Search This Blog

About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, September 9, 2023

हूबहू ( Ditto)

हूबहू ( Ditto) कैसे रचती हैं, ये सब पार्टियाँ? कैसे हो सकता है की जो एक जगह कहीं सिर्फ फाइल्स तक की Theory हो, वही, कहीं और हकीकत में उससे ज्यादा कहीं बेहुदा या खुंखार रूप में चल रहा हो?

कर-नाटका 

उन दिनों जो कर्नाटका के Resort राजनीति की खबरें आ रही थी वो यूँ लग रहा था जैसे आसपास ही यूनिवर्सिटी में कहीं कुछ पक रहा था और दूर कहीं किसी राज्य में उसको बढ़ा- चढ़ा कर या तोड़मोड़ कर पेश किया जा रहा था।  सही शब्द क्या होगा उसके लिए? HYPE? PEJORATIVE? Manipulative? Manifestation?    

कहीं किन्हीं गँवार शराब पीने वाले लोगों की भाषा और कहाँ CJI, India, एक ही बात हो सकती है क्या? 

दारु पीळे, पता नहीं कैसे-कैसे नामों से नवाज़ देते हैं, लोगबाग। मुझे लगता था या अभी भी काफी हद तक यही समझ आता है की दारु पीना वो भी इतनी मात्रा में, की बन्दों को होशो-हवाश ही ना रहे की क्या बोल रहे हैं और क्यों? और किसे बोल रहे हैं? जो इंसान कुछ अच्छा नहीं करते, वो कुछ न कुछ बुरा तो करते ही हैं? 

दारू पीळे, भाषा ही बता रही है, की ऐसे स्तर पर क्या-क्या कहा जा सकता है या गाली गलौच इतने free flow में भी हो सकता है जैसे शब्दों की कोई प्रासंगिकता ही ना हो। पहली बार जब मैंने वो उँगलियों और अंगूठों वाली गालियॉं कहीं सुनी तो एक बार तो समझ नहीं आया, की मैं हूँ कहाँ और क्यों? वक़्त के साथ धीरे-धीरे काफी कुछ समझ आया। वो ये की ये तो मानव रोबोट घड़े जा रहे हैं। मगर इतना कुछ संभव कैसे है? शायद मैं जहाँ हूँ, अगर वहाँ न होती और जो कुछ देखा, सुना या समझा, वो सब मेरी जानकारी में ही ना होता, तो मुझे भी समझ नहीं आता की ऐसा संभव कैसे है? उससे भी ज्यादा, इस सबको समझाने में भुमिका रही कुछ गुप्त गुफाओं को दिखाने वालों की।

"दिखाना है, बताना नहीं है" मानव रोबोट घड़ने की प्रकिर्या का अहम हिस्सा है। सबकुछ, उसी के इर्द-गिर्द घुमता है, इस जुए की राजनीति में। और ऐसा तब होता है, जब जुर्म बहुत ज्यादा होता है। उसपे जुर्म को भी गुप्त रखने की कोशिशें होती हैं। नहीं तो, दिखाना है बताना नहीं है, का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। जो बात सीधे सपाट हो सकती है, उसे किसी नाटक मे क्यों घड़ना? नाटक भी ज्यादातर ऐसे, जिनमें सामने वाले को भी कोशिश करनी पड़े समझने की, की आखिर इस सबका मतलब क्या है?    

एक स्तर ऐसा, जहाँ आप सुनकर एक बार तो जैसे सुन्न रह जाएँ की ये कौन से गंदे नाले या किसी कुरड़ पर पहुँच गए? तो दुसरी तरफ, Step in, step out या checked in, checked out वाला coded जहाँ। फर्क क्या है? बात तो एक ही है। नहीं?    

नहीं। यही वो फर्क है जो अन्जान, अनभिज्ञ लोगों को जल्दी मानव-रोबोट बनाने में सफल होता है। ठीक ऐसे, जैसे एक तरफ, सिर्फ फाइल्स में कुछ हो या फिर कोई रैगिंग के नाम पे किसी तरह का धोखा या दुर्व्यवहार। या शायद ऐसी ही कोई Proxies, hypes वाले जुर्म। कहीं किसी फोटो या विडियो तक कोई हादसा हो। तो दूसरी तरफ, कैसी-कैसी सामान्तर घढ़ाईयाँ? मानवाधिकार उलंघन तक, सामन्य-सी बातें जैसे। पता नहीं कैसे-कैसे जुबानी और शारिरीक दुर्वव्यवहार, दुर्घटनायें, बीमारियाँ, रिश्तों के तोड़-मोड़ और मौतें तक। इस सब में सिर्फ मनोविज्ञान काउंसलिंग काम नहीं करती। बल्की इंसानों का खास तरह का अध्ययन। इसे ही कुछ लोग SWOT analysis कहते हैं क्या? कोड भी मस्त हैं --SWOT . वो जितना ज्यादा होगा, उतना ही ज्यादा आसान होगा, उन्हें कंट्रोल करना। 

कुछ खास तरह के तरीके जो इन घढ़ाईयों में प्रयोग होते हैं। दूरी पैदा करना। दूरी पैदा करके किसी खास तरह के circle या surrounding की तरफ धकेलना। किसी भी तरह से कमजोर करना, मानसिक या आर्थिक या हो सकता है किसी भी तरह के दबाव या डरावे। किसी भी तरह की कमी पैदा करना, जिसके बिना आप अपने हिसाब से काम ना कर सकें। दुनियाँ भर में ये पार्टियाँ और MNCs यही तो कर रही हैं। और ज्यादातर लोगों को खबर तक नहीं की ऐसा हर जगह हो रहा है, कहीं कम तो कहीं ज्यादा।     

जिन पर सामान्तर केस घड़े जा रहे हों, उन्हें इनसे बचने के लिए कम से कम, कुछ तो जरूर पता होना चाहिए। जबकि ज्यादातर ऐसे लोगों को उस जानकारी का ABC तक नहीं पता होता। तो वो बचेंगे कैसे? लोगों को अगर खबर हो की कहाँ किस तरह की घढ़ाईयाँ संभव है तो उन्हें रोका भी जा सकता है। मगर, ज्यादातर ऐसी खबर रखने वाले इन्हें गुप्त रखते हैं। क्यों? क्युंकि, वो खुद या तो कहीं न कहीं ऐसी घढ़ाईयों का हिस्सा होते हैं या गुप्त रखना है वाले जुआरियों की सेनाएँ, पार्टियों के हिस्से होते हैं ।    

जानते हैं ऐसे कुछ सामान्तर केसों के बारे में जो वक़्त पे सही जानकारी होने की वजह से बच गए। या जो वक़्त पर जानकारी न होने की वजह से फंस गए। कहीं रिश्ते आए गए हो गए या हो रहे हैं। कहीं जिंदगियां बर्बाद हो गई या हो रही हैं। तो कहीं कितने ही घर। उसपे, ऐसी जगहों पे आपस में जो मारा-मारी या नफ़रत का माहौल बन जाता है, वो अलग। 

No comments:

Post a Comment