दिमाग है तो सब है। दिमाग ही तो सब है।
दिमाग तो सबके पास है। नहीं? हाँ! लेकिन कौन कितना प्रयोग करता है, ये भी तो है। आप शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या-क्या करते हैं? खासकर बाहरी शरीर को? रोज नहाते-धोते हैं ? ब्रश करते हैं ? जरूरत पड़ने पे नाखुन भी काटते हैं। कसरत करते हैं ? व्याम करते हैं? टहलते हैं या सुबह-श्याम घुमते-फिरते हैं? तैरते हैं? साइकिल चलाते हैं? योगा करते हैं? ध्यान लगाते हैं? और भी कुछ न कुछ तो करते ही होंगे? इन सबमें ज्यादातर बाहरी सफाई है। कुछ में थोड़ी बहुत अंदर की भी होगी शायद?
दिमाग के लिए क्या करते हैं? इस शरीर और ज़िंदगी को पटरी पे रखने के लिए उसका स्वस्थ होना अहम् है। शायद कुछ खास नहीं? या शायद ध्यान लगाना, जैसा भी, जिस किसी तरह का आपके यहाँ होता है? ज्योत-बत्ती करना? मंदिर जाना, भगवान का नाम लेना? भजन या भक्ति-संगीत सुनना? कभी आपने सोचा की वो सब आप क्यों कर रहे हैं? क्या मिलता है उस सबसे? सबसे बड़ी बात, किस तरह का सुन रहे हैं? बाबे, संत-महंत, महाराज तो नहीं पाल रहे? जो न सिर्फ अपनों से दुर करने का काम करते हैं, बल्की संसार से ही मुक्ति दिलाने की तरफ बढ़ा रहे हों? लगता है बहुत परेशान हैं, अपने आसपास से? या अपने जीवन से? ऐसे-ऐसे बाबे तभी सुहाते हैं। या शायद जबरदस्ती भी थोंपे जा सकते हैं? हालात इतने बुरे न हों मगर बनाने या घड़ने की कोशिशें जरूर हों। मगर कौन चाहेगा किसी का बुरा? और क्यों? सोचिए?
इनसे बचने के लिए दिमाग को तंदरुस्त रखना जरूरी है। वो काम, सिर्फ ज्योतबत्ती, ध्यान, भजन-संगीत, पूजापाठ या मंदिर जाने से नहीं हो सकता। दिमाग को समझने से हो सकता है शायद। इसकी मरमत या रख-रखाव कैसे होगा, उसे जानने से हो सकता है।
मानो दिमाग कम्प्युटर का एक हिस्सा है। कम्प्युटर मानव शरीर है। इसमें कुछ फाइल्स बना के डाल दी गयी हैं। वो कम्प्युटर क्या-क्या कर सकता है, ये इस पर निर्भर करता है की उन फाइल्स में क्या-क्या है। जिन्हें वो फाइल्स पढ़नी या समझनी आती हैं वो उस कम्प्युटर का जानकार है। उन फाइल्स में बदलाव करके उस कम्प्युटर को अपने अनुसार प्रभावित कर सकता है या चला सकता है। दुर बैठा भी, ऐसे -- जैसे उसके सामने बैठा हो। जिसके पास कम्प्युटर हो, हो सकता है उसे उस कम्प्युटर की उतनी जानकारी न भी हो। मगर वो दुर बैठा computer expert वो सब कर सकता है जो आप नहीं कर सकते। कैसे ? जिन्हें कम्प्युटर का थोड़ा बहुत ज्ञान है वो तो समझ गया। जिसे नहीं है उनके लिए कुछ उदाहरण लेने पड़ेंगे। हम सबके आसपास ऐसे-ऐसे कितने ही उदाहरण मिल जाएंगे। आते हैं इस विषय पर अगली पोस्ट में।
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