आओ जानते हैं Robotic Conditioning क्या होती है?
और कैसे-कैसे होती है?
खुद अपने खिलाफ या अपनों के ही खिलाफ?
खुद अपने खिलाफ या अपनों के ही खिलाफ?
और हमें पता भी नहीं चलता की ऐसा हो रहा है।
पीछे वाली पोस्ट में एक बहुत ही छोटा-सा उदहारण था। बच्चे ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, दिन-प्रतिदिन कितना कुछ तो पढ़ते हैं, खेलते हैं, खाते हैं, पीते हैं, पहनते हैं, देखते हैं, सुनते हैं और अनुभव करते हैं। उन्हें नहीं पता होता की उनकी कोई खास तरह की CONDITIONING हो रही होती है। ठीक वैसे ही, जैसे हम जैसे पढ़े-लिखों और बड़ों तक को बहुत बार नहीं पता होता। हम भी ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, दिन-प्रतिदिन कितना कुछ तो पढ़ते हैं, खेलते हैं, खाते हैं, पीते हैं, पहनते हैं, देखते हैं, सुनते हैं और अनुभव करते हैं। और हमें पता तक नहीं होता, की हमारी कोई खास तरह की CONDITIONING हो रही होती है।
जैसे पीछे एक बहुत ही छोटा-सा केस सुशीला दीदी और संतरो कार ब्रेक फेल वाला बताया। थोड़ा बहुत मुझे पहले से समझ आ रहा था। सिर्फ थोड़ा बहुत, खासकर पानीपत के एक्सीडेंट वाले ड्रामे के बाद। मगर उस दिन जो हुआ, जहाँ हुआ, जिस तारीख (14) को हुआ। जो कोई उस कार में साथ थे। और उससे भी अहम शायद, जब मैं कार लेकर निकली, तो क्या-क्या ड्रामा हुआ था? उस ब्रेक फेल से पहले, कहाँ-कहाँ गई और कौन लेकर गया? क्या कहकर या बताकर? उससे पहले मैं अपने उसी स्कूल के साथ वाले खेत गई।
स्कूटी वाली लड़की ने बोला 5 या शायद 10 मिन्ट रुको, वहाँ तक जाना है। वहाँ से चूहे मारने वाली दवाई लानी है। खेत के लिए या शायद गेहुंओं में डालने के लिए?
और मैंने कहा, वहाँ कहाँ चूहे मारने वाली दवाई मिलती है? उसने कहा, मिलती है, वहीं आसपास। आपको नहीं मालूम।
मुझे लगा मिलती होगी। अब मैं इतना इस गाँव के बारे में कहाँ जानती हूँ?
वहाँ गए। उसकी चाची, मोदी की पत्नी को गाडी में बिठाया और थोड़ा-सा ही आगे, एक मोड़ पर उतार दिया। ब्रेक सही थे।
और मैंने कहा, अरे वो चूहे मारने वाली दवाई तो तुम लाना ही भूल गए।
और उस लड़की ने कहा, ये ले आए (चाची)।
गाड़ी उसके बाद दो जगह और रुकी। ब्रेक बिलकुल सही थे। हाईवे पास करते वक़्त। वहाँ फेल हो जाते तो कई बड़ी गाड़ियाँ आ रही थी, वो भी स्पीड से। पत्ता साफ़ था। उसके बाद एक ग्रोसरी स्टोर पे। वहाँ तक भी ब्रेक सही थी। ये Gindhran, Madina-B, उस खास रोड़ और जगह के आसपास अचानक क्या हुआ? क्यों हुआ? पता नहीं। मशीन ही तो है। कुछ भी हो सकता है। कहीं भी हो सकता है। है ना?
शायद इसीलिए इस मशीनी युग के Machine Learning (ML), Artificial Intelligence (AI), Internet of Things (IOT) जैसी-जैसी और कैसी-कैसी, तकनीकों के संसार को कम से कम थोड़ा बहुत जानना तो जरुरी है। और ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे ड्रामों को जानना भी। चूहे मारने की दवाई? सुशीला दीदी से कोई सम्बन्ध हो सकता है क्या इसका? वो तो पता नहीं। मगर शायद लाला (खाती, संदीप, हमारे घर रहता था) से जरूर हो सकता है? या कितने ही आत्महत्या करने वाले लोगों से? Highly complex world and its strange games? अब कितने ही संदीप हैं आसपास, उन्होंने तो आत्महत्या नहीं की। कोई CA बन ऑस्ट्रेलिया गया तो कोई सरपंच बना बैठा है। और कोई कैसे-कैसे केसों के जालों से जैसे-तैसे निकलता हुआ, वापस ज़िंदगी की तरफ? और भी कैसे-कैसे कोड हैं? Alter Egos, जैसे एक ही इंसान के 10 सिर या कई सारे हाथ या पैर। नाम एक, मगर काम अनेक। मतलब, ये इस पार्टी की Alter Ego, वो उसकी और वो उसकी। सिर्फ नाम एक है। कोड अलग-अलग। मतलब बाकी सब अलग। इसीलिए एक ही नाम के इंसानों को अलग-अलग पार्टियाँ लिए मिलेंगी। काफी हद तक पार्टियों के हिसाब-किताब से धकाई हुई ज़िंदगियाँ। मगर इन इंसानों को ये सब नहीं पता।
हमारे बच्चों को क्यों नहीं पता होना चाहिए, ऐसे गुप्त-गुप्त खेलने वाले संसार के बारे में? कौन अपने बच्चों को ऐसे संसार में दिमाग पे पट्टी बाँधके अकेला छोड़ना चाहेगा, जहाँ कदम-कदम पे जैसे बारुदी या अजीबोगरीब सुरंगे हों? और उन्हें ऐसी सुरंगों की खबर तक ना हो, बचाव के रस्ते पता होना तो बहुत दूर की बात? जिन्हें आज के इस अजीबोगरीब सामान्तर घड़ाईयों वाले संसार की खबर तक ना होगी, जिनके पास बचाव के रस्ते ना होंगे, ज़िंदगी की चूहा-दौड़ के वही शिकार होंगे?
No comments:
Post a Comment