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About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Wednesday, May 31, 2023

Wall Paper

पहली बार माँ के इस घर (जिसे मैं सूअरबाड़ा बोलती हूँ) में wall paper लगे थे,  थोड़े से हिस्से पे। और मुझे वो हद से ज्यादा भद्दे लग रहे थे। ऐसा क्या था उनमें? कौन लेकर आया था उन्हें? और कहाँ से? किसके द्वारा, कहाँ से मँगवाये गए थे? 

एक था स्लेटी रंग (Grey). उसपे पीछे से कुछ आ गया :) खून के धब्बे हैं या लाल ईंटें जिनका प्लास्टर उतर गया है? नंगी-पुंगी गुडियाएँ, जिनको हर तरह से निचोड़ा जा चुका, इधर के गुंड़ों द्वारा भी और उधर के गुंडों द्वारा भी। मतलब हर तरह से मरमत की हुयी है -- शायद कुछ-कुछ वैसे ही जैसे यहाँ दिख रहा है। Kinda लूट, कूट, पीट and Kick Out.        


सफ़ेद Wall Paper, उसपे 7-8 बार V जैसा-सा कुछ है, कहीं उल्टा, कहीं सीधा।  

    


यहाँ एक राजबीर अंकल की दुकान है। शायद उनके द्वारा मँगवाया गए हैं?
ये Automation है? Semiautomation या Enforced? 

माँ को कख्खा नहीं पता। बताने लगो तो सहन नहीं होता उनसे। उठके चल देती हैं। जिनसे लाये थे, शायद उन्हें भी कम ही पता है। माँ को समझ नहीं आता, की मैं हर चीज़ में ऐसी-ऐसी कहानियाँ कहाँ से घड लाती हूँ? अब उन्होंने शशि थरूर की सोशल मीडिया पे वाशिंगटन पोस्ट या न्यूयोर्क टाइम्स या इंडियंस newspapers वाली पोस्ट थोड़े ही पढ़ी हुयी हैं। वो जानती ही नहीं कौन शशि थरूर ?

वही पोस्ट्स जहाँ ये लिखा होता है की एक मिडिल क्लास फ़ैमिली 3-4 पीढ़ियों के बाद डुबने कैसे लगती है? या आप पड़ोस में कहीं किसी मोदी के यहाँ कोई Wall Paper देख फिर से कह रहे हो -- यहाँ भी? और उसी दिन शशि थरूर की वाल पे वो Wall Paper, Design ही मिलता है। या लंदन की किसी Street के बिल्डिंग का बाहर का डिज़ाइन कुछ-कुछ आपके इस So-Called हवेली वाले सूअरबाड़े के बाहर के डिज़ाइन से मिलता जुलता-सा दिखता है। 

अब माँ को कहाँ मालुम की दुनिया में ऐसे-ऐसे लिखने और पोस्ट करने वाले और कितनी तरह के राजनीतिज्ञ, मीडिया वाले, प्रोफेसर, डॉक्टर, साइंटिस्ट, आईएएस या आईपीएस हैं? और उन्हें कह दिया की मोदी, राहुल गाँधी, चौटाला आदि के सोशल साइट्स पे यही चल रहा है। तो शायद यही कहेंगी -- मेरा भेजा खराब मत कर, अपना तो किया हुआ है। पता नहीं कहाँ से क्या और कैसे-कैसे भिड़ा देती है। अब उन्हें क्या मालूम ये जोड़-तोड़-मरोड़ वाला प्रेजेंटेशन ज्ञान, कौन-कौन सी गुफाओँ (Crypts) की देन है और कौन-कौन सी टेक्नोलॉजी है उस सबके पीछे। हम जैसों को ही इतनी जद्दो-जहद और वक़्त के बाद भी उतना नहीं पता, जितना होना चाहिए शायद।  

Tuesday, May 30, 2023

आप करोड़ पति क्यों नहीं हैं?

  Advertisements Nowadays!

मेरा नौकरी से Resign (whatever kinda was that) और किसी का बताना, आपको 1- करोड़ मिलेंगे! ऑनलाइन ऐसी advertisements भी आम हो चली थी। 

कौन हैं ये बताने वाले? और इनको ये किसने बोला ? शायद इन बच्चों को ये तक नहीं मालूम, की सब हिसाब-किताब online है। और जिसको आप बता रहे हैं, उसे हकीकत पता है, आपको नहीं। वैसे भी आज के वक़्त करोड़पति होना क्या बड़ी बात है? मगर शायद कोड में कुछ अनोखा जरूर है। जाट तो वैसे भी 2-4 किले होते ही पैदायशी करोड़पति होते हैं। मगर रहते फिर भी ज्यादातर गरीब ही हैं। खासकर अगर सिर्फ जमीन है, वो भी इतनी-सी। 

भाभी की मौत के बाद, ऐसा ही शगुफा बच्चे को लेके उड़ाया जाने लगा। और आपको समझ न आये, इस सब बकवास का मतलब क्या है? ये फिर से कोड जोन था शायद। इस सबसे बचने की जरुरत थी। उसके आगे शायद, गुब्बारे उड़ाने वाले जोन थे। फूँक मारो और उड़ा दो। छोटी सी चोट की नहीं की कहानी ही खत्म। क्युंकि आगे करना क्या है, उसपे ज्यादा फोकस न होकर, खर्च कहाँ-कहाँ होना है, या कहो करवाना है, फोकस वहां ज्यादा होने लगा था। अब तक थोड़ा बहुत वित्तीय समझ आ गयी थी, शायद। उसपे Entrap के जोन से भी बचना जरूरी था। Entrap Zone चारों तरफ से था। आसपास के हर नासमझ इंसान पे था। मुझे तो समझ आने लगा था। या यूँ कहो, जो कुछ हो रहा था, वो साफ़-साफ़ दिख रहा था। मगर आसपास जो जाल फैला था, उसे कौन हटाए? और कैसे हटाए ?  स्कूल के प्लान को फ्लॉप करने की इधर-उधर की कोशिशों का मतलब ही यही था। भाभी की मौत के बाद, वो मोहरे फेंकने वाले चेहरे एक तरह से खुलकर सामने आ गए थे। मगर नासमझों को खबर अब भी नहीं थी। वो आपस में ही उलझने लगे थे। अब तो हर तरह का अवरोध (distraction) था वहाँ। 

जुए का जाल, अब उस जमीन की तरफ भी बढ़ने लगा था, जिसपे वो स्कूल बनना था। आम-आदमी की ज़िंदगी में घुसे, जमीन-जायदादों के जुए की राजनीती ! इस अजीबोगरीब तानेबाने से नफरत होने लगी थी। मगर नफरत हल कहाँ होता है? समाधान, ऐसे बन्दों से और शायद कुछ हद तक, ऐसी जगहों से और उनके षड्यंत्रों से, थोड़ा दूर ही रहना था।  

वैसे करोड़पति ही क्यों? अरबपति या खरबपति क्यों नहीं? वो भी अपनी पुस्तैनी जमीनों को बेच कर क्यों? ऐसे चालबाजों की खरीदकर क्यों नहीं? या सबसे अच्छा ये की ऐसे बन्दों और पंगों से ही दूर रहो। 

जैसे की उड़ चल कहीं 
ये जाहिल जहाँ तेरा नहीं 
साथ ले चल उन्हें भी 
जिनकी फ़िक्र यहाँ नहीं
सिर्फ़ दिखावे भर की है 
या निहित स्वार्थ तक की है 

Advertisements Now-a-Days!

 Advertisements nowadays?

On YouTube?

Google Search "special cured search results"

Social media, home page automation zone?



Interesting? 
Wonder, if this is -This side or That side?
Kinda, Jhol hi jhol hai
Ya kaho -- bole toh, kuch bhi?

Where's that kala tabeez saang?
Show that again mr or ms (?) advertisers, so that people can check these tabeez-kabeez also.
Their typical emotional and religious fooling and exploitation on that!

Sunday, May 28, 2023

समाज अपने आप में एक बड़ी लैब है - 2

समाज अपने आप में एक बड़ी लैब है - 1  (पोस्ट : मई 26, 2023)

"मगर अचानक से काफी कुछ बदलने लगा था। Case Studies Publishing के चक्कर में उस तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया।  क्या था वो अचानक? अचानक था या मुझे ही अब समझ आने लगा था?" 

अपनी गाडी यहाँ खड़ी मत कर। वहाँ, उधर सामने वालोँ के यहाँ खड़ी कर ले। 

और आप मन ही मन सोच रहे हैं -- ये है कौन, तुझे ये सब बोलने वाला? कुछ ज्यादा ही नहीं बड़बड़ा रहा? और गाडी वहीँ खड़ी कर मैं घर आ गयी। माँ का घर। मेरा कमरा भी यही है। माँ और जहाँ भाई रहता है, उसके बीच में वो घर है, जहाँ गाडी खड़ी करने को बोला गया था। कभी आदत नहीं रही, किसी के यहाँ ज्यादा आने-जाने की, तो अपना कोई सामान रखना, चाहे गाडी ही क्यों न हो, थोड़ा अजीब था सुनने में भी। 

वक़्त के साथ, ऐसी छोटी-छोटी सी, पर खोटी चीज़ें बढ़ती जा रही थी। मगर इनपे सोचने का वक्त ही कहाँ था? मैं तो case studies writing में व्यस्त थी। और शायद जिनके खिलाफ वो case studies books थी वो plotting में ! उसके साथ थोड़ा बहुत स्कूल का प्लान भी चल रहा था। मगर वक्त के साथ दोनों में ही दिक्कत आने लगी थी। जहाँ स्कूल बनना था, वहाँ की ज़मीन पे तु-तु, मैं-मैं, शुरू हो चुकी थी। इस सब में आसपास की भुमिका अहम् थी। इस सबसे निपटने के लिए मैंने जमीन भी देखनी शुरू दी। या कहना चाहिए की ये सलाह भी आसपास से ही मिली थी। 

कुछ-कुछ समझ आने लगा था की, "फूट डालो, राज करो" अभियान चल रहा है, मगर उसका हल नहीं समझ आ रहा था। आसपास इतनी तरह के लोग, इतनी तरह की बकवास। इतनी तरह के लोगों के, इतनी तरह के निहित स्वार्थ। 

