मोबाइल वाली फाइल्स,
भजनों के साथ, कौन से बाबे-साबों की फोटो रख दी, किसने और क्यों? वो भी किन्हीं बुजर्गों के मोबाइल में? उन फाइल्स और बाबों की फोटो की बुजर्गों को कोई जानकारी नहीं। वैसे ही जैसे, हम जैसे ज्यादातर लोगों को नहीं पता होता की हमारे मोबाइल या लैपटॉप में, कैसी-कैसी गुप्त फाइल्स या रजिस्ट्री आ चुकी या जा चुकी। वैसे ही जैसे घरों, बाजारों, सड़कों, चौराहों पे गुप्त तरीके के कोडों का आम आदमी को नहीं पता होता। कौन करता है ऐसे? आपका भला चाहने वाले या आपके अपने और अपनों के खिलाफ षड्यंत्र रचने वाले? वो भी गुप्त तरीके से, बिना बताए और बिना दिखाए। ये एक तरह का उस पार्टी द्वारा, अपने किए गए कांडों पे, अपनी ही तरह की मोहर ठोकने का तरीका भी है और मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना भी या कहो दुस्प्र्भाव। ऐसे-ऐसे गुप्त तरीकों से और भी बहुत तरह के काँड हो सकते हैं। जैसे हमारे इस अनोखे संसार में, सरकारें और सिस्टम का ये गुप्त कोडों वाला पहिया काम करता है। इसीलिए जो दुनियाँ के इस कोने में हो रहा है, वैसा ही कुछ दुनियाँ के दूसरे कोने में। सोचो भारत का चीफ जस्टिस कहे policies changes के लिए अपने लैपटॉप की रजिस्ट्री चैक करो। और दूर कहीं कोई कहे, अरे चीफ जस्टिस के खुद के कोड चैक करो, --धन्ना सेठ कहीं का। अजीब है ना? और इधर ये Nation state? देश कहाँ है, वही जो हमने पढ़ा या सुना या अब जो बच्चे पढ़ रहे हैं? ये तो कबीले नहीं हो गए या शायद International gangsters? फिर ये democracies क्या हुई? Demo of Currencies शायद? फिर ये currencies के कोड और सट्टा (या सत्ता?) बाजार क्या हैं ?
एक तरफ दिखाना है मगर बताना नहीं और दूसरी तरफ ना दिखाना, ना बताना, सिर्फ रचना है। वो भी गुप्त तरीके से। इसे बोलते हैं, उतना ही बताओ जितना अपना काम निकालने के लिए जरूरी हो। न उससे कम और न ही ज्यादा। धूर्त और चालाक लोग करते हैं ऐसा। वो ऐसा न सिर्फ युवाओं के साथ करते हैं, बल्की बच्चे-बुजुर्ग कोई हों, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। उन्हें तो घड़ाई से मतलब है।
दूसरी तरफ, गुप्त तरीके राजनीतिक कहानियों के किरदारों को, अपने अनुसार घड़ने के लिए होते हैं। वो उन्हें हद से ज्यादा बढ़ा-चढ़ा भी सकते हैं। फुला भी सकते हैं, ऐसे, जैसे किसी गुब्बारे में हवा भरना। और तोड़-मरोड़, जोड़-घटा भी सकते हैं, ऐसे, जैसे दूध से मक्खी निकालना। फुलाए हुए गुब्बारे को पिंच करके फोड़ना। तितलियों को धागा बांधके पतंग की तरह उड़ाना। धागे को छोटा-बड़ा करके, उनके उड़ान के संघर्ष को देखना। कीड़े-मकोड़ों के चारों तरफ लक्ष्मण रेखा लगा, जीवन-मरण का सँघर्ष देखना। पिंजरे में रोटी का टुकड़ा रख, चुहों को फंसाना। तोते या चिड़ियाओं को पिंजरे में रख, बोलना या अनुशासन सिखाना। चीनी के दाने डाल, चिंटिओं को बुलाना। अनाज के दाने डाल, पक्षियों को बुलाना। पानी में काँटा छोड़, मछलियों को फसाना जैसे। गुप्त तरीके, जहाँ दिखता कुछ है, और करने वालों का इरादा कुछ और ही होता है।
ऐसे ही गुप्त तरीकों से ये राजनीतिक पार्टियाँ बहुत कुछ आपकी ज़िन्दगी में या उसके आसपास कर रही होती हैं। वो खाने-पीने, पहनने, रहने, पढ़ने या आपके काम करने की या और कोई जगह हो, सब जगह किसी न किसी रूप में चल रहा होता है। कहीं इस पार्टी का, तो कहीं उस पार्टी का। मतलब, ज़िंदगी का हर लम्हा, हर कदम, कहीं न कहीं, राजनीतिक कोडो के दायरे में होता है। आपकी ज़िंदगी की कोई भी घटना या दुर्घटना, ज्यादातर केसों में किसी न किसी सामान्तर घड़ाई का हिस्सा होती है। ऐसी सामान्तर घढ़ाईयाँ जो किसी न किसी रूप में यहाँ भी चल रही हैं , वहाँ भी चल रही हैं। और न पता कहाँ-कहाँ चल रही हैं। जिसे जरूरत पड़ने पर ये पार्टियाँ अपने हिसाब से चलाने, मोड़ने, तोड़ने या जोड़ने की कोशिश करती हैं। ऐसे ही कहीं न कहीं ये पार्टियाँ, जो चल रहा होता है, खुद उसके आसपास घुम रही होती है। मतलब ऐसा भी नहीं की सबकुछ राजनीतिक पार्टियों के पास ही होता है। आम आदमी भी इस सिस्टम के पहिए को कहीं न कहीं, थोड़ा या ज्यादा, किसी न किसी रूप में घुमा रहा होता है। जितना ज्यादा वो जगरूक होगा, उतना ही उसके अपने भले में होगा। आम आदमी की इसी ताकत को कम करने के लिए ये पार्टियाँ गुप्त तरीकों से काम करती हैं। जहाँ का सिस्टम जितना ज्यादा गुप्त है, वो उतना ही कम आम आदमी के भले में है। गुप्त सिस्टम, गुप्त कीटाणुओं के रोगों जैसा-सा है, जो समाज में कितनी ही तरह की बीमारियां और समस्याएँ, गुप्त कीटाणुओं की तरह परोसता है। बीमारी तो दिखती हैं, मगर वो कीटाणु सबको नजर नहीं आते। कीटाणु भी कैसे-कैसे? Covid-corona वाले pandemic को ही लो। राजनीतिक बीमारियाँ, वो भी दुनियाँ भर के कोर्ट्स की जानकारी के बावजूद? इसे आप गुप्त फाइल्स या कोडों वाली "भूतिया-राजनीती" भी कह सकते हैं।
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