आओ नजरों से जाले हटाएँ
फिर से ये फोटो किसी यूनिवर्सिटी के ऑफिसियल पेज से ली गई है
कौन सी यूनिवर्सिटी?
चलो आएंगे इस जहाँ पे भी। आपको इस फोटो को देखके क्या समझ आ रहा है? अगर आप कम पढ़े लिखे हैं और विज्ञान से कम नाता है तो मकड़ी के जाले-सा कुछ? या आँख पे जैसे कोई जाला सा छा गया और दिखाई भी कम दे रहा है?
मुझे सिर दर्द रहता था, एक सीनियर ने सलाह दी, आँख चैक करवाओ। डॉक्टर ने बोला आँखे ठीक हैं, थोड़ी आँखों की muscle कमजोर हैं। आँखों की exercise किया करो। उसके बाद पेपर थे तो सिर दर्द और बढ़ गया। अबकी बार डॉक्टर ने चस्मा लगवा दिया। उस चश्में को पहन के ऐसे लग रहा था जैसे ऊपर जाने वाली सीढ़ियां, नीचे की तरफ जा रही हों और जब नीचे की तरफ जाना हो, वहाँ एक दो step ही गुल हो जाएँ। मतलब फूटने का सही इंतजाम। फिर से डॉक्टर को दिखाया तो सलाह मिली, चश्में नए-नए हैं, थोड़ा वक़्त लगेगा एडजस्ट होने में। कुछ दिन कोशिश की लगाने की मगर कुछ ही वक़्त बाद उन्हें संभाल के पैक करके रख दिया।
शायद आप कोई पढ़ाकू टाइप बच्चे हैं, मगर चश्में अच्छे नहीं लग रहे, लैंस लगवा लो, ऐसा किसी ने सलाह दी। और आपने लैंस लगवा लिए। मगर आजकल तो सुना है की लैंस भी अच्छी खासी quality के आने लगे हैं। 2002 के आसपास ऐसा नहीं था। विदेशों में तो पता नहीं, पर उस वक़्त भारत में आँखों के लैंसों का उदय थोड़ा नया ही था। और उस वक़्त लैंस की quality भी आज जितनी अच्छी नहीं थी। लैंस लगवा लिए। मगर उन्हें आप 5-7 घंटे से ज्यादा लगाएंगे तो फिर सिर दर्द होगा। कुछ ही दिन हुए थे लैंस लगाते हुए। एक दिन हॉस्टल वापस आकर लैंस उतार के रख दिए। मुझे ऐसा ही समझ आया। अगले दिन सिर दर्द से हाल बेहाल। समझ नहीं आया, ऐसा क्या हुआ? एक आँख के सामने भी जैसे जाला-सा छा गया। उस दिन रविवार था। ऐसे ही निकाल दिया की शायद आराम करने से राहत मिल जाए। मगर सोमवार को भी ऐसा कुछ नहीं हुआ और सिर दर्द और जाला दोनों बढ़ गए। आखिर हॉस्पिटल गई। डॉक्टर को जाते ही समझ आ गया। लेडी डॉक्टर थी। उसके आसपास कई PG डॉक्टर शायद, जिन्हें वो ये नमूना (specimen) दिखा रही थी।
उसने बोला, लैंस लगाते हो?
मैंने कहा, जी हाँ।
उतारना भूल गए?
मैंने कहा नहीं, आखिर शनिवार को लगाए थे और डिपार्टमेंट से आते ही उतार दिए थे।
फिर उन्होंने पूछा, कहाँ रहते हो?
मैंने कहा, हॉस्टल।
उन्होंने कहा, जाओ अपने लैंस लेके आओ।
मैं वापस हॉस्टल आई और पता चला, एक लैंस उतार दिया, दूसरा भूल गई। दो लैंस के डिब्बे थे। एक डिब्बे का एक लैंस थोड़ा कट गया था, इसलिए फेंक दिया। उसी में एक उतार के रख दिया और लगा दोनों उतर गए। ध्यान ही नहीं दिया। इसलिए एक आँख में जाला था और सिर दर्द भी। उस लैंस को भी उतार के, अच्छे से आँखे पानी से साफ की। जाला भी खत्म और अचानक से सिर दर्द से भी काफी राहत। लैंस लेके वापस हॉस्पिटल गई और डॉक्टर को बताया की गलती से इस आँख में लैंस रह गया था। उतार दिया, अब कोई जाला नहीं है और सिर दर्द भी काफी कम हो गया। उन्होंने कहा लैंस इतने अच्छे नहीं होते की दिन में भी लगाओ और रात भर लगा के सो भी जाओ। आगे से ध्यान रखना। अब आँख और टैस्ट करवा लो, कहीं कोई damage तो नहीं हुआ। सब सही था और मैं वापस हॉस्टल। उसके बाद लैंस को भी पैक करके रख दिया और फिर कभी नहीं पहने।
इतने सालों बाद ये सब बताने का उद्देश्य क्या है?
ये की आपको चश्में ना लगने हों तो लग सकते हैं। लैंस की जरुरत ही ना हो, तो भी जरुरत जैसे पैदा की सकती है। और इन्हें शायद से सामाजिक सामान्तर घड़ाईयाँ कहते हैं? शुरू में बहुत ही छोटी-छोटी-सी सामान्तर घड़ाईयाँ, वक़्त और अपराधों के साथ-साथ खुंखार होती जाती हैं।
क्यूँकि इसके कुछ सालों बाद मुझे वापस से पता चलता है की मेरी आँखों का नंबर सही है। और जो आपने चश्में लिए वो शायद अपने तकरीबन ना के नंबर से ज्यादा ले लिए या यूँ कहो दे दिए? इसीलिए उन्हें पहनने पे ऐसा अनुभव हो रहा था।
ये जानकारी तो थी आम आदमी के लिए, अजीबोगरीब जालों की, खासकर जिनका विज्ञान से कम नाता है। अब चलते हैं, थोड़ा-सा विज्ञान की तरफ। विज्ञान को जानने वालों के लिए इस जाले वाली फोटो के कितने मायने हो सकते हैं? सबसे बड़ी बात, ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी को भूत घड़ने में प्रयोग किया जा सकता है। भूत, कैसे-कैसे? जानते हैं आगे किसी पोस्ट में, इस यूनिवर्सिटी जैसी कितनी ही दुनियाँ भर की यूनिवर्सिटी के शोधों के माध्यम से या सहायता से। मगर फोटो यहाँ से क्यों? क्यूँकि कुछ तो खास होगा इस यूनिवर्सिटी में?
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