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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Sunday, February 25, 2024

आम लोगों की माइग्रेशन की कहानियाँ (Social Tales of Social Engineering) 26

अब वि राज मान तो होना चाहिए, सत्ता के गलियारों के हिसाब से, आम आदमी की ज़िंदगियों में भी? AP   R   IL (2024?) सही महीना है उसके लिए? और तारीख़ क्या होंगी? 

पूजा का प्रसाद, ईधर से उधर होने के लिए MA   R    CH (2024?) सही रहेगा? उनकी तारीख़ क्या होंगी? खास तरह की पूजा-अर्चना की विधि समझने के लिए कौन-कौन से प्रोजेक्ट्स को पढ़ना चाहिए? सिविल और डिफ़ेन्स की विधियाँ अलग हैं? और इंजीनियरिंग और डॉक्टर्स की अलग? ऐसे ही कुछ प्रोजेक्ट्स समझने की कोशिश है आजकल।   

एक विराजमान यहाँ होगा, तभी तो दूसरा कहीं और होगा? वैसे ये जो अब वापस अपने घर होगा, ये वहाँ से निकाला कौन-सी पार्टी वालों ने था? एक रितु यहाँ से खाएँगे, तभी तो एक पूजा (नर्स) के जाने की भरपाई कहीं और होगी? और दूसरी पूजा (टीचर) कहीं और खिसकेगी? ये कौन-सी और कैसी सेनाओं के इधर से उधर आम लोगों की (By Invisible Enforcements) माइग्रेशन की कहानियाँ हैं? सिर्फ माइग्रेशन भी कहाँ? उनके परिणाम? या कहना चाहिए खासकर दुष्परिणाम? रिश्ते-नातों की दूरियाँ, कोर्ट्स में केसों की कहानियाँ, लोगों की आत्महत्याओं या खात्में की कहानियाँ, बच्चों के अनाथ होने की कहानियाँ, स्कूल स्तर पे ही बोर्डिंग स्कूलों के हवाले होने की कहानियाँ, भावनात्मक स्तर पर खोखले या असुरक्षित इंसानो की कहानियाँ? अपनों के इधर या उधर छूट जाने की कहानियाँ? Enforced माओं या बापों के आने या जाने की कहानियाँ? घरों के उजड़ने या बसने की कहानियाँ? आर्थिक या ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे एंगल तो फिर किसी रुंगा या प्रसाद जैसे ही होंगे, ऐसे-ऐसे हादसों में? Designed Tragedies?          

भाभी के जाने के बाद, और पड़ोस में, घर-कुनबे में ही, किसी के यहाँ दूसरी बहु आने पर, जब गुड़िया ने बोला, बुआ आपको पता है, उनके यहाँ नई बहु आई है। वो मेरी मम्मी की जगह आई है। पुरानी कहाँ गई? और उसकी बेटी? मेरी उनसे बात करवा दो। मुझे लगा, बच्चे को भावनात्मक बेवकूफ़ बनाया जा रहा है। सच भी, जाने वाले वापस कहाँ आते हैं? मगर, जुए के इन अजीबोगरीब खेलों में, ड्रामों में आते-जाते रहते हैं, शायद। जब जुआ ही हो गया, तो क्या बहु-बेटियों का फर्क और क्या भाई और बटेऊओं का? सब का गोबर-गणेश जैसे? किसी को भी, कुछ भी बना दो। किसी का किरदार थमा दो। तमाशा ही तो है। वही चल रहा है। इधर भी, उधर भी। उधर भी और उधर भी। आप कहाँ रह रहे हैं, इससे बहुत फर्क पड़ता है। ये सिर्फ आपके घर का कैसा माहौल है की बात नहीं है। बल्की, कभी-कभी शायद अड़ोस-पड़ोस, मौहल्ला, गाँव या शहर, ये देश या वो देश भी, ज़िंदगी को कितनी ही तरह से बनाता या बिगाड़ता है। इसलिए आपका पता आपकी बहुत बड़ी पहचान है, ID है। पहले ये सब ऐसे समझ नहीं आता था। यूँ लगता था की क्या फर्क पड़ता है? पड़ता है, एक ही मौहल्ले में भी एक घर से दूसरे घर के पते पर ही कोई सिस्टम ही बदल जाता है। एक गली से दूसरी गली पर शायद बहुत कुछ बदल जाता है।         

बचा जा सकता है क्या इन सबसे? अपनों से ज्यादा बात कर, बाहर वालों की बजाय। क्यूँकि, जहाँ जितना ज्यादा उल्टा-पुल्टा है, वहाँ लोगबाग उतने ही ज्यादा दूसरों के सुने, कहे गए किस्से-कहानियों (narratives, perception) के हवाले हैं। वो इतना कुछ सच मान सकते हैं, जैसे वो तो live-in रह रही थी। किसी और की या अपने किसी की कहानी या ज़िंदगी की हकीकत बता, इशारा किसी और की तरफ करने वाले घर-घुसडु। जिन बेचारों को ये तक खबर ना हो, की वो उस वक़्त टाँग तुड़ाये पड़ी थी। और कोई बच्चा उसके पास रह रहा था। जो इतना छोटा था की लक्ष्मणरेखा से घेरे बना, कीड़े-मकोड़ों को मारने जैसे खेल खेलता था। उसके बड़े भाई-बहन डिपार्टमेंट तक छोड़ने और लेने जाते थे। और उनकी माँ (मेरी cousin), नौकरी और घर के कामों के बावजूद, मेरे छोटे-मोटे काम निपटा के जाती थी। इसी तरह के कितने ही narratives, perceptions घर के तकरीबन हर इंसान के बारे में सुनने को मिले। भाभी के जाने के बाद जो चला, उससे बेहुदा षडयंत्र तो शायद ही कोई हो। क्यूँकि ना तो जाने वाले को बक्सा जा रहा था, ना जो बचे थे उन्हें। जिन्होंने बच्चे तक को नहीं बक्सा, वो और किसे बकसेंगे? वैसे ये In, Out भी बड़े अजीब हैं। शब्दों के हेरफेर जैसे। एक तरफ Live-in, Live-out जैसे अमेरिकन Resident-in, out type? तो दूसरी तरफ Checked-in, checked-out type? यहाँ पे residence की बजाय airport आ गया लगता है, खास तरह के experimental type? कलाकार ही जानें और कितनी तरह के in और out होते हैं? यहाँ, जहाँ आजकल हूँ,  तो दरवाजा खोल दिया बाहर की तरफ या अंदर की तरफ और लो हो गया in, out । अब ये दरवाजे भी कितनी ही तरह के हो सकते हैं। Offensive, Defensive या Neutral?                                     

बुनाई सामाजिक ताने-बाने की, कितनी सिद्धत से? वो भी औरों की ज़िंदगियों में, घरों में, कुनबों में, मौहल्लों में, रिश्ते नातों में? सबसे बड़ी बात, खुद दूर, बहुत दूर बैठकर। लोगबाग तुमसे कभी मिले नहीं, तुम्हें शायद जानते तक नहीं। आम लोगों को कोई खबर नहीं की ये राजनीतिक पार्टियाँ क्या-क्या और कैसे-कैसे काँड रचती हैं। बड़े लोगों का संसार और हद गिरे हुए दर्जे का कंट्रोल, लोगों की ज़िंदगियों पर। एक ऐसा कंट्रोल, जिनमें उन्हें खबर ही नहीं, की वो कैसे-कैसे और कहाँ-कहाँ, कौन से स्तर तक कंट्रोल हो रहे हैं। और ऐसा करके कंट्रोल करने वालों को क्या मिल रहा है? 

रिश्ते-नातों के हूबहू से झगड़े। जमीन-जायदाद के हूबहू से झगड़े। अंजाम भी हूबहू से ही? हाँ। सिर्फ भेझे से पैदल लोगों के यहाँ। कमजोर तबकों में। क्यूँकि, उनमें और यहाँ खास फर्क है, संसाधनों का, ज्ञान का। जो उन्हें बचा लेता है, बहुत से बुरे प्रभावों से। मगर यहाँ, ना सिर्फ रिश्ते-नातों को ख़त्म कर देता है, बल्की ज़िंदगियाँ ही खा जाता है। अहम, उसके लिए खुद आपको अपनी सेनाओं की तरह प्रयोग करते हैं। मानव रोबॉट बेहतर शब्द है, शायद? या चलती-फिरती गोटियाँ? खुद आपके अपने खिलाफ और आपके अपनों के खिलाफ। दुष्परिणाम, अगली पीढियाँ और ज्यादा भुगत रही हैं, ना सिर्फ भावनात्मक स्तर पे, बल्की बदले माहौल की वजह से।                         

Social Engineering इसी को बोलते हैं? और Social Tales, लोगों की ज़िंदगियों के आसपास ही घुमती हैं? मगर ऐसे की आभासी और हकीकत की दुनियाँ का फर्क ही जैसे खत्म होता लगे। और ये सब घुमा कौन रहा है? Social Media Culture, जिसमें वो सब आता है जो आप देख, सुन या अनुभव कर सकते हैं। 

आप क्या देख, सुन या अनुभव कर रहे हैं?

ये सब इस पर निर्भर करता है की आप कैसे माहौल से घिरे हैं। जिसमें इंसानो के साथ-साथ, वहाँ का हर जीव और निर्जीव शामिल है। जो आपको बहुत कुछ बिना कहे भी कहते हैं। बिना सुनाए भी सुनाते हैं। और अंजान होते हुए भी अहसास कराते हैं। जैसे हवा, पानी, खाना-पीना, पहनावा, रीति रिवाज़, धर्म मजहब, पढ़ाई-लिखाई का होना या ना होना, शिक्षा का स्तर, भाषा-बोलचाल,  आर्थिक स्तिथि, न सिर्फ आपकी खुद की, बल्की आसपास की भी। यही सब अच्छी या बुरी ज़िंदगी बनाता है। और यही सब ज़िंदगी को छोटी या बड़ी करता है।    

मिट्टी का कच्चा पुतला (Social Tales of Social Engineering ) 24

She came in this home in a distressed and hopeless environment, after three abortions. Three abortions? Why? And how? And became the central figure of our home. At such a young age has seen more than any child should at her age. Bubbly, chirpy, gloomy sometimes and insecure at times raising the questions, one should not at this age. Resisting to some changes, adapting to some, overwhelmed at some, evolving with circumstances and time.

माँ क्या गई, चारों तरफ ठेकेदार आ गए जैसे। कुछ वो भी, जो पैदा होते ही ऐसी तोड़ियाँ दिखा रहे थे और गा रहे थे, जैसे उसका इस संसार में आना, उनके लिए दुविधा हो। कुछ वो भी जिन्हें लगा, हाय एक लड़का होता, तो अच्छा होता। माँ के जाते ही, वो जिस माहौल में रही, किसी बच्चे को ना रहना पड़े। वो उसे बुआ से दूर करने के चक्कर में क्या-क्या तो सिखा पढ़ा रहे थे। बुआ के बारे में कितना बेहुदा या बुरा-भला गा रहे थे? विडंबना कहो या हास्यास्पद ये, की वो लोग जो खुद अपने बच्चों को उसी बुआ के पास जबरदस्ती जैसे पढ़ने या खेलने के बहाने भेझ रहे थे। जहाँ कोई भी इंसान सोचने को मजबुर हो, की आखिर ये हो क्या रहा है? ये पीछे वाले भी। ये खास अपना बनने वाले भी। वो भी, और वो भी। क्यों? धीरे-धीरे परतें खुलने लगती हैं। हर किसी का अपना अजीबोगरीब-सा निहित स्वार्थ। बच्चे की भलाई कहाँ थी इसमें? स्कूल बदला, पढ़ाने वाले बदले। दोस्त बदले। और घर वाले? वहाँ क्या चल रहा था? सारी गड़बड़ शायद घर में होती है, बाहर का दखल तभी शुरू होता है? शायद? 

या इससे आगे कुछ? 

सारा दखल बाहर की खास राजनीतिक पार्टियों का होता है, जहाँ नंबरों का, कुछ खास कोढों का जुआ अहम भुमिका निभाता है। लोगों के नजरिए को बदलने के लिए? एक दूसरे के खिलाफ करने के लिए? जैसे-जैसे ये सब समझ आना शुरू हुआ। इधर वाले या उधर वाले खामखाँ के ठेकेदारों को चलता किया, वैसे-वैसे बच्चा वापस अपनी दिनचर्या पे भी आने लगा। मगर अभी तो और तोड़फोड़ होनी थी। 

वो लोग जो कल तक मुझे खाने को हो रहे थे, किन्हीं चूड़ी से काम करवाने पे या उसको घर में घुसेड़ने पे, अचानक कोई महाचूड़ी ले आए। कैसे संभव है? उम्र तो पता नहीं, पर दिखने में जैसे माँ की भी ऑन्टी। भाई को तो जैसे-तैसे फिर भी मना लिया होगा। ईधर-उधर का कोई लालच या कोई आभाषी डर बता कर। माँ को तो मैं बचपन से जानती हूँ। कौन-सी पुड़िया दे दी यहाँ पे? जब मुझे पता चला और जानने की कोशिश की या सावधान करने की, किसी अनहोनी से बचाने के लिए, तो कार्यकर्म ही पहले रख दिया गया। इधर-उधर के इशारों पे या कहो सावधान करने वालों के इशारों पे मोहर जैसे। 

कौन रोक सकता है, ऐसी जल्दी, जल्दी और जल्दी को? लाने वाले जब उसे घर लाए, तो यूँ लग रहा था, आसमान भी जैसे दहाड़-दहाड़ के रो रहा हो। किसी अनहोनी की आशँका, उसपे ऐसा मौसम। इससे पहले कभी किसी की शादी में ऐसा मौसम नहीं देखा। जब सामना हुआ, तो लगा जैसे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई हो। किसने चुना होगा? किसने देखा होगा? क्या हुआ होगा, जो माँ की भी जैसे आंटी दिखने वाली औरत को ये घर ले आए? और माँ? उसकी पसंद तो हो ही नहीं सकती। खैर। वो तो घर आ चुकी थी। उसके बाद थापे के वक़्त जो ड्रामा हुआ, वो कुछ खास था शायद। इशारा जैसे, किन्हीं फिंगरप्रिंट्स पे जाली मोहर वाले जैसे? या अँगूठा लगवाने वाले नमुने जैसे? ये इधर के और वो उधर के? किसे क्या कह सकते हैं? सब समझ से बाहर जैसे। उससे भी खास, बुआ के यहाँ से तो फिर भी घर आए। ये मामा के यहाँ वाले कहाँ अटक गए? या मर गए कहीं? मेरे फ़ोन का असर या उससे आगे कुछ? दादा की मौत के बाद जो सनातनी ड्रामा रचा गया, वो और वैसे-वैसे और कैसे-कैसे बेहुदा साँग लोगों की ज़िंदगियों में बताने के बावजुद, कैसे ठेकेदार बने हुए हो तुम इस घर का नाश उठाने के लिए? किसके इशारों पे? लोगों को दिमाग से पैदल तो होते देखा है, मगर इस कदर?    

