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Friday, January 19, 2024

कैसे जाने की आप मानव रोबोट हैं या असली के इंसान? (2)

अगला कदम मानव रोबोट घड़ाई का?

उससे पहले एक Case Study, सुनील कुमार (Sunil Kumar) लेते हैं। 

फिर से पहले ही कदम पे आते हैं। मान लो जो कुछ सामने वाले ने कहा, चाहे वो गलत ही हो और आपने मान लिया। फिर जो सामने वाले ने कहा, वही सच हो जाएगा क्या? चलो देखते हैं -- 

मान लो, किसी ने कहा 

सुनील, कृष्ण या कृष्णा की लड़की है। 

आपके भाई का नाम भी सुनील है। मगर, वो तो दमयंती का लड़का है।   

हो सकता है की ऊपर कही गई दोनों ही बातें सच हों। 

मगर क्या हो, अगर कोई कहे की जिसे आप भाई कह रहे हैं वो सुनील, किसी कृष्ण या कृष्णा का लड़का है? आप मान लेंगे उसे? अगर हाँ, तो क्या हो रहा है? आपके दिमाग के सॉफ्टवेयर को बदलने की कोशिश हो रही है। उसकी खास तरह की प्रोग्रामिंग (Programming) शुरू हो चुकी है। क्या ये आपके लिए सही होगा?

ऐसा ही अगर सुनील, जो की आपका भाई और दमयंती और जयवीर का लड़का है, उसने मानना शुरू कर दिया, तो क्या होगा? क्या वो किसी कृष्ण या कृष्णा की लड़की हो जाएगा? ऐसा तो होने से रहा। मगर, उसकी ज़िंदगी जरूर लटके-झटके खाने लगेगी। क्यूँकि, प्रोग्रामिंग का पहला कदम सफल हो चुका है। तो अब प्रोग्रामिंग के अगले कदम शुरू होंगे। ठीक वैसे ही ,जैसे आपको छत पे जाना हो और पहली सीढ़ी पार कर ली हो। मानव रोबोट बनाने का या Mind Alteration, Manipulation, Brainwashing, Indoctrination, Psycho-alteration, Twisting of facts और भी पता नहीं कैसे-कैसे तरीके और ज्ञान और विज्ञान को आप इससे जोड़ सकते हैं।               

घप्पन में छप्पन? 56 में कुछ खास है क्या? जब 56 इंची बोलते हैं, तो क्या समझ आता है? आजकल तो शायद एक ही इंसान का नाम आए दिमाग में 56 के नाम पे? वैसे कोई PM भी, कैसी-कैसी बड़बड़ या गड़बड़ कर सकता है? इसका PM मोदी से कोई लेना-देना नहीं है? अब कितने ही तो PM हैं? हैं ना? और राजनीती वाले कुछ भी बोलते रहते हैं। 

चलो, अपने H #16, Type-3 स्टोर पे फिर से आते हैं --          

"वैसे तो टोने-टोटकों के कई वाक्या सामने आए थे। मगर, 2016 में, दुशहरी के आम के पेड़ पर कच्चे धागे वाले कारनामे ने, शायद, एक तरह से उस स्टोर या ऐसे-ऐसे कितने ही स्टोरों के राज खोलने में मदद की, वक़्त के  साथ। धर्मो और आस्थाओं के नाम पे रीती-रिवाजों और उनसे जुड़े जुर्मों और उससे जुड़े विज्ञान के आम-आदमी पे मानसिक जाल को समझने में भी सहायता की। इन्हीं सब में जैसे गूँथ-सा दिया है, पढ़े-लिखे शातीर लोगों ने, आम-आदमी की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाओं को। उसकी ज़िंदगी की खुशियों को, गमों को। त्योहारों को, उत्सवों को। उससे भी अहम -- पैदाइशों को, बिमारियों को और मौतों को भी।" 

फिर से सुनील कुमार पे आते हैं, जो की विजय दांगी का भाई है। जिसे ऑफिस वाले विजय कुमारी या विजय कुमारी दांगी जैसा कुछ बता रहे हैं। एक और छोटा भाई है, परमवीर सिंह। 

