एक तरफ दिखाना है, मगर बताना नहीं ये वो संसार है, जो आपको दिखता है या सुनता है या आप अनुभव करते हैं। ये संसार एक बड़ी स्टेज है, चलती-फिरती गोटियों वाली, कठपुतलियाँ जैसे।
और दूसरी तरफ
ना दिखाना, ना बताना, सिर्फ रचना है। वो भी गुप्त तरीके से।
ये इन चलती-फिरती गोटियों को चलाने वाले लोग हैं। बिलकुल वैसे, जैसे कठपुतलियों के खेल करने वाले। ये आपको ना दिखते, ना आप इन्हें सुनते और ना ही इनके होने का अहसास करते। कौन हैं ये? भगवान? देवी या देवते? शैतान या राक्षस? या आप और हम जैसे इंसान? ये वो हैं, जिनके पास थोड़ी-सी जानकारी ज्यादा है, आम इंसान से। ये वो हैं, जो आम इंसान को दूर बैठे देख सकते हैं। सुन सकते हैं। और आपकी मनोदिशा घड़ सकते हैं। उसमें अलग-अलग तरह के बदलाव कर सकते हैं, और वो भी गुप्त तरीके से, आपकी जानकारी के बैगर। चाहें तो ये आपको आगे बढ़ा सकते हैं और चाहें तो खत्म कर सकते हैं।
कहीं कुछ फाइल्स में जो हो रहा है या कहीं जिसपर कोई संवाद या वाद-विवाद हो रहा है, वही आम इंसानों के समाज में हकीकत में बढ़-चढ़ कर या घुम-फिर कर, तोड़-मोड़ कर हो रहा है। अपने आप नहीं हो रहा, बल्की किया जा रहा है।
कैसे?
जैसे एक तरफ लिखित में कोई ज्ञान या विज्ञान है। किसी ने कहा या कहो घड़ा की ऐसा संभव है। ऐसा हो सकता है। Theory या Hypothesis
इसके बाद आता है उसको प्रमाणित करो Experiment, Practical
कोई सच्चा वैज्ञानिक अगर प्रैक्टिकल करेगा तो हकीकत लिखेगा या दिखाएगा। मगर जब राजनीती वाला विज्ञान (Political Science), ऐसा कुछ करेगा तो क्या लिखेगा या दिखाएगा, सुनाएगा और बताएगा? वो वैज्ञानिक थोड़े ही है। राजनीतिक है, जो विज्ञान के ज्ञान का दुरूपयोग अपने मत या स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए करेगा। इसीलिए राजनीतिक विज्ञान में साम, दाम, दंड, भेद सब होता है। मगर उससे न विज्ञान का भला होता और न ही आमजन का। इसीलिए आमजन को, इस गुप्त भूतिया राजनीती को समझना सिर्फ जरूरी ही नहीं, बल्की बहुत जरूरी है।
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