मानव रोबोट कैसे बनते हैं?
मीडिया इमर्शन (Media Immersion) क्या है? माहौल, नए संसार का, नए संसार के शातीरों द्वारा कृत्रिम रुप से घड़ा गया।
शातीर जहाँ वाला सिस्टम आम आदमी को कैसे गोटियों की तरह खेल रहा है ? या चला रहा है? या यहाँ से वहाँ घुमा रहा है?
चाल चल रहा है? MOVE कर रहा है? जैसे चैस के एक खाने से दूसरे पर किसी भी गोटी को रखना?
इस पार्टी ने यहाँ से यहाँ चला। तो दूसरी पार्टी ने यहाँ से यहाँ। दो से ज्यादा पार्टियाँ हैं? तो सब अपने-अपने, हिसाब-किताब से चलेंगी। अपनी-अपनी गोटियाँ।
कौन हैं ये गोटियाँ? हम सब? संसार में जीव या निर्जीव, जो भी है वो सब? निर्जीवों को चलना थोड़ा आसान होता है। हालाँकि कभी कभी नहीं भी होता। खासकर, जब एक से ज्यादा पार्टी उसको धकेलने की कोशिश करें। जैसे दो भाईयों का कोई पुराना मकान। एक कहे तोड़ दो। दूसरा कहे नहीं तोड़ना। एक कहे खुला रहेगा, दूसरा कहे ताला लगेगा।
ऐसे ही कोई ज़मीन भी हो सकती है। किसी की बचत भी। नौकरी भी। जहाँ तक निर्जीवों का सवाल है, वहाँ तक तो चलो नुकसान ऐसा है जो फिर से बनाया जा सकता है। फिर से लड़-झगड़ के लिया जा सकता है। इसलिए नुकसान उतना बड़ा नहीं है, जितना अगर ऐसा किसी जीव, खासकर इंसानों के साथ होने लग जाए तो।
हाँ। अगर इंसानों के साथ पार्टियाँ ऐसा व्यवहार करने लग जाएँ तो? बेमतलब के झगड़े होंगे। भोले-भाले रिश्ते दाँव पर लगेंगे। और इन राजनीतिक पार्टीयों की भेंट चढ़ेंगें। जिनके पास ज्यादा शातीर दिमाग होंगे, वो जीत जाएँगे। भोले, अंजान, अनभिज्ञ आम आदमी हार जाएँगे। इन्हीं राजनीतिक पार्टियों की चालों और घातों के चलते लोग बीमार भी होंगे। हॉस्पिटल भी जाएँगे। उसके बाद पता नहीं वो घर वापस आएँगे या सिर्फ उनके मुर्दा शरीर? घर तबाह होंगे और बच्चे अनाथ।
हो गया? क्या हो अगर उसके बाद भी, ये राजनीतिक पार्टियाँ, ये चालें चलना और छल-कपट करना ना छोड़ें तो? राजनीति कभी नहीं रुकती। कहीं नहीं रुकती। ना रिश्तों के बवाल पे या सवाल पे। ना उनके टूटने पे। ना इंसानों के बीमार होने पे। ना उनके हॉस्पिटल तक जाने पे। ना हॉस्पिटल से इंसानों की बजाए, लाशों के घर आने पे। ना घरों के टूटने पे। ना बच्चों के अनाथ होने पे। वो तो चालें चलेंगी। घात लगाएगी। छल-कपट करेगी। क्यूँकि, राजनीती इसी का नाम है। अब वो अनाथ बच्चों से भी खेलेगी। सब सतरंज की गोटियाँ हैं। बच्चे क्या, बुजुर्ग क्या और जवान क्या। स्वस्थ क्या, बिमार क्या, अपाहिज क्या। सबके सब चलती-फिरती गोटियाँ। बस फर्क इतना भर है, की कोई इन गोटियों को चलता है और कोई वो गोटी बनता है, असली की ज़िंदगी में। उस सतरंज में कोई रंक है तो कोई राजा। कोई सेनापति तो कोई सेनाएँ। आप क्या हैं? कहाँ हैं और क्यों हैं, जहाँ हैं? ये आपको जानना होगा। अगर ये नहीं जानेंगे तो ज़िंदगी भर राजे-महाराजों की चलती-फिरती गोटियाँ भर रहेंगे। और वो सब जानने के लिए समझना होगा, सतरंज के इस खेल को। तभी इससे थोड़ा बहुत बाहर निकल पाएँगे या बच पाएँगे या बचा पाएँगे, अपने को भी और अपने आसपास को भी।
आओ जानते हैं Robotic Conditioning क्या होती है? कैसे-कैसे होती है?
खुद अपने खिलाफ या अपनों के ही खिलाफ?
क्यों बना रहा है?
कौन सिखा रहा है?
और क्यों?
जानते हैं ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी, कितनी ही दिन-प्रतिदिन की आम-सी लगने वाली या दिखने वाली घड़ाईयों से, आगे आने वाली पोस्ट में।
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