सबसे बड़ी विजय दांगी 22-11-1977 (ऑफिसियल 10-12-1977)     

फिर सुनील कुमार 16-10-1979 (डॉक्युमेंटेड, 20-10-1979) 

     

फिर परमवीर सिंह 7-8-1982 

शादी की 

रितु से (10-12-1984) 16-7-2005 रोहतक (13-7-2005, आर्य मंदिर, दिल्ली और तीस हज़ारी कोर्ट, दिल्ली)    

       

सुनील कुमार 16 खास है या 20 या 10?

अपने-अपने डिज़ाइन में फिट करने वाले दोनों ही कर सकते हैं। या कहना चाहिए की किए हुए हैं। जिन्हें 16 में फायदा लगा, उनकी प्रोग्रामिंग 16 के अनुसार होगी। और जिनको 20 फायदे में लगा, उनकी 20 के अनुसार होगी। और ये कोई भी नंबर हो सकता है। लेकिन क्या ये अलग-अलग पार्टियों के प्रोग्रामिंग के खास designs, इन असली वाली ज़िंदगियों के लिए भी सही हैं? या उनके खात्मे की तरफ बढ़ रहे हैं?

जिन्हें लग रहा है की मुझे ऐसे अपनी या अपने आसपास वालों की जानकारी ऑनलाइन नहीं रखनी चाहिए। ये खास आप जैसे आम आदमी को ही समझाने के लिए है, की हमारे समाज में हो क्या रहा है। ये जानकारी और ऐसी-ऐसी और कैसी-कैसी जानकारियाँ आम आदमियों की, बहुत-सी बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों की जैसे प्रॉपर्टी हैं। आपकी जानकारी के बगैर उनके पास हैं। और ज़िंदगियों को alter करने में प्रयोग (?), नहीं दुरुपयोग हो रही हैं। ये कम्पनियाँ और राजनीतिक पार्टियाँ, हमारी बहुत ही पर्सनल जानकारी का भी दुरुपयोग, खुद हमारे खिलाफ या हमारे अपने या आसपास वालों के खिलाफ कर रही हैं। ये जन्मदिन, शादी की तारीखें वगैरह, तो फिर भी बहुतों को पता होती हैं। 

16 वाली पार्टियों ने शिव ताँडव रचा हुआ है। 

और 20 वालों ने? एक सास, दो बहु? कुछ और भी हो सकता है।    

जानते हो इन थोड़ी-सी जानकारियों का, किसी सुनील कुमार की, स्कूल वाली 2-कनाल जमीन या ज़िंदगी या मौत, से क्या रिस्ता है? या इन जुए वाले खिलाड़ियों या so-called सिस्टम ने कैसे जोड़ा हुआ है?

उसके लिए और बहुत-सी जानकारी चाहिए। जो अक्सर खुद उस इंसान या घर वालों तक को नहीं पता होती। मगर, राजनीतिक पार्टियों को होती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों को होती है। 

सुनील की स्कूल वाली जमीन और कुछ खास लोगों द्वारा 5-लाख या इसके आसपास जैसा Extortion क्या है? या उससे भी ज्यादा की कोई कोशिश?  

चलो इसमें थोड़ी सी जानकारी और जोड़ते हैं, वो है बलदेव सिंह (दादा) की मौत 16-4-2010 । और जन्म तिथि? 11-9-1922 ।

कुछ अजीब लग रहा है? कैसे-कैसे जाल आम-आदमी पे। घने पढ़े-लिखे, उसपे कढ़े हुए शातीर खिलाडियों के?

इसमें अगर कुछ और जानकारी जोड़ दी जाए, तो पता है क्या बनेगा? सोचो?

