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Wednesday, January 31, 2024

सामाजिक घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering) 7

APEX Hospital (या कोर्ट?) 50% Off?

चलो एक छोटी-सी कहानी सुनाऊँ। कहानी? नहीं हकीकत। APEX hospital के बाद रितु PGI गई और उसकी लाश ही घर आई। ऊपर से मैं शायद बहुत शांत दिख रही थी, मगर। अंदर से जैसे कोई दिमागी दौरा। जिसे बच्चे को देखते हुए, आप उड़ेल भी नहीं सकते। और उसके बाद जो नौटंकियों का दौर चला, उससे घिनौना, शायद ही कुछ देखा हो, ज़िंदगी में। जैसे एक तरफ आसमान में चीलों को मँडराते देखा तो दूसरी तरफ कई सारी आदमी के खोल में चीलों को आते-जाते और उनके ड्रामों को देखा। 

इसके कई महीने बाद, मैं फिर से APEX हॉस्पिटल गई। 

क्यों?   

किसके साथ?

क्या खास था?

क्या तारीखें थी? 

APEX से आई एक नन्हीं कली? या परी? Kali या Pari? दोनों के मतलब कोढ़ के अनुसार अलग हैं? और पार्टियाँ भी अलग? ऐसे ही जैसे, किसी को बोलो Prince, Princess, King, Queen, Rani, Maharani, Raja, Maharaja, Lakshmi, Lakshmibai, Lakhmi, Bal, Her, Hari, Dev, Baldev, Her dev, Har dev, Har-Har, Devi, Deva, Mahadevi, Mahadeva, Kaal, Mahakal, Har Har Dev, Har Har Maha Dev  इनके, और इन जैसे कितने ही और शब्दों के कोढ़ के ज्यादातर, वो अर्थ नहीं होते, जो आम आदमी सोचता है। गुड़ का गोबर भी हो सकता है। और गोबर का गुड़ भी। खैर। वापस, 50% पर आते हैं।                            

आसपास कहीं एक छोटी बहन को लड़की हुई थी। इसमें क्या खास था? ड्रामे, 50% वाले।  

इसी छोटी बहन की पहली शादी से एक लड़की है। जिसे वो पीछे छोड़ आई। उस बच्ची को छाती में साँस की दिक्कत जैसा कुछ बताया, घर बनाते वक़्त CEMENT की वजह से। अब तक ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी, कितनी बच्चों की बीमारियाँ पढ़ चुके आप? सब यहीं आसपास से। 

उसके इलावा छोटी बहन को घर में रोक के रखना, खाने-पीने तक को कुछ ना देना, मारना-पीटना, वगरैह। और खुद राम-रहीम (शायद?) सत्संग में चले जाना। वैसे तो मैं ऐसे-वैसे और कैसे-कैसे गुरुओं को नहीं मानती। मगर, यहाँ से जैसे नफरत-सी हो गई, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे गुरुओं पे और गुरु-भगतों पे। ये गुरु यही सब सिखाते हैं क्या, अपने भगतों (अंधभक्तों) या चेलों को? सोचो, ये केस कब का होगा? राजनीतिक सामाजिक घड़ाईयाँ रिश्तों की? फिर हूबहू कोढ़ वाले राजनीतिक तमासे, लोगों की असली ज़िंदगियों में? राम-रहीम के आसपास? H#30, Type-4 धमाल। एक और बिग बॉस हाउस। राजनीतिक, सोशल और सामाजिक कहानियों का अड्डा जैसे? वैसे, कैंपस क्राइम सीरीज की कोई फाइल भी मिलती-जुलती है शायद इससे? 

54-days Earned Leave? और राम रहीम? और स्टुडेंट्स की केस घड़ाई, मेरे खिलाफ। वो हरि याणा बंद तो भी टीचर ने नहीं पढ़ाया वाली शिकायतक्या तारीख थी? 25? 2017? और महीना? वैसे हरि याणा क्यों बंद था उस दिन? और दिवाली वाली छुट्टियों में स्टुडेंट कहाँ बैठा था? और हस्ताक्षर कहाँ? फिर से टीचर की झूठी शिकायत?                    

वैसे 

CEMENT क्या है?  

TILES क्या हैं?

TILES पे X टाइप खास डिज़ाइन क्या हैं?

और कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे DESIGN हैं, या रंग हैं?

अरे। ये BP से कहाँ पहुँच गई मैं?    

ROHIT? 

AP? 

BULLET?


ROBIN? 

TB? एक कमरा कई बन्दे? 

HERNIA? 

ऐसे कैसे? और कैसे-कैसे बीमारियाँ होती हैं दुनियाँ में? धकाया हुआ Culture Media? सोशल कल्चर मीडिया? और लोगों की ज़िंदगियों से कैसे-कैसे खिलवाड़? और आप खुद जाने-अनजाने, इस सब का हिस्सा बने हुए हैं? किसके लिए? यही नहीं। अपने बच्चों को भी उसी Culture Media में धकेल रहे हैं। जाने-अनजाने?    

खास नंबर वाली AP Bullet पहले किसी छोटी बहन के पास आई। वहाँ से खास तारीखों को, वो कहीं और खड़ा होनी शुरू हुई। और कुछ वक़्त बाद, उस घर में भी कोई Bullet पहुँच गई? भाभी जा चुकी थी। किसी और जबस्दस्ती सामाजिक समान्तर घड़ाई के धकेल की, घर में आने की कहानी की शुरुआत? मुझे जब भी कोई Bullet दिखती है, ऐसा लगता है, बंद क्यों नहीं हो जाती ये Bullet? इसका तो नाम ही हिंसा जैसा-सा है। हालाँकि, किसी वक़्त मुझे भी बुलेट ठीक-ठाक लगती थी। हालाँकि, भारी-भरकम मशीनों की मैं फैन कभी नहीं रही।    

उसपे, पता है वो किसकी पहुंचाई हुई है? ये अहम है? 

इन सब ज़िंदगियों का, इनकी ज़िंदगियों के उतार-चढ़ावों का और फिलहाल इन ज़िंदगियों में जो चल रहा है उसका, किसी Hyderabad, Telangana या Andhra Pradesh से कोई लेना-देना हो सकता है क्या? या शायद ऐसे ही किसी और के, किसी घटना या दुर्घटनाक्रम से? मैं खुद जानना चाह रही हूँ, जानकारों से। क्यूँकि, पता नहीं क्यों, मुझे इन ज़िंदगियों में या आसपास के इन घरों में, सबकुछ जैसे उल्टा-पुल्टा सा लगता है। इसकी इस वक़्त की कहानी जैसे, इससे या इस फाइल से मिलती-जुलती है। उसकी, उस वक़्त की कहानी, जैसे उससे? पता ही नहीं, कैसे-कैसे जाले हैं? जोड़-तोड़ और मरोड़ हैं? और कैसे-कैसे कोढ़?              

गूगल ज्ञान और खास तरह की AI Enforcements?


अब कोई उस गुड़िया के नाम पे 50%, 50% करने लगे, तो आप क्या करेंगे? जबरदस्ती का Psycho war चल रहा है। यूँ लग रहा है, जैसे लोगों के दिमाग की common sense को ही ब्लॉक कर दिया गया है। Long Term में बच्चे पर ऐसे Enforced Dramas का प्रभाव क्या होगा? अगली पीढ़ी के खास रोबोट्स का उत्पादन और फिर उनकी पैदाइशी ट्रेनिंग ऐसे शुरू होती है और आगे चलती है। बच्चे की पैदाइश से लेकर, तारीख, जगह, हॉस्पिटल, डॉक्टर और कितने सारे छोटे-मोटे details, सब कौन कंट्रोल कर रहा है? और उससे भी अहम है, कैसे और क्यों?

हमारे बच्चों को Psycho Manipulations, Alterations, Psycho Wars, Psycho Operations (Military या Civil) जरुर पढ़ने चाहिएँ। 24 Hour, 365 Days, जब आप observations और Surveillance Abuse के घेरे में हों, तो ज़िंदगियाँ बिलकुल लैब-सी कंट्रोल होती हैं। समाज की इस लैब के Standards और Protocols भी बिलकुल ऐसे ही डिज़ाइन और operate होते हैं, जैसे किसी भी Scientific लैब में। 

ये उदाहरण इसलिए दिया, की एक तो ये तरो-ताज़ा है। उसपे, इससे पहले आसपास के ही कई बच्चों की पैदाइशों से लेकर, हॉस्पिटल, उन बच्चों की बीमारियों और फिर स्कूल जाने तक के सफर को थोड़ा पास से देखने का मौका मिला, इन पिछले कुछ सालों में। खासकर, जब से मैं घर आई हूँ।  
 
आगे और कई ऐसे उदाहरण मिल सकते हैं, अजीबोगरीब ड्रामों के, जहाँ बच्चों तक को शामिल कर लिया जाता है। जो मेरे हिसाब से इन बच्चों और माता-पिता के लिए भी सही नहीं है। वो उनकी ज़िंदगियों को कोई अजीबोगरीब दिशा दे रहे हैं। जिनसे ना सिर्फ सावधान रहने, बल्की बचने की जरुरत है।  
    
मगर बचोगे कैसे, जिनके बारे में तुम्हें मालूम ही नहीं? ये भी अहम है। वो भी जानने की कोशिश करेंगे।                     

Tuesday, January 30, 2024

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 6

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 4

में आपने पढ़ा 

BP कैसे होता है (Blood Pressure)?

नसों की बीमारी क्या होती है (Nerves Problems)?

लकवा कैसे लगता है (Paralysis? Paralytic Attack?)

Lifestyle Problem?

Tension/s का होना?

डेरी उत्पादों का ज्यादा खाना-पीना?

या हानिकारक फैट्स का ज्यादा खाना-पीना?

ये नसों की बिमारियों वालों को इतना नारियल पानी क्यों बताते हैं? कहाँ से आता है ये? और कब से इसके, इतने गुणों के बारे में प्रचार-प्रसार हुआ है? 

चलो, थोड़ा-सा और जोड़ते हैं उसमें 


Experimental Executions?
On Prisoners or on masses, common people? 
  
अभी सिर्फ प्रश्नचिन्ह ही लगा सकते हैं?

अगर आपको अपने आसपास ऑक्सीजन की कमी लग रही है, तो वो सच में भी OXYGEN की कमी हो सकती है और BP जैसी कोई शिकायत भी। क्या हो, अगर OXYGEN Cylinder की बजाय, ऐसा कुछ लग जाय जैसे, NITROGEN GAS? आम आदमी को थोड़े ही पता होगा वो OXYGEN Cylinder है या कोई और?

ये तो ऐसे ही एक प्रोफेसर की FB वाल पे पढ़के दिमाग में आया। पढ़े-लिखों तक को कहाँ पता होता है, की जो दवाई हमें दी जा रही है, वो सही है की नहीं? हम तो उसपे लिखा तक नहीं पढ़ते, जब तक कोई खतरा ना नजर आए, खासकर जब कोई एडमिट होता है। और पढ़ भी लेंगे तो अंदर क्या है, इसकी गॉरन्टी हो सकती है क्या? सब विश्वास पे चलता है। मगर कोरोना के वक़्त के हादसों को जिन्होंने थोड़ा पास से झेला हो, वो कैसे विश्वास करेंगे?

नसों की बीमारी और नारियल पानी? थोड़ा और जानेंगे उसके बारे में, आगे किसी पोस्ट में। 

Sunday, January 28, 2024

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 5

 पुनर्जन्म क्या होता है? 

ये Entire Political Science का सबसे भद्दा रुप है। आम आदमी को बेवकूफ बना, अपना उल्लू सीधा करना। कोई एक घर से गया हुआ इंसान, किसी दूसरे घर में आ सकता है क्या? हाँ। शायद, जैसे तलाक के बाद होता है। बगैर तलाक के, संभव है?

इस घर के जन्मदिन और शादियों की तारीखें चैक करो, जहाँ से कोई इंसान दुनियाँ को ही अलविदा कह गया, जिस किसी वजह से। किस दिन गया, वो भी। और उस घर के इंसानों के जन्मदिन और शादियों की तारीखें पता करो, जिसमें कोई तलाक के बाद या दौरान ही, कोई नई बहु लाया है। जिसे इस राजनीती के चालबाज़ धंधे में in बोलते हैं। जैसे live-in . Live-in? ऐसे होता है? हमारे यहाँ आम बोलचाल की भाषा में तो उसे "चुन्नी उढ़ा लाए" बोलते हैं या "5 आदमी गए थे बयाण", बोलते हैं शायद? वैसे ये "चुन्नी उढ़ाने का" या "5-आदमी गए थे बयाण" का  रिवाज़ कब से शुरू हुआ? ये Human Robotics गढ़ने वाले कलाकारों के दिमाग की देन नहीं लगता?

