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Tuesday, November 14, 2023

मानव समझ और रोबॉटिक समझ (Common Sense Vs Robotic Sense)

आपके पास एक बाइक है, किसी ने बोला एक और ले लो। समझ (Common Sense) कहेगी, नहीं लेना। रोबोटिक समझ दिलवा देगी। कैसे? क्या कहके या बताके?  

आपके पास एक साईकल है, ठीक-ठाक। दूसरी की जरुरत नहीं। कोई कहे, ये और ले लो। समझ कहेगी, नहीं लेनी। रोबोटिक समझ, दिलवा देगी। क्या कहके, या बताके?

ऐसे ही गाडी या किसी और वस्तु के बारे में होता है। जो सेल्स डिपार्टमेंट में होते हैं, वो ये सब काम आसानी से करवा सकते हैं। जब आमने-सामने बात हो, तो अलग तरह के तरीके होते हैं। ऑनलाइन कुछ खरीद रहे हों, तो अलग तरह के। 

आप कहें, मेरे पास फलाना-धमकाना जेवर या कपड़े हैं या शायद कोई और अच्छा सामान। और कोई आपको कहे, की वो तो आपके लिए अशुभ है। वो फलाना-धमकाना दुकान से लिए हैं। या फलाना-धमकाना रूपए के हैं। या फलाना-धमकाना वक्त तक नहीं डालने। ऐसे में अशुभ बताने वाले हो सकता है, आपसे जलते हों। और खुद लेना चाहते हों, शातीर दिमाग का प्रयोग करके। और अगर ले ना पाएं, तो हो सकता है की आपको प्रयोग नहीं करने दें, अशुभ के चक्कर में डाल कर। बहुत तरीके हैं, ऐसा करने के भी। कहाँ से लिया है या कितने का है या कैसा रंग है, फर्क नहीं पड़ता इससे। अगर वो आपपे सही या सुन्दर लग रहा है। शतीर लोग, फट्टे-पुराने को भी शुभ बता कर डलवा सकते हैं, चाहे वो कितना ही भद्दा क्यों ना लग रहा हो। ये भी तो हो सकता है की सामने वाले की जलन ही, आपको फट्टे हाल देखने या दिखाने की हो? उलटे लोग, अक्सर खुद भी उलटे-पुल्टे कामों में लगे होते हैं और सामने वाले को भी ऐसे ही व्यस्त रखना चाहते हैं। क्यूँकि, इससे आगे उनकी औकात ही नहीं होती। शुभ और अशुभ के चक्कर में डालकर, ऐसे-ऐसे उल्टे दिमाग, लोगों से कितने ही उल्टे-पुल्टे काम करवाते हैं। अगर आपकी मानव समझ होगी तो आप कम से कम एक बार तो सोचेंगे की मैं कोई उल्टा-पुल्टा काम क्यों करूँ? इससे किसका फायदा? मगर रोबॉटिक समझ? वो सब करवा देगी। अब रोबोट बनाने के इतने तरीके होते हैं। जिनमें अहम है, एक तरह से दिमाग पे पर्दा डाल देना। जिससे आदमी खुद का दिमाग प्रयोग नहीं कर पाता। क्यूँकि, इंसानी समझ ज्यादातर उल्टे-पुल्टे या गलत से दूर रखती है।              

मान लो किसी के पास सोने, चाँदी के जेवर हैं। कोई कहे चाँदी वाले आपके लिए शुभ हैं। सोना मत डालना, वो अशुभ है। समझ कहेगी, सोना अच्छा है तो शुभ भी होगा। मगर रोबॉटिक समझ उसे प्रयोग नहीं करने देगी। क्यूँकि दिमाग उसे अशुभ मान चुका। बताने वाले शातीर दिमागों ने कुछ तो ऐसा बताया होगा, की ऐसा मान चुका। तभी तो वो शातीर हैं और आप नासमझ।  

कोई और भी ज्यादा समझदार हो तो ये भी कह सकता है। वैक्यूम क्लीनर प्रयोग ना करो वो अशुभ है और झाडु शुभ। आपको सहज और आरामदायक क्या है ? तो वही शुभ है। 

कुछ तरह की धातु, पानी और हवा के साथ मिलके जल्दी काली हो जाती हैं। इसीलिए कम डाली जाती हैं। जबकि कुछ धातुएँ हवा और पानी के साथ मिलके, उतनी जल्दी काली नहीं पड़ती। जो जल्दी काली पड़ती हैं, वो ना सिर्फ सस्ती होती हैं, बल्की तव्चा को भी नुक्सान पहुँचाती हैं। इसीलिए कोई धातु या वस्तु अगर महँगी है, तो शायद कुछ तो अच्छा होगा उसमें। हालाँकि ब्रांड्स के बारे में इस कथन में अंतर हो सकता है। इसलिए लोगों के कहने पे मत जाओ, की क्या शुभ है और क्या अशुभ। रोबोट बनने की बजाय, अपना दिमाग भी प्रयोग करो।  

