कोई सिरा कहीं से पकड़ो और उधेड़ना शुरू करो। सिर्फ तुकबंदी? या Politics of Science or Science of Politics? चलो किसी भी आसपास के इंसान को पकड़ते हैं और चलते हैं अपनी ही तरह की गुफाओं की खोज पे।
अरे ओ गुल, सुन
मैंने कहीं कोई गुलमोहर (plant) की फोटो अपलोड की
और किसी ने कहीं कुछ गाया
मगर तब कुछ समझ ना आया।
अब गुल से गुलशन मत पढ़ जाना
तेरा रोशनी से क्या लेना-देना है?
मैंने तो सिर्फ पूछा है
जवाब हो तो दे देना।
अच्छा। उस उजला वाली भारती से है, फिर?
वो कोई उजला-भारती केस का भी?
ICGEB वाले दिल्ली से कोई लेना-देना बताया।
(और उसका headquarter ईटली?)
और CAS-9, CRISPER से भी।
वैसे तुने अपना नाम क्यों बदला?
किसने सलाह दी थी?
कोई ईमेल आ रही थी, कुछ वक़्त पहले बारबार
LinkedIn पे फलाना-धमकाना का मैसेज आया है
या फलाना-धमकाना को add करें
जबकि,
याद ही नहीं की ये linkedIn आखिर बार खोला कब था?
अब ये Spirulina की भी advertising ही हैं, शायद
अरे ये तो --
कौन रिसर्च कर रहा था इसपे, और कहाँ और कब?
और आप पड़ जाएँ सोच में
इस गुलशन का, उस गुलशन से
और वो आजकल जो गुड़िया पढ़ती है जहाँ tution
My cute पेलो गर्ल :)
उस गुलशन से क्या लेना-देना?
मतलब कुछ भी? कहीं से भी?
जोड़ो, तोड़ो, मरोड़ो या यूँ कहें
चलती-फिरती गोटियों की तरह, इधर से उधर रखो
यही तो सिस्टम automation है और logical सा भी?
अब ये spirulina वालों ने कितना और कैसे-कैसे फेंका हुआ है?
विज्ञान यही है? ज्ञान यही है?
दुनियाँ का सत्यानाश फिर तो सही ही है?
राजनीतिक सिस्टम की पैठ हर स्तर पे, हर जगह पे।
मगर बड़े ही अजीबोगरीब ढंग से।
सिस्टम, कभी इस पार्टी का पेला हुआ।
तो कभी उस पार्टी का पेला हुआ।
या, यहाँ इस पार्टी का पेला हुआ
और, वहाँ उस पार्टी का पेला हुआ।
कभी, इस नाम का कोड यहाँ?
कभी, उस नाम का कोड वहाँ?
और कभी?
जाले बुनती-सी कितनी ही मकड़ियाँ, यहाँ-वहाँ।
इस सुरंग से निकलो, तो ये वहाँ पे मिलती है
उस सुरँग से निकलो, तो वो, वहाँ पे मिलती है
यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ, सुरंगे ही सुरंगे।
कितनी ही तुकबंदियाँ हो सकती हैं ऐसे तो
मगर बेवजह नहीं, राजनीतिक जाले कोड के
कहीं से, कोई भी नाम, कोई भी कोड उठाओ
और सुरंगों के रस्ते
यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ,
तुकबंदी से, इन गुफाओं के रस्ते
चाहे जहाँ और जैसे पहुँच जाओ।
अब MDU Registrar से कोई पुछे की सर, ये 5-7 क्या है?
मुगली घुट्टी, मीठी-मीठी। कहाँ पढ़ा था ये ? और नौ, दो ग्यारह हो जाना ? बहुत घुमाऊ और पकाऊ रस्ते हैं। किसी राजदरबार में तो नहीं पढ़ा ? भला आम इंसान इस दुनियाँ को पढ़े तो कैसे पढ़े ? और झेले तो कैसे झेले ?
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