सामाजिक घड़ाई और तंत्रिका-तंत्र (Social Programming or Engineering and Nervous System)
किसी भी ईमारत के जैसे मूलभूत अंग होते हैं वैसे ही समाज की कुछ अहम् कड़ियाँ।
किसी भी शरीर के जैसे कुछ अहम् हिस्से होते हैं। जैसे रीढ़ की हड्डी, जो शरीर को सीधा खड़ा रखती है। दिमाग, जो हर हिस्से को, हर अंग को, जीवन के अलग-अलग वक़्त की जरूरतों के हिसाब से काम करता है।
तंत्रिका-तंत्र (Nervous System), जो बाहरी संदेश, सुरक्षा या खतरा, शरीर के लिए अच्छा या बुरा भाँपता है और दिमाग तक संदेश पहुँचाता है। दिमाग, जिसपे झट से वापस प्रतिकिर्या देता है। जैसे आपका हाथ जलते तवे पे लगा और तंत्रिका-तंत्र ने तवचा के अंदर भी सन्देश लेकर दिमाग तक पहुँचाया और दिमाग ने तुरंत खबरदार किया। सेकेंड्स के कुछ हिस्सों में ही आपने हाथ तवे से हटा दिया। इतना झटपट निर्णय? वो भी अपने आप? ये तंत्र का अपने आप काम करना है। जिसे आप automation कह सकते हैं। यही तांत्रिक विद्या का अहम् हिस्सा है। जादु जैसा ही तो है। नहीं? मगर है विज्ञान। एक बच्चे को भी पता होता है की यहाँ खतरा है और पीछे हटना है। आगे बढ़ोगे तो नुकसान है।
इस तंत्र का ज्ञान किसे होगा? जिसने दिमाग और तंत्रिका-तंत्र (Nervous System) पढ़ा हुआ है। जिसका जितना ज्यादा इस दिमाग और तंत्रिका तंत्र का ज्ञान होगा, उतना ही ज्यादा इसके ज्ञान के प्रयोग से जादु करने की विद्या। क्युंकि जादु का मतलब होता है चाल चलना (Trick)। इसे आप छलावा भी कह सकते हैं। चौसर पे चाल चलना भी कह सकते हैं। राजे-महाराजाओं या उनके विद्वान योद्धाओं के लिए तो ये बच्चे को बहलाना फुसलाना जैसा-सा है। वो जो युद्ध लड़ रहे होते हैं या कहना चाहिए की राजनीति खेल रहे होते हैं उसमें आपको, आमजन को आपकी खबर के बिना भी अपनी-अपनी सेनाओं का हिस्सा बना लेते हैं। और आप अपने ही या अपनों के खिलाफ तक काम कर रहे होते हैं मगर आपको उसकी खबर ही नहीं होती। उल्टा ज्यादातर आपको लगता है की आप तो भला कर रहे हैं। कैसे? जानते हैं आगे पोस्ट्स में। कितने ही उदाहरण आपके आसपास बिखरे पड़े हैं।
No comments:
Post a Comment