मगर समाधान भी शायद उन्ही इतनी तरह के लोगों के बीच में ही था। क्युंकि, सब तो स्वार्थी होते नहीं। शायद कुछ को इस वातावरण की मुझसे ज्यादा समझ थी। और धीरे-धीरे, कुछ हद तक समझ भी आने लगा था की ये यहाँ क्यों नहीं होगा और वो वहाँ क्यों नहीं होगा। उसमें अहम् था या कहो, थे, वो सब करवाने वाले। राजनितिक पार्टियों के जाल। ये BJP है। ये Congress है।  ये JJP है।  ये AAP है। इनके ये निहित स्वार्थ हैं। उनके ये और उनके ये। इतने जालों में कोई भी उलझ जाए।   

एक दिन एक महान आत्मा (some outsider)  ने कहा, "तुमने हमारी ज़मीन पे कब्ज़ा कर लिया तो!" मेरे लिए बड़ा अजीब था वो सब सुनना। 

मन ही मन सोच रही थी, ये है कौन, मुझे ये सब कहने वाली? ये तो कुछ ज्यादा ही जा रहे थे। मगर ये सब इनके लिए आम है। क्यूंकि इन जैसों की सोच के अनुसार औरतोँ के कोई अधिकार ही नहीं होते। ये तो तब था, जब ऐसी कोई बात हुई ही नहीं थी, और मुझे यहाँ कोई ज्यादा रुकना नहीं था। 

मैंने कहा, "कौन ले गया है इस ज़मीन-जायदाद को, जो मैं ले जाऊँगी? वैसे भी सब आपका ही है। लड़कियों का तो यहाँ, वैसे भी कुछ नहीं होता। फिर मुझे ये माहौल कोई खास पसंद भी नहीं। बाहर जाना है, मेरे को तो। पता नही और कब तक हूँ यहाँ .......  " ज्यादातर इन लोगों के यहाँ ऐसी ही झल्ली-सी बातें होती थी। जिसमें बात-बात पे लगे, ये कहाँ पहुँच गए आप। मुझे लग रहा था, इस बहाने आसपास के कुछ निठल्लों का भी भला हो जाएगा। पर यहाँ तो वो तुम्हें ही भगाने पे तुले थे या यूँ कहना चाहिए अपने ही घर से निकालने पे तुले थे।   

फिर एक दूसरी साइड भी थी, "सबका खा गया वाली"  

और एक दो बार, वहाँ भी बहस हो जाती थी, की "गाँव में लोगों के पास इतना होता ही कहाँ है, की कोई यहीं पड़ा है और सबका खा गया? है ही क्या? किसका खा गया? दोनों कमाते है, तो गुजारा हो रहा है।" भाभी के पास कम ही वक़्त होता था। शायद वैसे ही, जैसे हर किसी नौकरी करने वाले के पास होता है। जब मैं यहाँ होती तो कभी-कभार श्याम की चाय होती थी वहाँ और उसी दौरान थोड़ा बहुत बातचीत। या छुट्टी वाले दिन, हम दोनों घर होते तो। 

इन सब घरों का, अपनी-अपनी तरह का हक़ जताने का तरीका था इस घर पे। कुछ का सही में था और कुछ का जबरदस्ती। फेज थे शायद इनके, के वो उस वक़्त पास थे। वो उस वक़्त और वो उस वक़्त। कहीं-कहीं तो ऐसा लग रहा था की घर वालों को ही घर से निकालने की कोशिश हुई, कई-बार। 

कुछ बातें थी जो इस दौरान हुई, जो पहले न कभी हुई, न सुनने को मिली। और थोड़ी नहीं, कुछ ज्यादा ही अजीबोगरीब थी। एक बाथरूम को लेके और दूसरा दादा जी वाले कमरे को लेके। वो कब हुई, ये जानना और भी अजीब था। जो समझ आया वो ये की बेवकूफ लोग समांनातर केसों में उलझाए जा रहे हैं। थोड़ा बचो। मगर ये सामान्तर घड़ाई करवाने वाले बन्दे कौन हैं? आसपास ही हैं या दूर हैं? इन गुफाओं को जानने की खास जरुरत थी। 

भाभी को 2019 या 2020 में शायद nerves की वो अजीब-सी problems शुरू हुई थी। अब तक वो कई बार हॉस्पिटल जा चुकी थी। 2-4 दिन बाद ठीक-ठाक घर आ जाती थी। शुरू-शुरू में तो मुझे उनका treatment ही अजीब लगा था। और मैंने बोला था की आपको इतना कुछ नहीं हो रहा। शायद आराम और खाने पे ध्यान देने की ज्यादा जरुरत है। ये हॉस्पिटल्स तो ऐसे भी खा रहे हैं और वैसे भी। शायद थोड़ा बहुत तो उन्हें भी समझ आने लगा था। क्यूंकि इस दौरान आसपास के कई केसों के बारे में उनसे बात हुई थी। फिर कोरोना के बाद तो लोगों का विश्वास, वैसे ही खिसका हुआ था। 

मगर कुछ और भी था शायद, जिसपे वक़्त रहते उतनी बात नहीं हो सकी, जितनी होनी चाहिए थी। क्यूंकि इस सारे तानेबाने की एक ख़ासियत और है, की जैसे ही सामने वाले को कुछ समझ आने लगता है, वैसे ही अजीबोगरीब दुरियाँ बढ़ने लगती हैं। वक़्त ही नहीं होता, किसी भी बहाने, इधर या उधर। फिर कोरोना के बाद तो कुछ ज्यादा ही समझदार (बेवकूफ) लोगों ने, मुझे अपने साथ हॉस्पिटल ही ले जाना बंद कर दिया था। पता चलने पे, मैं ही जबरदस्ती जाती थी। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ था। रात 10. 30 के करीब बच्ची ही आयी थी रोते हुए, की पापा, मम्मी को हॉस्पिटल ले गए। उसे दादी ने समझा-बुझा के सुला दिया था, की पहले भी गए हैं न, आ जाएंगे ठीक होकर वापस। मगर अगली सुबह तक तो, सब जैसे कहानी था। उसके बाद जो शुरू हुआ, वो शायद और भी ज्यादा भद्दा।   

ऐसी कई और कहानियाँ और भी हैं इधर-उधर। कोरोना के बाद की इन खास बिमारियों जैसी-ही। जिनमें ऑक्सीजन खत्म हो जाती है। या जाने क्या, वक्त रहते नहीं मिलता!  शायद फिर कभी। शायद तक तक बालों के केसों की तरह यहाँ भी, कुछ और समझ आने लगे। 

राजाओं के आत्मघाती-दस्ते

राजाओं के आत्मघाती दस्ते -- ज्यादातर खुद के लिए या अपनों के लिए, राजे-महाराजों के लिए नहीं। राजे महाराजे किसी के अपने नहीं होते। वो सिर्फ कुर्सी के होते हैं। 

या कहो इंसानों का रोबोट बनाना। जो चाहो वो करवाओ और वो करते जाएंगे। वो भी बिना सोचे-समझे की इसमें तुम्हारा अपना फायदा नुक्सान कितना है। या शायद पास का फायदा दिखा दिया और दूरगामी असर भूल गए? या उन तक या उनके आसपास वालों तक वो समझ ही नहीं।  

Offensive, disgusting, repulsive and can add as many such words as possible in this. What is that? 

कांडों पे मोहर, अपने तरीके की? 

या चालों में कांड? 

ये इनके वो उनके। 

लोगों को अपनी सेनाएँ बना लेना और आत्मघाती कामों में प्रयोग करना। मतलब, वो खुद ही अपने खिलाफ काम करने लग जाएँ। 

आप कहेंगे, कोई पागल है क्या? भला अपने ही खिलाफ क्यों काम करेगा? 

काला आपका पसंदीदा रंग है?

नहीं? कोई खास नहीं। पर कोई खास खुंदक भी नहीं ?

यहाँ इंसान के तवचा के रंग की बात नहीं हो रही। बल्की,आसपास की हर चीज़। 

फिर तो पसंद नहीं है। 

काला रंग सत्ता को बड़ा पसंद है। मगर इंसानों की तवचा का नहीं, बल्की अंदर की कालिख़ का। अंदर जितना कालिख़ बढ़ता जाएगा, बाहर उतना ही ज्यादा, काला-काला रंगता जाएगा। हो सकता है, आपको ऐसी कालिख पसंद न हो, मगर आप खुद ऐसा कुछ कर रहे हों, यहाँ-वहाँ ? खुद से कर रहे हैं या इसे बोलते हैं, इंसानो को रोबोट्स बनाना? आत्मघाती बनाना। जो वो कर रहे हैं, वो उन्हें पसंद नहीं, मगर कर रहे हैं। या पसंद ही बदल गयी? कब, कैसे और कहाँ?    

इस थोड़े से वक़्त में ऐसा बहुत कुछ यहाँ देखा, सुना और नज़र आया। जो इधर-उधर के झगड़ों में नजर आया, खान-पान, पेड़-पौधों में पाया। रिस्तों की दरारों में, घरों के फर्शों में, दीवारों में, खिड़कियों में, दरवाजों में, रसोई के बर्तनों में, बिजली के तारों में, खम्भों में, मीटरों में, बिजली के उपकरणों में, जमीनों के सौदों में, घरों-प्लॉटों की बिकवाली में। 

 सब कर तो ये लोग खुद ही रहे हैं। लग तो ऐसे ही रहा है। दिख तो ऐसे ही रहा है। मगर 

मगर -- इस सबका सच कितना है? 

Saturday, May 27, 2023

Writing Machine, Pen Plotter, Drawing Machine

नोट: कहीं से प्रेरित पोस्ट। 

सोचो, अगर आपका लिखने का काम कोई मशीन कर दे, तो?  

जब खुद लिख सकते हैं तो आपको लिखने की मशीन की क्या जरुरत? वो भी पैन से लिखने की मशीन? टाइप करना बहुत नहीं है शायद? हमारी लिखाई जैसा यूँ का यूँ, अगर कोई मशीन लिख दे तो? बहुतों का काम आसान हो जाएगा। नहीं? 

खासकर, छोटे-छोटे स्कूल जाने वाले बच्चों का। आजकल के ये स्कूल, इतना लिखाई का काम दे देते हैं। पहले स्कूल, फिर इत्ता सारा होमवर्क। उफ़! और कोई ऐसा घर में ही पढ़ाने वाला हो, जो थोड़ा-सा भी बच्चे का राइटिंग का होमवर्क करने को मना करदे? उसपे होमवर्क पुरा किये बिना sign करने से भी मना कर दे? तो कोई तो बाहर tution वाला या फ्रेंड ढूंढ़ना पड़ेगा, जो ये काम भी करदे और किसी को बताये भी ना ! नहीं ? 

