Optics of DNA/Threads?
चलो एक छोटा सा किस्सा सुनाती हूँ। किसी अखबार के रोहतक पेज पे कुछ पढ़ा और हज़म नहीं हुआ। या यूँ कहूँ की किसी जूनियर ने पढ़ने को दिया।
और पढ़ते ही शब्द निकले, ये क्या हो रहा है? ये सच में प्रोफेसर है? वो भी PGI में? नेता लोगों की इतनी चापलूसी? या ये दिखाने की कोशिश, की देखो हमें कितना आता है? जिसे ये दिखा रहा है, उसे Molecular का ABC पता है?
और उस जूनियर ने कहा, वही तो। वो प्रोफेसर, USA से Postdoc है।
फिर भी ये हाल? आखिर पाना क्या चाहता है, ये हुडा से? उन दिनों भुपेंदर हुडा, हरियाणा के CM होते थे। प्रोफेसर धारा धौलकंडी, जो उस वक़्त नए-नए बने Department of Biotechnology, PGI के HOD थे, हाथ में एक परखनली लिए खड़े थे और CM हुडा को दिखा रहे थे, "सर, ये जो परखनली के पानी में धागे से दिख रहे हैं ना, यही DNA Molecule है।"
तब तक धागा-तंत्र या Optics का राजनीती (Politics) का सम्बन्ध पता नहीं था। CM खट्टर को तो फिर सीरियस लेने का सवाल ही नहीं था। उसने तो हुडा की ईज्जत बढ़ा थी जैसे। ज्यादातर आसपास के सर्कल को, बहुत से खट्टर के परवचनों पे यूँ लगता था, "यार, किसने बिठा दिया इस अनपढ़ को, CM की कुर्सी पे?" सिस्टम की और इन कुर्सियों की, तब तक भी समझ नहीं थी। तब तक दुनियाँ की, सिस्टम की समझ अलग थी। हालाँकि, धीरे-धीरे वो समझ बदलने लगी थी।
उस समझ को काफी कुछ H#16, टाइप-3, बदल चुका था। 2014 में DGP, Haryana को शिकायत के बाद, जो सिलसिला शुरू हुआ, उसमें एक खास तरह की जानने की उत्सुकता, उस वक़्त के SP, रोहतक, ने ये कहके पैदा कर दी थी की, "मैडम आपने Enemy of The State, Movie देखी है?" और मुझे समझ नहीं आया, की ये कैसा प्रश्न है? SP ऑफिस से वापस आकर वो मूवी देखी। मगर पल्ले तब भी कुछ नहीं पड़ा। बल्की थोड़ा और भेज़ा खराब हो गया, की ये क्या बकवास है? मेरी शिकायत का इस सबसे क्या लेना-देना? हालाँकि, ईधर-उधर, सोशल मीडिया या अखबारों या इलेट्रॉनिक मीडिया पे hints ही नहीं, बल्की बड़े-बड़े लेख आने लगे थे। या कहना चाहिए, की वो तो शायद पहले भी आ रहे होंगे, मेरी समझ में अब आने लगे थे।
ये वो वक़्त था जब आपको लगे, की यहाँ भी कोई है, जो सुन रहा है या देख रहा है या पीछा कर रहा है या कोई निगरानी उपकरण (surveillance device) है। घर, ऑफिस, सड़क, बाजार, बैडरूम, बाथरूम, हर कहीं। मगर क्यों और कौन, ये सब समझ से बाहर था। उसपे कोई SP आपको बोले, "मैडम, आपने Enemy of The State, Movie देखी है?"
जिन्होंने नहीं देखी है, उन्हें जरूर देखनी चाहिए। वो काफी हद तक, हकीकत की दुनियाँ है। ऐसी-ऐसी हकीकत की दुनियाँ को समझने के लिए और भी ऐसी बहुत-सी मूवी और सीरियल हैं। क्यूंकि, उसके बाद तो कितनी ही मूवीज और serials देखे, सिर्फ surveillance और सिस्टम को समझने के लिए। उसके साथ-साथ, थोड़ी बहुत पढ़ाई भी, इसी दिशा में शुरू हो चुकी थी। कुछ security experts blogs, थोड़ा बहुत कम्प्युटर और मोबाइल की जानकारी, कुछ खास मीडिया और थोड़ा बहुत किताबें भी। इनमें कुछ जानकारों के सोशल मीडिया हिंट्स भी अहम रहे। जिन्हें ये सब जानने में रूचि है, उनके लिए आने वाले लेखों में थोड़े बहुत reference भी होंगे।
आज के जो नए-नए स्मार्ट मोबाइल हैं, उनमें काफी कुछ होता है, जो आपकी जानकारी के बगैर, ना सिर्फ आपको सुनता है, बल्की और भी बहुत कुछ करता है। इसीलिए आम आदमी की निगरानी के लिए तो, बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं है। मगर आम आदमी को पता तो होना ही चाहिए, की कौन-कौन सी कंपनियाँ या गवर्नमेंट या प्राइवेट agencies, ऐसा आपकी जानकारी के बिना कर रही हैं? और क्यों? क्या फायदा है उन्हें? सामाजिक संरचना (Social Engineering) घड़ना, अपने हिसाब से, अपने फायदे के लिए।
आम आदमी को अपने स्मार्ट मोबाइल को तो फेंक ही देना चाहिए। क्यूंकि, ज्यादातर के वो फोन करने या सुनने के इलावा कोई खास काम नहीं आता। स्मार्ट मोबाइल, दुनियाँ का सबसे बेहुदा और खतरनाक किस्म का जासूस ही नहीं है, बल्की मानव रोबोट बनाने का बहुत बड़ा यंत्र भी है। फेंक नहीं सकते, तो दिन में एक-दो घंटा तय करलें, जब उसे प्रयोग करना है। हालाँकि स्मार्ट मोबाइल बंद करने के बावजुद, बिल्कुल बंद नहीं होता। इसलिए कहा है, फेंक दें। क्यूँकि, ज्यादातर स्मार्ट फोन की बैटरी, आप निकाल नहीं सकते। ऐसा ही लैपटॉप और कई तरह के devices के साथ है।
इसके बाद, आपके आसपास का इंटरनेट-मकड़जाल। जहाँ कहीं लाइट है, या मशीनें हैं, खासकर स्मार्ट मशीनें, वहाँ ये मकड़जाल मौजूद है। आते हैं एक-एक करके, इस सबपे भी।
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