कुछ वक़्त बीतने पे समझ आता है, घर पे अजीबोगरीब बाहरी कंट्रोल की कोशिशें। वक़्त के साथ बच्चे की दिक्कत भी फिर से बढ़ा दी गई। या माहौल के हिसाब से अपने आप बढ़ गई? अप्रैल में कोई विराज प्रकट होगा और वो भी किसी खास F (फरीदाबाद) से R (रोहतक) ज़ोन पर। अप्रैल ही क्यों? क्या खास है उसमें? 26 April, 2021, Kidnapped by Police.  सिर्फ एक और ड्रामा, और भी ज्यादा भद्दे रुप में। आम आदमीयों पर जिसका असर और भी ज्यादा बेहुदा। 

अरे उससे पहले जनवरी और फरवरी में क्या-क्या हुआ है?

और भी अहम, ये मार्च में आसपास क्या-क्या होने वाला है?  

कितनी सारी ज़िंदगियों पर control freaks के साए? आसपड़ोस को जानो एक बार।      

JA NU A R Y ?

FEB R UA RY ?

MA R CH ?

AP R IL ?      

कुछ अक्षरों के कोढ़ के कितने अर्थ या अनर्थ हो सकते हैं?             

युद्धों में ऐसा ही होता है, और हो रहा है? इधर भी और उधर भी? जितना ज्यादा छुपम-छुपाई, उतना ही ज्यादा खतरनाक खेल और ज़िंदगियों की तबाहियाँ। ये "in or out" क्या है, जानना बहुत ही जरुरी है। उससे भी आगे checkmate और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे भद्दे और खतरनाक राजनीतिक षड़यंत्र। आज भी आप नहीं समझेंगे, तो कल आपके बच्चे भी ऐसे-ऐसे बेहुदा लोगों के शिकार होंगे। ये शायद उन संस्थानो के लिए भी, जो Technical स्तर पर इस सब पर रिसर्च कर रहे हैं। Surveillance Abuse and Designed Invisible Enforcements on people's lives. बहुत कुछ है शायद, बहुत-सी यूनिवर्सिटीज में और उनके ख़ासमख़ास प्रोजेक्ट्स में। वो सब पढ़-देखकर बाहर निकलने का मन तो है, मगर। मगर, जाने क्या मगर आड़े आ रहा है? कोई जैसे धक्के मार रहे हों, निकल बाहर। और कुछ जैसे रोक रहा हो। कह रहा हो जैसे, मरना है? खत्म होना है? रुक जा यहीं। या शायद कोरोना और उसके बाद के वक़्त के हालात देखकर, बेवजह का कोई डर?    

आभासी और हकीकत की दुनिया के "अंदर या बाहर" और कैसे-कैसे? (Social Tales of Social Engineering) 25

भरम पैदा कर अपनी चाही हकीकत रचना या सामाजिक सामान्तर घड़ाई घड़ना  

यहाँ पे दो तरह के परिवार या लोग हैं। एक जो K के लिए लड़ रहे हैं? दूसरे जो N के लिए? इनके लिए आप टुकड़ा हैं, K या N को पूरा करने के लिए?  इन्होंने, आपसे आपकी और आपके परिवार की अलसी पहचान ही गुमा दी है। आप इनके बताए नजरिए (Narratives) में जी रहे हैं, बिना हकीकत जाने। जिनका किसी भी परिवार के लिए एक कहानी या किस्से से ज्यादा कोई मतलब नहीं होना चाहिए। जब आप किसी और के बताए Narratives या Perception को जितना ज्यादा जीने लग जाते हैं, अपना या अपनों का उतना ही ज्यादा नुकसान करते हैं। मगर खिड़ालियों का कमाल ये, की उसमें भी ये आपका भला या लाभ बताते हैं।  

लोग यहाँ पे इसलिए किसी से बोलते हैं या नहीं बोलते हैं, क्यूँकि उनसे ऐसा करवाया जा रहा है। किसी का क्या काम करना है या नहीं करना, वो इसलिए नहीं करेंगे की उन्हें करना चाहिए, बल्की इसलिए, की उन्हें ऐसा समझाया गया है। जैसे कोई नजरिया (Perception) फिट करना। ये नजरिया (Perception) ही दुनियाँ चलाता है। ज़िंदगियाँ बनाता या बिगाड़ता है। रिश्ते-नातों का आधार है। आप क्या करते हैं या क्या नहीं करते, इसका निर्णय लेने की क्षमता देता है। पीछे जैसे किसी पोस्ट में मैंने दस का दम और उससे जुड़े रोज-रोज के ड्रामों का जिक्र किया। वो Extreme केस है, जिसका खास अध्ययन हुआ है। पहले इसलिए की भाई है। अपनों के लिए आप शायद तब भी काम करते हैं या उम्मीद रखते हैं, जब बाकी सब छोड़ चुके हों। उसी ने उसे शायद, इतने सालों ज़िंदा भी रखा। यहाँ आने के बाद उसमें सामाजिक घड़ाई का एंगल भी मिल गया, इसलिए वो अध्ययन और भी खास बन गया।  

Contradictions    

बच्चा कहाँ रहेगा, कहाँ नहीं? 

किसके कैसी लड़की (बहु) आएगी, और कैसी नहीं? 

आपका बच्चा कैसा है, और कैसा नहीं? 

आप किनसे बात कर सकते हैं, और किनसे नहीं? 

किनको काम पर रख सकते हैं, और किनको नहीं? 

किसको अपने घर में घुसा सकते हैं, और किनको नहीं ?

किसको अपना कह सकते हैं, और किसको नहीं? 

किसको गोद ले सकते हैं, और किसको नहीं? 

आपको क्या चाहिए, और क्या नहीं?

आप क्या खा सकते हैं, पहन सकते हैं, खरीद सकते हैं, और क्या नहीं?

आपके बच्चे या बहन-भाई या किसी भी अपने की क्या क़ाबलियत है और क्या नहीं ?

और भी कितनी ही किस्म के क्या हो सकते हैं या कहो हैं। उनको एक इंसान से दूसरे इंसान के रवैये से या नजरिए से आंको, फर्क समझ आएगा। उससे भी बड़ा फर्क, उनकी पढ़ाई कहाँ से और किस पार्टी से चल रही है? उसमें वो अपना दिमाग कितना प्रयोग कर रहे हैं? और कितना धकेला हुआ है, इस पार्टी का या उस पार्टी का? ज्यादातर घरों में फूट की वजह यही हैं। घरों में ही नहीं, बल्की अड़ोस-पड़ोस में भी।        

पीछे यहाँ आसपास कुछ ऐसी चीज़ें हुई, जिन्हें सुनकर ऐसा लगे की कोई माँ खासकर, या उसका परिवार ऐसा कैसे कर सकता है? हालाँकि किसी पे ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, क्यूँकि किसी को किन परिस्तिथियों में ऐसा करना पड़ा होगा, ये वही बेहतर जानते हैं। मगर जब माँ की बात है या परिवार की भी, तो यही दिमाग में आता है की कोई भी परिस्तिथि हो, कोई अपने बच्चे को कैसे छोड़ सकता है? वो भी तब, जब वो इंसान कहे की वहाँ मेरे रहने लायक हालात नहीं थे? तो बच्चे के लिए कैसे हो सकते हैं? ये सब जानने का थोड़ा और पास से मौका मिला, जब खुद के घर में और आसपास कुछ ऐसे से ही केसों को जानने समझने का मौका मिला। मगर यहाँ कुछ उन्हीं लोगों के विचार विपरीत। बदलाव अच्छा है, मगर क्या दोगलापन है? क्या सच में ये नजरिए या विचारों में बदलाव है या महज हद दर्जे का घटिया स्वार्थ? या इससे आगे भी कुछ है? वो है की वो नजरिया थोंप कौन रहे हैं और क्यों? सामाजिक सामान्तर घढ़ाईयाँ घड़ने वाले, बच्चों को भी कहाँ बक्शते हैं?

सबसे बड़ी बात, आसपास ऐसा कोई एक केस नहीं, बल्की कई केस हैं। थोड़े ऐसे, या थोड़े वैसे।  

इस दौरान Brainwash का एक ऐसा केस सामने आया, जिसे देख-समझकर कोई भी कहे, ये तो असंभव है। Brainwash, चाहे कुछ वक़्त का ही, असंभव को भी संभव बना देता है। इस घर-कुनबे में कुछ लोगों को खासकर, किन्हीं खास जातियों से जैसे हद पार चिढ़ है। और उसके उनके अपने कारण है, जाती से आगे कुछ। इन लोगों को लगता है, फलाना-धमकाना की वजह से हमारे घर में ये हुआ, ये हुआ या वो हुआ। इन सबसे जितना बचा जा सके, उतना अच्छा। ये हमारे लिए शुभ नहीं। जब मैं घर आई, तो काम के लिए किसी ऐसी जाती से रखने पे, कई दिन जैसे महाभारत का माहौल रहा। ऐसा माहौल, जब आपको लगे की मैं किन लोगों के बीच हूँ और क्यों? 

और लो जी, भाभी के जाने के कुछ महीने बाद ही यहाँ जो हुआ, वो किसी को भी सोचने को मजबूर करदे, ये तो असंभव-सा है। सबसे बुरे हाल बच्चे के। जो लाने वालों को सामने चाहे कुछ कहे या ना कहे, मगर इतना बच्चा भी कहाँ है, की कुछ भी हज़म कर जाए। उसपे बहाना ये की बच्चे के लिए ही लाए हैं और बुआ पढ़ा रही है उसे। फिर से बुआ से दूर करो। कुछ वक़्त झेलो, ऐसे दिमाग से पैदल लोगों को। क्यूँकि, दूर करवाने वालों को कल भी बहाना चाहिए था और आज भी। कल वाला बहाना कामयाब नहीं हुआ, तो दूसरा सही। 

आप अपने गोद लेने वाले प्रोग्राम पे वापस आ जाओ। चाहे झूठमूठ ही सही या हकीकत में। वो भी किसी ऐसी ही जाती से, जिसपे कल आपसे महाभारत रची हो। क्यूँकि, यहाँ रचने वालों का एजेंडा ही, किसी को हर तरह से ख़त्म करना है। उसमें सिर्फ पैसा, नौकरी, घर या ज़मीन-जायदाद ही नहीं, बल्की रिश्ते-नाते और भावनात्मक एंगल भी है। घर-परिवार में ऐसा रचो, की हर बंदा एक दूसरे से अलग-थलग हो। एक दूसरे के खिलाफ हो। क्यूँकि, ऐसा होने पे उस बच्चे का क्या जो आपसे जुड़ा है? अब उसे कहीं और जोड़ने की कोशिश हो रही हैं। मस्त होगा उसके लिए वो विराजमान प्रोग्राम शायद? खास पैर में बांधे काले धागे के जादू को साकार करने की तरफ (छुपे विज्ञान के) बढ़ते हुए कदम जैसे? रीति-रिवाज़, धर्म-कर्म, किन्हीं के लिए महज़ आस्था के साधन, तो किन्हीं पहुँचे हुए खिलाड़ियों के लिए? काँड रचने के? Cult Politics इसी को कहते हैं? बाप के पैर में वो खास काला धागा किसी खास समय पे आया और आ गया कालिख ज़िंदगी में? बेटी के पैर में उसी खास वक़्त पे आया काला धागा क्या संकेत दे रहा है? संकेतों में बात करने वाले या चालें चलने वाली खास फोर्सेज के अनुसार? माँ गई। उसकी जगह कुछ और आ गया? अब क्या होना बाकी है? कौन से सोने-चाँदी या खास तरह के अखाड़ों की कमी रह गई अभी उस नन्हीं सी ज़िंदगी में?          