सबसे बड़ी और मजेदार बात, यहाँ भी किसी एक पार्टी का मानव रोबोट के पुनर्जन्म का अधिकार सुरक्षित नहीं है। जिन-जिन पार्टियों में इतने जोड़-तोड़ और मरोड़ की काबिलियत है, वही कर देती हैं। जैसे अलग-अलग शादियों के डिज़ाइनर अलग-अलग पार्टियाँ होती हैं। वैसे ही यहाँ भी, इस तरह के आसपास ही, एक से ज्यादा नमूने देखने को मिल सकते हैं। इनके बारे में जितनी ज्यादा सही जानकारी, आपको पता होगी और इन कोढों के बारे थोड़ा बहुत ज्ञान भी, उतना ही ज्यादा, आप इनके बारे में बढ़िया से जान सकते हैं, या बता सकते हैं। और ये इस तरह की दौबारा शादीयां ही पुनर्जन्म (?) का हिस्सा नहीं है। 

जो इंसान गया है, उसके मानव रोबोट version की अगली पीढ़ी भी तो लानी है। तो क्या होगा? जहाँ से गया है, जिस हॉस्पिटल से, वहाँ आसपास से ही कोई खास पैदाइश भी मिलेगी। अब वो तारीखें भी पता कर लें। उनके माँ-बाप के नाम, पते वगैर भी। जितनी उनके बारे में जानकारी होगी, उतना ही ये समझ आएगा, की किस कदर इंसान पे कंट्रोल है, इन राजनीतिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनी के समूहों का। कैसे ये सामाजिक घड़ाईयाँ, महज सामाजिक व्यवस्था या सिस्टम की ही पोल नहीं खोलती, बल्की आम-आदमी के शोषण का क्रूर और भद्दे से भद्दा, रूप भी दर्शाती हैं।   

जो जाते हैं, वो वापस कहाँ आते हैं? अभी तक तो संभव हुआ नहीं। हाँ। ये आदमखोर-सिस्टम जरुर, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे लोगों को खा रहा है, सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई और कुर्सियों के चक्कर में। और कितने ही छोटे-मोटे लालच या डर, इंसान को देकर। कितने ही रिश्तों के जोड़-तोड़, कितने ही ना हुई बिमारियों के ढेर आम आदमी को देकर।     

ऊपर दी गई कई सारी सामाजिक घड़ाइयों के किरदारों के नाम तो नहीं लिखे जा सकते। मगर, ऐसे ही केसों को आप अपने आसपास से भी समझ सकते हैं। एक नहीं, शायद कई मिलेंगे।   

Saturday, January 27, 2024

पीता? पीटा? मार-पटाई? ओह हो! मारपिटाई?

यहाँ पे औरतें पीटती हैं, 

अगर वो अधिकार की बात करें तो 

यहाँ पे औरतें भी, औरतों को ही पीटती हैं

क्यूँकि,

पुरुषों की तरफ, आँख तक उठाकर देखने की 

उनकी हिम्मत नहीं होती। 

चाहे वो पुरुष उनके अपने बच्चे या छोटे ही क्यों ना हों। 

बड़ों के बारे में कुछ कहना तो फिर, बड़ी बात है। 

चाहे वो तर्कसंगत बात करें 

तर्क-वितर्क यहाँ नहीं चलता। 

यहाँ सिर्फ पुरुषों का राज चलता है। 

वो पुरुष चाहे बाप हो, भाई हो, बेटा हो, 

पति हो या पोता ही क्यों ना हो।  

वो पुरुष चाहे, शराब पीने वाला हो 

या जुआरी ही क्यों ना हो। 

वो पुरुष चाहे औरत के संसाधनों 

या कमाई पे ही क्यों ना पलता हो। 

कहाँ की बात है ये?

शायद तो हमारे यहाँ की नहीं है?

और शायद से आपके यहाँ की भी नहीं है?  


या शायद हर गरीब तबके की? 

और ज्यादातर कम पढ़े-लिखे लोगों की है?

पढ़े-लिखे जहाँ में तो, शायद ऐसा कभी नहीं होता?

या होता है?

हमेशा नहीं, कभी-कभी तो होता है शायद?

ये बात सिर्फ औरतों की है?

या किसी भी कमजोर वर्ग की है?

और ऐसे लोगों को 

--भड़काया भी बहुत आसानी से जा सकता है?

ये तो बचने वाले को ही, बचके निकलना पड़ेगा?

नहीं तो?

कुछ भी सम्भव है? नहीं?

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 4

BP कैसे होता है (Blood Pressure)?

नसों की बीमारी क्या होती है (Nerves Problems)?

लकवा कैसे लगता है (Paralysis? Paralytic Attack?)

Lifestyle Problem?

Tension/s का होना?

डेरी उत्पादों का ज्यादा खाना-पीना?

या हानिकारक फैट्स का ज्यादा खाना-पीना?

ये नसों की बिमारियों वालों को इतना नारियल पानी क्यों बताते हैं? कहाँ से आता है ये? और कब से इसके, इतने गुणों के बारे में प्रचार-प्रसार हुआ है? 

क्या खास है, इन सबमें 

वैज्ञानिक स्तर पे?

रीती-रिवाज़ या धर्म-कर्म के स्तर पे?

राजनीती के स्तर पे?

और इन सबकी खिचड़ी पकाके, व्यवसाय के स्तर पे?   

अगर कोढ़ को जानने की कोशिश करें तो क्या समझ आएगा?   


रितु (भाभी को)  को नसों की बीमारी थी, (आम भाषा में)। 

 जितना मुझे समझ आया, उनकी समस्या क्या थी?

Hectic Lifestyle, खामखाँ की तू-तू, मैं-मैं। मगर, हमेशा नहीं कभी-कभी।  2019 के आसपास, शायद वो बढ़ गई थी। 2020 के बाद, वो कई बार हॉस्पिटल भी एडमिट हुएAPEX Hospital, Rohtak। मगर, 2-4 दिन बाद ही वापस घर आ जाते थे, ठीक-ठाक। 

2021 में मेरे Enforced Resignation के बाद, मेरा घर आना-जाना ज्यादा हो गया था। 2022 में मैंने कैंपस हॉउस से अपना तकरीबन सामान उठा लिया था। या कहूँ की उठवा दिया गया था। भाई-भाभी की जब कभी अनबन होती और रुठ के अपने मायके चले जाते तो ज्यादातर मैं ही लाती थी। ताकी उन्हें कहने को हो जाए, की मैं खुद नहीं आई, दीदी लाए हैं। और भाई की खामखाँ की ऐंठ, भी बनी रहती। मगर घर आने पे ज्यादातर अपने आप सही हो जाता था। माँ को वो कोई खास पसंद नहीं थी। या कहना चाहिए की शादी से पहले ही, उन्होंने मना कर दिया था। मगर नए दौर के बच्चों के सामने चली नहीं। अब कोर्ट में शादी कर ली और बाकी सब साथ, तो कोई खास आपत्ति भी नहीं थी। क्यूँकि, देखने में भी ठीक-ठाक थी और उसके लाडले से ज्यादा पढ़ी हुई भी। भाई के आर्य मॉडल स्कूल में ही पहली बार पढ़ाना शुरू किया था, खुद की पढ़ाई के, एक तरह से साथ-साथ ही। जब बड़े भाई को पता चला, तो उन्होंने डाँट के उन्हें स्कूल से निकाल दिया। उन्होंने भाई को बोला, की अगर अभी शादी नहीं की तो मैं तो मरुँगी। और लो जी, शादी हो गई। प्यार शायद इसी को कहते हैं। 

दूसरी तरफ, वो दिल्ली का केस, जहाँ पे कोई टाइम पास (Experiments on innocent girls?) कहे, की मैंने कुछ किया है, नहीं ना? वो भी किसी सत्यवान सांगवान के घर, सीनियर, जिनके यहाँ शायद किसी चाय-पानी पे गए थे। या मेरा डॉक्टर भाई, मेरे लिए कोई डॉक्टर ढूंढ रहा है। लड़की क्या सोचेगी, ऐसे इंसान के बारे में?  शायद यही, ये तो बढ़िया है। डॉक्टर से शादी करो। कोई संदीप शर्मा, थोड़े वक़्त रामजस कॉलेज में adhoc टीचिंग के बाद निकल जाता है किसी स्विटज़रलैंड पोस्टडॉक के लिए। और विजय दांगी PhD के लटकों-झटकों को झेलते हुए, फ्लोरिडा, अमेरिका। जब तक 2020 का covid नहीं देखा, समझा और झेला, तब तक समझ ही नहीं आया था, की दुनियाँ में ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी बीमारियाँ भी होती हैं। और कैसे-कैसे बीमारियों के बहाने, लोग दुनियाँ को अलविदा कहते हैं। खैर ये पूरी कहानी, आपको किसी किताब में पढ़ने को मिलेगी। Rohtak से Delhi और Gainesville Florida, बहुत ही थोड़े से वक़्त के लिए। और फिर वापस MDU, मगर किसी नए-नए खुले DET (Department of Engineering) में। जिसका बाद में नाम हुआ, UIET (University Institute of Engineering and Technology) । वहाँ joining के कुछ ही महीने बाद, किसी SUV ने ठोक दिया। आगे तो कहानी है।  

जगहों के नाम, डिपार्टमेंट, डिग्री, विषय, रुम नंबर, लैब नंबर, इंस्ट्रूमेंट्स, प्रोजेक्ट्स, केमिकल्स, स्टुडेंट्स, हाउसिंग टाइप्स, हाउस नंबर या कहो जो कुछ भी आप देख-सुन और अनुभव कर सकते हैं, अपने आप में, एक कोढ़ है, राजनीती का, इस सिस्टम का। 

इंसान, उनके रिश्ते-नाते, जन्मदिन, मरण-दिन, बीमारियाँ सब कोढ़ हैं। हम सबको बड़े-बड़े खिलाडियों ने या कहो पार्टियों ने, अपनी-अपनी तरह की गोटियाँ बना दिया है। एक तरह के वैरिएंट्स (Variants)। आप उनमें कितना फिट होते हैं और कितना नहीं, कहाँ फिट होते हैं और कहाँ नहीं, कब फिट होते हैं और कब नहीं, ये सब इन पार्टियों की चालें बताती हैं। वो चालें, ये आप पर ऐसे ही चलती हैं, जैसे लैब में किसी चूहे, पौधे, बैक्टीरिया पर एक्सपेरिमेंट्स। आज का हमारा समाज एक बड़ी लैब है। जिसकी इंजीनियरिंग, ये पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े हुए, लोगों के समूह करते हैं।   

वापस रितु पर आएँ? जब रितु चौधरी की शादी परमवीर सिंह (सिंह? कब से?) से हुई, उसी वक़्त आसपास कोई और भी इंटरकास्ट शादी हुई थी। अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग डिज़ाइन, उनकी फिटिंग के अनुसार। रितु? रितू चौधरी या रितु कादयान? या रितु दांगी? रितु दांगी के किसी नेक्स्ट जनरेशन (NG?) वैरिएंट की फिटिंग कहीं किसी और रितु पर हुई, मगर ज्यादा चली नहीं। ऐसे ही पार्टियों के कितने ही हेरफेर होते हैं, लोगों की ज़िंदगियों पर, रिश्तों पर, उनके बच्चों की पैदाइश पर या पैदा ही ना होने देने पर। और मौत पे भी। 

Ritu इन पिछले कुछ सालों में APEX (अपैक्स कोर्ट क्या होता है?) से होते हुए PGI गई, और खत्म? ये नसों की कहानी है? किसी सिस्टम के, ये बताने की भी, की वो कैसे काम करता है? रितु, जिस स्कूल से इस घर में आई थी, क्या वही स्कूल उसे खा गया? क्या, ये कोरोना के अपडेट की, एक सामाजिक सामांतर घड़ाई है? 

इस सबका HD पब्लिक स्कूल, बहुअकबरपुर और आर्य मॉडल स्कूल से क्या लेना-देना हो सकता है? क्या वहाँ भी कोई अपडेट चल रहा है? 

ये मोदी का लक्षयद्वीप विजिट क्या है? 

इसका किसी लक्ष्य से या आर्य मॉडल स्कूल या सुनील की 2-कनाल जमीन हड़पने से कोई लेना-देना हो सकता है? अजीबोगरीब कोढ़ हैं।   

KANTA भाभी, वापस करेंगे ये ज़मीन या कोर्ट चलेंगे? या अबकी बार मुझे ही उठा देंगे? या उठवा देंगे? ये पब्लिक नोटिस आपके लिए। स्कूल है या लोगों को उठाने का धंधा?      

और HD डिज़ाइन क्या है, इसमें?      

वैरिएंट्स, अलग-अलग पार्टी के और अलग-अलग तरह की और तरीके से लड़ाइयाँ?                

Friday, January 26, 2024

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 3

पत्ता बेगम, पथ्थर, और पथ्थरी?

क्या मतलब हो सकता है, इस सबका 

वैज्ञानिक स्तर पर?

रीती-रिवाज़ या धर्म-कर्म के स्तर पे?

राजनीती के स्तर पे? 

इन सबकी खिचड़ी पकाके व्यवसाय के स्तर पे, या कहो की पैसे बनाने के स्तर पे?

थोड़ा बहुत इधर-उधर से भी जान लें, फिर जोड़ेंगे इसमें थोड़ा और। तब तक आप भी सोचिए, ठीक ऐसे ही और बीमारियों के बारे में।         

  

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 2

2019 में मारपिटाई के बाद काफी कुछ बदला। एक तरह से यूनिवर्सिटी से बाहर होने की शुरुवात। उस मारपिटाई का शायद मतलब ही यही था। उस विकास सिवाच या सज्जन या किसी भी कुर्सी पर बैठे अधिकारी का कुछ हुआ क्या? 