Batman Series? Star wars? Matrix? Avtar? हेराफेरी? संजू? बजरंगी भाईजान? कल हो ना हो? PK? कभी खुशी, कभी गम? मुन्ना भाई MBBS? 3 Idiots? 10 का दम? रंग दे बसंती? या शायद CID, Crime Patrol, सावधान इंडिया, You? 13 Reasons Why? मतलब, कुछ भी, कहीं से भी। इनमें कई में तो, मेरे आसपड़ोस की कुछ ज़िंदगियाँ, अपने आपको देखती हैं शायद। कोई मुन्ना भाई वाला आनंद उठाए मिलेगा, तो कोई सज्जन-मार पिटाई या संजू मूवी जैसे। आप जब ऐसे खुद को या अपने आसपास को जानने लगोगे, तो आपको भी शायद ऐसा ही लगने लगेगा। क्यूँकि सिस्टम ही ऐसे है। और कुछ ना कुछ, कहीं ना कहीं मिलता-जुलता है।        

जितनी ज्यादा जानकारी, अपने बारे में और अपने आसपास के बारे में, उतना ही ज्यादा, कहीं ना कहीं, किसी हिंदी या इंगलिश मीडिया का कुछ ना कुछ तो मिलता-जुलता सा मिलेगा ही। उस जानकारी में आपके घर, स्कूल, ऑफिस, खेत, आसपास के पशु-पक्षी, पौधे जैसी जानकारी भी हो सकती है। आपके बाहरी हुलिए से लेकर, खाने-पीने और अंदर के गोबर-गणेश तक की। क्यूँकि, जिस माइक्रो लैब वाले मीडिया की बात मैं कर रही हूँ, उसमें सब आता है। बड़े से बड़े स्तर की जानकारी से लेके, छोटे से छोटे स्तर तक। सब कुछ बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से जैसे, एक दूसरे से मिलता है। मगर शातीर लोग उसी जानकारी का दुरुपयोग, अपना फायदा उठाने में करते हैं, उसमें बदलाव करके। हेराफेरी करके। कहीं, कहीं का जोड़-तोड़, मरोड़ करके, कहीं से कुछ उठाके, कहीं और चिपकाके या फिट करके। बिलकुल बायोलॉजी की Mutations जैसे। यूनिवर्सिटी स्तर पे जाओगे, तो बिलकुल भारती-उजला के dissertation CRISPR-CAS9 केस जैसे। अपने अनुसार, कम को या तकरीबन ना हुए को भी, बढ़ा-चढ़ा के पेश करना और जो हो, उसे जैसे खत्म करने की कोशिशें। इसीलिए तो ऐसे लोगों को शातीर कहा गया है। 

जैसे 16-वाली ट्रेनिंग पे बार-बार दोहराना अहम है। अलग-अलग रुप में, अलग-अलग लोगों द्वारा, अलग-अलग मौकों पे। ऐसे ही 10, 20, 30, 40, 50, 60 वगैरह। जैसे कोई कहे की मेरा बच्चा 50% है। कैसा लगेगा? सबसे बड़ी बात, उस घर में ऐसी प्रोग्रामिंग चल रही हो? और उन्हें ऐसे लग रहा हो, जैसे उनके फायदे के लिए है। उस बात को या प्रोग्रामिंग को बार-बार बोलना या इशारों में दिखाना या बताना, क्या कहलाता है? बच्चों वाली या कुत्तों वाली ट्रेनिंग? इस तरह की ही ट्रेनिंग, आसपास सबके यहाँ चल रही है, जाने-अंजाने। ऐसी ट्रेनिंग के बाद, पता है बच्चे कैसा व्यवहार करते हैं? क्रिकेट वाले बच्चे खासकर बता सकते हैं, इंदरधनुषी क्रिकेट बालों की कहानियाँ। तुम अकेले ही नहीं बहादुरो। तुम जैसी-सी और भी बहुत कहानियाँ हैं। जितनी तरह के लोग, जितनी तरह के खेल, उतनी ही या कहना चाहिए की उनसे भी ज्यादा कहानियाँ। 

बार-बार बोलना या इशारों में दिखाना या बताना, अगली सीढ़ी है, मानव रोबॉट बनाने की। बच्चों को कुछ सिखाना हो, तो भी ऐसे ही होता है ना?  

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