आसान चीटशीट? और टीचर, उन्हें पता तक नहीं चलता की, राइटिंग थोड़ी अलग है? अब टीचर इतना कहाँ नोटिस करते हैं? वैसे कितने सारे बच्चे या बड़े करते हैं ऐसा? 

Pen Plotter 

Writing Machine 

Or maybe even Drawing Machine ? 

Interesting Technology :) 




ऐसे ही अगर किसी खास विषय का Pressure दिया जाए, तो क्या होगा? वो बच्चा उस Subject से डरने लग जाएगा शायद? 
उसपे इधर-उधर का शॉर्टसर्किटस का डर अलग?     

पुनर्जन्म ?

आपको पता है, उनके घर एक नयी बहु आई  है। 

हाँ। आपको पता है, आपकी क्या लगती है, वो नई बहु?

पुरानी कहाँ गई? और उनकी लड़की भी थी ना?

थी नहीं, है। 

कहाँ रहते हैं वो?

अपने घर। 

ये उनका घर नहीं है?

आप नई बहु से मिले?

हाँ। 

कैसी लगी? अच्छी हैं ना?

पुरानी ज्यादा अच्छी थी। 

पर वो तो गए ना।  

और लड़की को भी ले गए। 

हाँ। वो माँ-बेटी यहाँ रहते ही नहीं थे। 

आपको पता है, वो मेरी मम्मी की जगह आई है? 

आपकी मम्मी की जगह वो कैसे आ सकती हैं? आपका और उनका घर अलग है। वो आपकी चाची लगती हैं, मम्मी नहीं। वैसे किसने बोला आपको, की वो आपकी मम्मी की जगह आई है? बेवकूफ हैं वो। ऐसे भी कभी होता है? 

अच्छा, आप मेरी पुराने वाली चाची से बात करवा सकते हैं?

मैं तो उन्हें ज्यादा जानती नहीं। तब मैं यहाँ आती-जाती ही कितना थी, जब वो यहाँ थे ?

तो नंबर तो ले सकते हैं। 

आप जानते हैं उन्हें? वैसे, क्या बात करनी है आपको उनसे?

बताना है कुछ। 

क्या? 

उन्हें पता है, उनके घर में कोई और घुस गया है?

आप बच्चे हो। आपको शायद नहीं पता की वहाँ क्या चल रहा है। वो भी शायद किसी नए घर में गए। 

आपको पता है, बात होती है आपकी? 

नहीं। मैंने भी सुना है, जैसे आपने यहाँ-वहां से सुना है। वैसे, ये सब किसने बोला है आपको? 

पता नहीं। मुझे उनका नंबर चाहिए। आप ला दो ना कहीं से। नहीं तो ये पता कर दो, वो रहते कहाँ हैं। 

मुश्किल है ये तो। जिसने आपको बताया है की वो आपकी मम्मी की जगह आए हैं, शायद उन्हें पता हो। 

वो नहीं बताएँगे। उन्होंने मुझे कुछ नहीं बताया। वो तो मुझे ऐसे ही सुन गया। 

थोड़ी देर और ऐसी ही गपशप चलती रही। ऐसी-ऐसी कुछ और बातें, कुछ इधर की, कुछ उधर की, यहाँ-वहाँ।  और आपको समझने में ज्यादा देर नहीं लगेगी की Human Programming क्या होती है और इंसान Robots की तरह क्यों व्यवहार करने लगते हैं। 

मानसिक शोषण -- परिस्थिति जितनी ज्यादा कमजोर या नाजुक होती है, उसमें मानसिक शोषण होने के उतने ही ज्यादा आसार बढ़ते जाते हैं। मतलब, उतने ही ज्यादा, जोड़-तोड़-मरोड़ कर, चीज़ों को या परिस्थितियों को दिखाने के या भुनाने के तरीके। ऐसी बातों को सुनने वाला, कमजोर मानसिक स्थिति में अक्सर उस बच्चे की तरह होता है, जो पल में हंस दे, पल में रो दे, पल में झगड़ ले और पल भर बाद वैसा का वैसा। यहाँ इस तरह की गपशप आम हैं, की इनके यहाँ ये गया तो उनके यहाँ वो आ गया। क्युंकि, वहां भी पहले वाला कोई, कहीं और गया। 

शुरू-शुरू में मुझे लगता था की ये सब सिर्फ मुझे लग रहा है। या सिर्फ मुझसे इधर-उधर की खामखाँ की, बगैर सिर-पैर की तुलना हो रही है। और भी ऐसे ही कई केसों में जब ये सब सुना, या देखा, तो समझ आया, की ये तो राजनीती का जाल है, और वो भी बिलकुल जालों की तरह। इतनी तरह गुंथा हुआ की ढूंढ़ते ही रह जाओगे, की ये जाला किधर से आ रहा है, और वो किधर से! रिश्तों के बनने-बिगड़ने में, टूटने-सवंरने में भी, राजनीती के इन जालों का अहम् रोल है। तो आम-आदमी इतना भी नासमझ नहीं है, की इतना कुछ देख-समझकर भी, ये सब बिलकुल ही समझ न आए? पर शायद अभी तक इतना समझ नहीं पाया की रोजमर्रा की ज़िंदगी में इन सामानांतर घढ़ाईयों के दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए? जहाँ अच्छा है, वो तो सही, मगर जहाँ दुष्प्रभाव बहुत ज्यादा हों? 

पुनर्जन्म? क्या होता है ये? इंसान का एक जगह से चले जाना और किसी दूसरी जगह जन्म ले लेना? या घर, जगह और रिश्ते नातों का बदल जाना ? पता नहीं। 

Be static where you wanna be, but don't stay at the same place at least for the sake of your next generation.    

शायद अगर हो सके तो ऐसी जगहों को छोड़ देना चाहिए? वैसे भी कितनी पीढ़ी एक ही जगह? एक ही जगह रहने का मतलब, आप कुछ खास नया तो सीख ही नहीं रहे। ऐसी जगहों पे आगे बढ़ने के रस्ते कम और शायद मुश्किलें ज्यादा बढ़ती जाती हैं? आगे बढ़ने वाले लोगों की अगली पीढ़ी, ज्यादातर उसी जगह नहीं रहती।   

Friday, May 26, 2023

समाज अपने आप में एक बड़ी लैब है

2021, की इस खास छुट्टी का मतलब था, Official Stress और Unproductive जोन से दूर, अपने हिसाब से लिखना-पढ़ना। अब घर भी ज्यादा आने-जाने लगी थी। कुछ वक्त यहाँ, कुछ वक्त यूनिवर्सिटी कैंपस। यहाँ माँ का घर, कोई खास रहने लायक नहीं है। कभी पड़दादा के वक़्त का है। तो सोचा, अपना एक छोटा सा Writing Zone या कहो Home Office बनाना सही रहेगा। उनके भी थोड़ा बहुत काम आ जाएगा। और शायद कुछ लोगों का भला हो जाएगा। भाभी उसमें अहम् थी। वो खुद शायद अपनी प्राइवेट स्कूल की नौकरी से परेशान थी। और उसे मेरा प्राइमरी स्कूल का विचार पसंद भी आ गया था। मेरे लिए गाँव एक पड़ाव था। मगर कब तक के लिए, ये खास जानकारी नहीं थी। शायद दो तीन-साल? मेरा कहीं रस्ता खुल जाता, तो शायद बाकी के लिए भी आसान होता।  

कुछ महीने सब सही लग रहा था। मगर धीरे-धीरे, जब यहाँ का माहौल और चीज़ें समझ आनी शुरू हुई, तो ये दुनियाँ मेरे लिए काफी हद तक उससे अलग थी, जिसे मैं जानती थी। Politics, Codes, और Cryptic संसार, Campus Crime Series के साथ-साथ यहाँ भी दिखने लगा था। वो भी भलाई में कम, यहाँ की ज्यादातर बुराईयों और नुकसान में ज्यादा। पढ़ाई-लिखाई का दायरा अब बढ़ गया था। या यूँ कहो, समाज अपने आप में एक बड़ी लैब नजर आ रहा था। मेरी Official लैब की जरुरत, जैसे अचानक से खत्म हो गयी थी। इसके सामने वो लैब, समुन्दर में जैसे किसी पानी की एक छोटी सी बूँद की तरह थी। अब दुनियाँ में कहीं भी रहो, ये लैब आपके पास रहेगी।  एक ऐसी लैब, जिसे कोई नहीं छीन सकता। जिसके लिए आपको न ही कोई फाइल चलाने की जरूरत थी और न ही requests की। मगर इस दौरान कुछ और भी शुरू हो गया था। एक खास पार्टी द्वारा मुझे गॉवं से निकालने का अभियान! 

सब साफ़-साफ़ नजर भी आ रहा था और छुपा हुआ भी था। और भी बहुत-सी, छोटी-छोटी मगर खोटी चीज़ें शुरू हो चुकी थी। यूनिवर्सिटी में जो कुछ चल रहा था, वो सब यहाँ भी शुरू हो चुका था। वहां में और यहाँ में एक फर्क ये था, की उस माहौल को मैं जानती-समझती थी। यहाँ बहुत-सी चीज़ों को समझने में ही ज्यादा वक़्त लग रहा था। बहुत-सी बातें या चीज़ें जिस हिसाब से हो रही थी, उनसे साफ़-साफ़ समझ आ रहा था की ये सब अपने आप नहीं हो रहा। बीमारियाँ, उनमें से एक थी। कुछ के कारण भी कुछ हद तक समझ आये। कई में तो तकरीबन पार्लर वाली ट्रिक्स, मगर रोजमर्रा के आम संसाधनों से। बालों के Cases। 

ऐसे ही शायद Vitiligo है। शायद, क्यूंकि अभी कुछ-कुछ समझ आया है।  Bougainville Plants Leaves, Vitiligo like signs, कैंपस हाउस 30, टाइप -4, towards 29 wall. Variegated leaves और Chemicals Abuse?   

कुछ वक़्त के बाद एक छोटी-सी बिल्डिंग का नक्सा भी तैयार हो चुका था। मगर बजट उस हिसाब से नहीं था। मैंने बजट कट करके उसे  Green Sustainable Design में बदल दिया था। अब शायद सही था। थोड़ा अलग भी और शायद उसमें कुछ और करने की संभावनाएं भी थी। 

मगर अचानक से काफी कुछ बदलने लगा था। Case Studies Publishing के चक्कर में उस तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया।  क्या था वो अचानक? अचानक था या मुझे ही अब समझ आने लगा था? 

