आपका इमर्शन मीडिया (Immersion Media) क्या है?
आपकी ग्रोथ, उन्नति, तरक्की इसी पे निर्भर करती है। इसीपे किसी भी परिवार या समाज की खुशहाली या बदहाली निर्भर करती है। अगर आप सही तरक्की कर रहे हैं, खुशहाल हैं, तो आपका इमर्शन मीडिया (Immersion Media) सही है। अगर ऐसा नहीं है, तो उसे बदलने की जरुरत है। इमर्शन मीडिया (Immersion Media) एक तरह की संचार किरणे हैं, जो आपके शरीर के आरपार होती हैं। बुरी संचार किरणे, बुरा प्रभाव छोड़ती हैं। अच्छी संचार किरणे, अच्छा। जैसे वातावरण में अशुद्ध वायु या शुद्ध वायु। जैसे शुद्ध खाना या संक्रमित खाना। जैसे शुद्ध पानी या अशुद्ध पानी। वैसे ही जो कुछ आप देखते या सुनते हैं या महसुस करते हैं, उसका शांत करने वाला असर या भड़काने वाला। एक तरह की संगत भी। सोचने-समझने को प्रोत्साहित करने वाला या आँख बंद कर भेड़चाल चलाने वाला? आगे बढ़ाने वाला प्रभाव या पीछे धकेलने वाला। संवाद को बढ़ावा देने वाला असर या तानाशाही को, छुपम-छुपाई खेलने वाला? साथ लेकर चलने वाला असर या कुछ को साथ, कुछ को एक तरफ धकेलने वाला?
अब भला इतना कुछ एक ही जगह मिलना कहाँ संभव है? ये तो Optimum (ऐसा इमर्शन मीडिया, जिसपे सबसे अधिक तरक्की संभव हो) हो गया। ऐसी स्थिति या वातावरण तो लैब में ही संभव है। हर इंसान के लिए, खासकर आम इंसान के लिए ऐसी लैब संभव कहाँ है? आम इंसान की ज़िंदगी तो मूलभूत सुविधाएँ जुटाने में ही निकल जाती है। फिर लैब के जीव बाहर के वातावरण को कहाँ आसानी से झेल पाते हैं? मगर मूलभूत सुविधाओं तक वंचित जीव भी कहाँ आसानी से जी पाते हैं या फलफूल पाते हैं? दोनों ही स्थितियाँ इंसान के लिए सही नहीं हैं।
इमर्शन मीडिया (Immersion Media) को कुछ-कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं। जैसे
दही जमाना (Curd formation)
उसके लिए दूध का सही तापमान होना, जामण लगाने के लिए सही दही या लस्सी का होना और एक खास वक़्त तक जामण लगा के छोड़ देना। अब उस दही का स्वाद कैसा होगा ये किसपे निर्भर करता है? जामण में किस तरह के और कौन से कीटाणु थे। कितनी मात्रा में थे। दूध का तापमान क्या था? जामण लगाने के बाद कितनी देर तक बाहर रखे रहने दिया या फ्रीज में रख दिया? मतलब तापमान में बदलाव कर दिया। ज्यादा देर बाहर या उसी तापमान पे या ज्यादा तापमान पे, मतलब ज्यादा तीखा या खट्टा स्वाद। जमने के तुरंत बाद फ्रीज, मतलब कम तापमान पे रख दिया। मतलब दही बनाने वाले जीवों की ज्यादा वर्धी पे पाबन्दी लगा दी। तो कई दिन तक स्वाद को एक स्तर पे फिक्स कर सकते हैं। सिर्फ तापमान का हेरफेर कितना कुछ बदल सकता है?
