जैसे सर्कस में होते हैं
अलग-अलग तरह के जानवर
अलग-अलग तरह के किरदार
वैसे ही राजनीती के सर्कस में भी
निभाता है हर कोई जीव,
अपनी ही तरह का किरदार।
कोई हँसाता है, कोई रुलाता है
कोई करतब दिखाता है,
कोई उनसे करतब करवाता है
कोई चलता है, कोई चलाता है
तो कोई-कोई अपनी ही धुन में
जैसे खुद ही झुलता रहता है।
जितना सर्कस में सबकुछ नियंत्रित होता है
वैसे ही इंसानो के इस समाज में भी।
जैसे सर्कस को नियंत्रण करने वाले कम ही दिखते हैं
वैसे ही इंसानों के इस समाज को नियंत्रित करने वाले।
जैसे स्टेज पे सिर्फ वो दिखता है, जो दिखाया जाता है
वो सुनता है, जो सुनाया जाता है
वैसे ही राजनीती के इस सर्कस में भी।
हाँ। जो सर्कस हम देखते हैं उसमें
और जिस राजनीतिक सर्कस का हम हिस्सा हैं उसमें
(हिस्सा, जाने या अनजाने, ज्यादातर अनजाने में)
अहम फर्क ये है, की वहाँ सर्कस का हिस्सा होने वालों को
सर्कस करवाने वालों की और ट्रैंनिंग देने वालों की जानकारी होती है
जबकि राजनीती के इस सर्कस में कितना कुछ गुप्त रहता है।
जो सर्कस हम देखते हैं,
उसका दायरा और स्टेज बहुत छोटा होता है
मगर, राजनीती की दुनियाँ रुपी ये सर्कस बहुत बड़ा है।
छोटे दायरे में सिमटी चीज़ों को समझना आसान होता है
दुनियाँ रुपी बड़े दायरे में फैले राजनीतिक सर्कस को
इसके किरदारों को, और उन किरदारों रुपी इंसानो को
गोटियों की तरह चलाने वाले दिमागों को, जानना और समझना
उतना ही मुश्किल, जितना बड़ा उस स्टेज का दायरा।
वो इस पार्टी या उस पार्टी में बंटे, चलाने वाले दिमाग,
आपको, चलती-फिरती गोटियों को, कैसे चला रहे हैं?
उसे समझने के लिए अपनी दिनचर्या पर गौर फरमाएँ
हो सके तो किसी डायरी में नोट करें
दिन, तारीख, महीना, वक़्त
आपके साथ या आसपास होने वाले घटनाक्रमों को
अपने खुद के और उनके व्यवहार को और कर्मों को
और उसके फलस्वरूप
आपकी और आसपास की ज़िंदगी पर पड़े प्रभावों को
जानने और समझने की कोशिश करें।
वक़्त के साथ सब समझ आने लगेगा
कौन तुम्हें (चलती-फिरती गोटियों को) चला रहा है?
कौन तुम्हें बेवकूफ बना रहा है?
कौन हितैषी हैं?
कौन सिर्फ अपना काम आपसे
और आपके अपनों से निकलवाकर
सिर्फ अपना मतलब साध रहे हैं?
जो सिर्फ फायदे दिखा रहे हैं, मगर नुकसान छुपा रहे हैं।
कौन फायदे-नुकसान दोनों दिखा रहे हैं ?
और सावधान भी कर रहे हैं, आगे खड़ी मुसीबतों से ?
ज्यादातर बीमारियों और हादसों के राज
रिश्तों के उतार-चढ़ाओं के राज, इन्हीं में छुपे हैं
जरुरत है उन्हें शांत दिमाग से देखने और समझने की
अशान्त या जल्दी भड़काऊ दिमागों के पास
ये सब देखने और समझने की शक्ति खो जाती है
भड़ाम-भड़ाम और शांत-शांत में, इतना-सा
या कहो, की कितना-सा फर्क होता है?
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