पहले भाभी के केस में और माँ के साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही रचा। रोचक, उसमें खुद भाभी के घर वालों का ऐसा रोल समझ आया, उनके जाने के बाद खासकर। पड़ोसियों के जाले में फंसा दिए गए लोग? यही जाला खुद उनके अपने घर को भी खाए हुए है, या झगड़ों की एक वजह है, जो मुझे समझ आया। सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ का हिस्सा मात्र? सोनीपत के साँग से बहुत कुछ उठकर, उनके घर में और वहाँ से यहाँ, हमारे घर में? एकदम हूबहू-सा जैसे। और वो कैसे समझेंगे? जो मुझे इतनी सारी केस स्टडीज़ के बाद थोड़ा-बहुत समझ आया है। इस जैसे (स्क्रिप्टेड ट्रेजेडीज़) और हकीकत के फर्क को जब तक आप जानना-समझना शुरू नहीं करोगे, तब तक so-called बड़े लोगों का शिकार रहोगे।         

मझले वाला तो जैसे है ही, घर से बाहर। बच्ची बच गई। खुंखार लोगों के हिसाब से बच्चा तक नहीं बचना चाहिए, ऐसी परिस्तिथियों से। भेझे से पैदल लोग कुछ भी लाएँ, कहीं से लाएँ, किसी के भी जाल में फंसकर लाएँ। सिर्फ लाएँ नहीं, उसके साथ कोई खास रुंगा या प्रसाद भी लें आएँ, तो और भी मस्त। 

Special "In-Out Designs"?  ऐसे ही होते हैं? इस जुए के कोढ़ के अनुसार, खास कोढ़ वाले इंसानो को एक कमरे में रहने को या सोने को In कहते हैं? रिस्ता क्या है, इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता? उम्र क्या है? बच्चा है या बुजुर्ग है, उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता? वो किस वक़्त एक कमरे या शायद घर में भी (?) रहना शुरू करेंगे, ये खास control freaks निर्णय लेते हैं। और कब तक रहेंगे या उन्हें कब Out करेंगे, उसकी भी राजनीतिक पार्टियों की अपनी तारीख या महीना या साल होता है। कौन-सा संसार है ये? खास किस्म के बड़े लोगों वाला, जिन्हें जुए की पता नहीं कैसी-कैसी किस्में और तरीके पता हैं ? इस वाले घर में माँ, बेटा In है। उस वाले में बाप, बेटी? और उस वाले में भांजा या भांजी, मामा या मामी, नाना या नानी? और भी कितने ही घरों में इन्होंने कैसे-कैसे अंदर या बाहर (In, Out) किए हुए हैं? हैं ना, आभासी और हकीकत की दुनिया के "अंदर या बाहर" और कैसे-कैसे? 

Saturday, February 24, 2024

Abusive World in Coded Form

Abusive world, but in coded form

How coming generations will look at that?

From pageup people (When will you grow up?)

To look at that audi (Tagore auditorium)

From this play to that play people?

To Gud ka Gobar aur Gobar ka Gud?

Errr God?

From U2, U3 people

To how many types? 

And how many ways or types, people can abuse?

From trying to own others people,

including children

Just to use and abuse them?

Just to make them a pawn in their dirty gamble

Abusive world, but in coded form

How coming generations will look at them?

From so-called jet makers

To powder spreaders?

Or ice cream tasters?

Or maybe any such distinctive characters?

From, I am just lil flirt types

To strange openness experimenters

To Holi types or leli types gangsters

Be aware and save your children

Check out, what they are teaching on the name of dance

Or making someone center stage characters

From musical beats drummers

To just for the sake of fun or open experiments

On common people or their children

Either by hook or cook

Dragging them towards some special zones

All in some coded form

Their own types of "in and out" 

Like some lecherous golfers

Or some checkmate types

Before it becomes too late

As abusive world is all around in coded form

It's in books, in classes, in so-called friend circle

Or surrounding

It's this invisible world, which gives direction

Direction?

Which drags lives in ill designed directions and fate

Special kinda production factories

Of designer lives, human robots, this side or that side.

Thursday, February 15, 2024

अगली पीढ़ी के रोबॉटस का उत्पादन (Social Tales of Social Engineering) 23

Next Generation रोबॉट्स प्रोडक्शन के तरीकों को जानोगे, तो क्या सोचोगे, इस महान HiFi संसार के बारे में? F और M ज़ोन स्पैशल भी कुछ चल रहा है, जो मुझे समझ आया। और इस F के साथ-साथ, एक और F जोन गाड़ी, कभी इधर, तो कभी उधर। मतलब, जैसा आपके सामान के साथ हो रहा है, वैसा-सा ही कुछ इंसानों के साथ? और लोगों की ज़िंदगियों को जैसे 24 Hours स्क्रिप्टेड शो बना रखा हो। बिलकुल, जैसे लैब प्रोटोकॉल्स में होता है। कितना, क्या-क्या चाहिए। क्या-क्या मिक्स करना है। क्या-क्या, अलग-अलग रखना है। कहाँ-कहाँ रखना है। किन परिस्तिथियों में रखना है। कब तक रखना है। और कब, कहाँ चलता करना है। और हो गया काम।  

अगली पीढ़ी के रोबॉटस का उत्पादन 

वो एक विजय से दूसरी या दूसरे विजय पे कैसे जाते हैं? 

एक रितु से दूसरी रितु पे कैसे?

एक पूजा से दूसरी पूजा पे?

एक योगेश से दूसरे योगेश पे?

एक कमलेश से दूसरी कमलेश पे?

एक प्रदीप से दूसरे प्रदीप पे?

एक रोहित से दूसरे रोहित पे?

एक रॉबिन से दूसरे रॉबिन पे?

एक सज्जन से दूसरे सज्जन पे?  

एक मनीष से दूसरे मनीष पे ?

एक रेखा से दूसरी रेखा पे ?

एक रश्मी से दूसरी रश्मी पे?

एक नरेंद्र से दूसरे नरेंद्र पर?

एक जयवीर से दूसरे जयवीर पर?

एक शिवानी से दूसरी शिवानी पर?

एक शीनू से दूसरी शीनू पर?

एक संदीप से दूसरे संदीप पर?

एक सुखबीर से दूसरे सुखबीर पर?

एक राजबीर से दूसरे राजबीर पर?

एक राजेश से दूसरे राजेश पर ?

एक अशोक से दूसरे अशोक पर?

एक रणवीर से दूसरे रणवीर पर?

एक सुरज से दूसरे सुरज पर?

एक गौरव से दूसरे गौरव पर?

एक संगीता से दूसरी संगीता पर?

एक कविता से दूसरी कविता पर?

एक अंजू से दूसरी अंजू पर ?

एक अनिल से दूसरे अनिल पर?

एक संजय से दूसरे संजय पर?

एक दुष्यंत से दूसरे दुष्यंत पर?

एक अजय से दूसरे अजय पर?

एक मोदी से दूसरे मोदी पर?

एक अरविंद से दूसरे अरविंद पर?

एक अमर से दूसरे अमर पर?

और भी कोई भी नाम हो सकता है और कोई भी लिंग। ये मिश्रित (hybrid) कोढ़ कैसे जोड़ने-तोड़ने या मरोड़ने  का काम करते हैं, इन सबमें? Interlinking, जैसे? और उस Interlinking का बीमारियों से क्या लेना-देना है? किस डॉक्टर या हॉस्पिटल जाएँगे और  कोढ़ वाला ईलाज चलेगा और उसका परिणाम क्या रहेगा। ज्यादातर शायद करने वालों को नहीं पता। शायद?  

एक सवि से किसी सविता या सावित्री पर या लकवे पर?

एक कश्मीर से किसी दूसरे कश्मीर पर या लकवे पर? 

एक सोनू से किसी योगेश या लकवे पर?

एक सीमा से दूसरी सीमा पर या लकवे पर ?

एक जयंत से दूसरे जयंत पर या जया पर? Amity, Deakin, Virginia? 

एक ड्रग एडिक्ट केस से दूसरे ड्रग एडिक्ट केस पर और एक जैसे से कांडों पर, हादसों पर?

या एक अल्कोहल एडिक्ट केस से दूसरे अल्कोहल एडिक्ट केस पर ?

एक दस नंबरी से दूसरे दस नंबरी पर?

एक दस के दम से, दूसरे दस के दम पर? errr STOP IT 

ये विजय दांगी के खून की कहानी लिखी जा रही थी, जो इनके कोढ़ के हिसाब से, विजय कुमारी से विजय दांगी बन रही थी? बन रही थी? है नहीं? 

मैं ऊप्पर लिखी एक काफी लम्बी लिस्ट जैसे, को समझने की कोशिश कर रही थी। और पता चलता है की ये सब अपने आप नहीं हो रहा। बल्की बहुत ही जबरदस्त Systematic या Enforcement के तरीके हैं ये सब करने के। तो मरने का नंबर तो लगना है। ऐसे कब तक बचोगे तुम? या ये सब दिखाने, बताने और समझाने वाले बचा लेंगे? जैसे अब तक बचाया है?   

किसी भाई को दस का दम बनाके, किसी बहन का खून करवाया जा सकता है? वो भी उस भाई को मानव-रोबॉट बना, जिसको वो बचाने की कोशिश कर रही थी इतने सालों से, अल्कोहल के systematic supply के धंधे से बचाने की?

हाँ। अगर कोई बेटा, किन्हीं ड्रग्स एडिक्शन के चक्कर में, किसी माँ का खून कर सकता है (2005) -- तो कोई भाई क्यों नहीं? वो भी उसके कोई दो दशक बाद (2023)। फिर आज तो दुनियाँ टेक्नोलॉजी के स्तर पे भी, तब को देखते हुए किसी और ही दौर में है। 

अहम प्रश्न, क्या ये सब अपने आप संभव है? जानवर भी नहीं करते ऐसा तो? या किन्हीं खास केसों या प्रजातियों में कर देते हैं?

मगर इंसान तो सिर्फ जानवर से थोड़ा आगे बढ़के इंसान भी है। नहीं? 

दिमाग का फर्क है। उसे ब्लॉक कर दो या उसमें हेरफेर शुरू कर दो। सब संभव है। 

सुनील एक केस स्टडी है। ऐसी केस स्टडी, जो बहुत कुछ इस खुंखार सिस्टम के बारे में बताता है। सबसे बड़ी बात, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी केस स्टडी यहाँ भरी पड़ी हैं। वो यहाँ, आपके यहाँ भी हो सकता है। फर्क शायद ये है की यहाँ कोई हाईलाइट कर रहा है, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी सामानांतर सामाजिक घड़ाईयों को।    

दस का दम, भाभी की मौत के बाद और गुड़िया के अपहरण के बाद। जब कुछ खास अपना कहने वालों की, वैसे नहीं चली जैसे वो चलाना चाहते थे तो शुरू हुआ था, मेरे खिलाफ। जहाँ एक भाई कभी ये चाकू तोड़ जाता है तो कभी वो। मगर, किसी खास रंग के चाकू को नहीं तोड़ता। कब तक?

उसके बाद डंडा पर्दे के पीछे रखवाने का खेल शुरू होता है। किसी खास बैड की बैडशीट वगरैह, इधर-उधर फेंकने का खेल चलता है। और जुबान, वो भी कहीं किसी और की ही बोलते हैं। तभी भूत बना देना बोलते हैं शायद? सुनील लड़के का खेल बंद, तो सुनील लड़की का खेल शुरू। लड़के को लड़की बना दो, ट्रांसजेंडर बना दो। क्या फर्क पड़ता है? कीड़े-मकोड़ों सी ज़िंदगियाँ ही तो हैं?      

इसी दौरान अपने एक खास नन्हें-मुन्ने से अजीबोगरीब कारनामे करवाने का खेल भी चलता है। मैट्रेस्स पे पानी के इंजैक्शन, बजरी फेंकना आदि। 

और इसी दौरान किसी और विराज या रितु के नाम पे, खास जगह से, खास जाति की, खास नाम वाली औरत का  जबरदस्ती घर में आगमन भी। जबरदस्ती? अरे नहीं, ये तो Enforcements पे Enforcements की महज़ एक और कड़ी थी? जिसे पढ़े-लिखे और कढ़े हुए लोगबाग आत्महत्या बोलते हैं शायद? या खुद ही किया हुआ है? सबसे बड़ी बात, वो औरत खुद एक चलती-फिरती गोटी है, हम सबकी तरह। और रोचक ये, की उसे या उन्हें (छुपे हुए, बीच-बिचौलियों) लग रहा है, की वो ये सब खुद कर रहे हैं।   

अब फरीदाबाद और मदीना के बीच खेल चलेगा F और M खास। तो फ़िनलैंड चलें, फ्रांस चलें या मुंबई, मिआमी या महम? और भी कितने ही कोढ़ हो सकते हैं। अलग-अलग पार्टी की जरुरतों के अनुसार। 

और इन लोगों (चलती-फिरती गोटियाँ) को नहीं मालूम, की इनकी ज़िंदगियाँ किस कदर कंट्रोल हैं। मार्च (March) और अप्रैल (April) में फिर कुछ खास होगा? सोचो क्या?

