ये झमाझम बारिश
और ये बिजली का गुल होना
दोनों हैं मानव निर्मित?
या प्रकृति की देन?
माँ के इस घर में बिजली की थोड़ी दिक्कत थी। स्विच कम थे। तो सोचा थोड़ा ठीक करवा लूँ। पड़ोस की ही एक आंटी को बोला और एक बिजली वाला पहुँच गया। एक खास तरह की नौटंकी के बाद, कुछ ऐसा काम भी हो गया जो बोला ही नहीं था। और कुछ ऐसा नहीं किया गया, जो बोला था। ये खास किस्म के 15 वाला कमीशन था? ये कमीशन वाली दुनियाँ, कुछ ज्यादा ही अजीब है। जितना आप इसे समझने की कोशिश करोगे, उतना ही इससे दूर होते जाओगे। उसपे जिस तरह के लोगों के बीच आप रह रहे हैं, कभी कभी तो समझ ही नहीं आएगा, की ऐसे-ऐसे लोगों की कमेन्ट्री पर क्या तो बोला जाए और क्या ना? एक होता है, कुछ गलत होने पे सॉरी फील करना। या सामने वाले को ठीक करने को बोलना। और एक होता है, ऐसा कुछ करने की बजाय बेहुदा कमेन्ट्री करना। और ऐसा भी नहीं है की ऐसे लोग सिर्फ आपपे ऐसी कमेन्ट्री करते हैं, वो बक्शते अपने खुद के बच्चों को भी नहीं। आदत से लचर लोग। कुछ तो अपना दिमाग कम प्रयोग करना। उसपे राजनीतिक पार्टियाँ अलग-अलग तरह के भावनात्मक तड़के लगाती हैं। मतलब, लोगों को किसी ठीक-ठाक काम पे ना लगा के, उनके दिमाग ब्लॉक करके, सिर्फ और सिर्फ फालतू और बकवास की तरफ धकेलना। अब ऐसी-ऐसी पार्टियाँ ये थोड़े ही बताएँगी की, जुर्म जुर्म होता है। वो सॉफ्ट क्राइम हो या लट्ठमार। किसी भी तरह का बेहुदा साँड़ सिंड्रोम (Bulling Syndrome), उस केटेगरी में आता है।
बड़े लोगों के करवाए जुर्मों की जानकारी या समझ, जिनसे ये छोटी-मोटी नौटंकियाँ करवाई जाती हैं, उन्हें कितनी है, पता नहीं। यही सोचकर बहुत कुछ ऐसा, ज्यादातर इग्नोर करो के डिब्बे में जाता रहता है। हाँ। ये कुर्सियों पे बैठे उन लोगों के लिए जरूर है, जिनसे शायद कई बार बहस भी हुई और एक-आध अच्छा खासा लेक्चर भी दिया गया। खासकर वो, जिसमें बोला गया था की अगर इतने पढ़े-लिखे लोगों के ये हाल हैं तो बाहर जो कम पढ़ा-लिखा या तकरीबन अनपढ़ समाज है, उससे उम्मीद क्यों? उस समाज की दिशा या दशा ये पढ़े-लिखे लोग घड़ रहे हैं, कोई और नहीं। वो चाहे फिर सिविल में हों, या डिफेंस में।
वापस बिजली पे आते हैं। क्या है, जो आम आदमी को भी समझना चाहिए, इस बिजली के बारे में? वो है, की बिजली क्या कुछ कर सकती है? कितना कुछ रिमोट कंट्रोल हो सकता है? और उसकी वजह से आम आदमी कितना परेशान हो सकता है ? वो भी उसकी जानकारी के बगैर, की दुनियाँ में बहुत कुछ अपने आप नहीं हो रहा। बल्कि किया जा रहा है। बिजली का ये राजनीतिक मकड़ज़ाल उनमें से एक है। बहुत कुछ तो नहीं मालूम इस विषय के बारे में। मगर हाँ, बिजली के इर्द-गिर्द घूमते, इधर-उधर हुए नौटंकियों और अनुभवों के हिसाब से आम आदमी से शायद थोड़ा ज्यादा मालूम है। तो आती हूँ उन अनुभवों को भी शब्दों में पिरोकर, किसी अगली पोस्ट में।
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