Thursday, May 25, 2023

वित्तीय-ज्ञान

जेल के साढ़े तीन दिन के खास विजिट के कुछ ही महीने के अंदर, मैं एक बार फिर से Enforced Resignation दे चुकी थी। हालाँकि साथ में लिखाई-पढ़ाई के लिए छुट्टी का भी जिक्र था। मगर जो लिखाई-पढ़ाई हो रही थी, वो थी ही कुछ कुर्सियों के खिलाफ। तो क्या होना था? वैसे, कुछ कुर्सियों के खिलाफ क्यों थी? क्या किया हुआ था, उन कुर्सियों ने ऐसा?     

इसी दौरान, कुछ messages बार-बार आ रहे थे, मोबाइल पे -- Personal Loan के लिए। 1-2 बार ज़्यादातर ऐसे messages के साथ जो हम करते हैं, वही किया, delete । वैसे भी, मैं Personal Loan की बजाय, पिछले कुछ वक़त से Home Loan के चक्कर में थी।  SBI-MDU (जिस बैंक में सैलरी आती थी) में apply भी किया था। मगर, इधर-उधर के खामखाँ के धक्कों के बाद वो फाइल रद्दी का हिस्सा बन चुकी थी। 

फिर से वही Personal Loan वाले messages आने शुरू हो गए थे। Instant Loan online, based on your credit predetermined! मैं Case Studies पब्लिश करने का मन बना चुकी थी, तो लगा मिल जाए तो बुरा क्या है। समझो, एक साल पढ़ाई पे लगा दिया। वैसे भी पढ़ाई पे लगाया वक़त और पैसा शायद ही कभी धोखा देता है। वो Instant Loan सही में Instant था। एक online form भरा, yes पे click किया और देखते ही देखते, पैसा आपके account में आ गया। मस्त! शायद यही Ease of Living और Working है? मगर इसके साथ दुसरा काम जो हुआ, वो था Enforced Resignation accepted । पर ये लोन तो सैलरी based था। वही SBI बैंक जो आपको इधर-उधर के धक्के खिलाने के बावजूद, Home Loan Application को रद्दी की टोकरी में डाल चुका था, Personal Instant Loan, messages कर-कर के दे  रहा था। खैर! Personal Loan इतना नहीं था, की ज्यादा टेंशन ली जाए। 

Case Studies Books Publication के साथ-साथ, मैं पत्रकारिता की online डिग्री में भी admission ले चुकी थी। मगर उस online में जो शुरू हुआ, वो पत्रकारिता का कोर्स कम, Bullying ज्यादा लग रहा था। फिर इधर-उधर से सलाह भी आने लगी थी, Don't fall prey to unnecessary political bullying. You are already doing more than this course. Better add something specific to that as per need. 

दूसरी तरफ, वित्तीय जोन पे कुछ और भी हो रहा था। इधर-उधर, छोटी-मोटी, राशी दे देना। कभी-कभी तो अपना क्रेडिट तक साफ़ करके, क्युंकि किसी ने पहली बार माँगा है! और सामने वाले हालात जानते हुए वापस न करें, पैसा होते हुए बहाने बनाना। धीरे-धीरे, कुछ-कुछ समझ आने लगा था। शायद इन्हें वित्तीय स्तिथि पे वार करना या Entrap करना बोलते हैं। जो सामने वाले चाहते हैं, वो सब उनके तरीके से करवाने के लिए।  दिख तो यही रहा है न की आप खुद ही सब कर रहे हैं? कर भी रहे हैं। नहीं? इतना बड़ा होने के बावजुद वित्तीय-ज्ञान है ही नहीं। पैसा तो आपके लिए हाथ का मैल है न, ले झाड़ दे सारा। जुआरियों और शिकारियों का नंबरों का धंधा समझो। आप फिर भी मस्त हैं। PPF कब काम आएगा? शायद तब तक, इधर उधर रस्ता निकल आए। वैसे PPF Account एक बैंक से दुसरे बैंक में  Transfer होने में कितना वक़त लगता है ? 2-4 घंटे या 2-4 दिन? या ?

इसे कहते हैं Dirty Politics या जुआरियों का गन्दा धंधा। एक online form भरना और Personal Instant लोन। दुसरी तरफ credit, सैलरी, नौकरी सब होते हुए होम लोन न देना। या PPF में आपका अपना पैसा होते हुए, सब conditions पूरी होने के बावजूद लटकाना या धक्के खिलाना।  

ऐसा वक़्त, बुरा करने में तो कुछ कमी नहीं छोड़ता, मगर ज़िंदगी के वो सबक़ सीखा जाता है, जो शायद कोई किताब या कोर्स नहीं सीखा सकता। 

Kinda everything has its own cons and pros. 

Wednesday, May 24, 2023

शोषण कितनी तरह से हो सकता है?

शोषण, दमन या दुर्व्यवहार कितनी तरह से हो सकता है?

मार पिटाई  (Physical Attack) ?

मानसिक शोषण (Emotional और Psychological Attack) ? 

आर्थिक या वित्तीय शोषण (Financial Abuse) ?  

 मानवाधिकार उलंघन (Human Rights Violations) ? 

और भी शायद कई तरह का शोषण हो सकता है। 

इनमें मार-पिटाई, सीधा-सीधा दिखाई देता है। दूसरे तरह के शोषणों में सब कुछ इतना सीधा नहीं दीखता। हाँ! दिखाया, या शायद समझाया जा सकता है, कई तरह से।  मगर कई बार उसके दुष्प्रभाव जानलेवा तक हो सकते हैं। 

मानसिक शोषण (Emotional और Psychological Attack)  

आपसे एक अच्छी-खासी SURROUNDING छीन लेना या छीनने की कोशिश करना। ये बच्चों के साथ भी हो सकता है और बड़ों के भी, वो भी उनको भनक लगे बगैर। Kinda छीन ले, झपट ले, मगर सामने वाले को खबर तक न लगने दे। इंसानों को अलग-थलग करना या करने की कोशिश करना। ऐसा करने के पीछे ज्यातातर, सिर्फ सजा देना अहम् नहीं होता। असली मुद्दा अलग-थलग करने के बाद शुरू होता है। शायद हर तरह से खत्म करने की कोशिश। या शायद कुछ और दुष्चक्र रचना। 

बदमाशी, डराना, धमकाना (Bullying) और गैर कानूनी सजा (Lynching) भी मानसिक शोषण का हिस्सा हैं। उलटी-सीधी टिप्पनी करना या उलटे-सीधे इशारे करना। सीधे-सीधे कुछ न कहकर, उलटी-सीधी भाषा में फेंकना। या शायद वो सब समझाने की कोशिश करना, जिसे आप सीधा-सीधा कहने में संकोच करें, खासकर जब ये पता हो की सामने वाला बर्दास्त नहीं करेगा या उल्टा जवाब देगा। क्युंकि, शायद जो आप सीधा-सीधा कह ही नहीं पा रहे, वो सही नहीं है। सीधे लोग, सीधी और स्पस्ट बात करते हैं। ना की उल्टे-सीधे रस्ते, न की उल्टी-सीधी बकवास।     

आर्थिक या वित्तीय शोषण (Financial Abuse) 

जब बाकी सब तरीके फेल हो जाएँ तो ये तरीका काम आता है। या इसे साम, दाम, दंड, भेद वाले बाकी तरीकों के साथ भी प्रयोग में लाते हैं। अगर किसी की वित्तीय स्थिति कमजोर है तो उसका कई तरह से शोषण किया जा सकता है। ज्यादातर शोषणों से बचने के लिए वित्तीय स्तिथि को मजबूत और स्थिर रखना जरूरी होता है। बहुत बार सामने वाले को पता भी नहीं चलता की ऐसा अपने आप नहीं हो रहा, बल्की किया जा रहा है।  

ये मान के चलिए की ज्यादातर शोषण गरीबों के होते हैं। ज़्यादातर, हमेशा नहीं। 

मानवाधिकार उलंघन (Human Rights Violations) 

इसको इसी पोस्ट में निपटा देना इस टॉपिक के साथ न्याय नहीं होगा। 

Tuesday, May 23, 2023

Subtle ways of Control

 Subtle ways of control Or you can say micromanagement 

सुक्षम, गोपनीय, चालाकी, धुर्त तरीकों से नियंतरण करना।  

ये वो तरीके हैं, जहाँ आपको खबर ही नहीं होती, की जो आप कर रहे हैं, वो आप नहीं कर रहे, बल्की कुछ दुस्ट लोग, दुस्टता से करवा रहे हैं। मगर दिख ऐसा रहा है, जैसे आप कर रहे हैं। कुछ इन्हें दक्षता कहते हैं। कुछ कुशलता। तो कुछ दुस्टता, चालाकी या धुर्तता। आज हम जिस समाज में है, वहाँ ये सब न सिर्फ बड़े पैमाने पे हो रहा है, बल्की ज्यादा क्रूर और घिनौने तरीके से हो रहा है।  

इस क्रुरता का एक उदाहरण, अभी हाल की एक मौत है। मैं उसे जैसे समझ पाई। 

उससे पहले थोड़ा पीछे चलते हैं 2021, A Special Trip to Jail (Book: Kidnapped by Police)   

2021 की उस special jail trip के बाद दिमाग इतना खराब हो चुका था, की मेरा वश चलता तो मैं जेल भेजने वालों के टुकड़े-टुकड़े कर डालती। उसका इलाज एक ही था -- भारत छोड़ना। तुम्हें ऐसे बूचड़खाना देश में रहना ही नहीं। मगर 2-3 केस थे, इस केस समेत -- राजद्रोह (Sedition)। 

या यूँ कहो, ये केस बनाये ही मुझे जकड़ने के लिए गए थे। 2015 में मेरा पासपोर्ट आउटडेटिड हो चुका था। उसके रिन्यूअल की प्रकिया ही यूनिवर्सिटी में बनी एक मोटी फाइल और 10-12 महीने के धक्के थे। तब तक तो कोई ऐसा केस भी नहीं था। पिछले कुछ सालों में जो इधर-उधर से बताया या समझाया गया वो ये की किसी को भारत नहीं छोड़ने दिया जाएगा। मगर किसे और क्यों? ऐसा कुछ तो मुझे अपने साथ होता भी प्रतित हो रहा था। राजद्रोह का केस शायद इसीलिए था? 