Kidnapped by Police? को जितनी बार और जितना ध्यान से पढ़ सकते हैं, पढ़ें। अगली पीढ़ी के रोबॉटस के उत्पादन की कहानी समझ आएगी। ये जहाँ तो ओरवेलिएन से भी आगे निकल गया लगता है। आप क्या कहते हैं? एक ऐसा सिस्टम, जिसे ये मालूम है की कब, क्या और कहाँ पैदा करवाना है या नहीं होने देना या अबॉर्ट करवाना है। उससे भी अहम किस तारीख, महीने या साल में करवाना है। और किस हॉस्पिटल या डॉक्टर द्वारा? और अबॉर्ट करवाना है, तो किस तरह का ड्रामा करवाके। लोगों के लिए वो सब, उनकी ज़िंदगीयों की हकीकत है।   

अगर किसी ने कहा है की हम अपने अनुसार सिस्टम डिज़ाइन कर सकते हैं, तो कुछ गलत नहीं कहा। ये तो बहुत पहले से ही हो रहा है। अब स्तर शायद खतरनाक पहुँचा हुआ है। कहीं तो चैक और बैलेंस की जरुरत है। और आम आदमी को बताने और समझाने की भी। जितना वो इस सब से अंजान और अज्ञान होंगे, उतना ही भुगतेंगे।    

Social Tales of Social Engineering, मेरे प्रोजेक्ट का नाम है। वही जो में कह रही थी की किसी प्रोजेक्ट को लिखने की कोशिश हो रही है। इसी का अगला स्तर, इसका प्रोडक्शन हो सकता है। जिसके तहत आप खास तरह के सिस्टम भी डिज़ाइन कर सकते हैं। गरीबी और उससे जुड़े तमाम मुद्दे सिस्टम के फेल होने की वजह से हैं, किसी खास घर या मौहल्ले की नहीं।  एक ऐसा सिस्टम, जिसे ये मालूम है की कब, क्या और कहाँ पैदा करवाना है या अबॉर्ट करवाना है। ऐसा सिस्टम बनाने वालों को ये भी मालूम है, की कहाँ गरीबी, पिछड़ापन या कैसी-कैसी बिमारियों या हादसों को करवाना है। शराब, ड्रग्स के नशे, मार-पिटाईयाँ, और कितनी ही तरह की बीमारियाँ और तकरीबन-तकरीबन ना के बराबर सरकारी स्कूलों के हाल, सिस्टम की देन हैं। ऐसे लोग, जो आम जनता का खून चूस कर, हद पार रईसी, सिर्फ कुछ पर्सेंट लोगों के लिए ईजाद करते हैं। वो भी खुद उनकी गुलामी करके।                                                   

Sunday, February 11, 2024

किस्से-कहानियों में डुब जाना (Social Tales of Social Engineering) 22

किस्से-कहानियों में डुब जाना (Immersed in narratives? Highly twisted narratives versus reality?)। इसी को मैंने नाम दिया है, Social Media Immersion। यहाँ पे किस्से-कहानी या रोजमर्रा की बातें ऐसे गुँथी जाती हैं, जैसे लैब के खास Protocol, किसी खास Experiment को करने के लिए। जब ये थोड़ा-थोड़ा मुझे समझ आने लगा, मैं इससे इतना प्रभावित हुई थी की Immersion Media की डिग्री के लिए ही Apply कर दिया था। सुक्ष्म स्तर पे कंट्रोल, आप Microlab या Molecular जैसी लैब के Experiments करने के तौर-तरीकों से जान सकते हैं। इस सबको अगर लोगों की रोजमर्रा के किस्से-कहानियों के साथ जोड़ दें और उसपे Surveillance Abuse के तौर-तरीकों की खबर हो तो क्या बन जाएगा? मानव रोबॉट घड़ने का प्रोटोकॉल तैयार। यही प्रोटोकॉल्स राजनीतिक पार्टियाँ और बड़ी-बड़ी कंपनियाँ, हूबहू सामाजिक घड़ाईयाँ घड़ने के लिए प्रयोग कर रही हैं।          

किसी ने कुछ कहा और आपने उसे सच मान लिया, बिना उसकी हकीकत जाने?  

कुछ-कुछ ऐसे ही, जैसे अश्वत्थामा मारा गया? 

और काँड रचने वालों का काम भी पूरा होते देर नहीं लगी? सुना होगा कहीं?

ये Mind Twister या कहो Mind Blinder था। दिमाग को बदलने वाले या अँधा कर देने वाले वाक्या या शब्द या किस्से-कहानियाँ। कुछ देर के लिए ही सही मगर दिमाग अँधा हो गया, ये सोच की मेरा बेटा मारा गया। और देखते ही देखते, वो बाप का काम तमाम कर गए। ऐसा ही ना?    

गूगल ज्ञान : युधिष्ठिर ने जवाब दिया, 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी। हाथी बोलते समय श्रीकृष्ण ने शंखनाद कर दिया, जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य 'हाथी' शब्द नहीं सुन पाए। आचार्य द्रोण शोक में डूब गए, और उन्होंने शस्त्र त्याग दिए। तभी द्रौपदी के भाई, धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट दिया। -- महाभारत 

जब गाँव रहने आई तो काफी हद तक मजबूरी थी, सुरक्षा के मध्यनजर। फिर एक के बाद एक हालात ऐसे होते गए, की कहीं बाहर निकलने के नाम पे 2008 याद आ जाए, की कहीं ऐसा ना हो, जाते ही वापस आना पडे। ठहर थोड़ा, क्यूँकि तब हालात इतने बुरे नहीं थे, जैसे अब बना दिए गए, कुछ खास अपने कहे जाने वालों द्वारा, जाने या अन्जाने। कौन हैं ये खास अपने? कहीं न कहीं खुद भी भुगतभोगी? और औरों को भी बेवजह जैसे बांधे हुए? या सच में धूर्त इतने?

चलो कुछ ऐसे ही किस्से-कहानियों को जानते हैं जो लोगों के दिमाग ही नहीं, बल्की ज़िंदगियाँ घुमाए हुए हैं। 

कई बार कुछ ऐसे किस्से या कहानी सुनने को मिलें, जैसे की आज ही या कल हुए हों। आपके हिसाब से हो सकता है, वो सब या तो धूमिल पड़ चुका हो या उसका कोई महत्व ही ना हो। जैसे किसी ने सालों पहले कुछ किया हो या किसी केस में नाम हो और वो केस आया-गया हो चुका हो। मगर हूबहू कोई नया केस उन्हीं नामों जैसा बताए, जो आजकल में ही हुआ हो और आपको लगे की ये फिर से किसी वैसे ही पंगे में पड़ गए? आप हो जाएँ आग-बबुला। और बिन सच जाने या उस इंसान से पूछे बगैर, झगड़े पे उतारू हो जाएं। क्या होगा? हो सकता है की किसी ने कोई सच्चा केस बताया हो और वो आजकल में ही हुआ हो। मगर? करने वाले कोई और हों, सिर्फ नाम और केस मिलता-जुलता सा हो। हो सकता है ऐसे ही किसी बात पे, कहीं से यूँ ही बातों-बातों में निकल आया हो? या ये भी हो सकता है, की इरादा सही ना हो? अब बताने वालों का मकसद क्या है, ये तो वही बेहतर जानें। 

ऐसे किस्से-कहानी, एक बार नहीं बहुत बार सामने आए। वो भी किसी एक इंसान के बारे में नहीं, बल्की इधर-उधर के कई इंसानो के बारे में। ऐसे-ऐसे, किस्से-कहानी ही कहीं ना कहीं दिमाग को अँधा करने (Mind Twisters या Mind Blinders) का काम करते हैं। ये रिश्ते-नातों में ना सिर्फ दूरियाँ पैदा करने का काम करते हैं। बल्की होते हुए कामों को बिगाड़ने जैसा काम भी करते हैं। जैसे भाभी का स्कूल बनते-बनते रह गया। और उसके बाद जो कुछ चला, वो सब उससे भी ज्यादा तबाही की तरफ धकेलने वाला रहा। इस सब में दिमाग को जैसे, अँधा कर देने वाले वाक्या या रोजमर्रा की बातें रही। बड़े-बड़े लोग धोखा खा जाते हैं। फिर आम आदमी की क्या औकात, की ऐसे-ऐसे शातिरों से निपट पाएँ? और फिर आज तो वक़्त भी महाभारत का नहीं, उससे बहुत आगे निकल चुका है।  कैसे-कैसे शातीरों के समूह काम करते हैं, इतना कुछ लपेटने के लिए?   

वो डिग्री तो नहीं हुई, मगर उससे ज्यादा कुछ हो गया शायद। करवाने वालों ने शोध के लिए इतना कुछ पकड़ा दिया की ज़िंदगी बहुत छोटी लगने लगे, सिर्फ उन्हें लिखने में भी। Social Lab of Social Engineering  

System will achieve, what it's designed to achieve. -- इसमें थोड़ा जोड़ देते हैं, And we can design to some extent, our own system as per our capabilities.   

आप अपने आप में एक छोटा-सा सिस्टम हैं। आपका आसपास, उससे थोड़ा बड़ा सिस्टम। थोड़ा और दायरा बढ़ा दो, तो थोड़ा और बड़ा सिस्टम। ऐसे ही लोकल से धीरे-धीरे ग्लोबल सिस्टम तक जा सकते हैं। इन सबमें कहीं न कहीं, कुछ ना कुछ मिलता-जुलता सा है। हूबहू-सा है। हूबहू मतलब, कॉपी जैसा है या क्लोन जैसा। हकीकत या असलियत नहीं, बल्की उस अलसियत जैसा। अश्वत्थामा और अश्वत्थामा हाथी जैसा फर्क।    

Saturday, February 10, 2024

अरे वो जो मैम ने घर खाने पे बुलाया था, उसका क्या हुआ? (Social Tales of Social Engineering) 21

मैं गई और उन्होंने बड़े प्यार से डाइनिंग की एक कुर्सी की तरफ बैठने को इशारा किया और मैं बैठ गई। फिर उन्होंने, अपनी डोमेस्टिक हैल्प को बोला, दीदी के लिए पानी लाओ। उनका कोई फोन आ गया और वो उसपे बात करने लगी। 

बात करने के बाद उन्होंने बताया, किसी नर्स का फोन था, साउथ से। और भी छोटी-मोटी बातें शायद, जो मुझे अब ढंग से याद नहीं। ऐसे ही बातों-बातों में थोड़ा बहुत उन्होंने अपने बारे में बताया। और थोड़ा बहुत मेरी जानने की उत्सुकता बढ़ी, खासकर बहुअकबरपुर के कुछ जानकारों को, वो कैसे जानते हैं। उस सर्कल का और किसी K का क्या लेना-देना है? और ये सब पंगा क्या है? मैंने वो भी बताया, की मैंने जानने की कोशिश की, मगर वहाँ कुछ ऐसा-सा रिस्पांस है। और जाने क्यों, वो किसी के फोटो में कौन कैसा दिखता है या दिखती है, उसपे पहुँच गए। और ये भी की वो, उसकी अबकी फोटो नहीं है। बहुत पुरानी हैं, वगरैह-वगरैह। जो उस वक़्त थोड़ा कम समझ आया।

और फिर कुछ अजीबोगरीब-सी बातें जैसे, "मुझे डर लगता है कई बार। यहाँ बाहर कई बार लगता है, जैसे किसी पेड़ की ओट में कोई छिपके बैठा हो।" (ये मैम यूनिवर्सिटी कैंपस में ही, मेरे घर से थोड़ा दूर, दूसरी गली में रहते थे। अब भी वहीं होंगे शायद।) 

मगर क्यों?

पता नहीं आजकल माहौल ऐसा ही है। 

माहौल ऐसा ही है? मतलब, यूनिवर्सिटी में मेरे अलावा भी कोई ऐसे माहौल का शिकार था? मगर क्यों?

45? शायद कहीं जवाब था? अब ये 45 क्या है?  

इस सबके कुछ वक़्त बाद, अजीबोगरीब कुछ छोटे-मोटे से तमासे शुरू हुए। जो धीरे-धीरे बड़े होते गए। बड़ी ही अजीब-सी हरकतें। कहीं आपने कोई मिक्सर-ग्राइंडर ठीक होने को दिया और उसी वक़्त वहाँ कोई पहुँचा। उसके बाद जब लेने गई तो उसका छोटा डिब्बा गुल। मगर ये सब तब ध्यान नहीं दिया। ऐसे ही छोटी-मोटी बात जानकार। छोटी-मोटी चीज़ों पे खामखां का भेझा लगाने की बजाय, बढ़िया है दूसरा ले लो। वो भी खराब हो जाए तो और नया ले लो। मगर उसके बाद यही छोटी-मोटी हरकतें, गाड़ी की तरफ बढ़ी। घर के दूसरे सामान की तरफ बढ़ी। और देखते-देखते, एक के बाद एक, जैसे रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गई। कोई खास बात नहीं या छोटा-मोटा नुक्सान है, धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। गाड़ी कंपनी की बजाय, बाहर किसी इसी गाँव के जानकार मैकेनिक रामनिवास के पास जाने लगी। जिसकी वर्कशॉप यूनिवर्सिटी के आसपास ही थी। वक़्त के साथ, गाड़ी में कुछ अजीबोगरीब बदलाव आने लगे। जिनमें सीट-बेल्ट और ब्रेक लूज़ होना, खटकने लगा। और गाड़ी फिरसे कंपनी पहुंची, जहाँ से कभी वापस नहीं आई। मगर जैसे वो किसी 14 को उठी और जो ड्रामा उस कंपनी में चला, वो कुछ खास था। ये ड्रामा कहीं USA ले गया शायद, कुछ खास लोगों के पास? ये लोग कौन हैं और क्या रुची हो सकती हैं, इनकी मेरी गाडी में? HR-15 7722 (i10), सफ़ेद रंग। अब तक की इकलौती, मेरी अपनी गाड़ी।     

मेरे पास दूसरी गाड़ी आई सैकंड हैंड, भाई के नाम। और वो फिर से, किसी 14 को, किसी और जगह खास ड्रामा दिखाती है। इसी दौरान, ये भी पता चला, की जिस साथ वाले गाँव के मैकेनिक की वर्कशॉप पे मेरी गाड़ी ठीक होने जाने लगी थी, वो अपने ही यहाँ के एक लोकल नेता की है। अब ये कौन हैं? अरे ये तो, लड़कियों की भलाई के लिए काफी कुछ कर रहे हैं। कितनी ही बसें लगा रखी हैं इन्होंने, लड़कियों को मुफ़्त में कॉलेज तक लाने और ले जाने के लिए। फिर ऐसे किसी की वर्कशॉप पे ऐसे काम? बहुअकबरपुर और इसके किस्से-कहानियाँ, वक़्त के साथ-साथ और खटकने लगे। मगर सभी तो एक जैसे नहीं होते। ये वो दौर था, जब एक बार फिर से, मैंने कुछ पुराने स्टुडेंट्स की dissertations पढ़ने के लिए उठा ली। ऐसा क्या है उनमें? देखो तो कुछ नहीं। जानने लगो, तो शायद बहुत कुछ। 

विज्ञान सिर्फ विज्ञान कहाँ है? वो तो राजनीती नामक कीड़े से ग्रस्त है। कितनी ही जगह बंधा हुआ और कितनी ही जगह बींधा हुआ, जैसे। और उससे भी रोचक, ये सब वो खुद ही बताता है। बस, एक बार उसे, वैसे पढ़ना शुरू कर दो। लिखने को तो बहुत कुछ है। शायद इन रोज-रोज के छोटे-मोटे हादसों की और रोज-रोज बाहर निकलती जानकारी की, कई सारी किताबें लिखी जा सकती हैं। इसी दौरान, मैं फ़िनलैंड की किसी यूनिवर्सिटी की सैर पे थी, कुछ ऑनलाइन dissertations के साथ। ऐसा भी नहीं की उनमें academically कुछ अजीबोगरीब लगे। पर शायद, अब मैंने उन्हें थोड़ा अलग ढंग से भी, पढ़ना शुरू कर दिया था। मगर अभी थोड़ा शॉर्ट कट लेते हैं। 

वक़्त के साथ हुलिए पे एसिड-अटैक कैसे-कैसे होते हैं, ये भी कुछ-कुछ समझ आए। और धीरे-धीरे, थोड़ा बहुत राजनीतिक बिमारियों के बारे में भी। उन अटैक्स को इतना पास से देखने-जानने की शुरुआत भी, शायद यहीं से?

