Mind Programming
Manipulative Techniques to change human behaviour
इंसान के व्यवहार को बदलने के लिए, हेराफेरी के तोर-तरीके या तकनीकें।
मानव-रोबोट बनाने में आपका कोई भी गुण या अवगुण प्रयोग में लाया जा सकता है। किसी भी लत की तरह, उसे घटाया या बढ़ाया जा सकता है। ठीक वैसे ही, जैसे शराब पीने, ड्रग्स लेने, हुक्का पीने, चाय पीने जैसी किसी लत या आदत को। उसको आपके खिलाफ भी प्रयोग किया जा सकता है। और तोड़-मरोड़ कर और भी कितनी ही तरह के प्रयोग किए जा सकते हैं।
लालच और डरावे (Reward and Punishment Training)
जैसे पालतु जानवरों को ट्रेनिंग दी जाती है या जैसे बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है।
ये ट्रेनिंग ऐसी-ऐसी ट्रेनिंग देने वाले लोगों के लिए ज्यादा आसान होती हैं। वो दुर बैठकर भी ऐसा कर सकते हैं। मतलब रिमोट कंट्रोल मानव-रोबोट बनाना।
ऐसा करने से पहले उन्हें आपके बारे में बहुत कुछ पता होना चाहिए। वो निगरानी के संसाधनों के दुरूपयोग (surveillance abuse) के द्वारा आसान हो जाता है।
असली संसार (Real World) में कोई आपके बारे में कोई कितना जान सकता है?
आपके घर में या आस-पड़ोस में कौन-कौन है?
आपके दोस्त कौन हैं? दुश्मन कौन हैं?
सहज कहाँ रहते हो? कहाँ या किन मुद्दों पे असहज हो जाते हो?
पसंद-नापसंद क्या है? विचारधारा क्या है?
वित्तिय स्थिति क्या है, कुछ हद तक शायद?
हाँ ! अगर कोई पीछा कर रहा/रहें हों या खास जासूस छोड़ रखा/रखे हों, तो अलग बात है। ऐसे मुखबिर ज्यादातर सेना, गुप्तचर विभाग, पुलिस और अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के लिए काम करने वाले होते हैं।
आभासी दुनियाँ (Virtual World)
आपकी IDs क्या हैं? क्युंकि IDs अपने आप में आपके बारे में एक पर्सनल ज्ञान का पिटारा हैं। जो सिर्फ आपका नाम नहीं बताती, बल्कि जन्म तिथि से लेकर, माँ-बाप, भाई-बहन, बीवी-बच्चे, बुजुर्ग, जन्म स्थान, शिक्षा, एड्रेस, फ़ोन नंबर के इलावा भी काफी कुछ बताती हैं। और हमारी ज्यादातर IDs ऑनलाइन हैं।
फ़ोन पे या इंटरनेट पे, सोशल मीडिया पे, किन-किन से बात करते हो? क्या बात करते हो? कितनी देर बात करते हो? रुचि क्या हैं? आपके घर या रिश्तेदारों में कौन-कौन हैं? और उनके रिस्तेदार? आपके दोस्त कौन हैं? दोस्तों के दोस्त? या Circle कैसा है? कहाँ-कहाँ रहता है? ये सब क्या करते हैं? मतलब background क्या है?
घर या बाहर मतभेद कहाँ-कहाँ हैं? कहाँ कम हैं, और कहाँ ज्यादा हैं?
कहाँ मतभेद पैदा करना मुश्किल है और कहाँ आसान?