ऐसे ही अलग-अलग तरह के आटे गुंथने की विधियाँ हैं। रोटी के लिए अलग, पुरी के लिए अलग, भटुरे के लिए अलग, अलग अलग तरह के ब्रेड के लिए अलग, केक के लिए अलग। एक तरफ एक गृहिणी यही सब रोज करती है। और दूसरी तरफ? Food Tech कम्पनियाँ। फ़ूड टैक, अपने आपमें दुनियाँ का बहुत बड़ा व्यव्साय है। क्युंकि, खाने के बैगर तो इंसान जीवित ही नहीं रह सकता।
ऐसे ही जैसे अलग-अलग तरह के पौधे उगाने के लिए अलग-अलग तरह के बीजों का अलग-अलग तरह का रोपण। अलग-अलग तापमान, अलग-अलग पानी की मात्रा की जरुरत। और किसी को कम, तो किसी को ज्यादा वक़्त देना आदि।
एक होता है, किसी भी विधा को अपने आप सीख जाना। मतलब उसके लिए इमर्शन मीडिया (Immersion Media) है वहाँ। जैसे जिनके घर में खाना पकता है, वहाँ ज्यादातर बच्चे, खासकर हमारे भारतीय समाज में लडकियां, अपने आप खाना बनाना सीख जाती हैं। जी हाँ ! ऐसे भी समाज के कुछ तबके होते हैं, जहाँ खुद खाना बनाना अहम नहीं होता। या तो उन्होंने रसोइये रखे होते हैं या ज्यादातर खाना बाहर खाते हैं। तो खाना बनाना कोई औरत प्रधान काम नहीं है। सीख लो तो एक तरह की विधा ही है। ज़िंदगी में कभी भी, कहीं भी काम आ सकती है।
वैसे ही जैसे खाना उगाना (खेती करना), कपडे बुनना या सिलना, साफ-सफाई करना आदि। जो समाज जितना पुराने ढर्रे पर है, वो उतना ही ज्यादा ये सब काम ज्यादातर खुद करता है --गुजारे के लिए। जो समाज का तबका, जितना ज्यादा किसी एक या दो विधा में निपुण होता जाता है, वो उतना ही उस विधा पर फोकस करता है, और बाकी का काम औरों से करवाता है। मतलब उस विधा में निपुण होने के लिए या दक्षता हासिल करने के लिए इमर्शन मीडिया (Immersion Media) है वहाँ।
फिर एक समाज का वो तबका भी है जो शायद उस चूहा दौड़ का हिस्सा रह चुका, जहाँ हर कोई अंधाधुंध, आगे बढ़ने के लिए, दूसरे को कुचल कर निकलता है। वो शायद वापस किसी संतुलन पर आना चाहता है। जैसे विकसित देशों में औद्योगीकरण के बढ़ते जहरीले प्रभावों के बाद, वापस आर्गेनिक फार्मिंग की तरफ के रुख। तो आर्गेनिक फार्मिंग भी एक विधा है, कला है।
वैसे ही जैसे डॉक्टर, टीचर, वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों के बच्चे उन्हीं क्षेत्रों में आसानी से आगे बढ़ते हैं। क्युंकि उनके आसपास वो सब बनने के लिए इमर्शन मीडिया (Immersion Media) है। उसके लिए बहुत ज्यादा कुछ अलग करने की जरुरत नहीं होती।
ऐसे ही बड़ी-बड़ी कंपनियों और राजनीतिक पार्टियों या घरानों के पास मानव रोबोट घड़ने की दक्षता है। उसके लिए उन्हें बहुत कुछ अलग से नहीं करना पड़ता। हाँ ! वक़्त के साथ-साथ, जैसे-जैसे, प्रौद्योकी (Technology) में नई-नई खोजें हो रही हैं, उनको जरूर साथ लेकर आगे बढ़ना होता है। आखिर दूसरी पार्टियों से प्रतिस्पर्धा में भी आगे निकलने की दौड़ है। उन तकनीकों के प्रयोगों से मानव रोबोट बनाने और आसान हो रहे हैं।
कैसे? इमर्शन मीडिया (Immersion Media) समझ आ गया? तो वो भी आ जाएगा और आप खुद उसे होता देखेंगे, हर रोज, अपने ही आसपास या शायद खुद पर ही। उसके लिए इन बड़ी-बड़ी कंपनियों और पार्टियों के जालों को और समझना पड़ेगा। टेक्नोलॉजी और मानव संसाधनों का प्रयोग और दुरूपयोग, दोनों को समझना अहम है।
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