हम उस समाज में हैं, जहाँ आम-आदमी, हर तरह से, हर जगह भुगतता है। उसका नमूना आगे का वक़्त रहा। दिसंबर 2019, Exams फ्रॉड और उधर माँ का ऑपरेशन। क्या खास था, उस ऑपरेशन में? आँखों देखा और अनुभव किया गया हाल, की बीमारियों या उनके इलाजों के नाम पे हॉस्पिटल्स में क्या कुछ होता है। आदमी एक खिलौना है। अगर आपके पास पैसा और पावर है, तो आप उससे कैसे भी खेल सकते हैं। उस पावर का साथ देता है, यहाँ-वहाँ लोगों का छोटा-मोटा लालच। जैसे अगर प्राइवेट हॉस्पिटल है, तो उन्हें भी तो चाहिए कमाने के लिए पैसा। ऐसे ही थोड़ी, इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें और इतना स्टाफ रख सकते हैं। इतने सारे प्राइवेट हॉस्पिटल्स, मतलब सरकारी हॉस्पिटल्स जनसँख्या को देखते हुए, जैसे हैं ही नहीं। हैं तो हद से ज्यादा भीड़ और सुविधाओं की कमी। इससे आगे भी कुछ है शायद? वो 2020 में शुरू हुए कोरोना काल ने समझाया। 

जैसे पीछे लिखा, हर अपडेट, अपडेट नहीं होता। कभी-कभी रिवर्स गियर भी होता है। और कभी-कभी किसी खास वक़्त पे, स्टॉप भी लगा दिया जाता है। सिस्टम चलाने वालों की जरुरतों के हिसाब-किताब से। जैसे कहीं, 2020 शुरू हो चूका था तो कहीं आगे तक 2018 या 2019 चल रहा था या कहना चाहिए की चल रहा है। इसी को शायद, टाइम मशीन बोलते हैं, इस कोढ़ वाले सिस्टम की परिभाषा के अनुसार? इसीलिए जोड़-तोड़ और  मरोड़ होते हैं, किस्से कहानियों में और लोगों की ज़िंदगियों में। कहीं, इस पार्टी के किस्से-कहानी, तो कहीं उस पार्टी के। 

माँ का ऑपरेशन कुछ-कुछ ऐसा ही था। देखो तो कुछ भी नहीं। छोटा-सा GALL-BLADDER STONE का ऑपरेशन। जिसमें, तीन कट इधर-उधर थे, तो एक नावल के पास। मगर जहाँ-जहाँ ले जाया गया या शायद जो कुछ उस दौरान देखा या समझा, वो कुछ और ही था। 

March 2020 में ऑफिशियली कोरोना शुरू हो चुका था। मेरा खुद का अजीबोगरीब बैक साइड दर्द और  हॉस्पिटल टैस्टिंग और ड्रामा। और ड्रामे के कोढ़ को समझते हुए मेरा रोहतक छोड़, अपने गाँव नो दो ग्यारह, हो जाना। मजेदार ये की दर्द का भी गुल हो जाना। कहाँ गई गाँव आते ही वो पथ्थरी?  

उसके बाद 2021 में, मेरा खास ड्रामे के साथ PGI VC, OFFICE के बैक साइड, ATM से, पुलिस द्वारा अपहरण। और फिर खास साढ़े तीन दिन (3.5) का SUNARIYA JAIL, Rohtak का दौरा। वो सब आप Kidnapped by Police, Campus Crime Series में पढ़ सकते हैं।

समझ आया कुछ, अपहरण क्या होता है और पथ्थरी की बीमारी क्या है? 

1 मेरा अपहरण पुलिस द्वारा, PGI VC, OFFICE के बैक साइड, ATM से 26-4-2021 से 29-4-2021 तक। पता नहीं इसी दो और नौ (29) का मतलब ही, नौ दो ग्यारह होता है क्या?  

2 गुड़िया का अपहरण, जैसे अपने ही लोगों द्वारा, उसकी माँ के जाने के बाद (1 Feb, 2023)। इन्हीं इधर-उधर के खास अपनों ने, माँ और छोटे भाई को बेवकूफ बनाया हुआ है। और इन माँ-बेटे को मालूम ही नहीं, की कैसे और क्यों ये सब हुआ है, जो कुछ हुआ है या हो रहा है। इन दूसरों को बेवकूफ बनाने वालों को भी, कोई और बेवकूफ बना रहा होगा? किसी छोटे-मोटे लालच के लिए? या किसी तरह का डर दिखाकर शायद? मजेदार ताने-बाने हैं ये, देखने और समझने लगो तो।   

इसका और इसके बाद जो कुछ हुआ, का लेना-देना, सीधे-सीधे, मेरा कैंपस क्राइम सीरीज, के पब्लिकेशन को रोकना रहा। अगर रोका ना जा सके, तो जितना हो सके, उतना आगे खिसकाना। क्यूँकि, ये सब इधर-उधर दी गई धमकियों के बाद हुआ है, जितना मुझे समझ आया।  

जैसे एक तरफ वो पीने वाले भाई को शराब सप्लाई करेंगे। उसका फ़ोन उठा लेंगे या बंद करवा देंगे। फिर उल्टा-पुल्टा पढ़ा, उससे घर में सांग करवाएंगे। और फिर कहेंगे पीता है, को पीटा है।  फिर लालच के दलदल में सवार लोग, उसका अपहरण कर जमीन ले लेंगे, खास स्कूल वाली जमीन, जिसके अपने राजनीतिक कोढ़ हैं। मतलब सबकुछ राजनीतिक कोढ़ और कुर्सियाँ हैं। उसके लिए जो कुछ भी करना पड़ेगा, करेंगे।   

3. सुनील,पीने वाले भाई का अपहरण जैसे, फिर से अपने कहे जाने वाले या आसपास के ही लोगों द्वारा। खासकर, चाचा के लड़के का और इस दूसरे दादा के कुनबे का इसमें अहम रोल। नाम जानना चाहेंगे इस भतीजे का और उसकी माँ का? आएँगे, धीरे-धीरे उसपे भी। सोशल अपडेट या hold on या reverse gear जैसी-सी, किसी सामाजिक किस्से-कहानी की पोस्ट के साथ। सामाजिक किस्से-कहानियाँ, सामाजिक इंजीनियरिंग के, राजनीतिक पार्टियों द्वारा। जितनी पार्टियाँ, उतने ही किस्से और कहानियाँ और लोगों की ज़िंदगी की हकीकतें।          

इन सबमें Mind Twisters, Surveillance abuse and technology abuse होता है। हॉस्पिटल क्या, स्कूल क्या, यूनिवर्सिटी क्या, पराये क्या, अपने क्या, जिस किसी का दाँव लग जाए, इस लालच के भवसागर में, जैसे अपने पाप धोते नजर आएंगे। ठीक वैसे, जैसे हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और। हालाँकि, सारी दुनियाँ तो बुरी नहीं हो सकती। कुछ ही होते हैं। ज्यादातर आम आदमी, कल भी भले थे, विश्वास करने लायक भी और आज भी।     

वैसे, कैसे होती है ये पथ्थरी की बीमारी? या ऐसी-ऐसी, कितनी ही सामाजिक सामान्तर घड़ाईयाँ? आएँगे आगे इनपे भी किन्हीं और पोस्ट में?

कितनी ही तरह के बुखार, कैंसर, लकवा, शुगर और पता ही नहीं कितनी ही बीमारियाँ, ऐसे ही होती होंगी?   

Thursday, January 25, 2024

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट (Not A Movie Buff) 1

ये पोस्ट, 11 जनवरी, 2015 को लिखी थी, "Not A Movie Buff"। 

मैं शायद ही कभी कोई मूवी थिएटर में देखती हों। क्या हुआ कभी-कभार, दोस्तों के साथ। ऑनलाइन भी कभी-कभी। वो भी उसके Reviews पढ़ने के बाद या इधर-उधर से पता लगने पे की अच्छी मूवी है, देखने लायक। जब ये पोस्ट लिखी, उन दिनों एक विज्ञापन काफी आ रहा था। सोचा, देखुं तो क्या खास है। ठीक-ठाक मूवी थी। कोई बहुत खास नहीं। मगर, उसके कई सालों बाद, 2018 या 2019 शायद, बहुत कुछ देखा ऑनलाइन। बिल्कुल ऐसे, जैसे कोई पढ़ाई हो रही हो या शौध या खास कुछ जानने की कोशिश। थोड़ा बहुत लगा, की कुछ तो खास है, इस मूवी में। मगर क्या? खासकर, ये ट्रेलर। कोई किसी जैसा-सा भी दिख रहा है? खास किरदार जैसे? भारती? 

मगर कुछ कमैंट्स पढ़कर पता चला, वो तो तुमसे जोड़ रहे हैं। हाँ। हो सकता है। इस मूवी के देखने के कुछ साल बाद जो हुआ। Psycho अनुभव और फिर H#16 मारपिटाई। और फिर शायद, कुछ-कुछ ऐसा-सा ही हुलिया बनाने की जबरदस्त कोशिश। बाल कटवा लो। बाल कटवा लो। आपपे छोटे बाल अच्छे लगेंगे। शायद किसी ने बताया होगा उन्हें, की कभी ऐसा-सा हुलिया था मेरा। मगर जबसे बाल बढ़ाने शुरू किए, फिर वापस छोटे करवाने की कभी नहीं सोची। वो उस वक़्त सही थे। मेरे फेवरिट भी। मगर, अब मुझे इतने छोटे बाल खुद पर नहीं जचते। इससे आगे उस वक़्त का कुछ नहीं है, इस मूवी में। ये ऐसे है, जैसे हुलिया किसी वक़्त का उठा लिया और फिर कहानी किसी वक़्त की उठा के, किसी और ही वक़्त में फिट करने की कोशिश।  

थोंपने वालों की नहीं चली तो बाल जला दिए, किसी हेयर ट्रीटमेंट में। मगर मैं भी जिद्दी, कटवाए फिर भी नहीं। उसपे कलर भी करना छोड़ दिया। कोरोना ऑनलाइन टाइम था। घर से पढ़ाना था, तो चल गया। मगर इस सबने और कई सारे ऐसे-ऐसे Enforcements ने, सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के बारे में जरुर कुछ समझाया। विटिलिगो, लकवा, शुगर, कैंसर भी ऐसे ही हो सकता है क्या? और उनकी अलग-अलग stages भी? फिर तो कहीं ना कहीं स्टॉप या रिवर्स भी संभव है? सोशल अपडेट क्या और कैसे होते हैं? और उनका प्रभाव, कितने लोगों पर और कहाँ-कहाँ होता है। सबसे अहम, कैसा-कैसा होता है? जानते हैं, अगली पोस्ट में।       

नीचे पुरानी पोस्ट।         

SUNDAY, JANUARY 11, 2015

Do not know why, some trailers keep on coming time and again? And you cannot resist but to watch. Though I do not like much dishum-dishum and violence but I found this one interesting to watch, especially the story. 
I am not a movie buff and rarely watch movies in theaters. So do not know, if I will watch this one or not, but trailer is interesting. 


In the world, fight is all about fractions, factions, views difference and control. It's kinda my way or no way. Day by day, with the inventions of new technologies, this fight is getting uglier and manipulative. Public want more transparency. Dictators need more and more secrecy, on whatever name. 

Engineering Vs Entire Political Science


कौन हैं ये?
ये तो पता नहीं। मगर इसको देखकर जो समझ आया -- 
Engineering

इंजीनियरिंग, मतलब कला, काला-जादू जैसे? या कोई कालिख जैसे? या कुछ ऐसा इंजीनियर करना, जो आम आदमी की सोच से ही बाहर हो? जिसका इंजीनियर की डिग्री से नहीं, बल्की कोढ़ से मतलब हो। जैसे कोई टिफ़िन ऑफिस रखना? या घर या बाथरुम में कैद करना। या कैद कर, जैसे किसी सिस्टम का ही अपहरण करना। या जमीन के कागजों पे हस्ताक्षर लेकर, अपहरण करने जैसा। महा-शातीर या महा-चाणक्य या महा-कलाबाज़ लोग ही कर सकते हैं ऐसा? कुछ ऐसा, जिसपे यकीन करना ही मुश्किल हो? इंजीनियरिंग ऐसी होती है? ऐसे लोगों को तो आम भाषा में कुछ और ही बोलते हैं ना? गुंडे, मवाली, Crook जैसा कुछ?     

वो कोई खास वक़्त पे, खास जगह से आया, काला-धागा भी हो सकता है या ऐसा-सा ही कुछ और भी। जहाँ पट्रोल, हरा ही हरा होगा, Crime Patrol जैसे। और कोढ़ होंगे, जैसे कोई राक्षस या राक्षसी। चिढ़ा रहा हो जैसे। या शायद हंस रहा हो जैसे, आपपे? अपने आपपे? या देखने वालों पे? अलग-अलग लोगों के लिए, जिसका मतलब अलग-अलग हो सकता है। इंजीनियरिंग की ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी डिग्री कौन लेता है? और कहाँ-कहाँ दी जाती हैं, ऐसी डिग्री?     

Entire Political Science

राजनीती का मतलब हम जैसे क्या समझते थे? और अब क्या समझ आ रहा है? दुनियाँ जहाँ का सारा ज्ञान और विज्ञान मिला के जो बनता है, उसे राजनीती कहते हैं। नहीं, राजनीती विज्ञान कहते हैं। अरे नहीं रे, उसे Entire Political Science कहते हैं। जिसका मतलब, लोगों को अपने अधीन करना होता है। और बेवकूफ लोग सोचते हैं, सेवा करना ?     

Wednesday, January 24, 2024

नशा मुक्ती केंद्र, सामाजिक घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering) 1

नशा है, तो नशा मुक्ती केंद्र भी होंगे? 

Deaddiction Centre, नाम तो सुना होगा?

नहीं सुना? बड़े खुशकिस्मत इंसान हैं आप, फिर तो शायद? चलो, अगर बहुत खुशकिस्मत नहीं हैं, तो भी बड़े क्लेश से दूर हैं। क्यूँकि, ऐसी-ऐसी जगहें हम तभी देख या सुन पाते हैं, जब ऐसे बिमारों से पाला पड़ता है। और जो ऐसे बीमारों को झेलते हैं और फिर भी चाहते हैं की इनका भी भला हो। क्या कहूँ और तो, महान हैं वो। उससे भी महान, जो उनकी इस बीमारी से निकलने में मदद करते हैं, नशा मुक्ती केंद्र और उनमें काम करने वाले। या ये दोनों ही वहम हैं?              

"Alcoholic" सामाजिक घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering)

बिमारियों के कोढ़ और विज्ञान वाली राजनीती

आपको कौन-सी बीमारी कब और क्यों होगी? ये कौन बताएगा? आपका माहौल? 

Social Media Culture?

Social Media Culture? कैसे परिभाषित करेंगे उसे आप?

वहाँ के राजनीतिक कोढ़ को जानकार?

सुनील Chronic Alcoholic है? 

कैसे सिद्ध करेंगे ये आप? 

