पीछे मैंने कई पोस्ट में लिखा की ज्यादातर जो आपके पेड़ पौधों, जानवरों, पशु-पक्षियों के साथ हो रहा है, वही या कुछ-कुछ वैसा ही, इंसानों के साथ भी। अपने आसपास के पेड़-पौधों, पक्षी-जानवरों को जानने-समझने की कोशिश करें। बहुत कुछ समझ आएगा। आओ एक खास पौधे से शुरू करते हैं, थोड़ा बहुत जानना।
तुलसी, मेरे आँगन की? वो नाटक वाली नहीं, बल्की वो छोटा-सा पौधा जो ज्यादातर घरों में देखने को मिलता है, उत्तरी भारत में खासकर। जिसे पवित्र माना जाता है। जो औषधी के रूप में भी प्रयोग होता है। अक्सर जिसके पत्तों को चाय में डालकर पिया जाता है। जिसे जुकाम, भुखार में भी लाभदायक माना जाता है।
तुलसी का 25 से कोई लेना-देना है क्या? तुलसी को अंग्रेजी में Basil कहते हैं और ये कई तरह की होती है।
BA
S
IL
या BAS IL?
25 को और क्या खास है जो आपको याद है? Christmas? Birth of Jesus Christ? 25 दिसंबर?
उसी दिन तुलसी दिवस? या कुछ हेरफेर है? हिन्दुओं की ईसाइयों से किसी तरह की प्रतियोगिता थी क्या? ऐसा कुछ और भी बता सकते हैं क्या? मटरू-पिटरु दिवस? ओह हो। माता-पिता दिवस? हिन्दुओं के यहाँ त्योहारों की कमी पड़ गई क्या जो किसी और के त्यौहारों पे अपने थोंपना चाहते हैं ? या शायद ये थोंपम-थोंप हर धर्म में है? धर्म? राजनीतिक घढ़ाईयाँ और अधर्म के रस्ते? गुनाहों को पनाहों के रस्ते? ऐसा ही कुछ रीति-रिवाजों के हाल शायद? बाजारों के हवाले, हर रीति-रिवाज़, हर उत्सव-त्यौहार। आपको क्या लगता है?
चलो वापस तुलसी पे आते हैं। कितनी तरह की हैं तुलसी (BASIL)? या TULSI ? अच्छा औषधीय पौधा है। घर में लगाएं, मगर बच्चों को आशाराम बापु वाला तुलसी दिवस और रविवार का खास पानी रिवाज वैज्ञानिक तरीके से बताएं और समझाएँ। उनकी उत्पत्ति और वक़्त और राजनीतिक जरुरत के हिसाब से उनमें आए या लाए गए बदलावों को भी बताएँ।
सुना है 2014 में और भी बहुत कुछ बदला था। जैसे ? भाइयो और बहनो . .. ? आगे तो आप समझ ही गए होंगे। पेड़-पौधो को जरुरत के अनुसार पानी दें। रविवार को देना या न देना वाला रिवाज़ राजनीती की अपनी तरह की मजबुरियां हो सकती हैं। अपने घर और आसपास के जीवों को राजनीतिक जीव (राजनीतिक कीड़ा) ना बनाकर, प्रकति के जीव ही रहने दें। वो फिर चाहे पेड़-पौधे हों, पक्षी या जानवर या फिर कोई और जीव। अक्सर राजनीती की जरूरतें और जीवों की जरूरतें अलग-अलग होती हैं। अपने धर्मों और रीति-रिवाजों को, जहाँ तक हो सके राजनीती और बाजार के प्रभावों (दुष्प्रभावों) से बचाएँ। हालाँकि थोड़ा असंभव-सा है। क्युंकि राजनीती तो जैसे कण-कण में है, किसी खरपतवार की तरह।
गुगल दर्शन या गीता ज्ञान?
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