एक प्रकृति ने जो जीव-जंतुओं को बाधाओं से निपटने के तरीके दिए हैं।
जैसे, खुद के जीवन को बचाने के लिए करेलिया रंग बदलता है। अपना रंग काफी हद तक आसपास के रंग के अनुसार बदलके। जैसे, बहुत से पेड़-पौधे करते हैं, अपने पत्तों का या तने समेत या तकरीबन पूरे पौधे का रंग परिस्तिथि और वातावरण के अनुसार बदलके। इंग्लिश में जिसे Stress Management भी कहते हैं। ये तकरीबन सभी जीव जंतुओं में होता है।
जहाँ भरण पोषण के लिए परिस्थितियाँ सही ना हों। या तो किसी या किन्हीं तत्वों की बहुत अधिकता हो या कमी हो। तो ज्यादातर जीव ऐसी परिस्थितियों को छोड़ के चलते बनते हैं। ज्यादातर चल फिर सकने वाले जीव जंतु या जो उड़ने की क्षमता रखते हैं, जैसे पक्षी। नहीं तो ऐसी परिस्थितियों को झेलने वाले जीवों के हुलिए अजीबोगरीब हो जाते हैं। पेड़ पौधे खासकर। बाकी जीव जंतु भी बदली परिस्थितियों में, बदले नजर आने लगते हैं।
जहाँ जिंदगी को खतरा हो और लगे, कोई अंग शरीर से छोड़के जिंदगी बच जाएगी। छिपकली जो खतरा महसूस होने पर पूँछ छोड़ देती है। पेड़-पौधे, जो पत्ते छोड़ते हैं और फिर नए ऊगा लेते हैं। या मौसम के अनुसार रंग बदल लेते हैं।
जहाँ अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाने का खतरा हो। पक्षी, मधुमखियाँ और अलग अलग तरह के जीव अलग अलग तरह के तरीके अपनाते हैं। सुना है कोयल अपने बच्चे ही कौवे के घोंसले के हवाले कर देती है। और मधुमखियाँ झुँड वयवस्था।
दूसरी तरफ, इंसान ने अपने दिमाग का प्रयोग करके लालच और घमंड में जो ईजाद कर लिए हैं, काफी हद तक कृत्रिम रूप से। शायद उसे ही Ego या अहंकार, घंमंड, छलिया या किसी भी तरीके से छलना या किसी भी विषय-वस्तु के बारे में बढ़ा-चढ़ा, तोड़ मरोड़ के दिखाना या बताना कहते हैं?
या किसी और की अहमियत को बिलकुल खत्म करने की कोशिश में, सिर्फ और सिर्फ, अपनी अहमियत दिखाना या बताना? मतलब, यहाँ ना तो जिंदगी को कोई खास खतरा हो, ना ही भरण-पोषण की कोई खास समस्या, बल्की बड़े कहे जाने वाले लोगों या कंपनियों या राजनीती के वर्चस्व के झगडे। आम आदमी पर उसकी जानकारी या ईजाजत के बिना छल, कपट या धोखे से थोंपे हुए युद्ध। जिनकी जिंदगियों को सच में खतरे हों या भरण-पोषण तक की नौबत हो, लड़ाई उनके लिए नहीं, बल्की बड़े लोगों की लड़ाईयाँ अपने घमंड और लालच के लिए। दूसरों की जिंदगियों को खत्म कर या रौंद कर भी सत्ता, कुर्सी और ज्यादा पैसों और वर्चस्व की चाहत के लिए। ये सिर्फ और सिर्फ इंसानो के जहाँ में होता है।
लेखकों की कल्पना ने तरह-तरह के किरदार इज्जाद किये हैं। जैसे रामायण में रावण का रूप बदलना। मतलब, छल-कपट करके जीतना या जीतने की कोशिश करना। छलिया, मतलब सामने वाले को पता ही ना चले, आप कौन हैं और आप अपना काम निपटा जाएँ। शायद इसीलिए रावण के 10 सिर बताए गए हैं? आम आदमी का तो एक ही होता है न। ऐसे ही इंसान की ईजाद या कहना चाहिए की लेखकों की कल्पना ने, कितनी ही देवियाँ, जिनके 4, 6 या 8 तक हाथ दिखाए गए हैं। कैसे खुरापाती या Innovative दिमागों की ऊपज होंगी ना ये? Sci-fi (Science Fiction या कल्पित विज्ञान) लिखने वाले जैसे? हालाँकि, आज का Sci-Fi, आने वाले कल की हकीकत के आसपास ही घुमता है। अब लिखने वाले कल्पनाशील हों, तो उनके लिए अच्छा है। मगर लोग इन्हें हकीकत मानना शुरू कर दें तो? राजनीती के शातीर लोग, लोगों का दुरुपयोग करने लगेंगे। या कहना चाहिए की राजनीति यही तो करती आ रही है। जितनी पुरानी राजनीती है, उतने ही इसके षड़यंत्र।आम आदमी को राजे-महाराजाओं के लिए प्रयोग और दुरुपयोग करने के तरीके।
आम आदमी ने इन राजे महराजाओं के चुँगल से निकलने के लिए, लोकतंत्र बनाए। मगर पता चला, शातीर लोग उसे भी गुप्त तरीके से, अपने हिसाब से चला रहे हैं। आम आदमी की सोच से बहुत दूर, सिस्टम का हर हिस्सा गुप्त कोडों के जाले के अधीन है। इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक उस कोढ़ के जाले में। दुनियाँ के सब जीव और निर्जीव उस जाले के अधीन। अहंकार की हद की सब हदें पार, जैसे।
तो आपके कितने alter ego हैं ?
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