उसके हालात नहीं बता रहे क्या? "जैसा की हमारी बड़ी भाभी ने भी कहा, वो तो पीता है, कबसे। " 

जी, वही तो मैं कह रही हूँ, भाभी। वो पीता है, कबसे। आपको भी पता है। आपके बेटे को भी। उसके चाचा को भी। आसपड़ोस में, सबको। रिश्तेदारों को भी। वो पता नहीं, बचा कैसे हुआ है? उसके साथ के तो कितने "राम नाम सत्य" हो गए। जैसे, अपने राम लल्ला (अपने? पर मैं तो नास्तिक हूँ), अभी 22-01-2024 को मोदी के कर कमलों से सुशोभित होते हुए, विराज-मान हुए? 

ये वि-राज कौन है? 

VI? RAJ?  या कुछ और?

बुआ, ना। बेबे, के बीमारी थी, आपने कमांडों कै? बच्चे को एलर्जी, 4-5, साल तक साबुन, शैम्पू वगैर बंध। राज-नीती का कोढ़ जैसे, कुछ-कुछ जैसे COVID? कौन समझायेगा इसे? केजरीवाल? या मनीष? सिसोदिया? अरे वो तो जेल में हैं। क्यों? ये भटकती आत्मा, किसी न किसी प्रोफाइल पे तो जरुर, कुछ न कुछ जानकारी पाएगी? मगर किसपे? धन्यवाद जी, ऐसे-ऐसे, पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े हुए राजनीती वालों का भी। नहीं तो, कहाँ ये अजीबोगरीब राजनीती वाले, ताने-बाने समझ आते?        

चलो वापस राम लल्ला पे आते हैं    

कोई तो होगा ना, थोड़ी बहुत मदद करने वाला? तो आपको ऐसे छोटे भाई की मदद करनी चाहिए? या ऐसे में उसकी जमीन, धोखे से अपने नाम करवा "बोतल दो, जमीन लो", वाली लालची लोगों की कहावत को सिद्ध करना चाहिए?

ये तो आप के मान हो रहे हैं, आप। कहाँ के भगवान? वैसे, इस मान का पंजाब के किसी मान से कोई लेना-देना है क्या? वो भी "Alcoholic"?  फिर तो किसी ना किसी पार्टी का alcohol के खिलाफ भी "अभि"  यान होगा? क्यूँकि, विज्ञान के अनुसार तो ये बीमारी है। है क्या, कोई पार्टी ऐसी?  अभी का षेक  तो तभी पूर्ण हो सकता है। वरना तो, क्या बोलेंगे इसे? संस्कारी सरकारें ये ठेके बंद क्यों नहीं करती? क्या मिलता है इनसे? योगी जी, कोई और करे ना करे, कम से कम आप तो करें? फिर तो हमारे खट्टर को भी शायद कुछ सोचना पड़े? और कितने ही और राज्यों को? नहीं? अरे, शराब तो कमाई का साधन है, सरकारों का, इसपे बैन कैसे हो सकता है?            

और भाई साहब आप तो दानी है? ये आपका आर्य मॉडल स्कूल दान की ही निशानी है? नहीं?

कितना तो दान करते हैं?

OS CAR 10-12-2014 (किसकी शादी थी बच्चो, आसपास? किसी छोटी बहन की? कहाँ? वो किस कहानी में उलझी हुई है, आजकल?) 

छोटी बहन, पीता है एक राजनीतिक कोढ़ है, जिसका अर्थ है, पीटा है। समझे कुछ? और जी सज्जन जी, आप क्या कहेंगे? अब ये कौन सज्जन है? और कहाँ, कहाँ हैं? क्या कहें, उनके बारे में? वैसे यूनिवर्सिटी वाले सज्जन की बीवी भी मायके बैठ गई क्या? तो ये कोई और महान सज्जन, कैसे इस सामान्तर घड़ाई का हिस्सा बना? सोचो?        

सामाजिक घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering)?  यही करती है क्या राजनीती? और इस सिस्टम का हिस्सा हैं, हम?  

और यो सुनील कुमार कौन सा ऑस्कर ले रहा है? 

अरे, तू (Sunil) हिमाचल कब जाएगा? 
क्यों जाता है वहाँ?  
किसके पास? 
क्या करने?
कब से? 
छोड़ देता है क्या पीना, वहाँ जाके?
सच में?
वैसे ये HP की कहानी क्या है?  
संजू कोई मूवी भी है?
 और कोई लैपटॉप भी?
कौन से वाला?
इन सबका खाटु से क्या लेना-देना? या 14 से?    
इसका OS CAR या PGI रोहतक से क्या लेना-देना हो सकता है?    

PGI JAN, 2016  तारीख पे तारीख, जैसे? 
यहाँ क्या खास था?
अपनी छोटी बहन की तरफ से आपको खास ऑस्कर दिया जाता है। 
सहर्ष स्वीकार करें। 
आप गौ-दान करने क्यों पहुँचे हुए हैं?
वहाँ गायों के भी कान बींधे हुए हैं क्या?
क्या नंबर हैं उनके?
मैं तो ये जो गलियों में यहाँ-वहाँ आती हैं रोटी लेने, बस इनके कानों के नंबर देखती हूँ। वैसे इधर-उधर घर वाली गायों, भैंसों और सांडों के भी देख लेती हूँ, कभी-कभी। एक कहानी तो बनती है, उनपे भी। कोई ऑनलाइन रिकॉर्ड भी होगा? किस एरिया में गायों, भैंसो या सांडों के कौन-कौन से कोड हैं? किसी को पता हो तो बताना, प्लीज। और कब-कब, वो कहाँ-कहाँ ट्रांसफर होते हैं या माइग्रेट करते हैं?     
अरे भाई साहब, यहाँ तो एक भी गाय नहीं दिख रही। आप किनको दान कर रहे हैं, ये? वैसे, किसी भी जानवर के लिए या दीन-गरीब के लिए सेवा-भाव अच्छी बात है। मगर, उसके नाम पर खामखाँ का प्रदर्शन नहीं। मुझे तो उनके नाम पे खाने वाले बहुत बुरे लगते हैं। सभी को लगते होंगे शायद?    
   

गायों के लिए दान करने वाले, 
इंसानों को बोतल देकर, दुनियाँ से चलता कर देते हैं?
सिर्फ 2-कनाल जमीन के लिए?   




आपकी छोटी बहन, 

विजय दांगी लिखूं या मंजु?

वैसे जानते तो होगे? 

Monday, January 22, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (5)

तो कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान?    

1. क्या आपको जो कहा जा रहा है वो सच है? या यहाँ-वहाँ से सुनी हुई कोई कहानी जैसे? अगर आपके पास ये प्रश्न ही नहीं है, तो आप सिर्फ अंधभक्त नहीं, बल्की मानव रोबोट बनने की पहली सीढ़ी पार कर चुके हैं। 

2. जो सच नहीं है, वो आपने मान लिया है? उसपे, वो आपके सामने बार-बार दोहराया जा रहा है? आपको सुनाया, बताया, दिखाया या अनुभव कराया जा रहा है? क्यों? अब भी, आपके पास सोचने के लिए दिमाग ही नहीं है? तो आप दूसरी सीढ़ी पार कर चुके हैं। कभी-कभी ये सीढ़ियाँ, आप खुद अपने बच्चों को या किसी अपने को भी पार करवाते हैं, जाने या अंजाने। और खुद भी करते हैं। जैसा आसपास के बच्चों के और उनके अपने कहे जाने वाले लोगों से या केसों से समझ आया। आपकी सेहत और ज्यादातर बीमारियों के राज भी इन्हीं पॉइंट्स में छुपे हुए हैं कहीं। और शायद ईलाज भी। कम से कम जानबुझकर लोगों द्वारा कही गई नौटंकियाँ करना बंद करो। वही ज्यादातर बीमारीयों का राज हैं और सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ का भी। क्यूँकि, उसके साथ-साथ बहुत कुछ ऐसा भी होता है, जो आपको बताया नहीं जाता।     

3. क्या ऐसा कुछ आपके सामने या आसपास या आपके साथ, बगैर रुके या थमे चल रहा है? निरंतर 24 घंटे? 365 दिन? उसपे इधर-उधर से आवाज़ें भी आ रही हैं या आपको ऐसा कोई अहसास हो रहा है, की कुछ सही नहीं हो रहा? तो मान के चलो, की गड़बड़ है।   

4. जैसे किसी भी बिमारी का कोई स्तर होता है। वैसे ही सामाजिक सामांतर घड़ाइयों का भी। ठीक ऐसे जैसे, शुगर, कैंसर, लकवा। बहुत-सी बीमारियों से फिर भी बचा सकता है या आसपास को बचाया जा सकता है। जानकारी और सही ईलाज। सामांतर घड़ाईयोँ के साथ-साथ, सामांतर बिमारियाँ और ईलाज चलते हैं। उनके कोढ़ भी। मुझे तो ऐसा ही समझ आया। बाकी जो ज्यादा जानकार हैं, वो अपना ज्ञान बाँटना ना भूलें।    

ये कदम इंसानों की ज़िंदगियों पे भी लगते हैं और हूबहू जैसे बिमारियों पे भी। उसपे अगर इंसान ज़िंदा है, तो रिवर्स गियर भी होता है। जैसे रिवर्स इंजीनियरिंग। Molecular Biology का Central Dogma का सिद्धांत जैसे। कभी सोचा ही नहीं, की Molecular Biology जैसा विषय Social Engineering के सिद्धांत, ऐसे clear करेगा। और लोगों को बीमारियाँ ऐसे होती हैं और ऐसे उन बिमारियों की अलग-अलग सीढ़ियाँ तय होती हैं। और ऐसे ही लोगों की आखिरी साँसे? राजनीती की तय की हुई जैसे। जो सच में समाज की सेवा अपने शोधों से करना चाहते हैं, उन्हें लैब्स से बाहर निकल कर, इस सोशल laboratory को समझने की जरुरत है। यहाँ शायद मुझे उन सभी अवरोधों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने मुझे इस विषय से उस विषय पे, उस विषय से किसी दूसरे विषय पे जैसे जबरदस्ती धकेला। मेरी लैब को अपना राजनीतिक अखाड़ा बनाकर। मेरी प्रोफैशनल और पर्सनल ज़िंदगी की, जैसे बोटियाँ-बोटियाँ करके। सारे अधिकार, हर संभव तरीके से रोंध के।        

सच कहूं, तो मुझे तो सोशल इंजीनियरिंग तो क्या, कुछ साल पहले तक ये शब्द तक पता नहीं था। इसके लिए मीडिया के कुछ खास लोगों को शायद धन्यवाद करना चाहिए। जिनमें, ज्यादातर के राजनीतिक bias को मैं पसंद नहीं करती। लेकिन सच ये है, की थोड़ा-बहुत जो भी समझ आया, आया उन्हीं के प्रोग्राम्स को देख-सुनके। खासकर, जिन्होंने आसपास रोज-रोज होने वाली घटनाओं को या यहाँ-वहाँ लिखे या कहे मेरे प्रश्नो के जवाब दिए। 

कम्पुटर अपडेट तो सुने होंगे। ये सोशल अपडेट क्या होता है और कैसे होता है? और उससे भी अहम, सिर्फ अपडेट नहीं होता, सोशल रिवर्स भी होता है। और कहीं-कहीं शायद, किसी वक़्त पे जैसे रोक के रखना भी। जानते हैं अगली पोस्ट में।   

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (4)

सामाजिक घड़ाईयाँ (Social Tales of Social Engineering)  

कहानियाँ ही कहानियाँ जैसे। इतनी सारी कहानियाँ? कहाँ से आती हैं, ये कहानियाँ? जितने आदमी, उतनी कहानियाँ? नहीं, उससे कहीं ज्यादा कहानियाँ। इधर-उधर, जहाँ कहीं देखो जिधर, कहानियाँ ही कहानियाँ? या सामाजिक घड़ाईयाँ? मगर, इतनी सारी सामाजिक घड़ाईयाँ? कैसे संभव है? 

कुछ कहानियाँ, जब मैं कुछ सामान लेके आई यूनिवर्सिटी से घर, तो तब सुनने लगी थी। अपने आसपास वाले ही लोगों से। जैसे वजह-बेवजह, पता नहीं क्या-क्या और कहाँ-कहाँ, जोड़-तोड़-मरोड़ रहे थे? या जबरदस्ती फेंक रहे थे? या उनकी अपनी ज़िंदगियों में कुछ सही ना हो और उसे कहीं और फिट करने की कोशिशें जैसी? और ऐसा वो खुद कर रहे थे या उनसे कोई करवा रहा था? या कहो की करवा रहे थे, अहम शब्द है। आम-आदमी अपने थोड़े से लालच के लिए, ये भी भूल जाता है की सामने वाले पे इसका क्या असर होगा? और वो खुद अपने बारे में, ऐसे तोड़-जोड़-मरोड़ सुनना चाहेंगे क्या, जैसे वो किसी और के घर में रच रहे हैं?   

जैसे ही बात हुई की स्कूल बनना है और मैं उसके लिए कुछ पैसा भाभी को देने वाली हूँ, अपनी बचत से। तो जैसे, आसपास कोई षड्यंत्र शुरू हो गया था, खासकर मेरे खिलाफ। जिनके यहाँ भाई-भाभी का आना-जाना था, उन्होंने फैलाना शुरू कर दिया, की ये तुम्हारी जमीन खा जाएगी। ये वो लोग थे, जो अपने आपको भाई के घर का सर्वोपरि समझने लगे थे। और उन्हें यहाँ तक नहीं मालूम था, की यहाँ हिसाब-किताब क्या है। जिसे वो जमीन खा जाएगी कह रहे थे, वो लेने की बजाई, वहाँ देती आई है। खुद उस भाई की इकलौती बच्ची को unofficially जैसे गोद लिया हुआ है। वो भी उसकी पैदाईश से ही पहले। वो दो बच्ची गोद लेना चाहती थी और उसे अपनों ने ही ऐसा नहीं करने दिया था। ये कहकर की ये बच्ची तुम्हारी ही समझो। भाभी के जाने के बाद, पता नहीं उस बच्ची को लेकर इधर-उधर के लोगों के कैसे-कैसे दावे थे। उससे भी अहम, क्यों?   