क्युंकि अब तक तो मैं कैंपस क्राइम सीरीज की ऑफिशल फाइल्स इकट्ठा कर चुकी थी और उनको पब्लिश करने की तैयारी  भी। क्या कुर्सियों पर बैठे हुए लोगों के कांडों को जनता को बताना राजद्रोह है? आम लोगों की भाषा में तो इसे शायद सामाजिक दायित्व बोलते हैं। समझ ही नहीं आ रहा था की ये कौन सा राजद्रोह है और कौन राजा का देश, जहाँ जनता को चल रहे खुनी-युद्ध (कोरोना) के बारे में बताना गुनाह हो गया? सच बोलने की सजा राजद्रोह? ये देश, वो कहाँ है, जिसे तुम जानते हो? खैर, यहाँ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय राहत देने वाला था।   

इसी दौरान, केस-स्टडीज को ज्यादा गंभीरता से पढ़ना, समझना और लिखना शुरू किया। जो समझ आया वो ये की ये दुनिया वो नहीं है, जिसे आम आदमी जानता और समझता है। ये तो कुछ और ही है। ये कोर्ट्स कौन हैं और सरकारें या विरोधी राजनीतिक पार्टियाँ कौन, अब तो ये भी पहेली-सा बन चुका था। इसी दौरान आसपास हुयी कुछ मौतों ने दिमाग और खराब कर दिया। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात को लेके थी की इतने सारे ऊपरी तबके को इस सबकी खबर भी है। उसके बावजुद, सिर्फ भारत में ही नहीं बल्की संसार भर में आदमखोरों ने ये रचा। और कोई उन्हें किसी भी कटघरे में खड़ा करने वाला नहीं है? हम कैसे समाज का हिस्सा हैं? 

खैर, मैं इस्तीफा दे चुकी थी -- एक बार फिर से। मगर --

मगर वो सिर्फ इस्तीफा नहीं था। उसके आगे फिर से कोई शब्द था। Enforced Resignation, मतलब, मजबुर करके लिया गया इस्तीफा। जिसमें लूट, कुट, मार और Kick Out सब था। मतलब साम, दाम, दंड, भेद। इन मौतों को भी कुछ-कुछ ऐसे ही समझा जा सकता है। जो एक बार उन रहस्मयी गुफाओं में घुस गए, तो बहुत से उत्तर अपने आप मिलने शुरू हो जाएंगे। आम आदमी को उनमें झांकने की जरूरत है। अपने भले के लिए। अपने आसपास के भले के लिए। इस समाज के भले के लिए।    

करना नहीं चाहोगे ऐसे रहस्यों से भरी गुफाओं की सैर? 

Subtle ways of control Or you can say micromanagement 

सुक्षम, गोपनीय, चालाकी, धुर्त तरीकों से नियंतरण करना।           

ये राजनितीक पार्टी, वो राजनितीक पार्टी !

ये राजनितीक पार्टी, वो राजनितीक पार्टी! घर, आस-पड़ोस कहाँ गुम गए? 

"हम,आपसे दूसरी पार्टी से हैं।" यहाँ आपके कुछ खास अपनों का आना-जाना है। "I call such people unnecessary outsiders interfere, even up to the level of finishing up that home!"

दूसरी पार्टी? आप मन ही मन सोच रहे हैं। ओह! घरों में राजनितीक पार्टियाँ? तो क्या होगा ऐसे घरों में? मुझे तो लगा था, मैं अपनों के बीच हूँ। यहाँ तो राजनीती के लोग और उनके रचे ताने-बाने, उन्हीं की दी हुयी बीमारियाँ और इज़ाद मौतों में शामिल किरदार रहते हैं। जिन्हें खुद नहीं मालुम, कैसे? 

वही मेरे मामा के लड़के, पी... वाली पार्टी? या दीदी कैप्टेन बोल रहा हूँ -- वाली पार्टी? कितने खासमखास किरदार हैं, इस पार्टी के? लड़कियों की टेस्टिंग का दो-दशक से भी ज्यादा का धंधा है इनका? वो गौरवमयी राणा वाले गान****? या शायद लड़कों से छोटी-मोटी गलतियां हो जाती हैं, वाले संस्कारी लोग? खैर, मन की बातें, मन तक रहें, तो ही अच्छा होता है। नहीं? और फिर तुम्हे यहाँ रहना ही कितना है? बच्चा भी तुम्हारे साथ-साथ निकल जाएगा। या शायद जरूरी होता है, थोड़ा बहुत मन की बात को भी बाहर निकाल देना? शायद कभी-कभी जरूरी हो जाता है? बच्चे को घर से छीनकर एक ऐसे वातावरण में धकेला जा रहा है -- जहाँ सीधे-सिल्की बाल, घुंघराले और भद्दे होने लगते हैं। आइटम नम्बर्स पे बच्चे ठुमके लगाने लगते हैं, और ये मोहतरमा कहती हैं, अर्रे फिरसे से दिखाओ। तुम्हारी बुआ आ गयी, उसे भी दिखाओ ना। हा! हा! हा! हा! हंसी ऐसे लग रही थी, जैसे कोठे पे बैठी, कोई धंधा एजेंट, बच्चों को धंधे में जाने की प्रैक्टिस करवा रही हो। ऐसा डांस नंबर और एक्शन शायद इससे पहले जेल के स्पेशल ट्रिप में देखा था। देखा, ना देखा-सा, हद दर्जे के, सिर दर्द के हालात में। जिस बच्चे को वो ये सब कह रही थी वो तो और भी छोटी है। धीरे-धीरे वहाँ की बातें और व्यवहार जानकार, आप इन बच्चों को घर में ही खेलो या पढ़ो का ज्ञान पेलने लगते हैं। कुएँ के टरटर मेंढकी की तरह, कार वाली लड़कियाँ तो उसके लिए बस अय्याशी का काम करती हैं। लड़के, ऐसे लोगों के लिए गलतियाँ नहीं करते, वो तो lucky होते हैं! झल्लाहट हो रही है? 

"अर्रे! बुआ ने tution के पैसे दिए हैं, आओ पिज़्ज़ा पार्टी करें। हा! हा! हा! हा!" बच्चा किसी बात पे माँ को याद करते लगता है, और आप बोलते हैं -- "उधर देख , बड़ी माँ हैं ना।" क्युंकि वो अपनी दादी और छोटी दादी को भी प्यार में माँ ही बुलाती है। और ये चुड़ैल बोलती है --"म...., माँ ! हा! हा! हा! हा!"  थोड़े से ही वक़त में ऐसे जाहिल-गवाँर लोग, सिर के ऊपर से उतरने लगते हैं। वो आपको ये बताने की कोशिश करने लगते हैं की आपके अपने घर में आपकी औकात क्या है और उसकी क्या! और उस जाहिल को ये तक नहीं पता होता की कुछ वस्तुएँ जो आज आपके पास आयी हुयी हैं, एक बार पता कर वो कहाँ से, कैसे, किसके लिए और किस अवसर पे आयी थी। हाँ! बच्चा जरूर कभी-कभार ऐसा कुछ गाने लगता है, वो भी डरा सहमा-सा। पर शायद सब गाना अच्छा नहीं होता। कुछ जगहों और लोगों से चुपचाप दुर खिसक लेना अच्छा होता है। नहीं तो आप अपना अच्छा कुछ दे पाएं या न, ऐसी छोटी-छोटी, मगर खोटी बकबक जरूर आपको अपने जाले में लेने लगती हैं।    

वहाँ के खेलों का जिक्र शायद मैं पहले ही कर चुकी, किसी पोस्ट में। नंगी-पुंगी गुड़ियाओं के खेल, पार्लर-पार्लर। बच्चों की असली ज़िंदगी में असर? पढ़ते-पढ़ते भी आइटम्स नंबर वाले ठुमके, चलते-फिरते भी बम पे मारना और भी बहुत कुछ ऐसा ही। बालों पे अलग-अलग तरह की चोटियाँ बनाने के प्रयोग। और भी ऐसा ही बहुत कुछ। सोचने की बात है की बच्चे वहाँ पढ़ते क्या होंगे? शायद यही की tution से KVS की नौकरी पाने का रस्ता क्या है ? या मैथ्स में कोई specific position कैसे आएगी? या शायद, ऐसे माहौल में बच्चों के सपने होंगे Dance Reality Show में पार्टिसिपेट करना, वो भी हद दर्जे के बेहुदा गानो और एक्शन्स के साथ? फिर मन में कहीं ये ख्याल भी आता है, की आप कुछ ज्यादा नहीं सोच रहे? 

मगर शायद ये सब समझना भी जरूरी है, इन जालों- जंजालों को समझने के लिए? इस घर और आसपास में हुए कुछ हादसों को समझने के लिए? गवाँरपठे, इतनी छोटी-छोटी चीज़ों को कहाँ समझ पाएंगे? वो तो इसके अगले पायदान को भी नहीं समझते?

गाली-गलौच, मारपीट! ये इसके आगे के खेल हैं। कुछ बच्चों के ऐसे माहौल में बात-बात में डायलाग ही इस तरह के होते हैं, "छीन ले, झपट ले, मार दे, पीट दे, फिर भी ना मिले तो रगड़ दे" चकराइये मत! और क्या सिखाएगा ऐसा माहौल? 

