Search This Blog

About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Monday, September 18, 2023

राजनीती की चलती-फिरती गोटियाँ

कोई इंसान किसी परिवार, खास तरह के तबके या समाज में कितना अहम या फालतु हो सकता है? आपकी अपनी भुमिका वहाँ क्या है? या क्या बना दी गई है? या प्रस्तुत की जा रही है? इधर के लोगों द्वारा या उधर के लोगों या पार्टी द्वारा? और हकीकत क्या है? 

K Control? 

N Control? 

यहाँ के लोगों को, परिवारों को, उनकी ज़िंदगियों को, उतार-चढ़ाओं को, संघर्षों को, दो तरह की पार्टियाँ नियंत्रित कर रही है। चलो, इन्हें नाम दे देते हैं A पार्टी और B पार्टी। जितनी भी पार्टियाँ हैं, उन्हें इन दोनों में बाँट दो, इधर या उधर। कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे INDIA और BJP। या शायद, कुछ एक धड़ों को इनसे अलग रखने की भी जरुरत है?

ये सब पार्टियाँ क्या कर रही हैं?

इन लोगों के लिए काम कर रही है? 

या इन पार्टियों का अपना, अपनी ही तरह का कोई मायावी संसार है? एक ऐसा संसार, जिसे वो इन लोगों पर और इनकी ज़िंदगियों पर थोंप रही हैं? थोंपना भी ऐसे, की लोगबाग अपनी ज़िंदगी न जी कर, इन पार्टियों की घड़ी कहानियाँ और उनके किरदार जी रहे हैं। किरदार भी ऐसे-ऐसे, जो हकीकत के आसपास भी न हों। या अगर थोड़ा बहुत उन किरदारों के आसपास भी हों, तो किन्हीं लोगों का कोई गुजरा भूत हों। भूत भी शायद कोई बहुत अच्छा नहीं। हकीकत वाले उन इंसानों के लिए, उनकी ज़िंदगी में जिसका महत्व किसी खरपतवार से ज्यादा न हो। ये पार्टियाँ, इन लोगों को अपनी गोटी से ज्यादा कुछ समझते ही कहाँ हैं। 

राजनीतिक पार्टियाँ, जिन्हें मालुम है की इंसान के खोल में, भेझे से पैदल या कहो अज्ञान और भोले लोगों को अपने अनुसार चलाना कैसे हैं। उन राजनीतिक पार्टियों को धेला फर्क नहीं पड़ता, की इन लोगों की जरूरतें क्या हैं। क्युंकि वो इन्हें इंसान थोड़े ही समझती हैं। सिर्फ अपनी गोटियाँ समझती हैं। अब अगर आपको तरीके मालुम हैं, उन चलती-फिरती गोटियों को चलाने के, तो कैसे भी चला दो। या और भी बढ़िया, अपनी-अपनी चालों में, ऐसे उलझा दो, जैसे मारने वाले खुंखार सांडों के बीच झाड़। या शायद चक्की के दो पाटों के बीच पीसने के लिए दाने। 

इस घटिया और घिनौनी राजनीती से परे, इन लोगों की जिंदगी की बुनियादी जरूरतें क्या हैं? वो क्यों पीस रहे हैं इन्हें, अपने राजनीतिक सांडों और इनके रचे मायावी संसार में? कितना मुश्किल है, ऐसी बेहुदा राजनीती के जालों-जंजालों से निकल पाना? और अपनी ज़िंदगी की बुनियादी जरूरतों तक को पुरा कर पाना? सच में इतना मुश्किल है, जितना इन्हें लग रहा है? या इसे मुश्किल, इस राजनीतिक-सर्कस ने बना दिया है?                          

No comments:

Post a Comment