भाभी के किसी खास तारीख को जाने के बाद, किसी साउथ इंडियन जैसा दिखने वाली नर्स (?) का यूँ घर आना भी। अरे, वो जो मैम ने घर खाने पे बुलाया था? वहीँ का धकेला हुआ है क्या ये सब? 

घर वाले इन अंजान-अज्ञान लोगों को, ये सब कहाँ से समझ आएगा? इसीलिए तो, मैं ऑफिस छोड़ के जाऊँ, तो उन्हें ऑफिस आकर मिलने को बोलते हैं। लड़कियाँ यहाँ कब तक बच्ची ही रहती हैं, जो अपने निर्णय तक खुद नहीं ले सकती? और उन्हें वो घर के किसी अहम निर्णय तक की भनक तक नहीं लगने देते? या ऐसों को बेवकूफ बनाने वाले, लगने नहीं देते? ऐसी कोई भी भनक तक लगते ही, जल्दी, जल्दी और जल्दी मचा देते हैं? सुना है, ऐसे ही कुछ पहुँचे हुए जानवरों ने, कुछ खास किस्म के काले धागे बाँटे हुए हैं, खास पैर पे बाँधने के लिए, यहाँ-वहाँ। बच्चोँ तक को नहीं बक्शते। सुना है, या कहना चाहिए की पढ़ा है, की अपना काम निकालेंगे, कहीं कालिख रचकर। काली सुरंगें जैसे? जैसे सफ़ेद को काला कर देना? काले की काली दिलवाकर? कहीं ये सब, रीती-रिवाज़ों का हिस्सा हैं। तो कहीं? धुर्त, पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े हुए, शिकारियों के छल-कपट?      

और उसके बाद कुछ खास डॉक्टर दोस्तों की खास कमेन्ट्री। सही में बड़ी ही रोचक दुनियाँ है? वक़्त के साथ, हुलिए पे एसिड-अटैक कैसे-कैसे होते हैं, ये भी कुछ-कुछ, ऐसे-ऐसे हादसों से समझ आए। और यहाँ लोग काले, सफ़ेद और लाल के तेरे-मेरे और जमीनों के अजीबोगरीब झगड़ों में उलझे हुए हैं? 8, 9, 10 नंबरियों के चक्करों में जैसे? बिना ये जाने या भनक तक लगे, की इन सबके चक्करों में उलझा, वो असली काँड, कहाँ-कहाँ और कैसे-कैसे रच रहे हैं?       

Brave New World of Witch Hunts?  A Bit Too Much?  

इंसानों के मानव-रोबोट फैक्टरी के प्रोडक्शन की कहानियाँ (Social Tales of Social Engineering) 20

अभी तो सिर्फ एक का ही उजाड़ा है ना और उसे भी बढ़िया से ठिकाने लगाने का इंतज़ाम भी किया हुआ है? 

काला कार 20W, काली या काला जीभ दिखा रही/रहा हो, जैसे? मेरी कार के गुंडों द्वारा उठाने के बाद, दो सैकंड हैंड कार आई, इस घर में। दोनों ही छोटे भाई के नाम। और दोनों ही मुझे पसंद नहीं। या शायद मुझे सैकंड-हैंड चीजें, कम ही पसंद आती हैं। भाई के नाम क्यों? कहीं ऑफिस में कोई मीटिंग हो और वहाँ ऐसा कोई कमेंट भी। ऑफिस के लोगों को जब आपके घर के बारे में कोई जानकारी, आपसे ज्यादा हो। क्यों और किसलिए? 5-लाख extortion भी कुछ ऐसा सा ही शायद। जब आपको कुछ कोडॉन के मतलब पता ना हों और वो हर जगह आने लगें। 

20W का मतलब समझ से बाहर था। जाने वाले तो वापस आते नहीं। उसपे, इस कार के कुछ खास Signs, खतरनाक जैसे।    

धीरे-धीरे जाने क्यों, इस कार के प्रति मेरे दिमाग में कुछ ऐसा चलने लगा -- 

अरे, ये कोई खास तरह का बहन-बेटिओं को गंडे देने वाला प्रोग्राम तो नहीं? लड़की गुंडों से यहाँ-वहाँ से भाग रही हो जैसे, मगर वो कह रहे हों, ये तो कर के ही मानेंगे? आखिर हमारे भी कोई संस्कार हैं? पूरी ज़िंदगी में एक बार कहीं सैक्स और वो भी स्कैंडल। ताला लगा ज़िंदगी पे ही, कर दी कितने बढ़िया से ज़िंदगी पुरी? और फिर वो कोई साध्वी मोखरा आ गई थी ना, मेरे गाँव आने के बाद? उसे भी तो निकालना था गाँव से? भाभी थी क्या वो साध्वी या मैं? 

या कोई खास नंबर? निकाल दिया गाँव से? शहरी आ गई लगता है, अब? 100% स्कॉलरशिप वाली शहरी? आ गई? या धकेल दी गई, खास षड्यंत्र के तहत? और माँ, बेटे को लग रहा है, जैसे उन्होंने ही किया है सब? ये करिश्मा है Surveillance Abuse and Invisible Enforcements का। इस Invisible Enforcement में आपस में बोलना छुटवाना, या किसी भी तरह की चाहे छोटी-मोटी ही सही अनबन जैसे होना, किसी भी बहाने, पहला कदम है। जिन्हें कोई चूड़े तक पसंद ना हों, वो कोई महाचूड़ी कैसे ला सकते हैं? वो भी बहन तक को अँधेरे में रख? और जैसे ही उसे खबर हो, प्रोग्राम ही prepone हो जाता है, या कहो की करवा दिया जाता है। अहम ये की किसके द्वारा?         

Dea Kin? 

Accept the offer 100% स्कॉलरशिप?

ठीक ऐसे?


ये तस्वीर Deakin यूनिवर्सिटी के पेज से ली गई है।

Young? Beautiful and Dynamic?  
मगर जो घर वि --राज --मान हुआ है, वो तो कुछ और ही बला है।  
    
No offence to the University or anything on this page. 

Rather, what I wanna convey, is that universities or higher education institutes could have solutions to such ruthless exploitation of common people, having no knowledge of today's tech world capabilities.     

"अलग-अलग महाद्वीपों की यूनिवर्सिटीज की खासियतों (शोधों) पे आने वाली पोस्टस में काफी कुछ होगा, खासकर उनके समाजिक प्रभावों पर", किसी पोस्ट में लिखा था शायद? 

मैं ऑस्ट्रेलिया को जानने की कोशिश कर रही थी, खासकर Australian Universities और क्या खास है वहाँ? ऐसे ही किसी यूनिवर्सिटी के विडियो को देखते हुए, इस यूनिवर्सिटी का विज्ञापन आ गया, ध्यान आकर्षित करने के लिए। और अचानक से काफी कुछ एक साथ दिमाग में घुम गया। खासकर, आसपास की कुछ खास शादियाँ (खासकर दो) और अजीबोगरीब-से जमीनों के झगड़े।        

चलो जमीनों से परे थोड़ा AI (Artificial Intelligence) पे आएँ। या targeted विज्ञापन पर? या पिछले कुछ महीनों में हुई इन खास दो शादियों पर? भाभी के जाने के बाद। एक आसपास के ही घर और एक खुद के। ज्यादातर को दोनों ही पसंद नहीं आई या कहो समझ ही नहीं आई। पसंद तो बहुत बाद में आता है। 

जब आसपास वो शादी हुई, तो आसपास काफी खुसर-पुसर हुई। ठीक वैसे, जैसे इधर। इंटरकास्ट थी, इसलिए? या उससे आगे कुछ, इसलिए? मैं ये जानने की कोशिश में थी, की आसपास कोई और भी ऐसी शादी हुई है क्या? जैसा पहले से ट्रेंड बता रहा था। और लो जी, दूर क्यों ढूढ़ रहे हो?

"दीदी, विनय-पूजा केस भूल गए?" 

वो तो लव मैरिज थी। महज घर वालों के ऑब्जेक्शन को छोड़ दें तो। उस वक़्त आज वाला, hifi tech world भी नहीं था। और वो केस इस कदर एक्सट्रीम भी नहीं था। और वहाँ शायद एक के बाद एक, इतने सारे Enforcements भी नहीं थे। पहले भाभी की मौत, फिर गुड़िया का अपहरण जैसे। फिर ये खास घर एंट्री। और फिर मंझले भाई का अपहरण और जमीन को हड़पना जैसे। सब कुछ मिलता-जुलता सा लग रहा है जैसे। या अलग-अलग, किस्से-कहानी हैं?       

प्रश्न ये नहीं है, की ये शादियाँ किसी को पसंद हैं, की नहीं हैं। कितने दिन चलेंगी या नहीं, ये भी नहीं है। 

इसका जवाब ये है, की ये सब सिर्फ Surveillance Abuse नहीं है, बल्की इंसानों के मानव-रोबोट फैक्टरी के प्रोडक्शन की कहानियाँ हैं। मानव रोबॉट प्रोडक्शन फैक्टरी, इस राजनीतिक पार्टी की और उस राजनीतिक पार्टी की।     

सेल सिर्फ जमीनों की होती, तो भी देखा जाता। ये तो मानव-रोबोट्स फैक्टरियों में, इंसानो की सेल हो रही हैं। बिलकुल वैसे, जैसे Slaves की होती हैं।       

और कहानी इतनी भर नहीं है। 

Next Generation रोबॉट्स प्रोडक्शन के तरीकों को जानोगे, तो क्या सोचोगे, इस महान HiFi संसार के बारे में? F और M ज़ोन स्पैशल भी कुछ चल रहा है, जो मुझे समझ आया। और इस F के साथ-साथ, एक और F जोन गाड़ी, कभी इधर तो कभी उधर। मतलब, जैसा आपके सामान के साथ हो रहा है, वैसा-सा ही कुछ इंसानों के साथ? और लोगों की ज़िंदगियों को जैसे 24 Hours स्क्रिप्टेड शो बना रखा हो। बिलकुल, जैसे लैब प्रोटोकॉल्स में होता है। कितना, क्या-क्या चाहिए। क्या-क्या मिक्स करना है। क्या-क्या, अलग-अलग रखना है। कहाँ-कहाँ रखना है। किन conditions में रखना है। कब तक रखना है। और कब, कहाँ चलता करना है। और हो गया काम।      

ठगे-ठगे से महसूस कर रहे हैं, 

कुछ उधर भी 

और कुछ ईधर भी?

और उन्हें मालूम ही नहीं, 

की जो हुआ है 

या हो रहा है 

वो सब क्यों और कैसे हो रहा है?   

