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Saturday, January 6, 2024

मानव-रोबोट्स बना आम-आदमी का शोषण, सामाजिक घड़ाईयाँ के रुप में

पुराने जमाने के किस्से सुने हैं भूतों के? या शायद आजकल भी कहीं न कहीं ऐसी कहानियाँ मिल जाएँ, शायद? या किसी मूवी या सीरियल में तो जरुर देखें होंगे? अगर हकीकत में कोई आपको बोले, की ये आप नहीं कर रहे, आपमें फलाना-धमकाना का भूत आ गया? और वो बोल रहा है या बोल रही है? यकीन मान लेंगे? आसपास ऐसे कुछ लोगों से पाला भी पड़ा होगा कभी? या बड़े बुजर्गों से सुना होगा, जिनका ऐसे कुछ मानसिक बिमारी वाले लोगों से आमना-सामना हुआ हो? मानसिक-बीमारी? या भुतिया ज्ञान? Cult Politics? तांत्रिक विधा? ऐसा ही कुछ ना? चलो, इसे एक और नाम दे देते हैं, ये मैं जो जाले-जाले करती रहती हूँ ना, वही।    

मैंने इन्हें नाम दिया है, मानव-रोबॉट। आओ, जानते हैं थोड़ा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ-साथ, छल-कपट वाले भुतिया ज्ञान को। आज के ये भूत, आम-आदमी की भूतों की परिभाषा से कहीं आगे हैं। 

तांत्रिक विधा या भुतिया ज्ञान, शातीर इंसानों द्वारा, अनभिज्ञ, अज्ञान, आम-आदमी का शोषण है। उन्हें मानव-रोबोट्स बना, अपना काम निकालने वाली सामाजिक घड़ाईयाँ। दिमाग का इसमें बहुत बड़ा रोल है। दिमाग के साथ ही जुड़ा है, तंत्रिका तंत्र। Brain and Nervous System. यूँ कहो ये ज़िंदगी है। आपकी ज़िंदगी कैसी है, वो भी काफी हद तक ये तय करता है। ये ज़िंदा है, तो आप ज़िंदा है। इसमें कोई गड़बड़, तो आपमें कोई बीमारी। कुछ वो बीमारियाँ, जो डॉक्टर परिभाषित करते हैं और जिनका इलाज भी करते हैं। बहुत-सी वो बीमारियाँ, जो आपके आसपास के सिस्टम की दी हुई हैं, जिसे माहौल कहते हैं। जिसे मैंने नाम दिया है, Media Culture.

Media Culture, ये नाम तो बायोलॉजी में बहुत पुराना है। मैंने इसे माइक्रो लैब से उठा के सोशल लैब पे रख दिया है। वैसे, इसका नाम किसी ने कल्चर ही क्यों रखा होगा? क्या सोच के? सोशल इंजीनियरिंग से इसका क्या लेना-देना है? वही जो किसी भी कल्चर का? 

ऐसे ही तांत्रिक विधा का नाम, तंत्रिका तंत्र से भी कितना मिलता-जुलता है ना? जाने ये किसने इन नामों से परिभाषित किए होंगे? मतलब क्या सोचकर? ये तंत्रिका-तंत्र अकेले बीमारी नहीं करता। वैसे ही, जैसे बच्चा कहाँ पैदा होता है, ये वो तय नहीं करता। ऐसे ही जैसे, वो कैसे माहौल में पलेगा या बढ़ेगा, ये भी वो तय नहीं करता। ऐसे ही आप अपनी ज़िंदगी के बारे में कुछ भी, अकेले तय नहीं करते। हमें ऐसा लगता है, की हम तय कर रहे हैं। मगर हम खुद एक छोटा-सा सिस्टम हैं। बहुत ही जटिल किस्म की मशीन। उस मशीन को सही दिशा या दशा देता है, हमारे, आपके चारों तरफ का सिस्टम। ये सिस्टम कैसा हो, ये कौन तय करता है, ये अहम है। और ये लेख खास ऐसे लोगों के लिए है, जो अपने समाज की दिशा या दशा तय करते हैं। आपका समाज जैसा भी है, वो आपकी वजह से है। आम आदमी के लिए तो है ही। 

