अदा, अभिनय, साँग, नाटक
और मायाजाल वाला प्रदर्शन
तड़का राजनीतिक रंगमंच का
और आपको, आमजन को दिखेगा क्या?
कहीं पे किसानों का 26 जनवरी को,
प्रदर्शन, दिल्ली के लाल किले पे।
तो कहीं, राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा
कहीं, पंजाब में घुसते प्रधानमंत्री मोदी के,
काफिले को सुरक्षा का खतरा
तो कहीं, फर्जी हस्ताक्षर वाला राघव चड्डा का एपीसोड
दुष्यंत के हवाले DI-GI-TAL
मंच संचालन दिग्विजय के?
AAP के हवाले दिल्ली के स्कूल?
तो शिक्षा मंत्री,
मनीष सिसोदिया हुए,
किस के जुर्म में, जेल के अंदर?
अरविंद की बिजली, और वो खंबे पे चढ़,
Engineer वाला बिजली ठीक करने का नाटक?
तो बेवड़ा मान, चमका कैसे पंजाब में?
(बेवड़ा क्यों कहा, अगली किसी पोस्ट में)
आओ जाने मोटा-मोटा, अपनी सरकारों को (?)
या रईसों और टेक्नोलॉजी के मायाजाल वाली सरकारों को?
और इस सिस्टम को --
जिसे चलाता है, कुछ-कुछ, कठपुतलियों की तरह
समाज के दिमाग वाला हिस्सा (Intelligentsia)
थोड़े घने पढ़े-लिखे और कढ़े-लोग
वो फिर सिविल हो या चाहे हो फ़ौज
और चलता है, चलती-फिरती गोटियों की तरह
हर समाज का आमजन, आम-आदमी
जैसे लिए हुए, कन्धों से नीचे का हिस्सा सिर्फ।
किसान को बोलो अपने हक़ के लिए, दिल्ली चलो
वो लाल किला, जिसे देखते-सुनते आए थे बचपन से
की 26 जनवरी को तो,
चिड़िया तक, आसपास भी पैर नहीं मार सकती
ट्रैक्टरों का प्रदर्शन देखता है, और किसी किसान की मौत भी
मौत? या?
ऐसे ही, कितने ही प्रर्दशन, हम और आप रोज देखते हैं
राजनीती के रंगमंच के,
जहाँ आम आदमी होता है, कठपुतली मात्र
किसी भी नाम पे, और उसे पता तक नहीं चलता, की,
वो राजनीतिक रंगमंच के स्टेज पे उतार दिया गया है
और खास-आदमी, खेलता है उन कठपुतलियों से
अपने शातिर और लालची दिमाग से
ज्यादातर कुर्सी के लिए या धन-दौलत के लालच के लिए
सत्ता के हेरफेर के लिए,
अपने और अपने बाप-दादाओं के नाम, उकेरने के लिए
यहाँ-वहाँ और न जाने कहाँ-कहाँ?
या शायद, वो नेता ये भी कह सकते हैं
की हम तो खुद कठपुतलियाँ हैं,
और खुद नहीं पता, कौन चला रहा है?
या हमें तो विरासत में ऐसा ही सिस्टम मिला है
मालुम ही नहीं, की इससे बाहर निकल, कैसे काम किए जाएँ?
तड़का है इस गुप्त राजनीतिक रंगमंच का
दुनियाँ के चप्पे चप्पे पे।
तड़का गुप्त राजनीतिक रंगमंच का
खुद इस गुप्त राजनीतिक रंगमंच को समझने की जिज्ञासा भी है और जरुरत भी। गलत-सही जितना समझ आता है यहाँ-वहाँ से, कोशिश है, उसे आमजन से बाँटने की। जितना आमजन जागरूक होगा, उतना ही उसका अपना भला होगा। उतना ही, वो इसके दुस्प्रभावों (हादसों, बीमारियों और कितनी ही तरह के नुकसानों) से बच पाएगा। और अपना हिस्सा इस सिस्टम में सुनिश्चित कर पाएगा, बजाय की सिर्फ कठपुतली बनने के।
No comments:
Post a Comment