Impact of surveillance abuse and invisible ways of Enforcements on Society 

Friday, February 9, 2024

जालसाजी करना, हेराफेरी करना (Social Tales of Social Engineering) 19

जालसाजी करना, हेराफेरी करना (Creation of Fake Situations)

जो सच ना हो, वो दिखाना, बताना या अनुभव करवाना। 
Brainwash, जो पहले से है, उसे खत्म कर या मिटाकर नया रख देना। उसपे, ये दिखाना, की ये आपके फायदे के लिए है। चाहे उसमें आपका नुक्सान ही क्यों हो। 
किसी को गोटियों की तरह प्रयोग करने का मतलब यही होता है। वहाँ पे, आपको सब आपके भले के लिए दिखाया जाता है। दुष्परिणामों के बारे में नहीं बताया जाता। ऐसा करने वाले कोशिश करते हैं, की दुष्परिणामों की आपको भनक तक ना लगे। क्यूँकि, अगर ऐसा हो गया, तो सामने वाले का खेल खत्म। 
कुछ वक्त हो सकता है, आपको फायदा हो। वो विस्वास दिलवाने का अहम हिस्सा है। विस्वास या आस्था, इंसान से बहुत कुछ आसानी से करवा देते हैं। जैसे कुछ लोग, अपनों तक की बली सकते हैं, उसी विस्वास के सहारे। Brainwash करने वाले जब नुकसान करेंगे, तब नहीं बताएँगे। वो नहीं बताएँगे की यहाँ ऐसी कोई बीमारी है ही नहीं। नहीं बताएँगे, अगर हॉस्पिटल गए तो क्या परिणाम हो सकते हैं। इसमें गए तो क्या और उसमें गए तो क्या। नहीं बताएँगे की जो बदलाव आपके घर में हो रहे हैं या कहो की करवाए जा रहे हैं, उनके परिणाम आगे क्या हो सकते हैं। जो गाड़ी या कोई खास व्हीकल्स आपको धकेल दिए गए हैं, वो कैसे कैसे हादसे करवाने के लिए दिलवाए हैं। अजीब लग रहा होगा ना, आपको ये सब पढ़कर? आएँगे इन सब पर भी आगे कुछ पोस्ट्स में।      

कितनी तरह से जालसाजी या हेराफेरी हो सकती है? 
और कितनी ही तरह के तरीके हो सकते हैं, वो सब करने के?    

कितनी तरह की जालसाजी हो सकती है? कोई गिनती ही नहीं। कितने भी तरह की हो सकती है। 
और कितनी तरह के तरीके हो सकते हैं, जालसाज़ी करने के? उनकी भी कोई गिनती नहीं। 
इसे कुछ-कुछ ऐसे समझें, जैसे Tongue Twisters. कितनी तरह के Tongue Twisters हो सकते हैं? कितने ही ईजाद कर लो। बहुत से आपने भी सुने होंगे? जैसे --

समझ समझ के समझ को समझो, समझ समझाना भी एक समझ है। 
डबल बबल गम, बबल गम डबल।  
खड़ग सिंह के, खड़काने से, खड़कती हैं, खिड़कियाँ।  

छोटे बच्चों को इन्हें जल्दी-जल्दी बोलने को बोलो। शायद नहीं बोल पाएँगे। आराम से? शायद, एक-दो बार गलत करने पे, सही बोल पाएँ। 

शायद इसीलिए कहते हैं, जल्दी का काम शैतान का काम। कोई भी काम जल्दी में ना करें। हो सकता है, कोई शैतान करवा रहा हो, और बाद में पछताना पड़े। वो Mind Twisters (दिमाग घुमाऊ) हो सकते हैं। मतलब, दिमाग को बंद कर दें, चाहे कुछ वक़्त के लिए ही सही। या दिमाग घुमा दें, किसी और ही एंगल पे। आराम से करोगे, तो दिमाग को सोचने का वक्त मिलेगा। और शायद कोई शैतानी या दुश्मनी या जालसाज़ी, वक़्त रहते सामने आ जाए। घुमाया हुआ दिमाग वक़्त रहते, ठिकाने आ जाए।  
जल्दबाज़ी में और भी बहुत कुछ होता है। जैसे गुस्सा, जल्दबाज़ी करता है। काम, क्रोध, द्वेष जैसी कितनी ही जल्दबाज़ियाँ, कितनी ही बिमारियों और नुकसानों की वजह बनती हैं। 

अचानक फेंके गए Mind Twisters शायद समझ ना आएँ। Mind Twisters, आपकी भावनाओं से खेलते हैं। भड़काना जैसे। गुस्सा दिलाना। किसी के खिलाफ नफरत या लगाव पैदा करना। किसी और की आफ़त, आपके सिर डालना।  क्यूँकि, उनका मकसद ही सामने वाले को दिमाग से अँधा करना होता है। आम भाषा में जिसे, दिमाग से पैदल भी कहते हैं। बहुत बार, दिमाग से अँधा करने का मतलब, अपनों से या आपका हित चाहने वालों से दूर करके, अपना स्वार्थ सिद्ध करना भी होता है। नहीं तो, क्यों किसी को दिमाग से अँधा करने की कोशिश करना? शैतान लोग ही कर सकते हैं, ऐसा काम।     

कोरोना का वक्त Mind Twisters का सबसे बढ़िया उदहारण है। इस वक़्त ने ऐसे-ऐसे लोगों को उठा दिया, जिन्हें अभी ज़िंदा रहना था। मगर कैसे उठा दिए?

दुनियाँ को बंद करके। लोगों के दिमाग में भय के भूत घुसाकर। जो कमजोर होंगे, थोड़े बहुत भी बीमार होंगे, वो ऐसे माहौल में वैसे ही उठ जाएँगे। वहाँ ज्यादा कुछ करने की जरुरत नहीं। इधर-उधर के खामखाँ के, धक्के खिला दो। ये दवाई खत्म या वो खत्म गा दो। जिन्हें BP जैसी, थोड़ी बहुत भी शिकायत रही हों या ना भी हों। सिर्फ दिल से कमजोर हों, उन्हें भी आसानी से उठाया जा सकता है, ऐसे माहौल में। जिन्हें बहुत वक़्त से थोड़ी बहुत ही सही, बीमारियाँ हों? वैसे भी, ऐसे माहौल में तो किसी को भी, एक बार हॉस्पिटल पहुँचा दो और हो गया काम। शैतान, जिसका चाहें, उसका कर देंगे काम तमाम। ये भी नहीं कह सकते, की सब हॉस्पिटल और सब डॉक्टर ही बुरे हैं। बस कुछ ही होते हैं, ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी हाय-तौबा मचवाने के लिए। ज्यादातर मीडिया इस दौरान, वही कर रहा था। वैसे डॉक्टर वो भी हैं, जिन्होंने खुद ऐसा करने वाले डॉक्टरों या वैज्ञानिकों या प्रोफेसर्स के बारे में हिंट्स बाहर धकेले। चाहे गुपचुप ही सही। अब मरने से तो हर किसी को डर लगता है, ना। और कुछ नहीं तो देशद्रोह ही लगा के अंदर कर देंंगे।    

जालसाज़ी, हेरा फेरी या दिमाग घुमाऊ (Mind Twisters) तरीके अपनाके, क्या कुछ किया जा सकता है?
जो कुछ आपके पास है, वो सब छीना जा सकता है। 
शायद आपके ज्ञान या पढ़ाई को छोड़ के? या शायद वो सब भी छीना जा सकता है?

और क्या कुछ किया जा सकता है?
जो बीमारी आपको ना हो, वो बताई जा सकती है। 
आपको सिर्फ डॉक्टर तक ही नहीं, बल्की हॉस्पिटल एडमिट तक किया जा सकता है। 
ऑपरेशन किया जा सकता है। 
अंग बदले जा सकते हैं। निकाले जा सकते हैं। 
इंसान को दुनियाँ से ही उठाया जा सकता है। 
ऐसे ही कोई इंसान, घर से बदला जा सकता है। किसी की जगह कोई और लाया जा सकता है। आपका घर, नौकरी, रिश्ते-नाते, जमीन-जायदाद भी छीना जा सकता है। हड़पा जा सकता है। 

और क्या कुछ किया जा सकता है? सोचो आप? 
अगर वक़्त रहते आप संभल जाएँ या आसपास कोई ऐसा हो, तो बहुत कुछ वापस भी लाया जा सकता है। उसके भी तरीके हैं। हाँ। खोया वक़्त और दुनियाँ छोड़ के गया इंसान वापस नहीं लाया जा सकता। 
आगे की कुछ पोस्ट्स में, कुछ ऐसे ही उदाहरणों पे आते हैं, आम आदमी की ज़िंदगी से। और शायद कुछ खास तरह की और जमीनों की खरीद परोख्त पे। गाड़ियों से जुड़े अजीबोगरीब हादसों पे और बीमारियों पे भी।      

खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान (Social Tales of Social Engineering) 18

1-2-2024

1 Feb? कुछ अच्छा-सा दिन नहीं है। किसी घिनौने षड़यंत्र की कहानी-सा है जैसे?

खामखाँ के किस्से और कहानीयां । और लालचों और स्वार्थ के घेरे। इधर से भी। उधर से भी और उधर से भी। 

खैर। जिनका सामान यहाँ इस खंडहर में है, उन्हें उसी दिन खबर कर दी थी। वही खास नौटंकी वाले दिन 28-1-2024 ।

अब कोई खंडहर, सिर दर्द बना हुआ हो, रोज-रोज इस बहाने या उस बहाने, तो जानना तो चाहिए, की ऐसा क्या है उसमें? 

1-2-2024, दरवाजा ठीक करने के नाम पे मिस्त्री आता है। दरवाज़ा खोलो, दूसरी साइड अंदर जाना है। 

तो उधर से ही जाओ। 

वो तो बंद है। 

करने क्या आए हो?

मतलब, अंदर जाके ठीक होगा। 

हाँ। तो वहीं से जाओ और करदो।

फिर सोचा मैं भी तो देखूँ, ऐसा अंदर क्या है? उसे कौन-सा ठीक करना था। ड्रामा किया। यूँ का यूँ अटकाया और चल दिया।      

ये तो पता था की, नरेंद्र अंकल का सामान है। कुछ दादा बलदेव के पुराने घर का बचा-खुचा। दादा हरदेव की साइड वाले खंडहर में। इस खंडहर को इतने सालों से अंदर से कभी नहीं देखा। वैसे, इस खंडहर को कभी माँ लेना चाहते थे, जब ताऊ रणबीर इसे छोड़ के गाँव के बाहर की साइड गए। मगर पता नहीं क्यों, उन्होंने दिया नहीं। मुझे खासकर, ये खंडहर आधा इधर और आधा उधर काफी बुरा लगता था। एक हिस्सा बलदेव सिंह का और दूसरा हरदेव सिंह। कई बार मैंने खुद रिक्वेस्ट की ताऊ से, इसे हमें देने की। शुरू में उन्होंने मना कर दिया। बाद में शायद स्कूल वाली जमीन का लफड़ा उलझ गया। वो दादा से वो जमीन लेना चाहते थे, किसी दूर वाली जमीन के बदले। मगर दादा ने मना कर दिया, क्यूँकि हमें भी उसकी जरुरत थी, शायद उनसे ज्यादा। 

जब मैं गाँव आई, कोरोना काल की धकेली हुई, तो मुझे लगा, क्या कहीं और बनाना। इसी खंडहर की बात करके देख लेते हैं। पता नहीं कितने दिन और रहना है यहाँ। क्यूँकि, उस वक़्त अपने गाँव से ज्यादा सुरक्षित जगह, कहीं और नजर नहीं आई। अब ताऊ भी नहीं रहे, तो शायद भाई-भाभी में, वो ज़िद्द ना हो। पर बड़ा ही अजीबोगरीब जवाब रहा, कांता भाभी का। पूछेंगे। देखेंगे। वगैरह। माँ से डाँट खाई, वो अलग। अब भी यही घर बचा है, लेने को? बात भी सही थी। उसके बाद एक प्लॉट पड़ा है, उसके बारे आंटी से बात हुई। कुछ हिस्सा हमारा और हमसे थोड़ा ज्यादा उनका। दोनों मिलके, थोड़ा ठीक हो जाता। और भी ज्यादा अजीब जवाब। ज्यादा पैसे वाली है। मुझे कुछ समझ नहीं आया, पर अजीब जरूर लगा। कई बार यहाँ-वहाँ से भी ऐसा कुछ सुना पैसे को लेकर, कितने पैसे जोड़े हुए हैं। मेरे लिए ये सब अजीब था, क्यूँकि कभी किसी ने ऐसा पूछा ही नहीं। हाँ। एक-आध बार कहीं से ऐसा जरुर सुनने को मिल जाता था, की पैसे जोड़ले थोड़े-बहुत, काम आएँगे। कोई पूछे उनसे, कब काम आएँगे? मरने के बाद? जो जुड़े पड़े हैं, वो काम आ गए क्या? वैसे, ये सब यहाँ बताने का मतलब? वही लोग हमारी जमीन के खरीददार हो रखे हैं, जो अपना खाली पड़ा बहुत ही छोटा-सा, खंडहर का एक टुकड़ा तक नहीं दे सके। वो भी वो टुकड़ा, जिसकी उन्हें जरुरत भी नहीं थी। और खुद जिसे खोले, जिन्हें पता ही नहीं, कितने साल हो चुके। और धोखे से वो कैसी जमीन को सेल पे रख गए? दुनियाँ कभी-कभी जैसे, सिर के ऊप्पर से जाती है। इससे भी अहम, क्या ये सब इस थोड़ी-सी जमीन की बात है? या इससे आगे काफी कुछ है? मेरे लिए खासकर, वो ज्यादा अहम है।         

ये सब बातें, कहीं और चले तमासे की हूबहू-सी कॉपी जैसे हैं। कहीं इस पार्टी की, तो कहीं उस पार्टी की। इस खंडहर में, मेरी कोई खास रुची कभी नहीं रही। मगर, अजीबोगरीब ज़मीनों के किस्से-कहानियों ने जरुर काफी कुछ बताया। जैसे लोगों के जाने के बावजूद, सालों-साल जमीन उनके नाम क्यों रहती है? या लोग कैसे-कैसे खंडहरों के मालिक रहते हैं, वो भी जब वो शायद किसी और के काम आ सकें? या तब, जब वो खंडहर, अड़ोस-पड़ोस के लिए खतरा बन चुका हो। जैसा ताऊ के इस खंडहर का हाल, जिसकी तकरीबन सब साथ वाले पडोसी, शिकायत कर चुके। और लोगबाग जमीन हड़पने की कोशिश में कोई ऐसी जमीन, जिसका खतरे से कोई लेना-देना ना हो? जो जमीन उपजाऊ हो, उसपे गाँव के पास और जिसपे खेती हो रही हो। या शायद जो जमीन, भाभी के खात्में के षड़यत्र की कहानी बना दी गई? ऐसी ज़मीने या ऐसे स्कूलों के शिक्षा के नाम पे धंधे किस काम के, जो इंसानो की कब्रों के ढेर की दास्ताने हों? उससे भी अहम, बच्चों तक को जमीनों के चक्करों में उलझा दें? वो भी छोटे-छोटे जमीनों के टुकड़ों पे? कुछ ज्यादा ही अजीब राजनीती है, जिसे अंजान, आम इंसान सबसे बुरी तरह भुगतता है।   


आओ दो अजीबोगरीब स्टोरों की कहानी जानते हैं। 

खंडहर और कबाड़ 2. 4. 2  

इस खंडहर पे उजला नाम का जरा हुआ ताला है। और बाहर का दरवाजा टूटा पड़ा है, एक साइड से। आराम से हटाओ और घुस जाओ। अंदर घुसते ही, कुछ पुरानी कड़ियाँ और पथ्थर और ऐसा ही कुछ और कबाड़। अंदर जाओ, तो एक बड़ी-सी सन्दुक आंटी की, और उसपे 2-काले बक्से, नरेंद्र अंकल के। जिनपे उनका नाम लिखा है और 2. 4. 2.  वहाँ से अंदर की तरफ जाओ, तो एक और संदुक और जरे-गले कुछ तसले, बाल्टियाँ, एक मोटर और ऐसा-सा ही कबाड़। ये सब देखने का मौका मिला,जब 1-2-2024, को दरवाजा ठीक करने के नाम पे मिस्त्री आया। ठीक कर गया, क्या? हाँ। एक ईंट का टुकड़ा, एक टूटी-साइड वाले दरवाज़े पे रख गया। अजीब ड्रामा नहीं है?  

