इन्द्रियों का ज्ञान -- उपयोग और दुरूपयोग
(Mind Programming and Nervous System-- मानव रोबोट बनाना और उसमें तंत्रिका तंत्र की भुमिका। अलग-अलग तकनिकों का प्रयोग कर उसके क्या उपयोग और दुरूपयोग हो सकते हैं? या हो रहे हैं?
Mind Programming and Editing -- Brainwash
मानव रोबोट बनाने में इनका प्रयोग या दुरूपयोग कैसे होता है?
Interactive and Immersive World
प्रस्तुति पे निर्भर करता है (Presentation Matters) की आपको क्या समझ आता है और क्या हकीकत होती है। बहुत बार जो दिखता या सुनता है, वो होता नहीं, और जो होता है, वो दिखता नहीं। दुनियाँ में तकनिकों का विकास और प्रयोग जिस तरह से हो रहा है, उनके बुरे प्रभावों पे नकेल उतनी तेजी से विकसित नहीं हो रही।
संवादत्मक (Interactive) या एक ऐसा संवाद या इस तरह से एक-दूसरे से मिलना या विचारों का आदान-प्रदान करना, की वो आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हों। ऐसा संवाद या ऐसे संवाद का प्रभाव इंसानों पर जीव भी करते हैं और निर्जीव भी।
आपका सामने वाले के साथ रिस्ता कैसा है ? ये इस बात पर निर्भर करता है की आप सामने वाले को अनुभव कैसा करवाते हो।
अच्छे से पेश आते हो या बुरे से ?
चीज़ों या तथ्योँ को छिपाते हो या साफ और सीधे इंसान हो ?
सामने वाले का भला चाहते हो या अंदर ही अंदर काले हो, घात या द्वेष रखते हो ?
सामने वाले के नजरिए की कद्र करते हो या अपना नजरिया थोपने में विश्वास रखते हो ?
आगे बढ़ने और बढ़ाने की बातें करते हों। या खुद भी उलझ-पलझ हो और सामने वाले को भी उलझाकर रखते हो या रखना चाहते हो ?
किसी के भी पास जो होता है, वो ज्यादातर वही बाँटता है। जैसे बच्चा बचपन, बुजुर्ग अनुभव, वयस्क आगे बढ़ने और जोखिम ले पाने की ऊर्जा और क्षमता। वैसे ही, आपका वातावरण भी आपको बहुत कुछ बाँटता है। हमारे चारों तरफ वो दुनियाँ जिससे हम घिरे रहते हैं, असलियत में (Real World), हमें कैसे प्रभावित करती है?
अगर आप एक अच्छे घर या कॉलोनी में रहते हैं, तो साफ़-सफाई, स्वच्छता और शायद दान, ज्ञान जैसा कुछ बांटते हों? अब जरूरी नहीं की हर इंसान वहाँ एक जैसा हो। तो इंसान-इंसान पे निर्भर करता है। ये तो हुई जीव की बात।
निर्जीव क्या बांटेंगे यहाँ? सफाई, स्वच्छता, शुद्ध हवा, पानी, हरियाली, हर इंसान या कहना चाहिए जीव के लिए, अच्छा-खासा रहने, फलने-फूलने और आगे बढ़ने का वातावरण। वहाँ इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि वहाँ रहने वाले ज्यादातर जीवोँ के लिए ऐसा वातावरण मिलेगा। वहाँ घर से बाहर आवाज़ें भी कम ही आती हैं और हाथापाई तो शायद ही कभी देखने को मिले। बोलने में भी ज्यादातर शालीनता मिलेगी। इनके बीच में भी कितनी ही तरह के संसार हो सकते हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो इसका मतलब, वो घर या कॉलोनी उतनी अच्छी नहीं है।
इसके विपरित किसी घर या कॉलोनी में चलें? जहाँ मुश्किल से सर छुपाने को छत हों। साफ पीने के पानी तक की सुविधा न हो। बिजली भी कम आती हो। ज्यादातर कम पढ़े-लिखे या मात्र डिग्रीधारी लोग रहते हों। मतलब डिग्री जैसे-तैसे प्राप्त तो कर ली हों, मगर उनका उपयोग न आता हो। साफ़-सफाई भी कम रहती हो। मतलब संसांधनों की या तो कमी या जैसे-तैसे काम चल रहा हो। वहाँ संघर्ष ज्यादा होंगे और फलने फूलने या आगे बढ़ने के सन्साधन कम। ऐसा वातावरण क्या बांटेगा? बिमारियां, अंधविश्वास, जीने के लिए संसाधनों के लिए लड़ाई-झगडे आदि। ऐसा नहीं है की लड़ाई-झगडे पॉश कॉलोनी या समृद्ध घरों या देशों में नहीं होते। मगर वो वर्चस्व के लिए होते हैं। जिदंगी को थोड़ा और ढंग से जीने के लिए नहीं।
ये तो हुई उस वातावरण की बात, जो हम असलियत में महसुस करते हैं या जहाँ रहते हैं (Real World)। उनमें इंसान, जीवजंतु और निर्जीव संसांधन जैसे घर, स्कूल, ऑफिस, परिवहन, रोड़, पानी, कचरा के बंदोबस्त जैसी कितनी ही सुविधाएँ भी शामिल हैं। आप जिस किसी वातावरण में हैं उसे असलियत में सिर्फ महसुस नहीं करते, बल्कि जीते भी हैं और झेलते भी हैं।
उसके बाद आता है वो संसार, जहाँ आप हैं भी और नहीं भी -- आभासी दुनियां (Virtual World) । महसूस करते भी हैं, मगर ऐसा होता दिखता भी कम है। उस महसुस करने में अलग-अलग इन्द्रियों का अलग-अलग प्रभाव है।
यहाँ देखना-सुनना अहम् है।
इस संसार में क्या आप एक दुसरे को छु सकते हैं ?