कहाँ-कहाँ लाइक करते हो? सब्सक्राइब करते हो? कॉमेंट करते हो? कैसे कॉमेंट करते हो? किस पोस्ट या फोटो या विडियो पर कितनी देर फोकस करते हो? किस हिस्से पर ज्यादा फोकस करते हो? कितनी बार किसी वेबसाइट या प्रोफाइल को खोलते हो या चैक करते हो? और भी बहुत कुछ ऐसा ही।
सोचो आपने यूनिवर्सिटी से घर (गाँव) शिफ्ट करना शुरू किया हो। तो कैसे लोग चाहेंगे की आप घर ही बैठ जाएँ या बैठने के लिए ही आए हैं? और आपका वही आखिरी ठिकाना है? जो आपको आगे बढ़ते देखना चाहते हैं या पीछे? आपके दिमाग में या अंडर प्रोसेस कोई प्रोजेक्ट हों और उन्हें पता ही न हो? इसी बीच एक छोटा-सा प्रोजेक्ट, जो किन्हीं अपनों के लिए हो, शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया जाए। कुछ खास लोगों के direct-indirect शब्दों में! पहली बात कौन होंगे वो ऐसे खास लोग? और उन्हें कैसे लगा की किसी इंसान के जाने से वो प्रोजेक्ट ही खत्म हो गया? जमीन-जायदाद के खास झगडे वाले लोग? कुर्सियों की उठा-पटक वाले लोग? वो लोग, जो जितना जल्दी हो सके, मुझे गाँव से निकालने वाले लोग/पार्टी? या शायद कुछ ऐसी सोच के लोग भी हो सकते हैं, जिनके लिए गाँव बैठना मतलब, ज़िंदगी और काम-काज से ही सन्यास? या शायद एक परिवार को ही खत्म करने की सोच? भाभी के जाते ही जो ड्रामा शुरू हुआ और जो लोग उसमें लुका-छिपी सी भूमिका में थे या अभी तक हैं, ने एक अलग ही संसार के पाट खोल दिए थे। सबसे बड़ी बात इन लोगों को लग रहा था या शायद कुछ को अब तक लग रहा है, की न इन्हें कोई देख रहा, न सुन रहा; जो रचना है रचो। वो भी एक बच्चे के साथ। कुछ साथ वालों पे तो असर पड़ना ही था। या शायद युं कहें की वो रचना ही एक तीर से कई शिकार वाली कहानी जैसी-सी है। इसमें भी फुट डालो, राज करो अहम है। फोन और WhatsApp यूनिवर्सिटी की उसमें अहम भुमिका नजर आयी। हालाँकि, एक खास स्कूल और उससे जुड़े कुछ इधर-उधर के लोगों के तार भी। क्या खास है उस स्कुल में? और क्या भुमिका हो सकती है, किसी शिक्षण संस्थान की ऐसी घटिया राजनीती में?
अलग-अलग लोगों के या कहो पार्टियों के अलग-अलग इंटरेस्ट। अब उस स्कूल वाले प्रोजेक्ट का, आप रट्टा लगाना शुरू कर दो और देखो इधर-उधर का तमाशा। यहाँ लोग इतने भोले हैं की जब उनसे पहली बार आमने-सामने बात की जाए, तो कोई खास द्वेष नहीं रखते। क्युंकि शायद उनके अपने दिमाग में द्वेष होता ही नहीं, वो भरा जाता है। बल्कि ये जानकार की शायद उनका भी थोड़ा-बहुत भला हो जाए, साथ होते हैं। मगर, दुबारा जब एक-दो दिन बाद मिलते हैं, तो रफूचक्कर। और इधर-उधर से पता चलता है की ये रफूचक्कर करवाने वाले कौन लोग हैं? इधर-उधर की खास सेनाएँ और राजनीतिक पार्टियाँ? मतलब ये खास किस्म की सेनाएँ या राजनीतिक पार्टियाँ किन्हीं लोगों का भला भी चाहती हैं? या सिर्फ अपने तक सबकुछ हज़म रखना चाहती हैं? और भोले लोगों की ज़िंदगियों को कितना घुमा सकती हैं? 180 के एंगल पे या 360 के? इन्हीं लोगों से आप जब दुबारा मिलते हैं तो पता चले या सुनने को मिले, इस साल नहीं, अगले साल शुरू कर लियो। हाँ! उस स्कूल में 25 स्टुडेंट तो आ ही जाएँगे। ऐसा ज्ञान या गणित किसने पढ़ाया होगा इन्हें? और भी ऐसे-ऐसे, कैसे-कैसे ज्ञान-विज्ञान और राजनीती? और किसी को किसी का कोई प्रोजेक्ट आगे खिसकाने या खत्म करवाने से क्या लाभ हो सकता है? हक़ीकत ये है की ये लोग पिछड़े ही इसलिए हैं की अपने लिए काम न करके, पार्टियों के लिए, वो भी मुफ्त में काम करते हैं। उनके सामान्तर केसों का हिस्सा होते हैं --ज्यादातर अनजाने में, तो कभी-कभी शायद जानकर भी। कभी डर से तो कभी लालच में। इन सामांतर केसों में लालच और डर दोनों अहम् हैं। इसीलिए ऐसे-ऐसे केसों को शायद लोगों ने Reward and Punishment बोला है। और लालच भी कैसे-कैसे हो सकते हैं? जानेगें आगे किसी पोस्ट में।
इस सबसे क्या समझ आता है? लोग अपनी ज़िंदगी के फैसले भी खुद नहीं लेते? पार्टियाँ लोगों की ज़िंदगी के फैसले लेती हैं? और ये लोग इतनी आसानी से मान भी जाते हैं? क्या हो सकता है उस सबके पीछे? किसी तरह का डर, जरूरी नहीं हकीकत ही हो, आभासी भी हो सकता है। ऐसे ही किसी भी तरह का लालच और जरूरी नहीं सामने वाला लालची ही हो। आभासी दुख-दर्द की तरह डर और लालच को भी बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
No comments:
Post a Comment