खंडहर और कबाड़ 2. 4. 2, डिज़ाइन कुछ-कुछ ऑफिस 105 स्टोर टाइप? जिसको ऑफिस वालों ने बंद कर रखा था। वैसे, मेरे गाँव के पते में भी 105 लगता है। ये नंबर भी बहुत ज्यादा पुराना नहीं है, शायद। अंकल की मौत भी किसी 5 तारीख की ही है (5-1-2008)। पता नहीं अब, इन सबका आपस में क्या लेना-देना हो सकता है? पार्टियाँ अपने कोढ़ के हिसाब से, ये सब लगाती या हटाती या बदलती रहती हैं। और भूतों की तरह, कुछ को कहीं अंदर रोक ताले जड़ देती हैं। फिर जब जरुरत पड़े, उन्हें बाहर निकाल देती हैं। 

ऐसे ही पहले मदीना, सिर्फ मदीना-कोरसान और मदीना-गिंधरान था। फिर मदीना-A और मदीना-B भी लग गया। और उसके बाद पता नहीं कबसे, 105 यहाँ के पते के साथ जुड़ गया। ऐसी-सी ही घरों के नंबरों और उनमें रहने वालों की या छोड़ के चले जाने वालों की कहानियाँ है।  

स्टोर 105, UIET, MDU 

ये स्टोर पहले शायद M.Tech, Tutorial रूम था। शायद, क्यूँकि पक्का ध्यान नहीं मुझे। मगर कुछ वक़्त बाद ही अजीबोगरीब झगड़े शुरू हुए, कुछ faculties के बीच। और कोई लैब किसी ने Biotech से छीन ली। कोई लेक्चर थिएटर ऐसी ही, कोई कहानी बना। और कुछ छोटे-छोटे रुम इधर वालों ने, तो कुछ उधर वालों ने बंद कर दिए। तब तक मुझे ये सब, ऐसे समझ नहीं आने लगा था। मगर अजीबोगरीब लगता था, की लोगबाग इतनी जगह को क्या खाएँगे, वो भी ऑफिस की जगह। या इन कमरों पे या लैब्स पे ताले क्यों जड़ दिए, किसी के तो काम आते। जब मैं डिपार्टमेंट कोऑर्डिनेटर बनी, मैंने वो सब खुलवाना शुरू कर दिया। वैसे भी, उन दिनों जो मेरी लैब्स या classes में पढ़ाई हो रही थी, वो सब जैसे खटकने लगा था। ऐसे ही ये छोटा-सा स्टोर था 105, Ground Floor। क्या था इसमें? 2-Whiteboard, पुराने, एक बड़ा सा गत्ते वाला डिब्बा और उसमें ढेरों ऑफिस के पुराने लैंड-लाइन्स फोन, एक्सटेंशन वगैरह। ऐसा-ही एक-आध और सामान शायद। 

चलता करो इस कबाड़ को, क्यों स्टोर किया हुआ यहाँ। ये कमरा, कहीं और काम आएगा। 

मैडम पड़ा रहने दो, इसे। 

क्यों?

और कमरे बहुत हैं। 

तो उन्हें भी खोलते हैं, ना।   

और ये भुतिया स्टोर, मुझे साइको तक पहुंचाने की कहानी बने। अब पढ़ना-लिखना भी मना है? ये कैसे संसार में हैं, हम? पढ़ लो, मगर ऐसे खुलम-खुला बात करना मना है, शायद? नहीं तो, देशद्रोही, विद्रोही, पागल और पता ही नहीं, कैसे-कैसे एसिड अटैक हो जाएँगे। ज्यादा सफेद बनते हो, काला कर देंगे बिलकुल या रंग-बिरंगा। कोढों की बात, कोढों में ही करो? मगर सच में लोगों पर और रिश्तों पर, ऐसे अटैक हों तो? ऐसे अटैक तो, पुराने ज़माने में होते थे ना? Witchhunt Type? या शायद आज भी होते हैं?                 

फाइल की बात करें तो, भारती-उजला केस और इस उजला ताले वाले खंडहर को कैसे देखते हैं आप? क्या है उस केस में? CRISPER CAS9, International in Design?    

और स्टोर-105? किसी ऑस्ट्रेलियन 5 डिजिट और यूनिवर्सिटी में ऐसी कोई कहानी मिल सकती है क्या?

ऐसे ही 4 और 2 नंबर से, किसी और महाद्वीप पे? अमरीका या यूरोप भी चल सकते हैं, घुमने। ऐसे ही कोई भी नंबर और उनके जोड़-तोड़, छोटे-छोटे गाँव, कस्बों से लेकर, दुनियाँ की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज तक कुछ कहते हैं शायद?  

क्या कह सकते हैं? जब यूनिवर्सिटीज की सैर पे चलेंगे, तो विस्तार से जानेंगे। तब तक, आप सोचो? थोड़ा बहुत पहले किसी पोस्ट में लिख भी चुकी शायद। 

Monday, February 5, 2024

खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान (Social Tales of Social Engineering) 17

28-01-2024 को कोई नौटंकी होती है। बच्चों द्वारा करवाई जाती है। 

कोई आकर बोले, Sister दरवाजा खोल दो, आपके घर के ऊप्पर हमारी बॉल आ गई। 

मेरे यहाँ?

हाँ, Sister। 

ओ Sister के भाई, गामां मैं पहली बात ते Sister ना होया करे। बेबे होया करे। 

ठीक सै बेबे। 

अर, बॉल, हमारे यहाँ नहीं। इस बंद पड़े खंडहर के अंदर गई। 

तो वहाँ से निकालने दो। 

हमारे यहाँ से तो रस्ता बंद किया हुआ है मैंने। तुम जैसे बॉल वालों से बचने के लिए। 

फिर कैसे निकालें?

अंदर जाओ। 

मगर कैसे? 

जहाँ खड़े हो, वहीं से। 

पर ये तो बंद है। 

हाँ। दिखावे मात्र। 

चाबी दे दो। 

मैं इसकी चाबी नहीं रखती। वहाँ सामने मिल जाए शायद या जिनका ये घर है, उनके पास। नहीं तो बॉल ही चाहिए तो खुला पड़ा है ये। 

पर ताला?

तुम्हारे जैसों के लिए। साइड से देख। 

खँडहर और अपना नन्हा-मुन्ना 



हाँ। ये बुआ रौशनी वाला घर ही है। 


मगर,  बुझो तो जाने में ये कौन-कौन हैं? 

कितने आदमी थे रे विराट?
चलो राज को राज ही रहने दो। 
क्यों Vi... ? या Ka... ?   
बॉल उठाई और बाहर। 

ये खास बड़े खिलाड़ियों वाला in, out, तो नहीं? 
सुना है, बड़े-बड़े लोग खेलते हैं? 
 
वैसे, ऐसा क्या खास सामान हो सकता है इस खंडहर में और किसका?

खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान (Social Tales of Social Engineering) 16

  28-01-2024 को कोई नौटंकी होती है। बच्चों द्वारा करवाई जाती है। 

चलो, आपको किसी से मिलवाती हूँ। छोटा-सा, क्यूट-सा शैतान है, आसपास ही। शैतान कहना गलत है। बच्चा है, नादान, अंजान। जिससे थोड़े बड़े, उल्टे-पुल्टे काम करवाते हैं। पता है, इतने बच्चे को अब कौन क्या कहेगा? कुछ भी करवाओ? सबसे बड़ी बात, कुछ बड़े भी उसमें शामिल हैं। कहो तो मानेंगे नहीं। यही शायद से बच्चों को बिगाड़ने की तरफ धकेलने की पहली सीढ़ी होती है। जहाँ आप उसे गलत-सही बताने की बजाय, खुद उसके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। 

क्या करता है ये बच्चा?

घर के अंदर आके mattress पे पानी के इंजैक्शन लगा जाना। थोड़े बड़ों के कहने पर, बजरी फेंक जाना। एक खास खेल (खेल?) है बच्चों का, अपनी छतों से या पड़ोसियों की छतों पे चढ़ कर, इस खंडर वाली छत पर या इधर हमारी साइड बॉल फेंकना। एक-दो बार आप दे देंगे, बच्चे समझ के। मगर फिर समझ आएगा, ये जहाँ से कह रहे हैं बॉल आ रही है, वहाँ से तो बॉल यहाँ नहीं आएगी। फिर?

इस नन्हें शैतान को ही पकड़ो और आराम से पूछो। बच्चा ज्यादातर सच बोलता है, जब तक झूठ बुलवाने वाले उससे झूठ नहीं बुलवाते। फिर मेरी वो थोड़ी सुन भी लेता है। वो फलाना-धमकाना का नाम लेकर बताता है, की इन्होंने छत के ऊप्पर चढ़ के फेंकी है। नीचे से नहीं आती वो। कैसे अजीब बड़े हैं, अपनी ही बहन, बेटी को परेशान करने के लिए बच्चों का साथ दे रहे हैं? कैसे लोग अपने बच्चों को ऐसा सिखाते हैं? शायद वही, जिनके यही बच्चे बड़े होकर कुछ उलटे-पुलटे कारनामे करेंगे? और ये बड़े कहते मिलेंगे की हमारे बच्चे तो बहुत शरीफ हैं? जब तक वो अच्छे-खासे केसों में या जेल तक के चककरों में ना फंस जाएँ? और इनके घरों को ही लुटाने-पिटाने ना लगें? तब तक ये उनके साथ रहेंगे? अरे नहीं। अब इतने लाड-प्यार से पालेंगे तो आगे भी ये लाड-प्यार जारी रहेगा? या कुछ कम हो जाएगा?

कुछ कह सकते हैं, "Petty People, Petty Crimes?"

ऐसे ही जैसे कुछ और, "Big People, Big Crimes?"

मगर इन दोनों में फर्क है। दिन-रात का फर्क। 

बड़े लोग चाहेंगे तो अपने बच्चों को बचा लेंगे। 

गरीबों में वो औकात होगी?

बड़े लोग आपको खुद के केसों में कोर्ट्स के धक्के लगाते भी नहीं मिलेंगे। 

ये सब वो घर बैठे, कुछ फोन कॉल्स से संभाल लेंगे। वहाँ अगर कोई दिखाई देगा, तो उनकी तरफ से लड़ते उनके वकील। 

आपके बच्चों ने जुर्म नहीं भी किया होगा या उतना बड़ा जुर्म नहीं भी होगा। चाहे आपके पास सबुत भी हों। आप सालों धक्के खाकर भी हार जाएँगे। और वो जीत जाएंगे, सारे सबुत उनके खिलाफ होते हुए भी। या मान भी लो की आप जीत भी गए तो क्या इस दौरान का वक़्त वापस ला पाएँगे? 

गरीबों की ज़िंदगियों को वक़्त ना सिर्फ रोक देता है, बल्की कभी-कभी अगर पीछे ना भी धकेल पाय, तो कोशिश जरूर करता है। 

आसपास कितनों की कहानी है ये? तो क्यों पड़ना चाहते हो, ऐसे लफड़ों में? या तो ऐसे लोगों से, ऐसी जगहों से, ऐसे मोहल्लों से दूर निकलो। और अगर किसी बेहतर जगह निकलना मुश्किल है, तो अपने आसपास को ही बेहतर बनाओ। वो घर से शुरू होता है। फिर आसपास, फिर मौहल्ला। राजनीती या ऐसी कोई पार्टी उस सबके बाद। जिन्हें यही नहीं मालूम की अपने बच्चों के लिए काम कैसे करते हैं? शायद वही फिर कहते मिलते हैं, की हमने तो बहुत किया अपने बच्चों के लिए, बच्चे ही ऐसे निकले?

