बच्चों के अनोखे खेल सिर्फ बच्चे ही खेल सकते हैं।
लक्ष्मणरेखा से यहाँ-वहाँ, बड़े-बड़े गोले बनाओ, चप्पल निकालो और दे पटापट।
अर्रे, क्यों मार रहा है इन्हें? किसी ने काट लिया ना तो बहुत रोएगा। उठ यहाँ से।
ये मुझे काटेँगे? अच्छा। और फिर से शुरू, उसी चप्पल से, दे पटापट। आसपास के इकट्ठे हुए मकोड़ों को एक गोल सर्कल में घेरकर मारना।
लक्ष्मणरेखा, वही चौक, जो कीड़ी-मकोड़ों को भगाने के काम आता है। बच्चों के लिए खेल भी हो सकता है? बच्चे भी कैसे-कैसे खेल इज़ाद कर लेते हैं ना?
अब एक ये भी:
क्या कर रहे हो तुम इतनी देर से उस अलमारी में? क्या मिल गया ऐसा वहाँ?
चुप करो मिल गया, गुस्से में। सबकुछ इधर-उधर पड़ा है। ठीक कर रही हूँ। हर चीज़ अपनी जगह होनी चाहिए। ऐसी अलमारी में क्या मिलेगा?
मेरी अम्मा, जो जहाँ है, वही रहने दे। नहीं तो मुझे फिर से सब सेट करना पड़ेगा।
अर्रे, सब वहीँ का वहीँ है। हम तो सिर्फ खेल रहे थे। बस ये, यहाँ से यहां। ये वहां से वहां। ये इधर। ये उधर। और ये थोड़ा-सा इधर। आये बड़े, करना पड़ेगा फिर से सेट। और हाँ ये बाहर भी इतना कुछ फैला रखा है। चलो, ये तुम करो। इसमें भी टाइम लगेगा, दूसरे बच्चे को बोलते हुए।
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