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Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Thursday, November 16, 2023

माहौल

कुछ भी करने या करवाने के लिए माहौल अहम है। आप खुद जिस माहौल में रहते हैं, उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। आपको किसी से कुछ करवाना है, तो आपको उस इंसान को ऐसा माहौल देना बहुत जरुरी है। चाहे फिर वो अच्छा हो या बुरा। इंसान को मानव रोबोट बनाने में इस माहौल की अहम भुमिका है। आपको या आपके अपनों को पता लगे बगैर, ऐसे-ऐसे माहौल में धकेलने की कोशिश होती है, जिससे सामने वाले का स्वार्थ सिद्ध हो जाए। जब पार्टियों की सामाजिक स्तर पर सामान्तर घड़ाई होती हैं, तो वो सबसे ज्यादा काम उनकी स्वार्थ सिद्धि वाले माहौल में धकेलने या माहौल को ऐसा बनाने में करते हैं। आप कैसे माहौल में हैं, वो माहौल उनकी स्वार्थ सिद्धि में कितना उपयोगी है? अगर नहीं है, तो उसे बदलो। मानव रोबोट घड़ाई का ये अहम कदम है। इससे पहले उनके पास आपके बारे में बहुत सी जानकारी भी होनी चाहिए। वो जानकारी जितनी ज्यादा होगी, उतना ही आसान होगा, उनके अनुसार आपको गढ़ना।     

जहाँ अच्छे के लिए हो, वहाँ तो सही है। मगर जहाँ बुरे के लिए हो, वहाँ सतर्कता बहुत जरुरी है। नहीं तो कोई आपका अपना, उनके प्रयोग की बली चढ़ सकता है। और आपको लगेगा ये तो खुद हुआ है। या किस्मत ही ऐसी है। किस्मत भी सतर्कता और मेहनत माँगती है। मेहनत से भी ज्यादा, माहौल माँगती है। क्यूँकि, विपरीत माहौल में बहुत ज्यादा मेहनत करने पर भी मिलता बहुत कम है। जबकी जहाँ माहौल सही हो, वहाँ कम मेहनत में भी ज्यादा। आओ कुछ माहौलों के परिणामों पे गौर करें।

कोई भी माँ-बाप, बहन-भाई या आसपास का रिस्तेदार आपका बुरा नहीं चाहता, ज्यादातर। मगर माहौल कई बार ऐसा बना दिया जाता है, जिससे लगे की वो आपका बुरा कर रहा है या कर रही है। पहली तो अहम बात होती है की एक-दूसरे पर विस्वास करें। जहाँ तक हो सके, संवाद ना खत्म करें। वो खत्म होते ही, आपके दुश्मनों के लिए बहुत कुछ आसान हो जाता है। पता नहीं वो एक दूसरे के खिलाफ क्या-क्या, ना हुआ भी घड़ देते हैं। या इतना बढ़ा-चढ़ा या तोड़-मरोड़ देते हैं, की हकीकत के बिलकुल विपरीत समझ आए। भाभी की मौत के बाद, ऐसा ही कुछ चल रहा था। उससे पहले भी बहुत तरह के भावनात्मक भड़काव थे, इधर-उधर से। हकीकत जानने की कोशिश करें। सिर्फ सुने-सुनाए या दिखाए या अनुभव करवाए पर ना जाएँ। क्यूँकि, इसपे बड़े-बड़े मार खा जाते हैं। जब तक संभलते हैं, तब तक बहुत बार, देर हो चुकी होती है। क्यूँकि, हकीकत को जहाँ तक हो सके छुपाके रखना भी, राजनीती के छल-कपट का अहम हिस्सा होता है। 

अपने बच्चों को खासकर, बाहर के माहौल से जहाँ तक हो सकता है, बचाएँ। हर कदम पे सामांतर घढ़ाईयाँ चल रही हैं। वो उनके लिए सही नहीं हैं। जहाँ तक हो सके, अपने बच्चों को अपनी नजर से ज्यादा दूर ना जाने दें। किसी बाहर के इंसान के साथ, इधर या उधर ना भेझें। बहुत ज्यादा हो रहा है ना? ऐसा नहीं है की लोग विस्वास के लायक नहीं बचे। ज्यादातर आज भी भले हैं और किसी का बुरा नहीं चाहते। मगर राजनीती के जालों ने और कुछ एक ने माहौल को ऐसा बना दिया है। तो रिस्क लेना चाहेंगे आप? माहौल सही नहीं है, खासकर राजनीतिक। इसलिए ये सब जरुरी है। सबकुछ माहौल पे निर्भर करता है। 

बुरे माहौल को भले में कैसे बदलें?

अपने घर और आसपास का माहौल सही करें। वो करने कोई और नहीं आएगा। आपके मंदिरों से भी ज्यादा जरुरी है, किताबों का होना। क्यूँकि मंदिर जहाँ षडयंत्रों, भावनात्मक-भडकावों और राजनीती के छल-कपट के भद्दे अड्डे बन चुके हैं। वहीं बुरे से बुरे माहौल में भी, अच्छी किताबें उन छल-कपटों के पार जाने के रस्ते हैं। ये उनके लिए भी, जो कहते हैं की हमने तो बहुत किया अपने बच्चों के लिए, मगर फिर भी नालायक निकले। अभी शायद उनकी उम्र खत्म नहीं हुई। एक बार थोड़ा-सा ये भी करके देख लें, क्या पता आपको उनके लिए बहुत कुछ ना करना पड़े। माहौल मिलने पे हो सकता है, वो अपने आप करने लग जाएँ। वो भी सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्की आपके और अपने आसपास के लिए भी। जितना वक्त, श्रद्धा या दान आप मंदिरों के नाम करते हो, या राजनीती के हवाले कर देते हो, कम से कम उतना हिस्सा, पढ़ाई या किताबों को भी दे दो। जिस किसी भी चीज को आप बढ़ाना चाहते हैं, उसे जितनी ज्यादा अपने घर, आसपास और अपनी खुद की दिनचर्या का हिस्सा बनाएँगे, वो अपने आप होती जाएगी। और कुछ नहीं, तो दिखावा मात्र ही सही। 

