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Monday, January 22, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (5)

तो कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान?    

1. क्या आपको जो कहा जा रहा है वो सच है? या यहाँ-वहाँ से सुनी हुई कोई कहानी जैसे? अगर आपके पास ये प्रश्न ही नहीं है, तो आप सिर्फ अंधभक्त नहीं, बल्की मानव रोबोट बनने की पहली सीढ़ी पार कर चुके हैं। 

2. जो सच नहीं है, वो आपने मान लिया है? उसपे, वो आपके सामने बार-बार दोहराया जा रहा है? आपको सुनाया, बताया, दिखाया या अनुभव कराया जा रहा है? क्यों? अब भी, आपके पास सोचने के लिए दिमाग ही नहीं है? तो आप दूसरी सीढ़ी पार कर चुके हैं। कभी-कभी ये सीढ़ियाँ, आप खुद अपने बच्चों को या किसी अपने को भी पार करवाते हैं, जाने या अंजाने। और खुद भी करते हैं। जैसा आसपास के बच्चों के और उनके अपने कहे जाने वाले लोगों से या केसों से समझ आया। आपकी सेहत और ज्यादातर बीमारियों के राज भी इन्हीं पॉइंट्स में छुपे हुए हैं कहीं। और शायद ईलाज भी। कम से कम जानबुझकर लोगों द्वारा कही गई नौटंकियाँ करना बंद करो। वही ज्यादातर बीमारीयों का राज हैं और सामाजिक सामान्तर घड़ाईयोँ का भी। क्यूँकि, उसके साथ-साथ बहुत कुछ ऐसा भी होता है, जो आपको बताया नहीं जाता।     

3. क्या ऐसा कुछ आपके सामने या आसपास या आपके साथ, बगैर रुके या थमे चल रहा है? निरंतर 24 घंटे? 365 दिन? उसपे इधर-उधर से आवाज़ें भी आ रही हैं या आपको ऐसा कोई अहसास हो रहा है, की कुछ सही नहीं हो रहा? तो मान के चलो, की गड़बड़ है।   

4. जैसे किसी भी बिमारी का कोई स्तर होता है। वैसे ही सामाजिक सामांतर घड़ाइयों का भी। ठीक ऐसे जैसे, शुगर, कैंसर, लकवा। बहुत-सी बीमारियों से फिर भी बचा सकता है या आसपास को बचाया जा सकता है। जानकारी और सही ईलाज। सामांतर घड़ाईयोँ के साथ-साथ, सामांतर बिमारियाँ और ईलाज चलते हैं। उनके कोढ़ भी। मुझे तो ऐसा ही समझ आया। बाकी जो ज्यादा जानकार हैं, वो अपना ज्ञान बाँटना ना भूलें।    

ये कदम इंसानों की ज़िंदगियों पे भी लगते हैं और हूबहू जैसे बिमारियों पे भी। उसपे अगर इंसान ज़िंदा है, तो रिवर्स गियर भी होता है। जैसे रिवर्स इंजीनियरिंग। Molecular Biology का Central Dogma का सिद्धांत जैसे। कभी सोचा ही नहीं, की Molecular Biology जैसा विषय Social Engineering के सिद्धांत, ऐसे clear करेगा। और लोगों को बीमारियाँ ऐसे होती हैं और ऐसे उन बिमारियों की अलग-अलग सीढ़ियाँ तय होती हैं। और ऐसे ही लोगों की आखिरी साँसे? राजनीती की तय की हुई जैसे। जो सच में समाज की सेवा अपने शोधों से करना चाहते हैं, उन्हें लैब्स से बाहर निकल कर, इस सोशल laboratory को समझने की जरुरत है। यहाँ शायद मुझे उन सभी अवरोधों का धन्यवाद करना चाहिए, जिन्होंने मुझे इस विषय से उस विषय पे, उस विषय से किसी दूसरे विषय पे जैसे जबरदस्ती धकेला। मेरी लैब को अपना राजनीतिक अखाड़ा बनाकर। मेरी प्रोफैशनल और पर्सनल ज़िंदगी की, जैसे बोटियाँ-बोटियाँ करके। सारे अधिकार, हर संभव तरीके से रोंध के।        

सच कहूं, तो मुझे तो सोशल इंजीनियरिंग तो क्या, कुछ साल पहले तक ये शब्द तक पता नहीं था। इसके लिए मीडिया के कुछ खास लोगों को शायद धन्यवाद करना चाहिए। जिनमें, ज्यादातर के राजनीतिक bias को मैं पसंद नहीं करती। लेकिन सच ये है, की थोड़ा-बहुत जो भी समझ आया, आया उन्हीं के प्रोग्राम्स को देख-सुनके। खासकर, जिन्होंने आसपास रोज-रोज होने वाली घटनाओं को या यहाँ-वहाँ लिखे या कहे मेरे प्रश्नो के जवाब दिए। 

कम्पुटर अपडेट तो सुने होंगे। ये सोशल अपडेट क्या होता है और कैसे होता है? और उससे भी अहम, सिर्फ अपडेट नहीं होता, सोशल रिवर्स भी होता है। और कहीं-कहीं शायद, किसी वक़्त पे जैसे रोक के रखना भी। जानते हैं अगली पोस्ट में।   

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