ये कोई मनघडंत कहानी नहीं है, हकीकत बता रही हूँ। आँखों देखी, कानो सुनी, अपनी सामने कही हुयी या हुई। पीछे शायद किसी पोस्ट में बच्चोँ के मार-पिटाई के खेल भी बताये होंगे? कहाँ से आता है, ये सब? सीधी-सी बात, आसपास के ही वातावरण से। यही वातावरण, यहाँ पे बहुत-सी ज़िंदगियाँ खा जाता है -- वक़त से पहले। खासकर, औरतों की और कमजोर तबकों की। बहुत से ऐसे लोगों की ज़िंदगियाँ, यहाँ इन्हीं वजहों से बेहाल हैं। खासकर, औरतों की। ये वजहें, ना सिर्फ घर का माहौल बिगाड़ती हैं, बल्कि अलग-अलग तरह की बीमारियाँ भी लाती हैं। और अस्पताल भी पहुंचाती है। यही कारण, बहुत सी मौतों के ज़िम्मेदार भी हैं। बहुत मुश्किल नहीं है, शायद इस ताने-बाने को समझना? खासकर, जब आपको उस जगह रहने का मौका मिले। और आप खुद उन सबका शिकार होने लग जाएँ। अब ऐसी पार्टियाँ, ऐसे माहौल में आग में घी का काम करती हैं। उन्हें बार-बार कहने के बावजूद, की मेरे घर से दूर रहो, या इस बच्चे से दूर रहो, भद्दे, बेहूदा, बेशर्मों की तरह, और ज्यादा घुसती जाती हैं। कौन घुसा रहा है उन्हें? ये जानना शायद ज्यादा अहम् है? और क्यों? ये शायद, उससे भी ज्यादा अहम् है? क्या ऐसे इंसानों के हवाले किसी बच्चे को किया जा सकता है? वो फिर चाहे कोई भी क्यों ना हो। 

अब कल की ही तो बात है। क्या हुआ है? कुछ नहीं। यहाँ पे ये सब छोटी-मोटी बातें है। ऐसी शुरुआत के बाद, इस समानान्तर केस की घड़ाई का अगला स्टेप क्या है? ऐसा ही कुछ हादसा, जो पीछे हुआ है? आग लगाने वाले वहां क्या कारण थे? या कौन लोग थे? अब कौन हैं? जब कहीं मार-पिटाई हो रही हो, तो सिर्फ ये सुनकर पीछे हटा जा सकता है, की ये हमारा घर का मामला है? या ऐसे मामले पुलिस के मामले होते हैं? और उन्हें जितना जल्दी रोका जाए, उतना ही बेहतर होता है? शायद कोई बड़े हादसे बचाये जा सकें?

और शायद उससे भी ज्यादा अहम् है, ऐसे लोगों से संवाद। ऐसे माहौल में बदलाव की कोशिश। क्युंकि, यहाँ तो ये यूँ लगता है, घर-घर की कहानी है। और उसपे भद्दी, बेहुदा, गवाँर जुबाने -- "मर्द-मानस ते मार-ए दिया करें! " शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, "लड़कों से छोटी-मोटी गलती हो जाती हैं?" और कौन-कौन भुग्गते हैं, उन गलतियों के परिणाम? पुरा घर, आसपड़ोस, मोहल्ला और सारा समाज? नहीं?                         

जब ऑफिस में मार-पिटाई हो और सुनने को मिले, की ये तो Domestic Violence है
तो अगर घर पे या उस घर के आसपास ऐसा कुछ हो, तो उसे, ये तो office Violence का नाम दिया जा सकता है? क्यों नहीं? 
Universities समाज को राह दिखाती हैं, आगे लेके जाती हैं। दिखा तो रही हैं? आगे लेके तो जा रही हैं? ये वही तो समाज है, जिसको भद्र, पढ़ा-लिखा समाज बना रहा है? आगे का रास्ता दिखा रहा है? कहीं खुनी-रस्ता तो नहीं दिखा रहे, ये शिक्षा के महान पायदान? इनमें यूनिवर्सिटीज ही नहीं, बल्कि उस पढ़े लिखे समाज का हर तबका शामिल है। वो फिर चाहे डॉक्टर हों, वैज्ञानिक हों, या कोई और इंटेलिजेंस विंग्स -- फ़ौज या सिविल।    
ये शायद उन लोगों के लिए खासकर है, जिन्हें लगता है की गलत हो रहा है। या बहुत कुछ हुआ है। वो, जो नहीं होना चाहिए था। वो जिसे बचाया जा सकता था, पर नहीं बचा सके -- शायद बहुत सी ज़िंदगियाँ। बहुत से घर, जो उजड़ गए या उजाड़ दिए गए, इन्ही राजनितिक ताने-बानो ने। कुछ पढ़े-लिखे दबुओं की ख़ामोशी की वजहों से, या ऐसे तानेबानों के साथ होने की वजहों से? वो जो ज़ुबाँ से जैसे कहर उड़ेलते हों, और इशारों में हाथ जोड़ते हों? जिन्हें पता तो सब है। क्या हुआ है, क्यों हुआ है। किसके लिए या कैसे हुआ है। किसके इशारों पे या चालों पे हुआ है। तो ऐसे लोगों को समाधान नहीं मालुम क्या?     

Monday, May 22, 2023

धंधा है, पर गन्दा है ये!

 धंधा है, पर गन्दा है ये!

अचानक से फिर वही? हालाँकि, अचानक जैसा कुछ भी नहीं। खबर आ रही थी इधर-उधर से, की फिर-से ड्रामा शुरू। कुछ-कुछ बच्चे ने भी गाना शुरू कर दिया था की किससे पढोगे तो कौन सी पोजीशन आएगी। खासकर कोई खास पेपर। "Special Maths Tutor", Special Dates Exams And again same shooter/s? ऐसे गंदे धंधे में बच्चों को भी नहीं बक्सा जाता? 

सुना है, WhatsApp University, ऐसे-ऐसे रोबोट बनाने में (Robotication), काफी उपयोगी है, खासकर राजनितिक पार्टियों के लिए। बच्चों का क्या है, उन्हें थोड़े ही कुछ समझ आना है। पेलते रहो, इधर-उधर, जैसे भी।      

ये अचानक-सी दिखने वाली नौटंकियाँ, धीरे-धीरे समझ आने लगती हैं। आम इंसान आज भी बेखबर है, की वो कैसे, ऐसे-ऐसे समान्तर केसों की घड़ाई में प्रयोग (?), ना! दुरूपयोग हो रहा है। दुरूपयोग मतलब फसाया जा रहा है। उनकी इन नौटंकियों में कुर्सियों के हेरफेर हैं। सत्ता के साधन है। और तुम्हारे बच्चों की, तुम्हारे अपनों की और खुद तुम्हारी अपनी ज़िंदगियाँ बर्बाद। ज्यादातर केसों में ऐसा ही होता प्रतीत हो रहा है। अब अपने ही आसपास के किसी 24 के केस को ही लो। ऐसे-ऐसे हादसे समय रहते टाले जा सकते हैं, खासकर जिन्हे उनकी भनक हो, उन द्वारा। मगर करवाने वालों को वो चाहियें, खासकर राजनितीक पार्टियों को। और आम-आदमी को या तो खबर ही नहीं होती या तरीके नहीं पता होते। 

शायद वैसे ही जैसे कई हादसे कोरोना दौर में या उसके बाद कुछ हद तक भनक के बावजुद हुए हैं। मगर वक़्त रहते रोके नहीं जा सके। जितना ज्यादा राजनितीक पार्टियों के ताने-बानो से दूर रहोगे और जितना ज़्यादा खुद को या अपने आसपास को आगे बढ़ाने में वयस्त रहोगे। उतना ही ऐसे हादसों से बचने के chance ज्यादा रहेंगे। 

Break-ing News Business Model?

 WhatsApp Dhandha?

Don't know, if its Whats App or What's up? But there is something strange about it. Highly repulsive. What kinda repulsion is that? 

What's App University tag?

Kinda break-ing news business model? 

Or maybe everything has its own pros and cons. Like most instant messaging apps?

Or maybe, its name itself sounds offensive? Rather than App, it sounds like up? Upscaling model? What kinda upscaling? 

Hype model? What kinda hype? 

Somewhat like Corona, Covid-19 pandemic creations? "Nation" has "invested", "in-you" heavily? Beyond understanding? 

Abuse of instant power media to spread false, lies or more importantly, programming human beings certain way? Making them such kinda robots who work like "अपने पैर पे खुद कुल्हाड़ी मारना"? Control freaks zones. Beware! 

Sunday, May 21, 2023

मानव रोबोट बनाना (Human Robotication)

2024, क्या खास है इसमें?  
अगर आपको लग रहा है, की किसी तरह के सामांतर केस की घड़ाई, आपके अपने आसपास चल रही है, या खुद आप पर चल रही है, तो वो कैसी-कैसी हो सकती है? आप तो अनजान हैं? 
ज्यादातर सामांतर केसों में, नाम या तो असली केस से मिलते-जुलते हैं या छुपे हुए कोड होते हैं। जो-जो हुआ है, उसके या तो तकरीबन आसपास दिखाते हैं या बढ़ा-चढ़ाकर, इधर-उधर घुमाकर। जिनपर ये होते हैं, उनकी ज़िंदगी पर असर कैसा रहेगा? ये काफी हद तक, उन नामों ने क्या किया है, या उनके साथ क्या हुआ है, उसके आसपास घुमते हैं। मगर जो हो रहा होता है, वो होने वालों को कम समझ आता है, अगर उनकी ऐसे cases की जानकारी कम हो। क्यूँकि, उन्हें सबकुछ थोड़े ही बताया जाता है। 

जो कुछ करवाया जाता है, उसमें सिर्फ और सिर्फ आपका फायदा दिखाया जाता है, नुक्सान नहीं। नुक्सान बता दिया, तो आप करेंगे नहीं। या फिर आप जल्दी फुलने वालों में हैं, तो गुब्बारे की तरह हवा भरके उड़ाया जाता है। सोचके कम, भडक के जल्दी बोलते हैं?  ऐसे ही सोच के कम, भड़काने पे ज़्यादा जल्दी काम करते हैं। तो चालाक  इंसानों का तो काम जल्दी हो गया, समझो।   

2023 या 2024 इन नम्बरों के आसपास कोई केस है, आपकी जानकारी में? शायद कई हैं? 
24? 23? 20? आसपास जानने की कोशिश कीजिये, उन केसों को और उनसे जुडी  ज़िन्दगियों को। शायद थोड़ा बहुत समझ आ जाये। केस अलग हैं, इंसान अलग हैं। जगह अलग हैं। मगर फिर भी आसपास घड़ाई (Parallel Case Creations) की, बहुत-सी कोशिशें हैं। इसीलिए बहुत कुछ दिखता भी एक जैसा-सा ही है। हालाँकि, थोड़ा-सा ही झाँकने पे, जबरदस्ती घड़ाई के ज़्यादातर रास्ते और तरीके समझ आ जाएँगे। 

मगर क्या हो, अगर आपने जो सुना या देखा है, वो इधर-उधर से ही सुना या देखा है। हकीकत में आप ना उन लोगों को और ना उन केसों को जानते? और ना ही कभी हकीकत जानने की कोशिश की। तो आसपास के केसों की जानकारी या समझ भी उसी अनुसार होगी।  

Saturday, May 20, 2023

घर, गावँ, शहर, राज्य या देश में ही संसार या वसुधैव कुटुम्बकम ?

घर में संसार, गावँ में ही संसार, आपके शहर में ही संसार, राज्य या देश में ही संसार या वसुधैव कुटुम्बकम? 

