आपकी सहमती का निर्माण, आपकी जानकारी के बिना और अपनी ही तरह के सच के पुख्ता सबुत जुटाना, वो भी आपसे हकीकत छुपाकर।
(Manufacturing Consent and Fortifying Own Kinda Truth) Money, Muscle and Power Gambling
यहाँ-वहाँ और पता नहीं कहाँ-कहाँ टुकड़ों में पढ़ा जैसे, और फिर आँखों के सामने होता हुआ देखा भी। या कहो की इस सिस्टम के जानकारों द्वारा दिखाया गया। वो भी किसी एक केस में नहीं, बल्की, कई सारे केसों में। धीरे-धीरे आएंगे, ऐसे केसों पर भी।
चलो एक फोटो लेते हैं
एक लाइन में, एक तरफ भुपेंदर हुडा और स्वेता मिर्धा (ससुर और लड़के की बहु), दूसरी तरफ दीपेंदर हुडा और आशा हुडा (माँ और बेटा)। इन चारों के बीच में दीपेंदर हुडा और स्वेता मिर्धा के बेटे को गणेश का रूप देकर बिठा दो। ऐसे ही आप, किसी भी रिश्ते को इधर-उधर बिठा सकते हैं और वो कोई भी आम-आदमी या खास-आदमी हो सकते हैं। फोटो में यहाँ-वहाँ बैठने से, न तो रिश्ते यहाँ-वहाँ हो जाते और न ही उनकी पवित्रता खत्म हो जाती। मगर
ऐसा ही कुछ हम राजनीतिक मायाजाल वाली नौटंकियों में घड़ना शुरू कर दें तो? वहाँ तो बस XYZ वाले रिश्ते होते हैं। हो गया गड़बड़ घोटाला शुरू। लोगों की ज़िंदगियाँ उल्ट-पुल्ट होना शुरू। बीमारियाँ और मौतों तक की घड़ाई शुरू। और उनकी ज़िंदगियों पर, उनके परिवारों और उस आसपास के समाज तक पर, लोगों को फसाना और दोहरी, तेहरी मार शुरू। हकीकत में राजनीतिक पार्टियाँ या कोई खास पार्टी, माचो.., बहनचो.., छोरीचो.., और भी पता नहीं कैसी-कैसी सामान्तर घड़ाई के भद्दे और कुरूप घड़ने में लग गई समझो।
ये प्रभाव हर स्तर पे होता है। दुस्प्रभावों को बढाने-चढाने के लिए। Amplification, Hype, Manifestations और भी पता नहीं क्या-क्या तरीके युद्ध स्तर पर प्रयोग होते हैं। मगर छद्दम युद्ध, गुप्त युद्ध। ये छद्दम युद्ध और इसके कोड, आपके आसपास की जगह के खाने-पीने में मिलेंगे। बीमारियों और दवाइयों और अलग-अलग तरह के इलाजों में मिलेंगे। कृषि और खेत-खलिहानों, वाहनों में मिलेंगे। इमारतों, परिवहन के साधनो, परिधानों और किताबों में मिलेंगे। धर्म और इससे जुड़े रीती-रिवाज़ों और उनमें वक़्त के साथ आए बदलाओं में मिलेंगे।
धर्म और उनसे जुड़े रीति-रिवाज: एक तरफ इंसान इन सबसे जुड़ता है, अपने मन और आचरण की शुद्धि के लिए। तो दूसरी तरफ, शांति और शायद धन-दौलत पाने के लिए। वैसे तो ये सब ऐसा है, जैसे जो आपके अपने पास या घर में नहीं हो, उसे बाहर ढूंढना। मृगतृष्णा जैसे। बजाय की घर और आसपास में वैसा माहौल बनाने की कोशिश करना। मगर फिर भी अगर आपकी कहीं श्रद्धा है तो उसे अंधे-बहरे और दिमाग से पैदल होकर अपनाने की बजाय, थोड़ा उसके बारे में जानने की कोशिश करें। आप या आपके आसपास कौन-कौन, कौन-कौन सी तारीख को, किसके या कैसे वाहन में, किसी धार्मिक स्थान पे जा रहे हैं ? भला इनका राजनीतिक सामान्तर घढ़ाईयों से कोई मतलब हो सकता है ? अगर हाँ तो किस तरह का ? भला राजनीति को आमजन से क्या लेना देना ? क्या ऐसे-ऐसे धार्मिक प्रोग्राम या रीती-रिवाज राजनीती का रंगमंच हो सकते हैं ? वो भी