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Wednesday, September 20, 2023

दिखाना है, बताना नहीं, वाली "भूतिया-राजनीती"

क्या है भूतिया-राजनीती?

राजनीति के बताए हिसाब-किताब

भूल जाओ तुम कौन हो 

और क्या काम करना है 

जिंदगी को जीना है अपने हिसाब से? 

या राजनीति के बताए हिसाब-किताब में उलझना है? 


भूतिया राजनीती और इसके प्रभाव

भूत जो है ही नहीं। जो अक्सर दिखता भी नहीं। जो भ्रम या आभाष मात्र है। मिथ्याभाषी है या है कोई डरावा। बस, उसी आभाष को बढ़ाना-चढ़ाना, तोड़ना-मरोड़ना है, कोई हकीकत घड़ने के लिए। राजनीतिक हकीकत। हकीकत, इस पार्टी की या उस पार्टी की। मतलब, एक ही विषय पर हकीकत भी कोई एक नहीं, बल्की, अलग-अलग पार्टी के हिसाब से, अलग-अलग हकीकत।      

एक ऐसा जहाँ, जहाँ पे लोग आपको, जो आप हैं, बस वो नहीं रहने देना चाहते। पता नहीं और क्या-क्या बनाना चाहते हैं? सारा राजनीतिक खेल, इस अदले-बदले के गोटियों के जुए के इर्द-गिर्द ही घुमता है। यही है शायद, नाम में क्या रखा है (What lies in a name, place or IDs)?  मानो तो बहुत कुछ और ना मानो तो कुछ नहीं। बशर्ते, कोढ़ वाली घटिया राजनीती जीने दे। 

जैसे सामान्तर केसों में जहाँ नाम, जगह और कारनामे मिलते-जुलते से होते हैं, मतलब वहाँ काफी कुछ हकीकत के आसपास भी लग सकता है या हो सकता है। जहाँ नहीं मिलते, मगर फिर भी घटनाओं को एक जैसा-सा दिखाने की कोशिशें हों, मतलब mutant घड़ाई हो सकती हैं। हकीकत में वैसा कुछ भी न हो, किरदार एकदम से नया घड़ दिया हो। जैसे, "देख तेरे भाभी चाली जा" या "फलाना-धमकाना Live-in वाले रिश्ते में हैं।" और भी कैसे-कैसे जैसे हो सकते हैं। जैसे, कोई एक्सीडेंट के बाद बिस्तर पे पड़ा हो, हिलडुल तक ना सकता हो और कहीं किसी और ही तरह के हमबिस्तर घड़ दिए हों। कहीं किसी की पहली कमाई ही 20000 हो  और कहीं किसी middle क्लास वाले किसी रईस को पॉकेट-मनी भी इससे ज्यादा मिलता हो या आसपास हो। कहीं किसी को बोला जाए की ये live-in रिश्ते में हैं। बोला जाए, जैसे देख तेरी भाभी चाली जा, न की हकीकत। और कहीं किसी का पहली शादी का सालों से केस चल रहा हो और दूसरी ले आएं। और कोई बोले ये तो live-in हैं। मतलब कोई भी केस एक जैसा नहीं होता। हाँ ! राजनीतिक पार्टियाँ वैसा घड़ने की कोशिश जरूर करती हैं। पता नहीं ऐसा करने से उनके कैसे-कैसे नंबर बनते हैं।          

"दिखाना है, बताना नहीं", न सिर्फ जुर्म को छिपाने का काम करती है, बल्की बढ़ाने का काम भी करती है। ये खेल नहीं, सोचे समझे षड्यंत्र होते हैं। जहाँ तक हो सके इनसे बचने की कोशिश होनी चाहिए। ज्यादातर लोग इसका हिस्सा अनजाने में होते हैं। तो बहुत से शायद जानभुझकर भी?   

"दिखाना है, बताना नहीं" की राजनीती मतलब, "भूतिया राजनीती", मानव रोबोट बनाने की प्रकिर्या का हिस्सा भी है।  

भूतिया राजनीती, भूत घड़ती है, अपने फायदे के लिए। उस राजनीती को कोई फर्क नहीं पड़ता की जिन लोगों पे वो ये भूत घड़ रही है, इसका असर उनपे कैसा हो रहा है। ये भूतिया राजनीती, ऐसी बीमारियाँ पैदा करती है, जो होती ही नहीं।  लोगों को दुनियाँ से ऐसे उठा देती है की यकीन करना ही मुश्किल हो, ऐसा कैसे संभव है? ये राजनीती झूठ, छल, कपट, छलावा और भी पता नहीं क्या-क्या करती है, सत्ता पाने के लिए या बचाने के लिए।   आम आदमी को इससे बचने की जरुरत है, न की हिस्सा होने की। जितना आप इसका हिस्सा बनते जाएंगे, उतना ही ज्यादा दुस्प्रभाव ये आप पर छोड़ती जायगी। खासकर जब आपको उन दुस्प्रभावों से बचने के तरीके नहीं मालुम।     

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