क्या संभव है की आपके घर में या आसपास में ही हिंदुस्तान, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, इराक, दुबई, इजराइल, फिलिस्तीन, इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीडन, नॉर्वे, अमेरिका, कनाडा, अफ्रीका आदि देशों का वास हो?

संसार वही है, जहाँ आप रहते हैं? जितना आप सोच सकते हैं? या जितनी जगह आप आ, जा सकते हैं और घुम या रह सकते हैं? शायद दोनों ही सच है?

स्वर्ग और नर्क का फर्क काफी हद तक आपकी सोच पर है और काफी हद तक आपके आसपास के लोगों पर। क्या करते हैं वो आसपास वाले? और आप क्या करना चाहते हैं? क्या जीवन शैली (lifestyle) है उनकी? और आपकी? क्या सपने हैं आपके और उनके? कितना सहयोग या दखल है उनका आपकी जिंदगी में? इनमें जितना ज्यादा समानता या अंतर होगा, आपका जीवन उतना ही स्वर्ग या नरक होगा। घर, संसार भी यही है, और वसुधैव कुटुम्भकम भी।   

अगर आपकी सोच, आपके सपने, अपने आसपास से मेल नहीं खाते तो पहले तो ऐसी जगह ढूंढिए, जहाँ वो तालमेल बन सके। या अपने आसपास के वातावरण को जितना हो सके ऐसे बनाइए की वो तालमेल बन सके।

आपकी ज़िंदगी कैसी है, ये काफी हद तक आपके वातावरण पर निर्भर करता है। जैसे किसी पौधे की ज़िंदगी उसका वातावरण तय करता है। उसे कितना, किस मात्रा में खाद-पानी, धूप-छाँव चाहिए और कितना मिल रहा है। हाँ! यहाँ पौधों और इंसानों में एक खास फर्क है, वो है दिमाग का। खासकर, वयस्क इंसानों के लिए। उसका प्रयोग कर आप विपरीत वातावरण में भी काफी कुछ कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। मगर ये तय आपको करना होगा, की उसके लिए क्या क़ीमत देने को आप तैयार हो सकते हैं ? और क्या नहीं दे सकते ?   

विपरीत वातावरण और तनाव और उसके प्रभाव, एक दुसरे के होने का सिद्ध करना जैसे। ये इंसानों में ही नहीं, पेड़ पौधों और जानवरों में भी होता है। इसका थोड़ा बहुत होना, शायद जायज़ भी है और आगे बढ़ने के लिए जरूरी भी। मगर ज्यादा का मतलब, बीमारियों का घर। तनाव के होने के कारणों को रोकना मतलब, बीमारियों को रोकना। जानते हैं इन्हें भी किसी और पोस्ट में। 

Friday, May 12, 2023

अन्धविश्वास, अज्ञानता, अंधभक्ति और --

अन्धविश्वास, अज्ञानता, अंधभक्ति और उसपे तड़का लगा हो राजनीति का, लोभ का, लालच का? 

Automation, Semiautomation and Enforced or the other way?

Can micromanagement create all this and makes humans robots to exploit different ways?

When we talk about superstition then generally keep illeterate people in mind. Though at times, it can be the other way.

अन्धविश्वास अज्ञानता है और अज्ञानता अन्धविश्वास। अंधभक्ति भी इन्हीं का मिश्रण है। 

सुना होगा कहीं, "माता धोकन जावां सां, माता निकल री सै" और आपने सोचा होगा शायद, की आज के वक़्त भी लोग इन सब में विश्वास रखते हैं?

या "पीलिया निकल आया, ना पीला देखना, ना पहनना, ना खाना"। और शायद आपने सोचा होगा, ये कौन सी दुनिया में आ गए?

और भी बहुत कुछ ऐसा ही। 

Then there is another world, comparatively new knowledge. The way they mix things and create complexities for the exploitation of common people, are some of cruelest ways. They are neither illiterate nor lilbit educated. Who are these people? What are they doing?

Docs, Scientists, Profs and so many other field experts, especially ones who are brains of different parties. They process things from higher level and different parties people micromanage them up to that last level.

2016, H#16, Type-3, कोई आम (दुशहैरी) के पेड़ पे ढेर सारा कच्चा सुत का धागा लपेट गया, पीछे वाले लॉन में। और आप सोच रहे हैं, कैसे-कैसे गँवारपट्ठे हैं यूनिवर्सिटी में भी! उसके पीछे के जुर्म की कहानी थोड़ा लेट समझ आयी।  

माता धोकन जावां सां, माता निकल री सै और पढ़े लिखे भेड़ियों के जाले बच्चों तक को नहीं बख्सते। 

पीलिया निकल आया, ना पीला देखना, ना पहनना, ना खाना ?

ऐसे-ऐसे कितने ही अंधविश्वासों के पीछे छुपे जुर्म की कहानियों (Scientific Way of Exploitation by abusing knowledge and exploiting illiterate, semi illiterate people via faith or religion) को कैसे समझाया जाए? शायद ये सब ज़्यादा जरूरी है।  

कम पढ़े-लिखे लोगों को अपने जाल में फसाना एक बात है। मगर पढ़े-लिखे लोगों का भी पत्ता काट देना, वो भी जब, जब ये सब करने वाले पढ़े-लिखे (भेड़िये)--?, कितने ही लोगों के Surveillance Radar पर हों? 

कुरकुरमुत्ते की तरह उगे हुए हॉस्पिटल्स। जहाँ हर बीमारी बढ़ाई जा सकती है, बनाई जा सकती है -- सिर्फ़ और सिर्फ़ कुछ पैसों के लिए। ये कहानियाँ हैं, कैंसर से लेकर, लकवे तक के अनोखे इज्जादों की। मलेरिआ, डेंगू, BP, Heart Attacks से लेकर, हर उस बीमारी तक, जो आप सोच, समझ और जान सकते हैं, या जानते हैं। 

मगर हॉस्पिटल्स तो आप बाद में जाते हैं। उससे पहले भी बहुत कुछ है, जो आपको वहाँ तक पहुंचाता है। क्या है वो सब? कैसे समझा और बचा जा सकता है, इन सबसे? और कैसे बचाया जा सकता है, आम आदमी को, जिसकी समझ में अन्धविश्वास ज़्यादा फलते-फुलते हैं?     

इसके लिए इनके जानकारों को, वो फिर चाहे डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, प्रोफेसर्स या संचार माध्यम से जुड़े लोगों को अपने आसपास के ऐसे इलाकों में ज़्यादा संवाद और प्रचार की जरूरत है। खासकर उनको, जिन्हें पैसे से ज़्यादा अपने प्रोफेशन से लगाव है। 

Thursday, May 4, 2023

बीमार आदमी या समाज बीमार?

बीमार आदमी या बीमार समाज ?

आदमखोरों की जमात? 

जो खाती है आदमी को हर स्तर पर, 

हर पायदान पर, पग-पग पर। 

हवा साफ़ है ना पानी साफ़ है 

खान-पान में जहर की मात्रा 

कहीं है थोड़ी कम, तो कहीं ज्यादा है 

कहीं pesticides की मार, तो कहीं 

कम्पनियों से निकले जहरीले केमिकल्स 


ये सब भी जैसे कम कहाँ है? 

Pain inducers और Medicals emergencies 

राजनीति के भद्दे जुआरियों 

और शिकारियों के कारनामे 

यहाँ-वहाँ, कुकरमुत्ते की तरह उगे 

Diagnostic Centers

हॉस्पिटलों के और डॉक्टरों के 

राजनीति के और टुच्चे-पुचे नेताओं के 

मिलीभगत के कारनामे ! 

पुछ रहे हों जैसे --

बीमार कौन है?

आदमी बीमार है, या ये समाज ही है बीमार?


हर स्तर पर ज़िंदगियों से खेलता 

आदमी के खोल में छिपा शैतान 

चंद पैसों के लिए?

कुर्सियों के लिए?

सत्ता की रस्साकशी के लिए?  

आदमी के खोल में छिपे,

कितने ही आदमखोर! 

बीमार कौन है?

आदमी बीमार है या ये समाज ही है बीमार?

Naturally, whole society is not bad, that's why we are still alive. In such circumstances rather than feeling frustrated with such people, those good people need to do a bit more I guess.

Monday, May 1, 2023

गाँव-शहर, कल और आज

बदला हुआ तो बहुत कुछ है, इन गॉंवों में भी। हालाँकि गॉंवों के हालात आज भी उतने बेहतर नहीं है, जितने इतने सालों बाद हो जाने चाहियें। 

जो बदला हुआ है वो अच्छा भी है और बुरा भी। 

सोच। पढ़ाई-लिखाई का असर? नयी पीढ़ी की सोच, पहले की बजाय अब कम लड़का-लड़की में फर्क करती है। जो सुनने को मिली, इधर या उधर। "लड़कियाँ नौकरी भी करें। घर का काम भी करें। और इनका रौब भी सहें।" अब इस, इनमें बहुत कुछ आता है। "आगे बढ़ना है तो कमाना तो खुद ही होगा। भिखारी रहोगे तो औकात भी भिखारी जैसी ही रहेगी।" शायद, ऐसा ही कुछ, बहुत से झगड़ों और divorce की वजह भी हैं। 

सफाई, ज्यादातर जगह पहले से ज्यादा है। शहरों की पॉश कॉलोनियों को छोड़, गाँवों की ऐसी जगहें, शायद शहरों से बेहतर हैं। बाकी गाँव, गाँव ही है। इसीलिए शायद बहुतों को पसंद नहीं आते। सुविधाएँ, शहरों से कम ही होती हैं। हाँ! जिन्हें हरियाली पसंद हो, भीड़ और भागम-भाग की ज़िंदगी पसंद ना हो, उनके लिए शायद अच्छा है।           

जो बदला हुआ है, मगर अच्छे के लिए नहीं। कूड़ा-कचरा समाधान ही नहीं है। ऐसा नहीं है की पहले होता था। मगर कुछ जगह इतना बुरा हाल नहीं होता था, जितना अब दिखने को मिलता है। पीने का दुषित और संक्रमित पानी। पहले सप्लाई वाला पानी इतना बुरा नहीं होता था, जो हालात अब हैं। इतना कम भी नहीं आता था। जहाँ का जमीन का पानी मीठा है, वहाँ तो सही। मगर, जहाँ कड़वा पानी (Hard Water) है, वहाँ बेकाम के काम बढ़ जाते हैं। जुआ और ड्रग्स, पहले सुनने में ही नहीं आते थे। अब कुछ ऐसे अड्डे हैं। सुना है, जहाँ पुलिस भी आती है (खेलने) और राजनीतिक पार्टियों के दाँव भी लगते हैं! बाकी ज्यादातर बेरोजगारों और कम पढ़े-लिखों की फौज होती है।  शराब पहले भी सुनने-दिखने को मिलती थी। अब भी है। ये सब राजनीति के बेहुदा रूप हैं और उसी के साये में पनपते हैं।