या कोई गंध मह्सूस कर सकते हैं ?
या चख़ कर मीठा-कड़वा, फीका या तीखा आदि का ज्ञान करवा सकते हैं ?
या --
इन सब इन्द्रियों के ज्ञान से बने मिश्रण को किसी खतरे या फायदे के लिए उपयोग या दुरूपयोग कर सकते हैं ?
अगर हाँ तो कितना ?
और आपके आसपास ऐसे-ऐसे, कौन से तकनीकोँ वाले उपकरण हैं, जो ये सब करने में मदद करते हैं ?
ज्यादातर आम-आदमी को आज भी ये सब नहीं मालुम। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, इन सबका प्रयोग या ज्यादातर दुरूपयोग, अपना उत्पाद बेचने में करती हैं। मगर वो कैसे लुभाती हैं ? और उसके परिणाम या कहना चाहिए दुष्परिणाम या नुकसान क्या हैं ? आम आदमी को वो सिर्फ फायदे गिनाती हैं, नुकसान नहीं। जबकि नुकसान ज्यादातर ज्यादा बुरे और कभी-कभी तो घातक भी होते हैं। इस संसार को आभासी दुनियाँ (Virtual World) कहते हैं।
इस आभासी दुनियाँ में अगर कुछ और तकनिकों के ज्ञान के तड़के लगा दें, तो ये आम-आदमी को रोबोट बना देती है। वो भी आम-आदमी की जानकारी के बिना। ईजाजत लेना तो बहुत दूर की बात है। उसपे, आम-आदमी को लगता है, की वो सब खुद ही कर रहा है। उसे नहीं मालुम की उसे रोबोट बनाया जा चुका है और वो सिर्फ वो कर रहा है, जो उससे करवाया जा रहा है। आम-आदमी उसके दुष्परिणाम बहुत जगह झेलता है।
Interactive and Immersive World (आग का दरिया है और डुब के जाना है?)
इस आग के दरिया में ज्यादातर बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ या राजनीतिक पार्टियाँ घी डालने का काम करती हैं, अपनी-अपनी सहुलियत के अनुसार। समझो एक समंदर में आपको धकेल दिया है। अब आप उस समंदर में जीवित भी रह पाते हैं या नहीं, ये किसपे निर्भर करेगा? सिर्फ जीवित रह पाने के संघर्ष में लगे हैं या ज़िन्दगी ढंग से भी चला पा रहे हैं? ये कौन-कौन सी चीज़ों पे निर्भर करेगा? उसके लिए आपको कौन-कौन से संसधानों की जरूरत होगी?
जैसे समुन्दर में पानी में हैं तो उसके बाहर जहाँ हम रहते हैं, वहाँ पानी की बजाय हवा होती है। हम साँस लेते हैं मगर हमें पता नहीं होता की हम उसकी वजह से ज़िंदा है। उसका शुद्ध होना कितना जरूरी है। और अगर वो शुद्ध न हो तो कैसी-कैसी समस्याएँ आ सकती हैं?
Interactive मतलब आपके चारों तरफ क्या है जिसके संपर्क में आप आते हैं या रहते हैं। जो किसी भी तरह से आपको प्रभावित करता है। जीव और निर्जीव। जी हाँ !निर्जीव भी अहम् हैं और प्रभाव डालते हैं।
Immersive जिससे बाहर कुछ दिखाई ही न दे। एक तरह का ऐसा वातावरण जो आपको घेर कर रखता है और जिसमें आपकी आगे बढ़ने की क्षमता वैसे ही निर्भर करती है, जैसे किसी शिशु का एमनियोटिक फ्लूइड (Amniotic Fluid)। एक तरह से संगत भी और उससे थोड़ा आगे बढ़के जैसे ध्यान लगाना। या शायद भुलावा भी, छलावा भी, और एक तरह का जादु भी। कुछ के लिए भक्ति या शायद भगवान भी। और भी कैसे कैसे प्रभावित करता है ये immersion? इस सबके पीछे कौन-कौन सी तकनीकें हैं या विज्ञान है?
आम आदमी इस immersive और interactive वातावरण के प्रभाव में रहता है। जिसको उससे पुछे बिना, बताए बिना बदला भी जा सकता है और कितनी ही तरह के हेरफेर भी किए जा सकते हैं। अब वो उन सबके प्रभावों या खासकर दुस्प्र्भावों से कितना बच पाता है और कितना नहीं ? ये इन तकनीकोँ के ज्ञान और उसके प्रभावों से बच पाने की समझ पर निर्भर करता है।
आप सोचिये इस वर्चुअल वर्ल्ड (Virtual World) और उससे जुडी अलग-अलग तरह की तकनीकों में प्रयोग या दुरूपयोग होने वाले, अपने आसपास के उपकरणों के बारे में। और आपकी ज़िंदगी पर उनके प्रभावों के बारे में। आते हैं इस दुनियाँ पर भी, आगे किसी पोस्ट में।
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