चमड़ी का रंग गोरा या काला होने से कोई इंसान गोरा या काला नहीं होता। मगर छलावा कैसा भी हो, काला ही होता है। राजनीति के कुछ ऐसे ही छलावों को जानने की कोशिश है। ऐसे छलावे, जो आम इंसान को परोसता है, कुछ दिखावे, ऐसे, जैसे वो उसके भले में हों। मगर जिनकी हकीकत, सिर्फ दिखावा मात्र हो। या शायद दिखावे के बिलकुल विपरीत।
क्या कोई पार्टी चाहेगी की कोई लड़की नौकरी छोड़कर घर बैठ जाए और उस पार्टी की खास बस उसे घर तक छोड़ने भी आए? अगर हाँ, तो कौन और कैसी पार्टी और क्यों? अहम है यहाँ क्यों?
मजे ले बेटा, ये तो तेरी पसंदीदा पार्टी होती थी ना, कभी?
हाँ। जब मुझे राजनीति और धर्म का रिस्ता नहीं पता था।
वही पार्टी, जिसका सुप्रीमो कहे, भगवान को नहीं मानना मतलब, मौत को गले लगाना। कुछ हद तक Logical Sense भी, राजनीतिक कबाड़ के अनुसार। अब इस कबाड़ ने जो-जो घड़ दिया और जैसे-जैसे घड़ दिया, उसको भी तो जायज़ ठहराना है। फिर चाहे वो सब कितना भी नाजायज क्यों ना हो। लगे रहो धन्ना सेठ।
या फिर कहना चाहिए -- ये आप भी ना, कुछ भी।
ओ हैल्लो। वोट के लिए कुछ भी? धर्मांधों के ये राजनीतिक गुच्छे -- कितने काले, कितने उजाले (लाइट वाले)? मेरा घर स्वीडन है, फ़िनलैंड है या कोई और वहीं-कहीं आसपास, उस खुबसुरत से nordic region में? सुना है Online काफी travel करती हूँ मैं। वैसे इस nordic region से बहुत कुछ है सीखने को। सुना है ये वाले देश, सिर्फ साफ और स्वच्छ ही नहीं हैं बल्की काफी पढ़े लिखे और दुनियाँ के ज्यादातर नास्तिकों के देश भी। मतलब, जहाँ ज्यादातर नास्तिक हों, मान के चलो वहाँ ज्यादातर जनसंख्याँ पढ़ी लिखी और सफाई पसंद है? ये सब और ऐसा कुछ, किसी और पोस्ट में।
वो पुरवा सुहानी आयी रे, तो सुना था। आजकल कुछ लोगों को पछवा सुहानी लग रही है, लगता है। तब ये कोड वाले जुए की राजनीती भी तो कौन जानता था? अब क्या पुरवा और क्या पछवा, सबकी खिचड़ी, पता ही नहीं कैसे-कैसे पकी हुई है ? आज अगर कोई बच्चों तक को कृष्ण, शिव या हनुमान जैसों के घड़ित छलावे परोस कर चलाना चाहे तो बताना तो बनता है -- बच्चो संभल के। ये दुनियाँ वो नहीं है, जो तुम्हें दिखाई जा रही है। धूर्तों और धर्तों (अंधों) की इस दुनियाँ में, हर कदम पर सामान्तर घढ़ाईयां हैं। और वो घड़ाईयां ज्यादातर आम आदमी की समझ से बहार हैं।
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