मान लो, आपको सफेद रंग पसंद हो और कोई कहे ये तो आपपे जमता नहीं, अच्छा नहीं लगता। और उसको कोई और बेचना हो, तो वो कहे की वो आपपे ज्यादा जमता है या अच्छा लगता है। या ये शुभ है और वो अशुभ। हो सकता है, आपके लिए उसका उल्टा हो। मगर, सामने वाले का तो काम हो गया। ऐसे कई रंगों का मेरा अपना अनुभव रहा है। किसके साथ खरीदने जाओगे तो नीला या कबूतरी आएगा। और किसके साथ जाओगे तो हरा या स्कीन कलर। किसके साथ जाओगे तो लाल या गुलाबी। कई बार ऐसे रंग भी आ जाएंगे, जो आपको कभी पसंद ही नहीं रहे। कैसे? हर पार्टी के अपने शुभ-अशुभ हैं। और हर इंसान के लिए अलग। वही शुभ-अशुभ ज्यादातर, उन पार्टी के प्रचार-प्रसार के माध्यम से आम आदमी तक पहुँचते हैं। जरूरी नहीं आम आदमी को पार्टियों के अपने रंग भी होते हैं, तक का पता हो। या ये पता हो, की अलग-अलग रंग का अलग-अलग पार्टी में मतलब भी अलग होता है। जैसे हो सकता है आपको लाल या हरा या नीला या कोई और रंग पसंद हो। एक ही रंग के अलग-अलग जगह या मौकों पे, कई तरह के मतलबों को कैसे जाने ? जैसे लाल एक तरफ हिन्दुओं में शादी पे पहना जाता है और प्यार और समर्द्धि का प्रतीक है। तो दूसरी तरफ खतरे की निशानी। वो आपकी अपनी समझ बता देगी। मगर बहुत बार ये समझ थोपी हुई भी हो सकती है। उसको अशुभ या कुछ और बताके। ज्यादातर, आम आदमी की अपनी कोई पसंद-नापसंद कम ही होती है। वो माहौल, समाज, वक्त, रीती रिवाजों, राजनीती और बाजार से प्रभावित होती है।    

बाजार में भी ज्यादातर जो टिकता है, या तो उसकी अपनी हैसियत होती है। या पार्टियों की जीत-हार के अनुसार, इधर-उधर खिसकता रहता है। ये हैसियत और इधर या उधर खिसकना, तकरीबन हर वस्तु और जीवन के हर पहलु पे लागु होता है। आपकी हैसियत है, तो आप कहीं टिके रहते हैं। नहीं है, तो खदेड़ दिए जाते हैं। खिसका दिए जाते हैं, इधर या उधर। उस हैसियत में काफी हद तक पैसा भी अहमियत रखता है और आपका ज्ञान भी। और कभी-कभार आपका बैकग्रॉउंड भी शायद। अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों के बीच होना भी कई बार, कई तरह के नुकसान करता है। क्यूँकि, ज्यादातर ऐसे लोगों को बहकाना आसान होता है। इसलिए, वो खुद भी भुक्त-भोगी होते हैं। यहाँ-वहाँ, जाने कैसे-कैसे नुकसान खाते रहते हैं, समझ ना होने की वजह से।   

ऐसे ही शुभ और अशुभ के कितने ही और उदाहरण हो सकते हैं। 

किसी ने आपको बोला फलाना-धमकाना के यहाँ, ये, ये फैंक के आना है। या वहाँ जाके, ये शोर मचाना है। या और कोई आलतु-फालतु बकवास। ऐसे काम कौन करता है? बिलकुल ठाली, बेकार और भेझे से पैदल लोग। हमारे जैसे समाज में खासकर, राजनीतिक पार्टियाँ, ऐसे लोगों का भरपूर दुरुपयोग करती हैं। क्यूँकि उन बेचारी पार्टियों की सोच भी, यहीं तक अटकी होती है। थोड़ी ठीक-ठाक जगह ऐसे काम के लिए, कौन लोग दुरुपयोग होते हैं? ऐसे ही कुछ लोग, वहाँ गए हुए। माली, स्वीपर, गॉर्डस या बदमाश स्टुडेंट्स के रूप में। कुछ एक हो सकता है, थोड़ा और आगे का तबका हो। गाँवों में जो बच्चे ऐसे काम करने लग जाते हैं, वो थोड़ा बड़े होते ही क्या करते हैं? ऐसी-ऐसी राजनीतिक पार्टियाँ बराबर की जिम्मेदार होती हैं, बच्चों को ऐसी राह धकेलने में। क्यूँकि, बहुत कुछ अपने आप नहीं होता, बल्की बहुत से लोगों की जानकारी में होते हुए भी, धकेला हुआ होता है।    

बहुत से काम आपसे जो कहके करवाए जाते हैं, उनके वो अर्थ नहीं होते। ज्यादातर के अनर्थ होते हैं। अब आम आदमी को कैसे पता चले, की राजनीतिक या शैतान लोगों की कोड की भाषा के क्या-क्या अर्थ हैं? और उनके क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं? एक तो होता है, रैली पीटना। यहाँ तक हो तो भी देखा जाए। ये सोचकर की बेचारे दिमाग से अपाहिज लोग, आम आदमी का प्रयोग ही कहाँ कर सकते हैं? क्यूँकि, वो तो उन्हें आता नहीं। इससे आगे बढ़कर, जो बड़ा नुकसान होता है, वो होता है, गलत सामांतर घड़ाईयाँ। जिनसे बचना जरूरी होता है। मगर आपको पता ही नहीं उन अनर्थों का, तो बचेंगे कैसे? कोशिश करेंगे इन्हें जानने की, आगे कुछ पोस्ट में। 

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