ये तुम्हारी जमीन खा जाएगी का हिसाब-किताब भी, भाभी की मौत के बाद के ड्रामों ने समझाया। उनमें कुछ पॉइंट्स अहम हैं। वो जमीन दो भाइयों की है। उस जमीन के आधे हिस्से को भाभी की मौत के साल भर के अंदर ही कोई खाने की कोशिश में हैं। कौन? जिसे इल्जाम दिया गया था वो? या कोई और? स्कूल वाले? दूसरे दादा के बच्चे, जिनका पहले से वहाँ स्कूल है, पिछले कोई 15-20 सालों से। छोटे भाई का नहीं, बड़े भाई का आधा हिस्सा। वही जो शराब पीता है। या कहो, पिलाई जाती है। खास, सप्लाई होती है। ये खास प्रोग्राम, अब इस भाई को उठाने के लिए है। भाभी खत्म तो वहाँ स्कूल नहीं बनेगा? मुझे यहाँ रहना नहीं, तो बचा कौन? आधे हिस्से को ये स्कूल वाले खा जाएंगे, तो बचा क्या? जो बचा है, उसका तो वैसे ही बढ़िया ईलाज किया हुआ है? 

"Protection के लिए ली है, बुआ।" किसका Protection भतीजे? शिक्षा के नाम पे धंधे का? अपनों को ही खा के? आती हूँ तुम्हारे लिए कुछ और खास पोस्ट पे आर्य मॉडल स्कूल के महानों।   


कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान?

आसपास के लोगों का जो रोल रहा, इस घर को बर्बादी की तरफ धकेलने का। क्या उसमें सिर्फ लालच है, इन आसपास वालों का या इससे ज्यादा कुछ और भी? राजनीतिक पार्टियाँ, इधर-उधर ना सिर्फ लालच का इस्तेमाल करती हैं अपने पैंतरे खेलने में, बल्की फुट डालो और राज करो, उसमें अहम है। मेरे Enforced Resignation के बाद, मेरा घर आना-जाना ज्यादा हो गया था। अब मैं यहाँ पे एक-दो दिन रुक भी जाती थी। जो की 2010 में, दादा की मौत के बाद ही बंद हो गया था, मेरी तरफ से शायद। क्यूँकि, मेरे लिए उनका घर पे ना दिखना ऐसे था जैसे, अपने नहीं, किसी और के घर आ गई हों। मैं आती थी हफ्ता-दस दिन में, मगर सिर्फ दो-चार घंटे। मिले, थोड़ा बहुत खाया-पिया, थोड़े बहुत गप्पे हाँके और चल दिए। दो-चार घंटे के आने-जाने में, शायद कोई खास खबर नहीं रहती आपको, उस जगह की। ऐसा ही कुछ समझ आया, जब मैं यहाँ रुकने आने लगी तो। जब स्कूल का प्लान बना, तो यूनिवर्सिटी को एक मेल भी लिखा मैंने, की मुझे मेरी saving से कुछ पैसे रिलीज़ कर दो, मुझे अपने पढ़ने-लिखने के लिए यहाँ थोड़ा-सा बनाना है। वो पैसे तो रिलीज़ नहीं हुए। मगर, यहाँ शायद कोई षड़यंत्र जरुर शुरू हो गया। शायद, वही षड़यंत्र भाभी को खा गया। 

इस कहानी को बढ़िया से HD पब्लिक स्कूल बहुअकबरपुर ने समझाया शायद, भाभी के जाने के बाद? भाभी इसी स्कूल में पढ़ाते थे और इसे छोड़ना चाहते थे। भाभी के जाने के बाद गुड़िया का एडमिशन इस स्कूल में, मेरी समझ से बाहर था। भाभी खुद जिस स्कूल को पसंद नहीं करते थे, अपने वहाँ टीचर रहते, बच्चे को वहाँ एडमिशन नहीं दिलवाया, तो उनके जाने के बाद क्यों? बच्चा फ्री में पढ़ेगा 12 तक, या बच्चे की कोई खास तरह की प्रोग्रामिंग चलेगी? भिखारी है क्या बच्चा? या इस बहाने कंट्रोल अहम है? और 12th तो बहुत दूर की बात है। तब तक वो गाँव ही रहेगी? वो भी, इस माहौल में, जो आसपास है? सबसे अहम, ये सब मुझे अँधेरे में रखकर हो रहा था। जब मुझे पता चला, तो मैंने यूनिवर्सिटी से अपनी saving रिलीज़ करने की मेल करनी शुरू कर दी। क्यूँकि, मैं नहीं चाहती थी की माँ के जाते ही, यूँ गुड़िया का स्कूल बदले। यूनिवर्सिटी ने ऐसा नहीं किया। कभी कोई बहाना, तो कभी कोई। यूनिवर्सिटी का आखिरी बहाना, घर की चाबी दो, भी कई महीने पहले पूरा हो चुका। मगर, उसके बाद तो यूनिवर्सिटी से जवाब आना ही बंद हो गया। सो रहे हैं वो, शायद? या शायद, सबको खा के ही दम लेंगे?

हालातों के मध्यनजर decide भी नहीं कर पाई की नौकरी कहाँ करनी है, की उससे पहले ही इधर, कुछ अपने कहे जाने वालों ने एक के बाद एक, पता नहीं क्या-क्या रच दिया। कहीं घर पे, तो कहीं दूसरे भाई के साथ, ये ज़मीन वाली कहानी और उसके हालात। ये सब शायद शुरू हुआ, जब यूनिवर्सिटी ने पैसा रिलीज़ नहीं किया और मैंने अपनी सेविंग के नॉमिनी बदलने की मेल कर दी। मुझे अपनी जान पे खतरा लगने लगा था। इसी खतरे ने शायद निर्णय नहीं लेना दिया, की नौकरी कहाँ करनी है। या शायद, अब मैं किसी की नौकरी करना ही नहीं चाहती। जब मैं अकेली थी, तो निर्णय लेना आसान होता था। मगर घर पे जो चल रहा था या कहो इधर-उधर से चलाया जा रहा है, अभी तक, उसने थोड़ा मुश्किल बना दिया। उसपे पीने वाले इस भाई के रोज-रोज के ड्रामे भी, किसी तरह की प्रोग्रामिंग की तरफ इसारा कर रहे थे। ये केस स्टडी, शायद कई सारे राज खोलने के लिए भी जरुरी है। और राजनीती का कोढ़, कैसे आम आदमी की ज़िंदगी को प्रभावित करता है, उसे जानने के लिए भी।  आदमी के खोल में दिमागों की इस प्रोग्रामिंग को समझने में काफी मदद की गुड़िया ने, उसके बदले हालात, बदले माहौल और रोज-रोज बदलते व्यवहार ने। इस सब में आसपास की कितनी अहम भूमिका होती है, उसे भी समझाया। आसपास मतलब कल्चर मीडिया, माहौल, ज्यादातर जबरदस्ती जैसे धकेला हुआ। एक इंसान के ही किसी ज़िंदगी में ना होने से या होने से ही, कितना कुछ बदल जाता है।   

ऐसा ही कुछ, इस शराब की लत वाले भाई के, वक़्त के साथ बदले व्यवहार, नौटंकियों (उसके लिए हकीकत) और उसके पीछे तक के अजीबोगरीब रिकॉर्ड ने भी, राजनीतिक पार्टियों के समाज पे ताने-बाने को समझने में मदद की। राजनीतिक पार्टियों और बड़ी-बड़ी कंपनियों के कोढ़ के जाले और किसी समाज के ताने-बाने, मतलब सोशल इंजीनियरिंग।      

लोगों की ज़िंदगियों की कहानियाँ, इधर-उधर से घुमाफिरा के, एक तरफ सोशल-इंजीनियरिंग का अहम हिस्सा है तो दूसरी तरफ, अपडेट वाली प्रोग्रामिंग इस पार्टी की या उस पार्टी की, उस सोशल इंजीनियरिंग को अपने-अपने हिसाब से, वक़्त के साथ बुनने में मददगार। ये अपडेट समाज के हर हिस्से पे होती है। या कहो, की जाती हैं, जिस किसी पार्टी की जहाँ जितनी चल जाए, उस हिसाब से उतनी ही। ना उससे कम, ना उससे ज्यादा। 

Cultesewar

 Most hated thing at this place, this culteshwar, which starts bhonking early in the morning.

Saturday, January 20, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (3)

Memory Cells 

Short Term Memory Cells

Long Term Memory Cells

दो तरह की यादास्त होती है। एक जो क्षणिक होती है। और दूसरी, जिसे आप लम्बे अरसे तक या सालों याद रखते हैं। दोनों ही तरह की यादास्त, अलग-अलग तरह की भुमिका निभाती है। इंसान बहुत-सी बातें या घटनाएँ कुछ वक़्त तक याद रखता है और वक़्त के साथ भूल जाता है। ज्यादातर अपने फायदे वाली या किन्हीं खास हादसों वाली जानकारी को ही लम्बे अरसे तक याद रखता है। कम्पुटर के साथ या रोबॉट के साथ ऐसा नहीं होता। मानव को रोबोट बनाने में इन Short Term Memory Cells और Long Term Memory Cells का बहुत अहम किरदार है। बायोलॉजी के इस ज्ञान का प्रयोग भी किया जा सकता है और दुरुपयोग भी। इन्हें आपको आगे बढ़ाने में भी प्रयोग कर सकते हैं और खत्म करने में भी। और भी बहुत-से ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे विज्ञान के सिद्धांत हैं, जो इंसान को मानव रोबोट बनाते हैं। स्टोर ऐसा ही कुछ है। हमारे घरों में भी। दिमाग में भी और कम्प्युटर या रोबोट्स में भी।   

बार-बार किसी बात को दिखाना, बताना या दोहराना Long Term Memory Cells बनाने में सहायता करता है।आगे की पोस्ट में ऐसे ही कुछ उदाहरण आपको आसपास की ज़िंदगियों से और उनपे अच्छे या बुरे प्रभावों से मिलेंगे। आप चाहें, तो बुरी Long Term Memory Cells को खत्म भी कर सकते हैं और अच्छी Long Term Memory Cells को बढ़ा-चढ़ा भी सकते हैं। ये राजनीतिक पार्टियाँ, आम-आदमी के साथ, उसकी जानकारी के बिना कर रही है। और वो आदमी को मानव रोबोट बनाने में या उससे अपने अनुसार, अपना काम निकलवाने में अहम है।   

आओ थोड़ा और आगे चलते हैं। मैं यूनिवर्सिटी से सामान (फर्नीचर वगैरह) लाई थी घर। कुछ ले आई थी, कुछ वहीं छोड़ दिया था। यहाँ आने के बाद, बहुत-सी अजीबोगरीब-सी कहानियाँ निकल के आ रही थी, आसपास से ही। कुछ ऐसे की, कैसे बेवकूफ लोग करते हैं, ऐसे प्रश्न? क्या वो वही प्रश्न खुद से करना चाहेंगे? या कहीं ऐसा, उनके साथ हो तो नहीं रहा? आसपास से कई सारे लोगों के बहुत से बार-बार एक जैसे प्रश्नों से समझ आया की ये कहानियाँ और किस्से घुमफिर के, शायद उन्हीं की ज़िंदगी के आसपास घुम रहे थे। मगर कहीं न कहीं, वो उन्हें घुमा मेरी तरफ रहे थे।     

कोई दादी, कोई आसपास से ही बहन, कोई बुआ रिश्ते में, मगर बहन ही कह लो, क्यूँकि इन सबको मैं ज्यादातर अपने से अगली पीढ़ी के बच्चे मानती हूँ। मगर सोच, शायद बहुत पीछे। 

माँ, इस छोटे से पुराने घर में नीचे रहती थी। और मेरा कमरा, उनके ठीक ऊपर वाला है। सामने ही एक छोटा-सा स्टोर, ठीक उनके नीचे वाले स्टोर के ऊपर। इस स्टोर से मैंने माँ का सामान निकाल कर, अपना ठूस दिया था। आसपास बहुतों को शायद मेरा अगला कदम क्या होगा, जानने की इच्छा कुछ ज्यादा ही थी। क्यूँकि, मैं सारा सामान नहीं लाई थी। शायद अभी तय नहीं हुआ था की दिल्ली जाना है या बाहर। मगर शायद हालातों ने सोचने का मौका ही नहीं दिया और मैं बचा खुचा सामान भी ले आई। कुछ खास तरह का कोई एक-आध सामान छोड़के। हालाँकि चाबी तब तक भी नहीं दी थी। 

आपके स्टोर को कोई बोले, ये आपकी रसोई है? 

जबकि उन्हें पता हो की रसोई नीचे है, ऊप्पर नहीं। एक-दो बार आप बता दें। मगर, फिर से ऐसा ही प्रश्न? क्यों? अगर माँ-बेटी एक ही घर में रहती हों, तो रसोई अलग-अलग होगी क्या? पता नहीं, शायद उनके घर में ऐसा होता हो? धीरे-धीरे, इधर-उधर से समझ आया, की ये कुछ और ही बोल रहे हैं। भाभी का दुनिया से निकाला शुरू हो चुका था, शायद। जो मुझे उनके जाने के बाद, ड्रामों से समझ आया। शायद कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे अब शराब पीने वाले भाई का हो रखा है? 

