वो भगवान और भूत घड़ रहे हैं
और आम-आदमी?
उनकी घड़ाईयों को भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में
वो आदमी की मनोस्तिथि घड़ रहे हैं,
सिर्फ पढ़ और समझ नहीं रहे हैं
और आम आदमी उन्हें भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में
वो आदमी को इधर-उधर धकेल रहे हैं
सिर्फ आदमी को?
नहीं, वो जीवों और निर्जीवों को भी
इधर-उधर धकेल रहे हैं
जहाँ-जहाँ और जितना उनका बस चले
और आम आदमी उन्हें भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में
वो डरावे, छल, कपट
या कहना चाहिए की
साम, दाम, दंड, भेद
सब प्रयोग कर रहे हैं
और आम आदमी उन्हें भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में
नज़र दौड़ाओ अपने आसपास
ज्यादा नहीं तो, थोड़ा-सा ही सही
पढ़ना, समझना सीखो अपने आसपास को
नहीं समझ सकते अगर, निर्जीवों के बदलावों को
तो अपने आसपास के जीव-जंतुओं को
जानवरों, पक्षियों और पेड़-पौधों को
जो उनके साथ हो रहा है
वही, कुछ-कुछ, वैसा-सा ही
वहाँ के इंसानो के साथ हो रहा है।
जो पानी तुम पीते हो
जो खाना तुम खाते हो
जिस हवा में सांस लेते हो
जिस मिट्टी को अपना कहते हो
उन सबपे मोहर है
वहाँ के राजनीतिक कोढ़ की
स्वास्थ्य उसी की देन है
बीमारियाँ उसी की देन हैं
नशेड़ी उसी की देन हैं
ड्रग्स का धंधा उसी की देन है
तुम्हारे रिश्ते-नातों पे
तुम्हारे बाल-बच्चों पे
उनके जन्मों या मौतों पे
वो अपनी मोहर ठोक रहे हैं
और आम आदमी उन्हें भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में
सोचो, भगवान कौन है?
शातिर पढ़े लिखे इंसानों ने घड़ा इन भगवानों को
या भगवान ने इंसान और सब जीवों को ?
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघर के रचयिता?
यही शातिर पढ़े-लिखे इंसान
वेदों, क़ुरानो, बाइबिल, गुरुवाणी के रचयिता?
यही शातिर पढ़े-लिखे इंसान
उनमें बदलावों और नए युग के नए-नए
तकनीकों, अविष्कारों के रचयिता?
यही शातिर पढ़े-लिखे इंसान
उनके प्रयोग और दुरूपयोग के रचयिता?
यही पढ़े-लिखे, शातिर इंसान।
और आम आदमी?
उनके किए धरों को भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में।
और शायद यही फर्क है
की इंसान जितना ज्यादा पढ़ता-लिखता है
उतना ज्यादा इस सिस्टम को समझता जाता है
उतना ज्यादा अंधविश्वासो और भगवान वाले,
राजनीतिक जालों से दूर होता जाता है।
मूर्ति पूजा विरोधी,
मतलब, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरिजाघर
जैसी जगहों पे कम ही जाता है या विश्वास रखता है
डर, डरावों और छलावों से दूर होता जाता है
क्युंकि, उनके पीछे छिपे राजों को जानता जाता है
मगर आम आदमी?
उनके किए-धरों को भुगत रहे हैं
बस यही फर्क है, विशेष और आम आदमी में
या शायद पढ़े-लिखे शातिरों और
अन्जान, अज्ञान, आम आदमी में।
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