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Friday, January 26, 2024

सोशल इंजीनियरिंग और बीमारियों के सोशल अपडेट 2

2019 में मारपिटाई के बाद काफी कुछ बदला। एक तरह से यूनिवर्सिटी से बाहर होने की शुरुवात। उस मारपिटाई का शायद मतलब ही यही था। उस विकास सिवाच या सज्जन या किसी भी कुर्सी पर बैठे अधिकारी का कुछ हुआ क्या? 

हम उस समाज में हैं, जहाँ आम-आदमी, हर तरह से, हर जगह भुगतता है। उसका नमूना आगे का वक़्त रहा। दिसंबर 2019, Exams फ्रॉड और उधर माँ का ऑपरेशन। क्या खास था, उस ऑपरेशन में? आँखों देखा और अनुभव किया गया हाल, की बीमारियों या उनके इलाजों के नाम पे हॉस्पिटल्स में क्या कुछ होता है। आदमी एक खिलौना है। अगर आपके पास पैसा और पावर है, तो आप उससे कैसे भी खेल सकते हैं। उस पावर का साथ देता है, यहाँ-वहाँ लोगों का छोटा-मोटा लालच। जैसे अगर प्राइवेट हॉस्पिटल है, तो उन्हें भी तो चाहिए कमाने के लिए पैसा। ऐसे ही थोड़ी, इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें और इतना स्टाफ रख सकते हैं। इतने सारे प्राइवेट हॉस्पिटल्स, मतलब सरकारी हॉस्पिटल्स जनसँख्या को देखते हुए, जैसे हैं ही नहीं। हैं तो हद से ज्यादा भीड़ और सुविधाओं की कमी। इससे आगे भी कुछ है शायद? वो 2020 में शुरू हुए कोरोना काल ने समझाया। 

जैसे पीछे लिखा, हर अपडेट, अपडेट नहीं होता। कभी-कभी रिवर्स गियर भी होता है। और कभी-कभी किसी खास वक़्त पे, स्टॉप भी लगा दिया जाता है। सिस्टम चलाने वालों की जरुरतों के हिसाब-किताब से। जैसे कहीं, 2020 शुरू हो चूका था तो कहीं आगे तक 2018 या 2019 चल रहा था या कहना चाहिए की चल रहा है। इसी को शायद, टाइम मशीन बोलते हैं, इस कोढ़ वाले सिस्टम की परिभाषा के अनुसार? इसीलिए जोड़-तोड़ और  मरोड़ होते हैं, किस्से कहानियों में और लोगों की ज़िंदगियों में। कहीं, इस पार्टी के किस्से-कहानी, तो कहीं उस पार्टी के। 

माँ का ऑपरेशन कुछ-कुछ ऐसा ही था। देखो तो कुछ भी नहीं। छोटा-सा GALL-BLADDER STONE का ऑपरेशन। जिसमें, तीन कट इधर-उधर थे, तो एक नावल के पास। मगर जहाँ-जहाँ ले जाया गया या शायद जो कुछ उस दौरान देखा या समझा, वो कुछ और ही था। 

March 2020 में ऑफिशियली कोरोना शुरू हो चुका था। मेरा खुद का अजीबोगरीब बैक साइड दर्द और  हॉस्पिटल टैस्टिंग और ड्रामा। और ड्रामे के कोढ़ को समझते हुए मेरा रोहतक छोड़, अपने गाँव नो दो ग्यारह, हो जाना। मजेदार ये की दर्द का भी गुल हो जाना। कहाँ गई गाँव आते ही वो पथ्थरी?  

उसके बाद 2021 में, मेरा खास ड्रामे के साथ PGI VC, OFFICE के बैक साइड, ATM से, पुलिस द्वारा अपहरण। और फिर खास साढ़े तीन दिन (3.5) का SUNARIYA JAIL, Rohtak का दौरा। वो सब आप Kidnapped by Police, Campus Crime Series में पढ़ सकते हैं।

समझ आया कुछ, अपहरण क्या होता है और पथ्थरी की बीमारी क्या है? 