बहुत ही थोड़े-से वक़्त के लिए, ये स्टोर भाभी की रसोई बना था। जब तक भाई ने शायद अपना ये घर नहीं बनाया था, जहाँ वो अब थे। जो पहले घेर होता था और दादा की बैठक भी वहीं थी। भला नंबरों को ऐसे कौन घुमाता फिरता है? किसका जन्म दिन कब का है? शादी कब की है? या मौत कब की है? वो भी अलग-अलग लोगों के जन्म दिन? शादी या मरण दिन? और वो भी एक ही घर में? जब मुझे ऐसा समझ आने लगा या कहो यहाँ-वहाँ से समझाया गया, तो मैंने आसपास के घरों में लोगों के जन्म दिन, शादियाँ या मौतों की तारीखें जाननी शुरू कर दी। कुछ की पहले से पता थी। कुछ पता लगा ली। ये तो अजीबोगरीब से जाले हैं। वो भी घर के घर में, या आसपास में ही?

मतलब ज्यादातर लोग, आसपास से अपने आप नहीं मरे? उठाये गए हैं, इसी राजनीतिक जुए द्वारा? ऐसा ही लोगों के रिश्तों का है। बड़े ही अजीबोगरीब ढंग से जैसे गुंथे हुए हैं। ये रिस्ता इधर की पार्टी का, तो ये उधर की पार्टी का। ये लड़ाई इस पार्टी की दी हुई, तो ये उस पार्टी की। ये रिस्ता इन्होंने तुड़वाया, तो वो उन्होंने। ये रिस्ता फिर से या अजीबोगरीब इनका धकेला हुआ, तो वो उनका। मतलब, राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ मिलजुलकर, लोगों की ज़िंदगियों को अपने रोबोटिक versions में ढाल रही हैं। जैसे, कोई K की तरफ के रोबोटिक version तो कोई N। 

K और N ऐसे ही ले लिए जैसे मान लो होता है। आप कुछ और भी मान सकते हैं। अब ये अलग-अलग जनरेशन के रोबॉट, कहीं K के लिए लड़ रहे हैं तो कहीं N के लिए जैसे। ये उन लोगों के लिए लड़ रहे हैं, जिनके बारे में ना तो इन्हें कोई खास पता। ना हकीकत में, ये उन्हें जानते। ना कभी उनसे मिले हुए। इधर-उधर से बहुत-सी कहानियाँ सुनी हुई हैं, उन्हीं के अनुसार इधर या उधर हैं। मतलब, इनके दिमाग की खास तरह की प्रोग्रामिंग की हुई है, इस या उस पार्टी ने अपने अनुसार। और जानकारी लगातार राजनीतिक पार्टियों की जरुरत के अनुसार बदलती रहती है। ठीक ऐसे, जैसे कम्पुटर का सॉफ्टवेयर Update होता है। ये Update इनकी ज़िंदगी के हिस्से बना दिय जाते हैं। क्यूँकि, ये पार्टियाँ ये खेल या राजनीति 24 घंटे, 365 दिन खेलती हैं या कहो चलती हैं, अपनी इन चलती-फिरती गोटियों पे।

गोटियाँ, वही रोबोट्स वाले अलग-अलग जनरेशन के version। किस रोबोट से इन्हें क्या काम लेना है और उन्हें कहाँ चलना है, ये ज्यादातर इनके सॉफ्टवेयर (दिमाग) में हेरफेर करके करते हैं। मतलब, ये लोगबाग अपनी ज़िंदगी नहीं जी रहे। बल्की, आदमी के खोल में, शातीर लोगों द्वारा घड़े गए, रोबोट्स को जी रहे हैं। इसे भूतिया-रोबोटिक्स भी कह सकते हैं। कुछ-कुछ ऐसे, की सामने दिखने वाला शरीर या खोल तो आदमी का है। मगर, उसके अंदर का सॉफ्टवेयर, कोई राजनीतिक पार्टियाँ चला रही है। कैसे? इसपे भी आएँगे धीरे-धीरे।   

क्यूँकि, जैसे मैंने ये थोड़ी-सी अपनी या अपनों की डिटेल ऑनलाइन लिख दी, सबकी तो नहीं लिख सकती। हाँ। कुछ वक़्त लगाकर, उनके नाम वगैर बदलकर, कोई यूँ की यूँ जैसे, कहानी जरूर घड़ सकते हैं। क्यूँकि, राजनीतिक पार्टियों की ये सोशल इंजीनियरिंग 24 घंटे, 365 दिन चलती है। बिना रुके, बिना थमे। 

Friday, January 19, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (2)

अगला कदम मानव रोबोट घड़ाई का?

उससे पहले एक Case Study, सुनील कुमार (Sunil Kumar) लेते हैं। 

फिर से पहले ही कदम पे आते हैं। मान लो जो कुछ सामने वाले ने कहा, चाहे वो गलत ही हो और आपने मान लिया। फिर जो सामने वाले ने कहा, वही सच हो जाएगा क्या? चलो देखते हैं -- 

मान लो, किसी ने कहा 

सुनील, कृष्ण या कृष्णा की लड़की है। 

आपके भाई का नाम भी सुनील है। मगर, वो तो दमयंती का लड़का है।   

हो सकता है की ऊपर कही गई दोनों ही बातें सच हों। 

मगर क्या हो, अगर कोई कहे की जिसे आप भाई कह रहे हैं वो सुनील, किसी कृष्ण या कृष्णा का लड़का है? आप मान लेंगे उसे? अगर हाँ, तो क्या हो रहा है? आपके दिमाग के सॉफ्टवेयर को बदलने की कोशिश हो रही है। उसकी खास तरह की प्रोग्रामिंग (Programming) शुरू हो चुकी है। क्या ये आपके लिए सही होगा?

ऐसा ही अगर सुनील, जो की आपका भाई और दमयंती और जयवीर का लड़का है, उसने मानना शुरू कर दिया, तो क्या होगा? क्या वो किसी कृष्ण या कृष्णा की लड़की हो जाएगा? ऐसा तो होने से रहा। मगर, उसकी ज़िंदगी जरूर लटके-झटके खाने लगेगी। क्यूँकि, प्रोग्रामिंग का पहला कदम सफल हो चुका है। तो अब प्रोग्रामिंग के अगले कदम शुरू होंगे। ठीक वैसे ही ,जैसे आपको छत पे जाना हो और पहली सीढ़ी पार कर ली हो। मानव रोबोट बनाने का या Mind Alteration, Manipulation, Brainwashing, Indoctrination, Psycho-alteration, Twisting of facts और भी पता नहीं कैसे-कैसे तरीके और ज्ञान और विज्ञान को आप इससे जोड़ सकते हैं।               

घप्पन में छप्पन? 56 में कुछ खास है क्या? जब 56 इंची बोलते हैं, तो क्या समझ आता है? आजकल तो शायद एक ही इंसान का नाम आए दिमाग में 56 के नाम पे? वैसे कोई PM भी, कैसी-कैसी बड़बड़ या गड़बड़ कर सकता है? इसका PM मोदी से कोई लेना-देना नहीं है? अब कितने ही तो PM हैं? हैं ना? और राजनीती वाले कुछ भी बोलते रहते हैं। 

चलो, अपने H #16, Type-3 स्टोर पे फिर से आते हैं --          

"वैसे तो टोने-टोटकों के कई वाक्या सामने आए थे। मगर, 2016 में, दुशहरी के आम के पेड़ पर कच्चे धागे वाले कारनामे ने, शायद, एक तरह से उस स्टोर या ऐसे-ऐसे कितने ही स्टोरों के राज खोलने में मदद की, वक़्त के  साथ। धर्मो और आस्थाओं के नाम पे रीती-रिवाजों और उनसे जुड़े जुर्मों और उससे जुड़े विज्ञान के आम-आदमी पे मानसिक जाल को समझने में भी सहायता की। इन्हीं सब में जैसे गूँथ-सा दिया है, पढ़े-लिखे शातीर लोगों ने, आम-आदमी की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाओं को। उसकी ज़िंदगी की खुशियों को, गमों को। त्योहारों को, उत्सवों को। उससे भी अहम -- पैदाइशों को, बिमारियों को और मौतों को भी।" 

फिर से सुनील कुमार पे आते हैं, जो की विजय दांगी का भाई है। जिसे ऑफिस वाले विजय कुमारी या विजय कुमारी दांगी जैसा कुछ बता रहे हैं। एक और छोटा भाई है, परमवीर सिंह। 

सबसे बड़ी विजय दांगी 22-11-1977 (ऑफिसियल 10-12-1977)     

फिर सुनील कुमार 16-10-1979 (डॉक्युमेंटेड, 20-10-1979) 

     

फिर परमवीर सिंह 7-8-1982 

शादी की 

रितु से (10-12-1984) 16-7-2005 रोहतक (13-7-2005, आर्य मंदिर, दिल्ली और तीस हज़ारी कोर्ट, दिल्ली)    

       

सुनील कुमार 16 खास है या 20 या 10?

अपने-अपने डिज़ाइन में फिट करने वाले दोनों ही कर सकते हैं। या कहना चाहिए की किए हुए हैं। जिन्हें 16 में फायदा लगा, उनकी प्रोग्रामिंग 16 के अनुसार होगी। और जिनको 20 फायदे में लगा, उनकी 20 के अनुसार होगी। और ये कोई भी नंबर हो सकता है। लेकिन क्या ये अलग-अलग पार्टियों के प्रोग्रामिंग के खास designs, इन असली वाली ज़िंदगियों के लिए भी सही हैं? या उनके खात्मे की तरफ बढ़ रहे हैं?

जिन्हें लग रहा है की मुझे ऐसे अपनी या अपने आसपास वालों की जानकारी ऑनलाइन नहीं रखनी चाहिए। ये खास आप जैसे आम आदमी को ही समझाने के लिए है, की हमारे समाज में हो क्या रहा है। ये जानकारी और ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी जानकारियाँ आम आदमियों की, बहुत-सी बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों की जैसे प्रॉपर्टी हैं। आपकी जानकारी के बगैर उनके पास हैं। और ज़िंदगियों को alter करने में प्रयोग (?), नहीं दुरुपयोग हो रही हैं। ये कम्पनियाँ और राजनीतिक पार्टियाँ, हमारी बहुत ही पर्सनल जानकारी का भी दुरुपयोग, खुद हमारे खिलाफ या हमारे अपने या आसपास वालों के खिलाफ कर रही हैं। ये जन्मदिन, शादी की तारीखें वगैरह, तो फिर भी बहुतों को पता होती हैं। 

16 वाली पार्टियों ने शिव ताँडव रचा हुआ है। 

और 20 वालों ने? एक सास, दो बहु? कुछ और भी हो सकता है।    

जानते हो इन थोड़ी-सी जानकारियों का, किसी सुनील कुमार की, स्कूल वाली 2-कनाल जमीन या ज़िंदगी या मौत, से क्या रिस्ता है? या इन जुए वाले खिलाड़ियों या so-called सिस्टम ने कैसे जोड़ा हुआ है?

उसके लिए और बहुत-सी जानकारी चाहिए। जो अक्सर खुद उस इंसान या घर वालों तक को नहीं पता होती। मगर, राजनीतिक पार्टियों को होती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों को होती है। 

सुनील की स्कूल वाली जमीन और कुछ खास लोगों द्वारा 5-लाख या इसके आसपास जैसा Extortion क्या है? या उससे भी ज्यादा की कोई कोशिश?  

चलो इसमें थोड़ी सी जानकारी और जोड़ते हैं, वो है बलदेव सिंह (दादा) की मौत 16-4-2010 । और जन्म तिथि? 11-9-1922 ।

कुछ अजीब लग रहा है? कैसे-कैसे जाल आम-आदमी पे। घने पढ़े-लिखे, उसपे कढ़े हुए शातीर खिलाडियों के?

इसमें अगर कुछ और जानकारी जोड़ दी जाए, तो पता है क्या बनेगा? सोचो?

Batman Series? Star wars? Matrix? Avtar? हेराफेरी? संजू? बजरंगी भाईजान? कल हो ना हो? PK? कभी खुशी, कभी गम? मुन्ना भाई MBBS? 3 Idiots? 10 का दम? रंग दे बसंती? या शायद CID, Crime Patrol, सावधान इंडिया, You? 13 Reasons Why? मतलब, कुछ भी, कहीं से भी। इनमें कई में तो, मेरे आसपड़ोस की कुछ ज़िंदगियाँ, अपने आपको देखती हैं शायद। कोई मुन्ना भाई वाला आनंद उठाए मिलेगा, तो कोई सज्जन-मार पिटाई या संजू मूवी जैसे। आप जब ऐसे खुद को या अपने आसपास को जानने लगोगे, तो आपको भी शायद ऐसा ही लगने लगेगा। क्यूँकि सिस्टम ही ऐसे है। और कुछ ना कुछ, कहीं ना कहीं मिलता-जुलता है।        

जितनी ज्यादा जानकारी, अपने बारे में और अपने आसपास के बारे में, उतना ही ज्यादा, कहीं ना कहीं, किसी हिंदी या इंगलिश मीडिया का कुछ ना कुछ तो मिलता-जुलता सा मिलेगा ही। उस जानकारी में आपके घर, स्कूल, ऑफिस, खेत, आसपास के पशु-पक्षी, पौधे जैसी जानकारी भी हो सकती है। आपके बाहरी हुलिए से लेकर, खाने-पीने और अंदर के गोबर-गणेश तक की। क्यूँकि, जिस माइक्रो लैब वाले मीडिया की बात मैं कर रही हूँ, उसमें सब आता है। बड़े से बड़े स्तर की जानकारी से लेके, छोटे से छोटे स्तर तक। सब कुछ बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से जैसे, एक दूसरे से मिलता है। मगर शातीर लोग उसी जानकारी का दुरुपयोग, अपना फायदा उठाने में करते हैं, उसमें बदलाव करके। हेराफेरी करके। कहीं, कहीं का जोड़-तोड़, मरोड़ करके, कहीं से कुछ उठाके, कहीं और चिपकाके या फिट करके। बिलकुल बायोलॉजी की Mutations जैसे। यूनिवर्सिटी स्तर पे जाओगे, तो बिलकुल भारती-उजला के dissertation CRISPR-CAS9 केस जैसे। अपने अनुसार, कम को या तकरीबन ना हुए को भी, बढ़ा-चढ़ा के पेश करना और जो हो, उसे जैसे खत्म करने की कोशिशें। इसीलिए तो ऐसे लोगों को शातीर कहा गया है। 

जैसे 16-वाली ट्रेनिंग पे बार-बार दोहराना अहम है। अलग-अलग रुप में, अलग-अलग लोगों द्वारा, अलग-अलग मौकों पे। ऐसे ही 10, 20, 30, 40, 50, 60 वगैरह। जैसे कोई कहे की मेरा बच्चा 50% है। कैसा लगेगा? सबसे बड़ी बात, उस घर में ऐसी प्रोग्रामिंग चल रही हो? और उन्हें ऐसे लग रहा हो, जैसे उनके फायदे के लिए है। उस बात को या प्रोग्रामिंग को बार-बार बोलना या इशारों में दिखाना या बताना, क्या कहलाता है? बच्चों वाली या कुत्तों वाली ट्रेनिंग? इस तरह की ही ट्रेनिंग, आसपास सबके यहाँ चल रही है, जाने-अंजाने। ऐसी ट्रेनिंग के बाद, पता है बच्चे कैसा व्यवहार करते हैं? क्रिकेट वाले बच्चे खासकर बता सकते हैं, इंदरधनुषी क्रिकेट बालों की कहानियाँ। तुम अकेले ही नहीं बहादुरो। तुम जैसी-सी और भी बहुत कहानियाँ हैं। जितनी तरह के लोग, जितनी तरह के खेल, उतनी ही या कहना चाहिए की उनसे भी ज्यादा कहानियाँ। 

बार-बार बोलना या इशारों में दिखाना या बताना, अगली सीढ़ी है, मानव रोबॉट बनाने की। बच्चों को कुछ सिखाना हो, तो भी ऐसे ही होता है ना?  