आप जो पॉलिसी निर्णय लेते हैं। 

आप जिनके पास पैसा होता है, किन्हीं भी प्रोजेक्ट्स को वितरित करने के लिए।   

विकाशील या अविकसित देशों के समाज को खासतौर पे, अपना अधिकतम पैसा शिक्षा पे खर्च करना चाहिए। जिस किसी समाज की स्कूली शिक्षा सही है और समाज के हर वर्ग को बराबर मिल रही है, वही समाज विकसित है। वहाँ पे विकासशील या अविकसित देशों वाली बीमारियाँ या गरीबी नहीं है। क्यूँकि, गरीबी अपने आप में बहुत बड़ी बीमारी है। ये लोगों की ज़िंदगी को बहुत छोटा कर देती है। उनकी बहुत ही छोटी-छोटी सी बीमारियों को मौत का कारण बना देती है।              

Social Mobility upside or downside via Immersion lab vs social environmental immersion created by crooks or crook system?     

समाज के उप्पर वाले हिस्से से लेकर उस आखिरी तबके तक हूबहू सामाजिक घड़ाईयोँ की कहानियाँ और किस्से। समाज के उप्पर वाला हिस्सा सह जाता है, क्यूँकि एक तो उसपे मार कम होती है। उसपे, उसके पास संसाधन होते हैं, विपरीत परिस्तिथियों से निपटने के लिए। समाज का कमजोर तबका, मार भी ज्यादा खाता है और संभल भी कम ही पाता है। किन्हीं भी परिस्तिथियों में कमजोर और सशक्त में यही फर्क होता है।     

रोबोटिक बातचीत और हकीकत-सी परिस्तिथियाँ      

जैसे-जैसे उसकी परिस्थितियाँ बदली, वैसे-वैसे आपकी भी। या शायद जैसे-जैसे आपकी परिस्थितियाँ बदली, वैसे-वैसे उसका जहाँ भी। आपके साथ-साथ अटैक, आपके आसपास भी, सिर्फ आपको कंट्रोल करने के लिए? या उससे ज्यादा कुछ? राजनीती के कोडों का ताना-बाना जिंदगियों से खेलता हुआ, बड़े ही अजीब ढंग से। बड़े ही गुप्त तरीके से। मगर बहुत कुछ ऐसा है, की अगर आप देखने या समझने लगोगे, तो शायद समझ आ जाएगा। 

यूरोप के किसी खास हिस्से ने मेरा ध्यान क्यों खिंचा? क्या खास है वहाँ? 

Frozen सर्दी, कई-कई महीने। सुना है, वहाँ के लोग उसे भी एन्जॉय करते हैं। इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, संसार का ये कोना विकसित देशों में है। ऐसा क्या खास है वहाँ? शायद शिक्षा का स्तर? शिक्षा, जहाँ ज्यादा होगी, वहाँ डिजिटल पहुँच भी ज्यादा होगी। कोई भी उत्पाद जो ज्यादा मात्रा में होगा, उसके नुकसान भी उतने ही ज्यादा होंगे। शायद इसीलिए यहाँ की ज्यादातर यूनिवर्सिटी में आपको डिजिटल जहाँ और उससे जुड़े सामाजिक मुद्दों पे काफी रोचक जानकारी मिलेगी। ये जानकारी बड़े ही रोचक तरीके से सामाजिक सामान्तर घड़ाइयों को भी उजाकर करती है। क्यूँकि, यहाँ पे दुनियाँ भर की सरकारों के इतने बड़े स्तर पर surveillance के खिलाफ भी काफी कुछ मिलता है, पढ़ने को और सोचने-समझने को। सबसे बड़ी बात इनमें कुछ इनकी अपनी सरकार भी हो सकती हैं। जैसे हमारी। मगर हमारे यहाँ डिजिटल वर्ल्ड के सामाजिक प्रभावों पर या बड़े सामाजिक स्तर पर, सर्विलांस एब्यूज के खिलाफ ऐसा कुछ खास नहीं मिलता। इस सब पे चर्चा आगे किन्हीं लेखों में। अभी चलते हैं ENJOY करने Frozen World में या भूतिया संसार में? पहले कहाँ चलना चाहेंगे आप? सर्दी तो हमारे यहाँ भी काफी हो रखी है आजकल, तो पहले भूतिया संसार के भूतों से रुबरु होते हैं। वो भी बिलकुल अपने आसपास से। वो भूत आप भी हो सकते हैं, जो ये लेख पढ़ रहे हैं। और मैं भी या हमारा आसपास का घर, मोहल्ला, गली और उनके आकार, प्रकार, विकार भी। ये सब अगली पोस्ट में।   

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