और ये सिर्फ किसी बॉल के खेल या पानी के इंजैक्शन या बजरी की कहानी नहीं । इनके और बहुत से खेल तो इनसे भी महान हैं। इसमें सबसे अहम है, ये खेल आते कहाँ से हैं? क्या दुनियाँ की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी भी ऐसा कुछ खेल रही हैं? कहा था ना, आपको दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी की सैर पे लेके चलुँगी, अपने साथ। उनके हिसाब-किताब से भी अपने आसपास को जानना सीखो। जानने की कोशिश करेंगे उसे भी, आगे किन्हीं पोस्ट्स में।और हो सका तो ऐसी कुछ यूनिवर्सिटीज को ऐसी जगहों के लिए काम करने के लिए प्रेरित करना। जो कई सारी यूनिवर्सिटी पहले से ही कर रही हैं।  

खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान (Social Tales of Social Engineering) 15

 28-01-2024 को कोई नौटंकी होती है। 

बच्चों द्वारा करवाई जाती है। इतना कुछ बताने के बावजूद, लोगों को समझ नहीं आया की अपने बच्चों को रोज-रोज, इन राजनीती से प्रेरित पार्टियों की नौटंकियों का हिस्सा ना बनाएँ। क्यूँकि, ये ना उनके लिए सही और ना ही आपके लिए। ये सब एक तरफ जहाँ, फुट डालो, राज करो का हिस्सा है। तो दूसरी तरफ आपके बच्चों की, और साथ में कहीं न कहीं आपकी ज़िंदगियों को भी, किसी सामाजिक घड़ाई का हिस्सा बना रहे हैं। इन ज़िंदगियों को कोई खास दिशा दे रहे हैं। जो आने वाले वक़्त में शायद सही ना हो। 

जो पार्टी जितना ज्यादा भाईचारा-भाईचारा करती है, मान के चलो, उसने उतना ही भाईचारा बिगाड़ा हुआ है। वैसे ही जैसे, जो पार्टी जितना ज्यादा प्रोग्रेसिव-प्रोग्रसिव कर रही है, वो कहीं ना कहीं, उतनी ही ज्यादा दक्यानुसी है। और भी बहुत कुछ ऐसा-सा है, इन पार्टियों के बारे में। बिलकुल ऐसे जैसे, हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और।  वैसे भी राजनीती का भाईचारे से क्या लेना-देना? जहाँ जितनी ज्यादा राजनीती होती है, वहाँ उतने ही ज्यादा झगड़े। नहीं? 

इसलिए अपने लिए काम करो। अपनों के लिए काम करो। अपने आसपास के लिए काम करो। इंसान के लिए काम करो, हैवानों के लिए नहीं। ज्यादा खुशहाल रहोगे। अपनों से ज्यादा बातचीत करो और जितना हो सके, उनके साथ वक़्त बिताओ। बाहर के षड़यंत्रों से बचने का एकमात्र रस्ता यही है। अपने आपको इस पार्टी का कहो, ना उसका। जो जितना आपका या आपके मोहल्ले का काम करे, उतनी ही वो आपकी पार्टी। तो कौन-सी पार्टी 5% आपकी है? 10 % है? 20 % है? 50 - 90% है ? थोड़ा ज्यादा हो गया ना? इतनी कोई पार्टी, किसी की नहीं हो सकती। हाँ। आपके अपने जरुर हो सकते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ पर्सेंटेज का हिसाब-किताब हैं। रिश्तों या भाईचारे का नहीं। 

राजनीतिक पार्टीयों ने आपके रिश्तों तक में पर्सेंटेज घुसेड़ दिया है। बाजार घुसेड़ दिया है। यही रिश्तों के बिगाड़ की कहानी है। यही बाज़ारवाद और राजनीती, जहाँ-जहाँ रीती-रिवाज़ों में और धर्म-आस्था में जितना ज्यादा घुसा हुआ है, वहाँ का समाज उतना ही ज्यादा अशांत है।  जितना इस सबसे और ऐसी-ऐसी नौटंकियोँ से दूर हो जाओगे, उतने ही आपके रिश्ते बेहतर होंगे। और बेहतर हैं तब तो पक्का दूर हो जाओ, इन सबसे। नहीं तो ये कैसी-कैसी नौटंकियाँ ही, कल को आपके रिश्तों के दरार की कहानी होंगे। ये राजनीतिक पार्टियाँ पता नहीं कैसे-कैसे भूतप्रेत साथ लेके चलती हैं। उन्हें ये यहाँ-वहाँ स्टोर रखती हैं। जब जरुरत पड़े, उन भूतों को वहाँ से निकालने लगती है। क्यूँकि, जिन्हें कभी खुद ये स्टोर में चलता करवा देती हैं। या खंडहरों में चलता कर देती हैं। कल उन्हीं की जरुरत इन्हें जीत के काम आती हैं। कुर्सियों पर टिके रहने की जरुरतें, पता नहीं इन राजनीतिक पार्टियों से क्या-क्या करवाती हैं? ऐसा ही हर पुरानी वस्तु, ईमारत या जगह की कहानी है। राजनीती के कोढ़ के अनुसार, वहाँ जीत-हार का सामान रखा है? जिन्हें हम भूत (गुजरा हुआ वक़्त ) कहते हैं। ये पार्टियाँ आज का आपका वक़्त बता, उसे आपकी ज़िंदगी का ही भूतप्रेत बना देती है। चाहे आपको ऐसे लोगों से बात किए या मिले सालों या दशकों बीत चुके हों। इंसान की ज्यादातर यादास्त Short Memory होती है। उसे ये पार्टियाँ और कभी-कभी बाजार भी Long Term Memory बनाने पे उतारू हो जाते हैं। सिर्फ और सिर्फ, अपनी जीत के लिए। इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, की आप पर उसका क्या असर पड़ता है। याद रखो, मगर अपनों को, अगर वो दुनियाँ में नहीं हैं तो भी। कुछ ना कुछ अच्छा ही कहते-बताते मिलेंगे। क्यूँकि, वो आपके अपने थे और हमेशा आपका हित चाहते थे। और ऐसे अपनों को आप खास सहज के भी रखते हैं। अपने स्टोर में, अपने दिमाग के स्टोर में। खंडहरों में नहीं। मगर अगर किसी ने, आपसे ऐसा करवाया है तो शायद, आपके भले के लिए नहीं करवाया। 

जिन घरों में या गली-मोहल्लों में, या घरों के साथ लगते, जितने ज्यादा खंडहर मिलेंगे या खामखाँ के सामान से खचाखच भरे स्टोर, वहाँ शायद बीमारियाँ, रिश्तों के बिगाड़ की कहानियाँ, और अजीबोगरीब केस उतने ही ज्यादा? इस विषय पे मेरे विचार, मेरी अपनी पिछले कुछ वर्षों की observation हैं। खासकर, यूनिवर्सिटी से और अब कुछ साल से यहाँ गाँव से। शायद आगे इस विषय पे और भी पोस्ट मिलें। आपके विचार आमंत्रित हैं। क्यूँकि मैं कोई एक्सपर्ट नहीं हूँ इस विषय की। खुद जानने की कोशिश में हूँ, पिछले कुछ सालों से।  

Surveillance Abuse and Control and Creations of Human Robots via Strange Cultures 

खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान (Social Tales of Social Engineering) 14

किसी पोस्ट में आपने राम सिंह हवेलीनुमा छोटे से घर के बारे में पढ़ा। और कहीं शायद रोशनी बुआ वाले घर के बारे में, कहीं एक-आध लाइन शायद? जिस दिन रोशनलाल और टीम, मुझे SUNARIYA JAIL, ROHTAK, लेकर जा रही थी, 26-4-2021, उसी दिन बुआ रौशनी की मौत हो गई। कारण? कैसे? इसी दिन या इससे अगले दिन (?) मेरे डिपार्टमेंट के डारेक्टर ने छुट्टी ले ली, उन्हें भी कोरोना की शिकायत हो गई थी? और पहले वाले डारेक्टर, वापस उनकी जगह। ये सब मुझे जेल से वापस आने पे पता चला। जब मैं घर और अपने वकील को फोन करने अपने पुराने वाले डारेक्टर के घर गई, जिनका घर मेरे कैंपस हाउस के पास में ही था। क्यूँकि अभी तक मुझे फोन और गाड़ी वापस नहीं मिले थे। जैसे पुलिस द्वारा अपहरण और फिर उस 3.5 दिन के खास जेल दौरे के दौरान जो कुछ देखा, सुना या अनुभव किया, इस सिस्टम के बारे में, वो सब कम था? या शायद जानबुझकर दिखाया, सुनाया और अनुभव कराया गया था? उसे डिटेल में, आप कैंपस क्राइम सीरीज के Kidnapped By Police में पढ़ सकते हैं।       

इसी के आसपास बुआ रौशनी की बहु और उनके भाई (मेरे ताऊ, दूसरे दादा का घर) की भी मौत हो गई। कोरोना का वक़्त था। बहुत मरे हैं। क्या खास है? उसपे उन्हें फलाना-धमकाना बीमारी थी। ज्यादा पढ़ाकू-टाइप बकवास नहीं। नहीं तो फिर से, साइको या जेल भी तैयार है। या शायद वो तरीके तो पहले ही अपनाए जा चुके। अबकी बार, शायद इन मौतों के बाद, जो मौतें या बीमारियाँ देखी, खुद अपने घर में, ऐसा कुछ ईलाज हो सकता है? ये सब, ये पार्टियाँ करती कैसे हैं, वो सबसे अहम है।

इसलिए जब भी कोई इधर या उधर की पोस्ट लिखती हूँ, तो कई जगह कॉमेंट्स होते हैं। तुम हो किधर? मेरे पास कोई प्रोफेशन है, जिसने मुझे न्यूट्रल होकर काम करना सिखाया है। और उस प्रोफेशन का मतलब सिर्फ कोई तन्खा, प्रमोशन या पैसा नहीं है। मेरा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च वही है। तो जब भी काम पर होती हूँ, तो वहीं होती हूँ। कोई राजनेता थोड़े ही हूँ, की अपनी सरकार लाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद पे उतारू हो जाउँ? उसपे आप इधर या उधर के लोगों की मौतों पर या बीमारियों पर, कसाईयों की तरह, कोई पार्टी कैसे हो सकते हैं? आम आदमी कसाई थोड़े ही है?

इन सबका खंडहर, ताला और कुछ पुराना सामान से क्या मतलब? आगे कुछ एक पोस्ट इसी के नाम।          

Sunday, February 4, 2024

काबलियत इंसानों को ही मानव-रोबॉट बनाने की? मगर इरादे गलत? (Social Tales of Social Engineering) 13

 मान लो 

एक है चाबी, किसी VYSYA  बैंक की 

एक है अलमारी, GODREJ की 

अब अलमारी और चाबी है, तो ताला भी होगा? 

लेकिन, जो चाबी VYSYA  बैंक के छल्ले मैं है, वो GODREJ की अलमारी की तो नहीं है। 

अब? 

अगर GODREJ की अलमारी पे ताला है, तो कैसे खुलेगा ?

या तो उसकी चाबी से, या नई चाबी बनाकर?

या ताला तोड़कर?   

आप कौन हैं, और क्या परिस्तिथि है? उसी हिसाब से तो काम करेंगे?

अगर अलमारी आपकी है, तो चाबी आपके पास होगी। 

आपसे गुम गई है, या चोरी हो गई है, तो नई लगवा लेंगे।    

ताला तोड़ने की नौबत कब आएगी?

जब ना आपकी चाबी मिले और ना ही चाबी लगाने वाला ?

फिर?

बहुत जरुरी नहीं हो, तो पड़ा रहने देंगे?

बहुत जरुरी होगा, तो तोड़ना पड़ेगा?

आपको अलमारी प्रयोग करनी है। खाली पड़ी है?

या आपकी अलमारी में कुछ खास है, जो आपको चाहिए?   

या शायद अलमीरा आपकी है ही नहीं? आप चोर हैं?    

तोड़ने के तरीके क्या होंगे?

ईंट, पथ्थर, हथोड़ा या पिस्तौल?

अब ये भी निर्भर करता है, की आप कौन हैं? और आपके पास, क्या आराम से उपलभ्ध है?

ये कोई अलमारी भी हो सकती है। कमरा भी। और घर भी। और ऑफिस भी। 

 

क्या आप ऐसा ही इंसान के साथ कर सकते हैं? वो भी उसे महज़ कोई अलमारी, कमरा या घर जैसी निर्जीव वस्तु समझकर?

और अगर कोई ऐसा ही कहीं कर रहे हैं। तो वैसे-वैसे से ही, या उससे भी ज्यादा चोट वाले काम, कहीं और हूबहू करवा सकते हैं? वो भी ऐसे की जिनसे ऐसा करवा रहे हों, उन्हें खबर भी ना हो, की कोई और उन्हें किसी मानव-रोबॉट की तरह प्रयोग कर रहे हैं? 

ये हूबहू घड़ाईयों के किरदारों को तो ऐसे लग रहा है, जैसे वो सब खुद ही कर रहे हैं? 

और शायद कर भी रहे हों?  

मगर, फिर ये गुप्त तरीके से ऐसा करवाने वाले कौन हैं? और कहीं वो ऐसा करते वक़्त, कुछ ज़िंदगियाँ तो बर्बाद नहीं कर रहे? या शायद घर के घर? मौहल्ला और समाज ही?   

जिनके पास इतनी काबलियत है की वो इंसानों को ही मानव-रोबॉट की तरह प्रयोग करने लगें, वो भी गलत या खतरनाक इरादों से। क्या वो उस काबलियत का सही प्रयोग नहीं कर सकते? 

कुछ ऐसे ही असली ज़िंदगी के और केस लें? आगे किन्हीं पोस्ट में।