आदमी और मानव रोबोट का युद्ध (1)

आदमी और मानव रोबोट का युद्ध (Fight of Humans Vs Human Robots)

Mind Alter Techniques

आओ आपको एक काल्पनिक संसार की सैर पे ले चलूँ। नहीं काल्पनिक नहीं, बल्की हकीकत के संसार की सैर पे। मगर है बिलकुल काल्पनिक जैसी। बिलकुल Sci Fi (Science Fiction जैसी)। 

G1(Generation-1) Human Robots

कल्पना करो की आप कोई भी XYZ हैं, पहली पीढ़ी से । वो जैसे मैथ में बोलते हैं ना, मान लो, ऐसे ही। 

G2 (Generation-2) Human Robots

अब G1 के बच्चे हुए G2 

G2 के  बच्चे G1 के पोता-पोती   

ऐसे ही आगे की पीढ़ियाँ 

अब आपने मान लिया 

तो सब कुछ इन रोबोट्स बनाने वालों के अनुसार चलेगा। मतलब, भगवान, मानव रोबोट्स के। बिलकुल ऐसे ही जैसे इंसानों के भगवान होते हैं।   

यहाँ G नाम का भगवान कह रहा है God is gud in its original imagination of human robotics and ch ud in its hybrid version.

इस भगवान रोबोट की कोई जमीन है। जमीन मतलब किसी औरत मानव रोबॉट की ज़िंदगी पे ही अधिकार। ठीक ऐसे, जैसे दो लोगों में झगड़ा हो और एक कहे ये जमीन मेरी है। आदमी रोबोटिक भगवान बनके भी जमीन के झगडे लड़ते हैं। कैसे रोबोट हैं ये? अब मानव रोबोट्स में भी भगवान और राक्षस हैं। ऐसे ही जैसे औरत रोबोट और पुरुष रोबोट।   

This god has some land and that land denotes some girl or girls private parts and her/their reproduction rights in real life. These rights are controlled by these robotic gods and raksasas.

There is fight in between god and raksasas

As fight gets ugly and uglier and filthy and filthier, there will be compromises, to save this human robots world.

These compromises will be 10 %, 20%, 30% and so on

These human robots own someone's mother, father, brother, sister, daughter, brother and all relations and relatives. They also own someone's job, house, saving accounts and everything that belong to real human.

Some real humans would not accept this version.

But human robots are enforcing them by so many ways to accept human robots versions and kicking them out from their homes, jobs, lands. Snatching away their parents, siblings, relatives, friends, husband, wife, daughter, son and whatever they can.

States governments and judiciary are controlled by human robots created by human robots. Defence and civil institutions are controlled by human robots.

Look at the situation of one such institution

VC of MDU says, he is V of some C version robot. Registrar of MDU says, he is 12 generation (12GV) of V robot. 

Who is this V?

There is fight, some says, she is VK Singh and doing job in the form of Vijay Kumari. Some says, it's Vijay Kumari Dangi. 

Who is this VK Singh?

Who is this Vijay Kumari?

Who is this Vijay Kumari Dangi?  

There is one such employee in this institution whose employee ID is 1518 (suppose). But this employee ID is also changed and someone says her ID is different. She says her name is Vijay Dangi, not Vijay Kumari Dangi, or Vijay Kumari. 

Someone from P faction says,Vijay is not a female but male.

Someone from some other faction says, Vijay belongs to LGBT group.

Human Vijay Dangi is confused, about whom these robotics enthusiasts are talking? Who are they? Why they wanna change her every identity? Every relation? For whom and for what purpose?

Who is this VK Singh?

Director of her institute for a short time period in 2009?

Or as some say, 23 Chief of Army of India, VK Singh (31 March 2010 to 31 May 2012)? And such a big profile. Check online.

She does not know what is the resemblance between her institute's director VK Singh and some Indian Army Chief VK Singh?

Except one perhaps, and that was also given as hint somewhere. VK Singh birthday confusion or different birthday in real and in papers. Yes. Vijay Dangi Bday is also lilbit different in real (22-11-1977) and in papers (10-12-1977).


How they are making these human robots?

They know human is a machine and machines with brains have hardware and software. To make human robots, they try to change their hardware and software as per their human robots versions, as much as they can. That's why they say, wherever and with whoever you will live, you would start looking like that or those persons and surrounding. That happens to some extend by culture media and to great extent by enforcements.

Can lil name change make big difference to someone's life? Vijay Kumari or Vijay Kumari Dangi as per their versions own some job and related facilities. But Vijay Dangi? She, who think, her real name is and she joined this job by this name. That would not work. That would snatch from her everything, everything means everything. 

आपको क्या लगता है, ये सच है या झुठ? ऐसा सम्भव है? या हो रहा है? 

धीरे-धीरे नंबरों के हेरफेर पे भी आते हैं और आसपास के कैसे-कैसे मानव रोबोट्स और उनके अलग-अलग versions पे भी और अलग-अलग generations पे भी। मेरे आसपास कोई इंसान नजर ही नहीं आ रहा। सब मानव रोबोट और उनकी generations के जंजाल में उलझाए हुए लोग हैं। और सबसे बड़ी बात, उन्हें इतना-सा समझ नहीं आ रहा। 

बच्चो, Sci Fi मूवीज और सीरियल्स देखा करो और पढ़ा करो। समझ आएगा की जो वहाँ चल रहा है, कुछ-कुछ वही हकीकत के इस गुप्त-गुप्त जहाँ में चल रहा है। वो कहते हैं ना की मूवीज या सीरियल कहीं और से नहीं आते, समाज से आते हैं। समाज का आईना होते हैं। किसी भी समाज का आईना देखना है तो उस समाज के मीडिया को देखो। नहीं, पढ़ो और सोचो की वहाँ चल क्या रहा है? फालतू के मिर्च मसाले को भूल के। मगर आम आदमी मिर्च मसाला देखने के लिए ही ये सब देखता है। उससे बाहर सोच ही नहीं पाता। इसीलिए मानव रोबोट बनाना आसान होता है। 

किसी भी समाज का असली मीडिया कल्चर (Media Culture) यही है। शायद इसीलिए जितने ज्यादा विकसित देश, उतना ज्यादा Sci Fi और Hi Tech World . जितने कम विकसित देश, उतना कम Sci Fi और Hi Tech World? मेरा conclusion सही है या नहीं, ये आप पे छोड़ दिया। 

एक-एक करके आते हैं, आसपास के मानव रोबोट्स पे भी, ये जानने, की क्या हो रहा है, इन आदमी के खोल में मशीनों के साथ? किसी ने हैक करके उन्हें मानव रोबोट तो नहीं बनाया हुआ? और ये हैकर, इंसानो को ऐसे गुप्त रुप से हैक कर अपना रोबोट कैसे बना रहे हैं? कैसे दे रहे हैं, वो ऐसी ट्रेनिंग उन्हें, की उन्हें मालूम भी नहीं?

Thursday, January 18, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (1)

Brainwashing?

Indoctrination?

बच्चे की ट्रेनिंग? 

कुत्ता ट्रेनिंग?

सोचो कैसे शुरू होती है? आतँकी भी ऐसे ही बनाते हैं। और कट्टर खास वाले देश प्रेमी भी। क्यूँकि किसी के लिए जो देश प्रेमी होता है, वो किसी और के लिए, आतँकी या देशद्रोही भी हो सकता है।    

पहला कदम  
कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? अपने ऊपर ये कुछ टैस्ट करें। अगर इनके रिजल्ट पॉजिटिव आएँ तो आप मानव रोबॉट हैं। अगर नहीं, तो सिर्फ आदमी के खोल में कोई प्रोग्राम की हुई मशीन नहीं, बल्की इंसान ही है। 
कौन-सी पीढ़ी (Generation) के कौन-से वाले प्रकार के (Variant)? Variant, जैसे गेँहू, गुलाब वगैरह की अलग-अलग variety (Variant) होते हैं। ये लैब में भी तैयार किए जा सकते हैं और बाहर भी, जैसे खेत में, नर्सरी में। इसके लिए आगे जानेंगे।      

आप अपने बहन, भाई, बेटी, बेटा, माँ, बाप या किसी भी ऐसे पवित्र रिश्ते को कहीं ऐसे तो नहीं देखते या सोचते की वो मेरा बॉयफ्रेंड है या गर्लफ्रेंड? नहीं? चलो अभी बचे हुए हैं, इंसान ही। 

कहीं आपसे कोई ऐसे नाटक या नौटँकी तो नहीं करवा रहा, किसी भी तरह से? नहीं? तो इंसान ही हैं।  
कहीं कोई आपको किसी और इंसान का किसी भी तरह का अवतार तो नहीं बता रहा या बता रही? जैसे आपका नाम कुछ है और कहे नहीं आप वो नहीं, वो हैं?
 
आपका लिंग तो बदला हुआ नहीं बता रहे?
   
आपकी कोई भी पहचान जो आप जानते हैं, उसे कुछ और तो नहीं बता रहे? जैसे आपके बहन, भाई, आप वाले नहीं, किसी और के बहन भाई को आपका बताएं? या आप वालों को किसी और का?

ऐसे ही आपके बेटा, बेटी, भतीजा, भतीजी, माँ, बाप, दादा, दादी, नाना, नानी को? की आपके जो असली रिश्ते हैं वो आपके नहीं हैं, बल्की कोई अड़ोस-पड़ोस या दूर-दराज के रिश्ते आपके अपने हैं? 

या आप किसी को ऐसा तो नहीं सोच रहे? या शायद बोल रहे? नहीं? तो आप इंसान ही हैं। 

अगर ऐसा बोल रहे हैं, तो सावधान आपके दिमाग की ट्रेनिंग (programing) शुरू हो चुकी है, आपको मानव रोबोट बनाने की। अगर ऐसा आपने मानना शुरू कर दिया, तो आप बन गए किसी के मानव रोबोट। अगर जिसको कह रहे हैं, उसने मानना शुरू कर दिया, तो वो इंसान बन गया मानव रोबोट किसी का। और अगर दोनों साइड ने मानना शुरू कर दिया, तो मानव रोबोट घड़ाई करने वाली पार्टी का काम दोनों तरफ शुरू हो गया। 
इसे कुत्ता ट्रेनिंग कहते हैं। 
वैसे किसी भी बच्चे की ट्रेनिंग भी ऐसे ही abcd से शुरू होती है। 

Brainwashing या Indoctrination का ये पहला Step है या सीढ़ी कहो।     

गूगल बाबा के अनुसार the process of teaching a person or group to accept a set of beliefs uncritically.  
 
ऐसी कोई भी पढ़ाई या शिक्षा देना, जिसमें सामने वाला बिना किसी सोच-विचार के उसे मानना शुरू कर दे। ठीक ऐसे ही, जैसे बच्चे को जब कुछ भी सिखाया जाता है तो वो उल्टा प्र्शन नहीं करता। बल्की उसी को सच मानने लगता है। क्यूँकि, उसका दिमाग और समझ इतनी परिपक्कव नहीं होती। इसीलिए उसे माटी का कच्चा पुतला या घड़ा बोला जाता है। ऐसा ही ज्यादातर भोले इंसानो के साथ होता है। और हमारे घरों में तो बच्चे को क्या, बड़े तक को उल्टा प्र्शन करना नहीं सिखाया जाता। जो बड़ों ने कह दिया, बस वही सही है। क्यों है, कह दिया, तो शायद आप ज्यादा जुबान लगाने वालों की श्रेणी में रख दिए जाते हैं? ऐसा ज्यादातर कम पढ़े-लिखे लोगों के बीच होता है। इसीलिए, कम पढ़े लिखे और ज्यादा पढ़े लिखों के शायद संस्कार और रीती-रिवाज़ भी थोड़े अलग होते हैं। पढ़े लिखों को प्र्शन करना सिखाया जाता है। और किसी भी बात को ऐसे ही बिना दिमाग लगाए मान लेना, अंधभक्ति कहलाता है। 

Wednesday, January 17, 2024

Store H#16, Type-3

आपमें से कौन-कौन हैं, जो स्टोर में अपना मंदिर बनाते हैं? 

