About Me

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Friday, January 12, 2024

दो अलग-अलग दुनियाँ (Two-Worlds like Opposite Poles)

हे बेबे वाला जहाँ 

मैं तो 10-12 साल की ए ब्याह दी थी। आदमी मर ग्या, तै बडे का लता उढ़ा दिया। एक छोरा था, वो भी नहीं रहा। सारी ज़िंदगी टेँशन-बीमारी मैं, आड़-ए काट दी। जित आई थी, उडे-ए-ते अर्थी जागी। अर एक आजकाल के बालक, सर के ऊपर क जां सैं  ब्लाह, ब्लाह, ब्लाह।  

दादी ईब वें आपके वक़्त वाली, दुखयारी-ज़िंदगी क्युकर जीवें? आप पता नहीं कौन-सी सदी के हो? 

ना ए बेबे, आजकाल के बालक घने दुखी लागे मैंने तो। पहलयॉँ कहा करते शहरां के इसे हाल हैं। इब तै गामां का भी नास जा रहा स, कती। शहर आलें नै के कहवाँ? 

बेकार? बेरोजगार? या नशेड़ी जहाँ? 

ये लोग ना घर में कोई काम के, ना बाहर कोई काम करना? हाँ। जहाँ ये होंगे, वहाँ आसपड़ोस भी इन्हें भुगत्तता मिलेगा जैसे। 

पहले मुझे लगता था की ये खुद ही कामचोर हैं, इसलिए ये हाल हैं। मगर जब से सिस्टम और इसके कोढ़ वाले सामान्तर जहाँ को जानना शुरू किया है, तब से समझ आया की ये तो इस सिस्टम की देन हैं। ये जो कुछ बोल रहे हैं या कर रहे हैं, वो सब इनके पास कैसे और कहाँ से आता है? बिलकुल हकीकत की नौटंकियाँ जैसे। जैसे सिर्फ आदमी रुपी शरीर का खोल इनका हो मगर जुबाँ जैसे कोई और बोल रहा हो या रहे हों। बिलकुल भुतिया संसार जैसे। कई केस स्टडीज़ की किताबें लिखी जा सकती हैं, इस संसार पे। 

पढ़ा कहीं "System will achieve what it's designed to achieve."   Jeff  ...... ?

एक तरफ ज़िंदगी जीने के लिए बेसिक लाइफ सपोर्ट सिस्टम तक नहीं। बल्की, गरीब, अनजान, अज्ञान या असहाय लोगों का फायदा उठाता और उन्हें खाता, आसपास का ही, बस थोड़ा-सा ज्यादा अमीर या निर्दयी जहाँ? People who have not even basics on the name of life support system. Their brains are like arrested or taken away or blocked by shrewd mean people in the surrounding itself.  

और दूसरी तरफ, ये Humanoids की तरफ बढ़ता जहाँ 

Humanoid, इंसान और मशीन का मिलाजुला टैक (Technology) का ये नया संसार            

Humanoids and Smart Brainy Machines


इंसानों-सी दिखती और इंसानों-सा व्यवहार करती ये मशीनें 


देखो और सोचो, कल तक जो सिर्फ Sci-Fi मूवीज का जहाँ था, वो आज हकीकत की तरफ बढ़ रहा है। उसे बनाने वालों ने क्या-क्या पढ़ा होगा? और क्या-क्या प्रयोग किए होंगे, इंसानो पे भी? तभी संभव हो सकती हैं, ऐसी मशीनें। आगे और जानेंगे रोबोट्स के बारे में थोड़ा विस्तार से। तब शायद आप सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ वाले संसार को जान और समझ पाएँ और बच पाएँ थोड़ा बहुत उसके दुस्प्रभावों से।     

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