प्राइवेट स्कूलों की बहार है। मतलब सरकारी स्कूल खटारा हैं। सरकारी स्कूल पहले भी खटारा ही होते थे। मगर इतने प्राइवेट स्कूल नहीं थे। 

ऐसे राज्यों की सरकारें फिर कर क्या रही हैं? वैसे, जो सरकार अच्छी शिक्षा नहीं दे सकती और पीने का साफ़ पानी तक नहीं दे सकती। वो सरकार शायद खुद अनपढ़ और गँवार है। वो कुछ भी नहीं दे सकती।   

Real Life Examples of Automation, Semi-automation and Enforced

रोबोट की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हो? भेजा नहीं है क्या?
रोबोट, जो किसी के कहने पे, किसी के खिलाफ वही कर दे, जो उसे करने को बोला जाये, चाहे वो तोड़फोड़ ही क्यों ना हो। वो किसी का कोई सामान भी हो सकता है और इंसान भी। 

आपका लैपटॉप  खराब है, आप गए लैपटॉप की दुकान ठीक करवाने। 
इस पार्टी के गुंडों को पता चला और फोन या ज्यादातर केसों में आदमी पहुँच गए बताने की उसका क्या करना है। 
समस्या क्या थी?
थी ही नहीं। ऑनलाइन बनाई गयी थी, किसी और के द्वारा। विण्डो काम नहीं कर रही थी। 
कंप्यूटर गली कार्नर वाली शॉप ने साथ में कमल वाली दुकान पे भेझा। कमल ने क्या किया?
Dell स्माल लैपटॉप खोला, मना करने के बावज़ूद और जो उसे किसी द्वारा बताया गया था, वो काम कर दिया। 
ASUS  स्माल सफ़ेद लैपटॉप विण्डो तो डाल दी मगर cursor ड्राइव्स गुल कर दी। 
पैसे 1100 !
मस्त। आप चुपचाप देके चले आये। घर आके देखा तो दोनों ही लैपटॉप काम नहीं कर रहे। बहुत ही छोटी-सी समस्या थी, उन्होंने उसे थोड़ी और बड़ी कर दिया। आपका वक़्त और थोड़ा पैसा भी बर्बाद हुआ। काम उल्टा, धक्के खाये, वो अलग। 

एक दो लैपटॉप और हैं इसीलिए काम चल रहा है। 
बच्चे ने जब अपना (अपनी माँ का) लैपटॉप ठीक करवाने को बोला तो आप एक दुसरी लैपटॉप की दुकान पहुँच गए। Computer World, Computer वाली गली। क्युंकि पहले भी वहां से कई लैपटॉप, प्रिंटर, PC वैगरह खरीदे हुए थे।  
एक में Window डालनी थी, जो वहीं से खरीदा था, AVITA । नाम भी पहली बार सुना था। केसों की Books निकालते-निकालते, जो भी छह-सात, छोटे-मोटे लैपटॉप थे, एक-एक कर सब काम करना बंद कर चुके थे। ऐसे में बच्चे से ले लिया की कुछ दिन बाद लौटा दूंगी, जब मेरा ठीक हो जाएगा। भाभी से भी ले चुके और एक cousin से भी। मगर इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। जब तक या तो खुद इन छोटी-मोटी समस्याओं को हल करना ना सीखें या ऐसा कोई बंदा या दुकान का अता-पता न हो। 

खैर, इन छह-सात, छोटे-मोटे लैपटॉप में से थोड़ा बहुत एक-दो चल जाता है, काम चलाऊ। 
इन Computer World वालों ने क्या किया? यहाँ तो आप बहुत पुराने ग्राहक थे? शायद उतने ही जितनी ये शॉप पुरानी है। उसे window install के 600 रूपए देकर आप घर आ गए। AVITA की window तो ठीक थी मगर ASUS White? समस्या यूँ की यूँ। ऊपर से back side के सारे पेंच गुल। मतलब लैपटॉप खोला भी गया। क्यों?

बच्चे को आपने AVITA देने की कोशिश की, जब तक उसका ठीक ना हो। मगर उसे तो वही चाहिए। गुस्सा आपको भी आ रहा है। कितने बेहुदा लोग हैं। ASUS White का Charger भी वहीं रह गया था। 
कुछ दिन बाद आप दुबारा पहुँचते है। और वो खुद ही बताने लगते हैं की पीछे के पेंच भी डालने भुल गए। Bios ठीक करना था, इसलिए खोला। 
Bios, सुनके कुछ याद आया। बस इतनी सी समस्या और तुमने इतने सालों बाद भी नहीं सीखी? ये तो सालों पहले किसी प्रोफेसर की वाल पे पढ़ी थी। तब लैपटॉप Dell था। 

खैर। Computer World वाला अपने worker की तारीफ़ करने लगा। अनुष (या अनुश), डिग्री नहीं है कोई इसके पास, थोड़ी-सी इसे समस्या भी है (शायद बोलने में हकलाता है), मगर काम बड़े सही करता है। 
हाँ। बहुत सही करता है। बग़ैर पुछे लैपटॉप खोलता है। पेंच डालने ही भूल जाता है। थोड़ा भुलक्ड़ है शायद। और इसकी डाली हुयी window यहाँ तो काम कर रही थी शायद, मगर घर जाते ही काम ही नहीं करती। इतनी छोटी सी समस्या और वहीं की वहीं!
 
अरे मैडम उसने window नहीं डाली, सिर्फ अपडेट किया था। 
और शायद किसी ने फ्रेश window डालने के लिए बोला था, ना की अपडेट के लिए। 
वो अपडेट से ही ड्राइवर डल जाती ना, इसलिए। 
और ये खोला क्यों ? वो भी बिना पुछे?
Bios में समस्या थी ना। तो उसके लिए तो खोलना पड़ेगा। (?)
Bios में समस्या? खैर। आप फिरसे लैपटॉप window चैक कर, लैपटॉप लेकर घर वापस आ गए। और समस्या, वहीं की वहीं। अरे हाँ! उसने दस में से आठ पेंच जरूर वापस डाल दिए थे। दो क्यों छोड़ दिए? मर्जी, खेल करने और करवाने वालों की। 
  
गुस्से में आप फिरसे उसी दुकान पे पहुँचते हैं। और पुछते हैं -- ये क्या किया हुआ है? Cursor अब भी काम नहीं कर रहा। मगर खोलने पे ASUS की जगह hp दिखा रहा है? अनुश, ये सब करता है? और Computer World वाले दुकानदार साहब हाँकने लगते हैं। फलाँ-फलाँ, PGI head उसका जानकार है। एक बार उसका स्क्रीन ख़राब हो गया था दिल्ली में, तो भी हमने ही ठीक किया था, वगैरह-वगैरह। 

आप भी उसे बताने की कोशिश करते हैं, की आप लाइव हैं। और दुनिया में कौन-कौन आपको और इस सारे प्रकरण को सुन रहा है, देख रहा है और रिकॉर्ड कर रहा है, और कहाँ-कहाँ लिख रहा है । शायद, आप जैसों को इसका अंदाजा ही नहीं है।   
Computer वाले, AC वाले, कार वाले, फ़ोन वाले और भी ना जाने कौन-कौन सी सर्विसेज वाले कैसे-कैसे खेलते हैं, अपने ग्राहकों के साथ? वो भी ये सोचकर, की तुम्हे ना कोई देख रहा, ना कोई सुन रहा। जो करना है, करो। जिसके साथ करना है, करो। सुनने-देखने वाला कोई नहीं है? मगर इस भर्म में रहकर ना करो।  

खैर, आप उसे बोलते हैं चलो एक HP लैपटॉप दिखा दो। ASUS में HP लिखने से वो HP नहीं होगा। अच्छा है, मैं HP ही ले लूँ। 
अब उसे मालुम है, मैडम तो खराब होते ही नया ले लेते हैं। क्युंकि खुद उसकी दुकान पे ऐसा कई बार हुआ है। उसने एक नया बड़ा HP दिखाया। मैंने उससे पैसे और configrations वग़ैरह पूछी और नीचे पटक दिया। वो काँपता हुआ, ये-वो धमकी देने लगा। गुस्सा तो मुझे भी हद से ज्यादा आया हुआ था। गुस्से में ही मैंने उसे बोला, पुलिस को फोन करो और बुलाओ। 
और वो कांपता हुआ, गुस्से में फिर से बडबाने लगा। पागल हैं आप, पागल। ऐसे ही काम ऑफिस में किये हैं आपने, वगैरह-वगैरह। 

मैं अपना cute सा, छोटा-सा White-ASUS उठाकर वहाँ से आ गयी। लेकिन बहुत से प्रश्न दिमाग में लिए। आप किसी के साथ ऐसा व्यवहार इसीलिए करते हैं, जब आपको लगता है, सामने वाला कमजोर है ?
उसके वश में कुछ नहीं है?
आपके पास गुंडों का या बड़ी पार्टियों का समर्थन है?
आपको कोई देख या सुन नहीं रहा? जो करना है करो और गुंडों की तरह चुपचाप बच निकलो? आपका कुछ नहीं होने वाला?
हैरानी की बात ये की ऐसे-ऐसे लोग भगवान को भी मानते हैं? अपनी दुकानों में बैठकर, वो जो भगवानों की आरती करते हैं, पुजा-पाठ करते हैं, वो क्या पाखंड है? अपनी समझ से परे हैं, ऐसे लोग और उनके कारनामे। जैसा इन्होने लैपटॉप के साथ किया, ऐसे ही बहुत से और इलेक्ट्रॉनिक सामान के या दूसरी वस्तुओं के साथ भी होता है। यहाँ तक तो चलो मामला निर्जीवों का है। क्या हो अगर ऐसा ही जीवों, खासकर इंसानों के साथ भी होने लगे? या हो रहा हो, आपकी जानकारी के बगैर ? हम कैसे समाज का हिस्सा हैं? 

ऐसे-ऐसे केसों को आप किस वर्ग (Category) में रखेंगे ? Real Life Examples of Automation, Semi-automation or Enforced? 


बीमार आदमी या समाज बीमार?