जब मुझे 2011 में H#16, Type-3 घर मिला, तो कुछ अजीब-सा था उसमें। रंग-रोगन करवाने के बावजूद,  उसके स्टोर में जैसा जो पहले था, बिलकुल वैसे ही था। बहुत कुछ अजीब-सा दीवारों पे और ढेर सारा घी या तेल जैसा कुछ रमा हुआ, जैसा फर्श पे। पता नहीं, उसके स्टोर पे पेंट किया भी गया था या नहीं। शायद मैंने ध्यान नहीं दिया। या शायद, बिना दीवारों को साफ किए, ऊपर से हल्का-सा कर दिया, पेंट करने वालों ने। क्यूँकि, जब मैंने सामान शिफ्ट करने के पहले साफ-सफाई चैक की, तो पता चला की स्टोर तो बहुत गन्दा है। 

पड़ोस से ही, मेरे एक Colleague के यहाँ से, एक सफाई वाली (Domestic Help) को भी बुला लिया। और फिर वही साफ-सफाई करने आने लगी। मैंने उसे स्टोर को अच्छे से साफ करने को बोला। उसने स्टोर देखते ही कहा, मैडम आपने ये स्टोर साफ नहीं करवाया क्या? इसपे पेंट भी नहीं हो रखा शायद।  

मैंने कहा, हाँ शायद रह गया। आपको थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी। ये तो कुछ ज्यादा ही गन्दा है। उसे ऐसा बोल के मैं नीचे आ गई। अगले दिन, जब वो काम वाली आई तो उसे फिर से बोला, अरे शायद कल आप भूल गए। आज साफ करके जाना स्टोर को। 

उसने बोला, मैडम आपने देखा इसपे (दीवारों पे) क्या-क्या लिखा हुआ है?

मैंने कहा, हाँ ! बड़ा अजीब-सा है। जो भी है, आप साफ कर दो। 

उसने कहा, मैडम आपने नीचे फर्श देखा?

मैंने कहा, हाँ ! दिवार और फर्श दोनों ही बहुत गंदे हैं। देख लिए। अब कर भी दो साफ। इसके एक्स्ट्रा पैसे ले लेना। 

उसने कहा, मैडम बात पैसों की नहीं है। मैं नहीं करुँगी ये साफ?

मैंने कहा, क्यों? ज्यादा गन्दा हो तो आप साफ नहीं करते?

उसने कहा, कर देती हूँ। पर इसे नहीं करुँगी। 

ऐसा क्यों? मैंने पूछा 

उसने कहा, आपको पता है, यहाँ कौन रहता था?

हाँ। बाहर नाम लिखा है ना। 

उसने कहा, अरे आपने अपना नाम भी नहीं लिखाया अभी?

नहीं, अभी यूनिवर्सिटी वाले आएँगे लिखने। उन्होंने बोला है। 

पर मैडम, वो तो पहले लिखा नाम भी नहीं मिटा कर गए। उसके ऊपर भी पेंट नहीं हो रखा। 

यार, तुम बहुत गप्पेड हो। कर जाएँगे। अभी काम करो अपना। 

और मैं आज फिर से नीचे आ गई, ये सोच के की ऐसे तो ये बोलना ही बंद नहीं होगी। मैंने ध्यान नहीं दिया, ये सोच के की स्टोर साफ कर गई होगी। मगर देखा, तो फिर से नहीं। 

अगले दिन आई, तो उसे बोला पहले स्टोर, बाद में बाकी कुछ। चलो ऊपर, मेरे सामने करो। 

मैडम, बोला ना, मैं नहीं करुँगी ये। 

मगर क्यों?

वो सामने मैडम ये बोल रही थी, जो पहले यहाँ रहते थे ना, वो पता नहीं क्या-क्या करते थे?  

क्या-क्या करते थे, मतलब?

अरे, पता नहीं क्या भूत-वूतों से बातें करते थे। 

ओह हो। तो डरा दिया आपको किसी ने?

नहीं और भी एक-दो ने बोला। 

अच्छा? भूतों को मानते हो तुम?

आप नहीं मानते?

मन का वहम होता है। मानों तो हैं। नहीं तो नहीं। इंसान से बड़ा भूत क्या होगा? डर का भूत होता है। 

अच्छा? तो आप ही साफ करना। या किसी और को बुला लेना। मैं तो नहीं करुँगी। 

मुझे लगा उसे किसी ने डरा दिया है। ऐसे तो कोई उसे काम से भी भगा देगा। मैंने उसे कहा, चाय पीते हो?

हाँ ! 

आओ चाय पीते हैं। सोचा, इस बहाने थोड़ा गप्पे भी हांके जाएँगे उसके साथ और शायद बातों-बातों में उसका डर भी खत्म हो जाएगा। 

उसने कहा, मैं बना देती हूँ। 

नहीं बैठो आप। आज मैं ही बनाती हूँ। फिर कभी पीनी हो तो आप बना लेना। 

और लो जी, हो गई वो शुरू। वो मैडम, ऐसे बोल रहे थे और वो वैसे बोल रहे थे, उनके बारे में। कई तरह की उल्टी-पुल्टी सी बातें, उनके मंदिर के बारे में। जो मुझे खामखाँ और बकवास लग रही थी। लगा ज्यादातर कम पढ़े लिखे और गरीब तबकों के साथ शायद ज्यादा होती है, ये समस्या। लोगबाग पता नहीं कैसे-कैसे डर बिठा देते हैं, उनके मन में। मगर फिर कुछ उसने ऐसा बोला, जिसने मेरा ध्यान खींचा, उस घर में लगे पेड़-पौधों के बारे में। ये थोड़ा बहुत मेरी रुची का विषय था। मेरे समझाने पे उसने थोड़ी-बहुत सफाई तो कर दी। मगर सिर्फ फर्श की। जाने क्यों, जब वो दीवारें साफ करने लगी तो मैंने टोक दिया। आज बहुत कर दिया। ये फिर कभी कर देना। 

उसके जाने के बाद, मैंने दीवारों पे उन अजीबोगरीब चिन्हों को थोड़ा ध्यान से देखा। मगर, कुछ पल्ले नहीं पड़ा।  सिवाय इसके, की पता नहीं ज्यादा धर्म में विश्वास करने वाले लोग क्या-क्या बनाते रहते हैं। शायद इसलिए भी, की उस वक़्त तक मेरे लिए वो सब अंधविश्वास और बेवकूफी के इलावा कुछ नहीं था। उस घर में बहुत ज्यादा पेड़ तो नहीं थे। मगर दो पेड़ दक्षिण भारत से थे। सीधी-सी बात, वो उधर से होंगे। तो उनपे भी कोई खास ध्यान नहीं दिया। 

एक दो बार उन मैडम से मुलाकात भी हुई, जब वो अपने पुराने घर देखने आए की अब वहाँ कौन आया है। और शायद एक बार बेल के सीजन में या अपना कोई लैटर वगैरह या शयद पार्सल पूछने, जिनके पते अभी तक उसी घर के थे। वो बेल का पेड़ भी शायद उन्हीं का लगाया हुआ था। मुझे उनमें कुछ खास अलग नज़र नहीं आया। मीठा बोलते हैं। अपने जूनियर्स से, ऐसे ही व्यवहार करते हैं, जैसे ज्यादातर पढ़े-लिखे सभ्य लोग। 

हाँ। वक़्त के साथ-साथ कई बातें पता चली, जिनसे लगा की शायद कुछ तो खास होगा, जो इतने सारे लोगबाग कह रहे हैं। जैसे, मेरे एक पड़ोसी ने खास धन्यवाद दिया, जब मकान के अंदर के कुछ पेड़ और बाहर खाली प्लॉट की दिवार के साथ लगते झाड़ को साफ करवाया। मैडम धन्यवाद आपका, साँपों के छुपने की जगह बने हुए थे, ये झाड़। हो सकता है, उन्होंने सिक्योरिटी को मध्यनजर रख ऐसा किया हो। वैसे भी हर इंसान और उसका स्वाभाव अलग होता है। जैसे मैंने उन्हें साफ करवा, फूलों के, मगर कांटो वाले पौधे लगवा दिए थे, गुलाब और bougainvillea की अलग-अलग वैरायटी। 

कुछ वक़्त बाद मुझे खुद लगने लगा था, की कुछ अजीब-सा है उस घर के आसपास और अंदर भी। मगर मेरे लिए वो भूत नहीं थे। वो था Surveillance Abuse । और था, डराने के अजीबोगरीब तरीके, खासकर, आप अकेले रहते हों तो। वो भी धीरे-धीरे समझ आए। यहाँ-वहाँ से कुछ दोस्तों, पत्रकारों या जाने-अनजाने सोशल प्रोफाइल्स पढ़के, जिन्हें मैं यहाँ-वहाँ के लिंक्स से पढ़ने लगी थी। वैसे तो टोने-टोटकों के कई वाक्या सामने आए थे। मगर, 2016 में, दुशहरी के आम के पेड़ पर कच्चे धागे वाले कारनामे ने, शायद, एक तरह से उस स्टोर या ऐसे-ऐसे कितने ही स्टोरों के राज खोलने में मदद की वक़्त  साथ। धर्मो और आस्थाओं के नाम पे रीती-रिवाजों और उनसे जुड़े जुर्मों और उससे जुड़े विज्ञान के आम-आदमी पे मानसिक जाल को समझने में भी सहायता की। इन्हीं सब में जैसे गूँथ-सा दिया है, पढ़े-लिखे शातीर लोगों ने, आम-आदमी की ज़िंदगी के उतार चढ़ाओं को। उसकी ज़िंदगी की खुशियों को, गमों को। त्योहारों को, उत्सवों को। उससे भी अहम पैदाइशों को, बिमारियों को और मौतों को भी। 

मुझे तो शायद उन मैम का धन्यवाद करना चाहिए और उनके स्टोर और पेड़ों के बारे में जानकारी देने वालों को भी। क्यूँकि, अगर मुझे वो घर ना मिला होता और जो कुछ वहाँ था या हुआ, अगर उसे जानने की रुची ना हुई होती, तो रीती-रिवाजों का या धर्मों का ये जाला, विज्ञान और राजनीती के साथ कहाँ पता लगता? अन्धविश्वाशों के भी, समाज के अलग-अलग वर्ग के लिए अलग-अलग मायने हैं, ये भी कहाँ पता होता? किसी के लिए, वो सिर्फ श्रद्धा और विश्वास, किसी के लिए अंधविश्वास तो किसी के लिए विज्ञान। वो विज्ञान, जो लोगों को और उनकी ज़िंदगियों को काबु करता है। उन्हें मानव रोबोट बनाता है। 

यूनिवर्सिटी वाले, ना उस नाम को बदलने आए, और ना ही उस नाम प्लेट को। और ना ही वक्त के साथ, मैंने जरुरी समझा, क्यूँकि, अजीबोगरीब अटैक होने लगे थे। और वो नाम तकरीबन दिखाई देना बंद हो गया था। ध्यान से देखने पे ही हल्का-सा दिखता था। उन मैम का नाम भी वि से ही था और उसका अर्थ भी बड़ा ही कोमल-सा। बाद में भी,  Type-4 में भी, वो मेरे पड़ोसी थे। कभी-कभार उनके यहाँ आना-जाना भी हुआ या आते जाते वक़्त हाय-हैलो। मालूम नहीं, उन्हें अपने स्टोर वाले मंदिर के बारे में या उस घर के पेड़ों के बारे में, ये वाली जानकारी कितनी थी या है। क्यूँकि, मैंने उनसे ऐसा कभी पूछा नहीं। शायद यही जानकर की वो धर्म और रीती-रिवाजों को काफी मानते हैं और उसपे विज्ञान से भी शायद कम ही नाता है। 

हालाँकि, अपने एक और साथ वाले पड़ोसी से समझ आया, की जरुरी नहीं रीती-रिवाजों और विज्ञान की राजनीती के इस जाल की कहानी, विज्ञान वालों को ही पता हो। बहुत बार शायद उल्टा भी हो सकता है। जैसे मेरे साथ वाले घर वाली मैम से पेड़-पौधों का शायद थोड़ा बहुत समझ आया। और खनन वाले ज्ञान और विज्ञान का भी। थोड़ा बहुत ये भी, की क्या कहाँ रखा है और उसका क्या मतलब हो सकता है, को पढ़ते कैसे हैं, सिर्फ देखकर। ये ज्ञान बाहर की यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पे तो ऐसे है, जैसे थोड़े देर भी किसी वेबसाइट पे ठहरे तो गप्पे हाँकने लगेगा। अब पता नहीं, खुद उन यूनिवर्सिटी के ज्यादातर Stake Holders को इसके बारे में कितना पता है? क्यूँकि, आज भी शायद ये सब, बहुत से स्टूडेंट्स और स्टाफ को वैसे नहीं पता, जैसे कुछ लोगों को पता होता है? शायद? जानकार शायद ज्यादा बता पाएँ। 

इस स्टोर जैसी-सी ही, कितनी ही जानकारियों ने, इस कल्चर को "मीडिया कल्चर और सोशल इंजीनियरिंग" से अवगत कराया। ठीक वैसे, जैसे लैब में होता है। 

इंसानों के साथ-साथ, अगर पशु-पक्षियों के कल्चर मीडिया को जानोगे, तो शायद जरुर लगे, जैसे जादू है कोई। इतनी आसान है क्या ये ट्रैंनिंग, मानव-रोबॉट बनाने की? या automated सिस्टम के साथ-साथ जैसे सब बदलता है? क्यूँकि, उनमें तो दिमाग वैसे ही नहीं होता। इंसान का तो फिर भी ब्लॉक करना पड़ता है शायद, कोई खास हिस्सा या जानकारी या लालच या डर जैसे, इंसानी व्यवहार को इधर-उधर खिसकाना? या कुछ जरुरतें खत्म करके, कुछ ना जरुरी जरुरतें पैदा करना?