जादु ? नजरबंद ? मतलब छल, कपट के तरीके से कुछ का कुछ दिखाना या बताना, मगर हकीकत छुपाना।
इंसानों पे नियंत्रण। कुत्ते, बिल्ली, गाय, भैंस जैसे पालतु या भेड़-बकरी, गधे-घोड़े या अन्य औधोगिक जानवरों पे नियंत्रण। पेड़-पौधों पे नियंत्रण। इस पार्टी द्वारा या उस पार्टी द्वारा। साफ बताके नौटंकियाँ या ज्यादातर गुप्त तरीके से। गुप्त तरीके मतलब, वो आपकी जिंदगी ही, अपने घड़े किरदारों के आसपास हकीकत में घुमाते हैं। बहुत बार गुस्सा और घिन भी आती है, ऐसे लोगों पे। खासकर, जब उनके प्रयोग के जीव-जंतु भुगतते दिखते हैं। ये बाकी जीव जंतुओं का तो काफी हद तक समझ आ गया शायद। या धीरे-धीरे और आ जाएगा।
पक्षियों का कुछ-कुछ आ गया। कुछ-कुछ, अभी भी पहेली-सी है। हर जीव को खाना, रहने की जगह और सुरक्षा चाहिए। उसमें बदलाव, सिस्टम या कहो वातावरण के बदलावों की वजह से, या जबरदस्ती, पक्षियों को भी इधर-उधर करता है। जिनके संकेत, हमारे जैसे, observation के बावजूद, शायद थोड़ा लेट समझते हैं। कलाकारों के संकेत तो, यहाँ-वहाँ, चलती-फिरती गोटियों की तरह, इधर-उधर नजर आने लगते हैं। सिर्फ नजर नहीं आते, बल्की उन्हें बढ़ाने-चढ़ाने के लिए (Amplification), खास पेश किए जाते हैं। अब आप उन्हें कितना मानने लगते हैं और कितना नकार के सतर्क रहने लगते हैं, ये आपपे है।
H#30, टाइप-4, में एक दिन ऐसे ही कुछ गुलाब ग्राफ्ट कर रही थी, शायद कुछ जानने के लिए। और एक कौआ, बार-बार उधर मंडरा रहा था। अब तर्कसंगत सोच तो ये देख रही थी, की कहीं आसपास इसका घोषला तो नहीं। मगर बाद में जब लैपटॉप पे कुछ काम करने बैठी, तो एक मजेदार विज्ञापन बार-बार आ रहा था। जब वो सीरियल देखा, तो गुस्सा आ रहा था, की लोगबाग मेरी सोच में डर पैदा करना चाह रहे थे, शायद। जो मुझे समझ आया, वो सीधा-सा मतलब हर कदम पे यही था, ये घर खाली करो। अब मुझे तो पता था, की मैं 24-घंटे लाइव हूँ। कैमरों के पहरे में या और कितनी ही तरह के सर्विलैंस। और वही पहरा, बहुत कुछ ऑनलाइन या ऑफलाइन दिखाता या बताता भी है। शुरू-शुरू में जब इस 24 घंटे के पहरे का पता चला, तो जरुर सदमें में थी। कई साल लगे, उससे कुछ हद तक उभरने में या उसके थोड़ा-बहुत अभ्यस्त होने में। मगर किसी ऐसे आम-आदमी को अगर बताया जाए, जिसकी विज्ञान या सर्विलैंस की समझ बिलकुल ही नहीं हो, तो वो ऐसे अहसास या अनुभव को कैसे लेगा?
सोचो आपने कोई पक्षी देखा। कोई भी हो सकता है, कौआ, चील, कोतरी। और फिर आप जैसे ही लैपटॉप पे कोई काम करने बैठे, या कोई खबर ही देखें, या मैच या सीरियल। और बार-बार कोई विज्ञापन आपको दिखाया जाए। कोई उस पक्षी के आसपास घुमता ऐसा सीरियल, जिसमें उस पक्षी के खुंखार रूप को दिखाया हो? आपको नहीं मालुम, की आपको कोई देख रहा है या कहना चाहिए, देख रहे हैं। और वो सीरियल भी ऐसे ही कहीं से विज्ञापन के रूप में आपको दिखाया गया है। हो सकता है यूट्यूब पे, या किसी चैनल पे या किसी सोशल मीडिया पे। अपने आप नहीं हुआ। हो सकता है, कोई आपसे खुंदक खाता हो, और उसे आपके मन में कोई डर बिठा कर, अपना कोई काम करवाना हो। अहम, आपको मालूम ही नहीं, की ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, डर का अहसास पैदा करने की कोशिश अपने आप नहीं है। इनके पीछे कोई एक-दो इंसान नहीं, बल्की, राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ काम करती हैं।
जादु? नजरबंद जैसे? या एक ऐसी टेक्नोलॉजी की दुनियाँ, जिसके बारे में आपको खबर ही नहीं, की वो कैसे-कैसे आपको मानव-रोबोट बनाते हैं। और इस मानव रोबोट बनाने में डर पैदा करना तो अहम है ही। और भी कितनी ही तरह के अहसास या अनुभव ऐसे करवाना होता है, जैसे आपको लगे की अपने आप हो रहा है। या आप खुद कर रहे हैं, और वही सही है। क्यूँकि, आपको इन गुप्त सुरंगों की, गुप्त समुहों की, गुप्त और छल कपट के तरीकों से काम करने और लोगों से करवाने वाले लोगों या टेक्नोलॉजी के प्रभावों या दुस्प्रभावों की जानकारी ही नहीं है। दुनियाँ रुपी इस रंगमंच पे जो कुछ आप देखते हैं, या सुनते हैं या अनुभव करते हैं, अहसास करते हैं, उसके पीछे दुनियाँ के बड़े-बड़े शातीर दिमागों के समुह काम करते हैं। वैसे ही, जैसे परदे पे जो किरदार दिखते हैं, उनके पीछे कितनी सारी टेक्नोलॉजी और लोगों के समुह, कितने सारे काम करते हैं। उनमें से ज्यादातर के आपको नाम तक पता नहीं होते। काम क्या करते हैं, वो तो बहुत दूर की बात। उन्हें और उनके काम को जितना ज्यादा जानने और समझने की कोशिश करोगे, ये दुनियाँ उतनी ही ज्यादा पारदर्शी नजर आएगी। और आप इन गुप्त, छल-कपट वाले मकड़जालों से थोड़ा-बहुत बच पाएँगे।
ऐसे-ऐसे एक नहीं, कई सारे वाक्या हुए। कुछ जो अभी तक मेरी समझ से बाहर हैं, शायद जानकार बता पाएं। पक्षियों पे नियंत्रण? मगर किस हद तक? क्या इंसानों या बाकी जानवरों की तरह, उन्हें किसी खास जगह या किसी खास मौके पे भेझा जा सकता है? झुंड में या अकेले? क्या कोई खास तरह के पक्षी ही कहीं नजर आएँगे, बिलकुल ऐसे, जैसे कुत्ते, बिल्ली, गाय, भैंसों, घोड़ों के साथ हो रहा है? आते हैं, ऐसे ही कुछ प्रश्नो के साथ, किसी अगली पोस्ट में।
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