आमजन की जानकारी के बैगर? अगर हाँ तो आम आदमी के रिस्ते नाते, खुशियाँ और गम, जन्म और मौतें, बीमारियाँ और हादसे भी, इसी राजनीतिक रंगमंच का हिस्सा है। वो भी आम-आदमी की जानकारी के बैगर। आम-आदमी राजनीती के इन रंगमंचों की कठपुतली मात्र हैं। कठपुतलियाँ, जिनमें अपना दिमाग प्रयोग नहीं होता। दिमाग प्रयोग करने वाले, कहीं न कहीं उन्हें चला रहे होते हैं, उनकी जानकारी के बैगर, उनकी इजाजत के बैगर, उनका भला या नुकसान देखे बैगर।
धर्म के नाम पे राजनीतिक मायाजाल
धर्म से जुड़े ज्यादातर लोग भगवानों से डरते हैं शायद, चाहे वो डर फिर कैसा भी हो। भगवानों को इंसानों की मुर्तियों के रूप में पूजते हैं। मगर अपने ही आसपास वाले इंसानो को? भगवान या तो कहीं है नहीं या हर इंसान और जीव में। अगर इसे मानकर चलेंगे तो इंसान द्वारा मूर्ति के रूप में घड़े गए भगवानों की न याद आएगी और न ही जरूरत पड़ेगी, शायद।
कीर्तन, भजन, जगराते और वृन्दावन: ज्यादातर दुखी और असाहय और बुजर्गों के सहारे हैं। इन सब में भी राजनीतिक कोड छुपे होते हैं। मगर जिन्हें वो समझ नहीं आते। ठीक वैसे ही जैसे भजनों के साथ, कौन से बाबे-साबों की फोटो रख दी, किसने और क्यों? वो भी किन्हीं बुजर्गों के मोबाइल में? उन फाइल्स और बाबों की फोटो की बुजर्गों को कोई जानकारी नहीं। ये हमारे महान भारत देश के वृँदावन जैसा-सा है। जहाँ घर से निकाली गई या बेहुदा समाज के कुरूप को दिखाती बेसहाय-सी औरतें मिलेंगी। जिन्हें कहीं और ठिकाना नहीं मिलता। और न जाने, शायद कैसे-कैसे हादसों से गुजरी हुई या शोषित हुई। अपने घरों को और आसपड़ोस के माहौल को, वृन्दावन बनाने से बचें और बचाएँ। क्युंकि ये राजनीती के जालों की सामांतर घढ़ाईयाँ आ गई हैं , जिनका काम होता है, चीज़ों को बढ़ाना-चढ़ाना, तोडना-मड़ोरना और भद्दे से भद्दे रूप में ला छोड़ना या पेश करना। शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे लाला वाले तालाब के घोड़े, चलते-चलते, किन-किन मोड़ों पे और कैसे-कैसे केसों में उलझे (सामान्तर घढ़ाईयाँ)? शायद कुछ-कुछ वैसे ही, जैसे, उसका दूसरा राजनीतिक बिगड़ाव या रूप शराब और ड्रग्स के हवाले। वक़्त रहते ऐसी दिशाओं को मोड़ दिया जाए या छोड़ दिया जाए, तो बेहुदा सामान्तर घढ़ाईयोँ से बचा और बचाया जा सकता है।
क्या वृन्दावन का भद्दा रूप कहीं और घड़ा जा सकता है ?
क्या शराबी और ड्रग्स के केस घड़े हुए होते हैं या घड़े जा सकते हैं ?
ऐसे ही कितनी ही और तरह के क्या हो सकते हैं। जैसे क्या बीमारियाँ घड़ी जा सकती हैं ? क्या दुर्व्यवहार करने वाले या बलात्कारी भी घड़े जा सकते हैं? अगर हाँ, तो कैसे ? और अगर इतना कुछ बुरा घड़ा जा सकता है, तो अच्छा भी शायद? मगर कैसे?
मानसिक स्थिति घड़ कर। मगर क्या किसी की मानसिक स्थिति घड़ी जा सकती है। या ऐसा पहले से हो रहा है समाज में? प्रश्न फिर वही, कैसे संभव है इतना कुछ? उसके लिए कुछ सामान्तर केसों को समझना पड़ेगा। इन आमजन के केसों में भी Loopholes वैसे ही मिलेंगे, या शायद ज्यादा ही, जैसे कैंपस क्राइम सीरीज में।
No comments:
Post a Comment