पुनर्जन्म क्या होता है?
ये Entire Political Science का सबसे भद्दा रुप है। आम आदमी को बेवकूफ बना, अपना उल्लू सीधा करना। कोई एक घर से गया हुआ इंसान, किसी दूसरे घर में आ सकता है क्या? हाँ। शायद, जैसे तलाक के बाद होता है। बगैर तलाक के, संभव है?
इस घर के जन्मदिन और शादियों की तारीखें चैक करो, जहाँ से कोई इंसान दुनियाँ को ही अलविदा कह गया, जिस किसी वजह से। किस दिन गया, वो भी। और उस घर के इंसानों के जन्मदिन और शादियों की तारीखें पता करो, जिसमें कोई तलाक के बाद या दौरान ही, कोई नई बहु लाया है। जिसे इस राजनीती के चालबाज़ धंधे में in बोलते हैं। जैसे live-in . Live-in? ऐसे होता है? हमारे यहाँ आम बोलचाल की भाषा में तो उसे "चुन्नी उढ़ा लाए" बोलते हैं या "5 आदमी गए थे बयाण", बोलते हैं शायद? वैसे ये "चुन्नी उढ़ाने का" या "5-आदमी गए थे बयाण" का रिवाज़ कब से शुरू हुआ? ये Human Robotics गढ़ने वाले कलाकारों के दिमाग की देन नहीं लगता?
सबसे बड़ी और मजेदार बात, यहाँ भी किसी एक पार्टी का मानव रोबोट के पुनर्जन्म का अधिकार सुरक्षित नहीं है। जिन-जिन पार्टियों में इतने जोड़-तोड़ और मरोड़ की काबिलियत है, वही कर देती हैं। जैसे अलग-अलग शादियों के डिज़ाइनर अलग-अलग पार्टियाँ होती हैं। वैसे ही यहाँ भी, इस तरह के आसपास ही, एक से ज्यादा नमूने देखने को मिल सकते हैं। इनके बारे में जितनी ज्यादा सही जानकारी, आपको पता होगी और इन कोढों के बारे थोड़ा बहुत ज्ञान भी, उतना ही ज्यादा, आप इनके बारे में बढ़िया से जान सकते हैं, या बता सकते हैं। और ये इस तरह की दौबारा शादीयां ही पुनर्जन्म (?) का हिस्सा नहीं है।
जो इंसान गया है, उसके मानव रोबोट version की अगली पीढ़ी भी तो लानी है। तो क्या होगा? जहाँ से गया है, जिस हॉस्पिटल से, वहाँ आसपास से ही कोई खास पैदाइश भी मिलेगी। अब वो तारीखें भी पता कर लें। उनके माँ-बाप के नाम, पते वगैर भी। जितनी उनके बारे में जानकारी होगी, उतना ही ये समझ आएगा, की किस कदर इंसान पे कंट्रोल है, इन राजनीतिक पार्टियों का और बड़ी-बड़ी कंपनी के समूहों का। कैसे ये सामाजिक घड़ाईयाँ, महज सामाजिक व्यवस्था या सिस्टम की ही पोल नहीं खोलती, बल्की आम-आदमी के शोषण का क्रूर और भद्दे से भद्दा, रूप भी दर्शाती हैं।
जो जाते हैं, वो वापस कहाँ आते हैं? अभी तक तो संभव हुआ नहीं। हाँ। ये आदमखोर-सिस्टम जरुर, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे लोगों को खा रहा है, सिर्फ वर्चस्व की लड़ाई और कुर्सियों के चक्कर में। और कितने ही छोटे-मोटे लालच या डर, इंसान को देकर। कितने ही रिश्तों के जोड़-तोड़, कितने ही ना हुई बिमारियों के ढेर आम आदमी को देकर।
ऊपर दी गई कई सारी सामाजिक घड़ाइयों के किरदारों के नाम तो नहीं लिखे जा सकते। मगर, ऐसे ही केसों को आप अपने आसपास से भी समझ सकते हैं। एक नहीं, शायद कई मिलेंगे।
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