जैसे उस छोटे से मंदिर को अपने घर में खास जगह दे रखी है, वैसे ही एक छोटी सी लाइब्रेरी, अलमीरा या कमरे को सिर्फ और सिर्फ, पढ़ाई-लिखाई के नाम कर दो। जितना ध्यान उन मूर्तियों पे लगाते हो, उस ज्योत पे लगाते हो, उनके रख-रखाव, साफ-सफाई में, पूजा-पाठ की सामग्री, विधि और फलाना-फलाना खास दिनों पे पूजा या श्रद्धा में लगाते हो, इस भगवान में या उस भगवान में लगाते हो, वैसा-सा ही कुछ, इस विषय या उस विषय की किताबों पे लगाके देखो। ऐसा नहीं है की आपके लायक विषय ही नहीं हैं। और ऐसा भी नहीं है की आपमें दिमाग की कमी है। हाँ, उसका कितना और कहाँ प्रयोग है, इसका फर्क है। जैसे बच्चों को ऐसे घरों में अलग से बताने या पढ़ाने की जरुरत नहीं पड़ती, इन मंदिरों और भगवानों के बारे में। वो माहौल से अपने आप सीख जाते हैं। डराने, धमकाने या मार-पिटाई की जरुरत नहीं पड़ती। ऐसा ही पढ़ाई-लिखाई का है। उन्हें जैसा माहौल मिलता है, वो उतना ही सीखते हैं। ना उससे कम, ना उससे ज्यादा। हाँ। एक बार खुद लगन हो गई, तो डाँट-डपट या मार-पिटाई की भी जरुरत नहीं पड़ेगी। 

ज्यादातर टीचर्स के, साइंटिस्ट्स के, डॉक्टरों के बच्चों को ये जरुरत नहीं पड़ती। क्यों? बच्चे, माँ-बाप को सुबह-शाम, पढ़ते-लिखते देखते हैं। जिधर देखो, किताबें ही किताबें दिखती हैं। किताबों से भरी अलमारियाँ और खास स्टडी रूम या लाइब्रेरी रूम दिखते हैं। किसी भी ऐसे इंसान के घर जाओगे, तो शायद ड्राइंग रूम में घुसते ही किताबें नजर आएँ। सुबह-शाम, उठते-बैठते, बातें उन्हीं के इर्द-गिर्द घुमती मिलेंगी। अब अपने यहाँ के माहौल की, उस माहौल से तुलना करके देखो। शायद पता चल जाए, कमी कहाँ है? माहौल में है। उसपे सिर्फ उनके घर का ही नहीं, बल्की आसपास का या आने-जाने वालों का भी माहौल ऐसा ही मिलेगा। और आपके यहाँ? अगर आप 10-12 पढ़े हैं और फिर भी लगता है की अपने बच्चों को पढ़ाने में दिक्कत है? तो मान के चलो, वो आपका खुद पे विस्वास कम होना है। या हो सकता है, हिंदी में पढ़े हैं और बच्चा इंग्लिश में पढ़ रहा है? तो चलो, अपने बच्चों के साथ उसे आप भी फिर से पढ़ लें। जो स्कूल में कभी हो सकता है की जबरदस्ती पढ़ा हो। अब जब आपका क्लास का सिलेबस नहीं है, तो हो सकता है आसान लगे और अच्छा भी। 

मुफ्त पढ़ाई 

आज के वक्त में पढ़ाई और ज्यादातर कोर्सेस मुफ्त हैं, ऑनलाइन। वो भी, अच्छे-अच्छे स्कूलों और यूनिवर्सिटी के टीचर्स के Class lectures और Labs तक। प्रीस्कूल से लेकर यूनिवर्सिटी तक। अगर किताब से पढ़ने में मुश्किल हो, तो बहुत से मुफ्त के, यूट्यूब पे विडियो मिल जाएंगे। हर क्लास के और विषय के। वो भी बहुत ही आसान तरीके से समझाने वाले। इसलिए, ये खास कोचिंग सेंट्र्स समझ से बाहर हैं। आपने BA या BCom या शायद MA भी किया हुआ है? और वो डिग्री आपके बच्चे को पढ़ाने तक के काम नहीं आ रही? या शायद काम चल रहा है, जरुरत ही नहीं समझ रहे? टूशन वाले कब काम आयेंगे? एक बार शुरू करके देखो, घर में ही पढ़ाना। बस थोड़ी-सी मेहनत और थोड़ा-सा वक्त, अपने बच्चे के लिए। शायद आपको खुद को अच्छा लगने लगेगा। और हो सकता है, की इस ऑनलाइन की मुफ्त वाली पढ़ाई में या सिखने में, खुद आपके लायक बहुत कुछ हो। पढ़ने, सीखने, या नया कुछ करने को। हो सकता है, कोई नया और बेहतर काम-धाम। या कोई नई हॉबी ही सही। शायद कुछ ऐसा, जो आप कभी करना चाहते हों और ना कर पाए? आपका ऐसा करना भी, माहौल को पढ़ाई के लिए सही बनाता है। जब आप खुद को और अपनों को या अपने आसपास को अच्छा बनाने में व्यस्त होंगे, तो राजनीती के या बाहर के जालों से भी थोड़ा दूर रख पाएंगे, खुद को भी और अपने आसपास के लोगों को भी।      

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