignation Letter Response, जून 2021 (Social Tales of Social Engineering 35)

  एक है कैंपस क्राइम सीरीज, जो खुँखार परिणामों की वजह से बीच में ही रोकनी पड़ी। 

और एक है, ये EC से पास हुआ Resignation Letter Response जून 2021 का 


इसमें resignation acceptance भी है और liberty to join back भी

कुछ terms और conditions के साथ। 

मुझे लगा नहीं उस वक़्त मुझे वापस join करना चाहिए, खासकर, जिन हालातों में दोबारा resign किया था। मेरा ईरादा डाक्यूमेंट्स पब्लिश करने का था। इसीलिए हालातों के मध्यनजर मैंने छुट्टी के लिए लिखा, जो जिस किसी वजह से accpet नहीं हुई। या शायद मैं फिर से उस साइको को नहीं देखना चाहती थी। उसपे जिन लोगों की वजह से छोड़ा था, फिर से उन्हीं के बीच जाना खटक भी रहा था। ये ऐसा था, जैसे अलग-अलग पार्टियों के बीच पिसना।     


इतना नालायक़ होते हुए यूनिवर्सिटी ने इतनी सहानुभुति दिखाई, शुक्रिया करना चाहिए उसके लिए मुझे यूनिवर्सिटी का?
एक खास बात जो इसमें नोट करने लायक है, वो ये की ये सब समस्याएँ मेरे 2017 के Resignation देने के बाद, बुलाकर फिर से joining करवाने के बाद ही शुरू क्यों हुई? ऐसा कैसे हो सकता है की उससे पहले उस फैकल्टी के खिलाफ ऐसी कोई शिकायत तक ना रही हो? शिकायतों पे कोई committees बैठाना तो दूर की बात?
या इस letter में ये सब कोढ़ है? कौन से ख़ास exams या duties होंगी, जिन्हें उसने करने से मना कर दिया? और उसे Mental Hospital का रस्ता दिखा दिया? 

उससे कुछ साल पहले, शायद वो  इंस्टिट्यूट के परीक्षा केंद्र की डिप्टी सुपरिटेंडेंट और सुपरिटेंडेंट तक की ड्यूटी को बखुबी निभा चुकी। और भी ऐसी-ऐसी कई ड्यूटी, डिपार्टमेंटल रिकॉर्ड में होंगी शायद? और वो इंस्टिट्यूट कोई 100, 200 या 400, 500 स्टूडेंट्स का इंस्टिट्यूट नहीं है। बल्की, यूनिवर्सिटी का सबसे बड़ा इंस्टिट्यूट। 2000 के आसपास स्टूडेंट्स। यूनिवर्सिटी का कमाऊ पूत या पुत्री? पता नहीं। 
      
ये Mental Hospital का सर्टिफ़िकेट, शायद मेरे वकील ने भी कहीं जमा करवाया था? कौन-सा केस था वो? या थे? 2 केस शायद? मुझे पता ही नहीं होता, की इन केसों में कोर्ट्स में चलता क्या है। जितना समझ आया, वो ये की सिर्फ ज़िंदगियाँ तबाह होती हैं। फैसले पार्टियों के अधीन या सहमति पे अटके होते हैं। सहमती ना हो, तो Political Paralysis होते हैं। कभी ईधर, तो कभी उधर वालों को। होते हैं या किए जाते हैं, अहम है। बिमारियों के ऐसे-ऐसे राजों को जानकार, जो पागल ना हो, वो हो जाए शायद। और इन राजों को हम (Academicians?) जनता से छुपाना चाहते हैं? बिमारियों का सीधा-सा नाता, जहाँ आप रह रहे हैं, वहाँ के सिस्टम से है और पार्टियों की खिंचतान से। 

यूनिवर्सिटी लिखित में बोले की सहानुभूतिवश और फलां-फलां परिस्तिथियों के मध्यनजर ऐसा हो रहा है। तो कम से कम, उसका पैसा तो रिलीज़ कर देना चाहिए। और वो पैसा भी उसने तब माँगा, जब उसे चारों तरफ से एकॉनॉमिकली ब्लॉक कर दिया गया। और लगा की कहीं इमरजेंसी है। शायद कुछ बिमारियों या अनचाहे बेवक्त हादसों से बचने के लिए जरुरी है। और बच्ची को किसी अनचाहे माहौल से बचाने के लिए भी। नहीं तो शायद, उस थोड़े से पैसे की जरुरत भी नहीं थी, इतनी कॉंफिडेंट थी वो। राजनीतिक पार्टियाँ, डिज़ाइनर परिस्तिथियाँ घड़ने का काम करती हैं। और तो क्या कहा जा सकता है?

सुना है, एक सस्पेंडेड फैक्ल्टी तक को कोई मंथली अलाउंस मिलता है। फिर यहाँ तो resignation है, जैसा भी है। और उसपे एक्सेप्टेन्स भी, जिसे 3 साल हो गए। और कितना इंतज़ार करे कोई, वो भी अपने ही पैसे के लिए? 

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