1 मेरा अपहरण पुलिस द्वारा, PGI VC, OFFICE के बैक साइड, ATM से 26-4-2021 से 29-4-2021 तक। पता नहीं इसी दो और नौ (29) का मतलब ही, नौ दो ग्यारह होता है क्या?  

2 गुड़िया का अपहरण, जैसे अपने ही लोगों द्वारा, उसकी माँ के जाने के बाद (1 Feb, 2023)। इन्हीं इधर-उधर के खास अपनों ने, माँ और छोटे भाई को बेवकूफ बनाया हुआ है। और इन माँ-बेटे को मालूम ही नहीं, की कैसे और क्यों ये सब हुआ है, जो कुछ हुआ है या हो रहा है। इन दूसरों को बेवकूफ बनाने वालों को भी, कोई और बेवकूफ बना रहा होगा? किसी छोटे-मोटे लालच के लिए? या किसी तरह का डर दिखाकर शायद? मजेदार ताने-बाने हैं ये, देखने और समझने लगो तो।   

इसका और इसके बाद जो कुछ हुआ, का लेना-देना, सीधे-सीधे, मेरा कैंपस क्राइम सीरीज, के पब्लिकेशन को रोकना रहा। अगर रोका ना जा सके, तो जितना हो सके, उतना आगे खिसकाना। क्यूँकि, ये सब इधर-उधर दी गई धमकियों के बाद हुआ है, जितना मुझे समझ आया।  

जैसे एक तरफ वो पीने वाले भाई को शराब सप्लाई करेंगे। उसका फ़ोन उठा लेंगे या बंद करवा देंगे। फिर उल्टा-पुल्टा पढ़ा, उससे घर में सांग करवाएंगे। और फिर कहेंगे पीता है, को पीटा है।  फिर लालच के दलदल में सवार लोग, उसका अपहरण कर जमीन ले लेंगे, खास स्कूल वाली जमीन, जिसके अपने राजनीतिक कोढ़ हैं। मतलब सबकुछ राजनीतिक कोढ़ और कुर्सियाँ हैं। उसके लिए जो कुछ भी करना पड़ेगा, करेंगे।   

3. सुनील,पीने वाले भाई का अपहरण जैसे, फिर से अपने कहे जाने वाले या आसपास के ही लोगों द्वारा। खासकर, चाचा के लड़के का और इस दूसरे दादा के कुनबे का इसमें अहम रोल। नाम जानना चाहेंगे इस भतीजे का और उसकी माँ का? आएँगे, धीरे-धीरे उसपे भी। सोशल अपडेट या hold on या reverse gear जैसी-सी, किसी सामाजिक किस्से-कहानी की पोस्ट के साथ। सामाजिक किस्से-कहानियाँ, सामाजिक इंजीनियरिंग के, राजनीतिक पार्टियों द्वारा। जितनी पार्टियाँ, उतने ही किस्से और कहानियाँ और लोगों की ज़िंदगी की हकीकतें।          

इन सबमें Mind Twisters, Surveillance abuse and technology abuse होता है। हॉस्पिटल क्या, स्कूल क्या, यूनिवर्सिटी क्या, पराये क्या, अपने क्या, जिस किसी का दाँव लग जाए, इस लालच के भवसागर में, जैसे अपने पाप धोते नजर आएंगे। ठीक वैसे, जैसे हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और। हालाँकि, सारी दुनियाँ तो बुरी नहीं हो सकती। कुछ ही होते हैं। ज्यादातर आम आदमी, कल भी भले थे, विश्वास करने लायक भी और आज भी।     

वैसे, कैसे होती है ये पथ्थरी की बीमारी? या ऐसी-ऐसी, कितनी ही सामाजिक सामान्तर घड़ाईयाँ? आएँगे आगे इनपे भी किन्हीं और पोस्ट में?

कितनी ही तरह के बुखार, कैंसर, लकवा, शुगर और पता ही नहीं कितनी ही बीमारियाँ, ऐसे ही होती होंगी?   

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