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Saturday, July 1, 2023

राजनीतिक रंगमंच के जालों से बचें

राजनीतिक रंगमंच के जालों से बचें, क्यूंकि इनमें ज्यादातर बुरा ही बुरा होता है। भला शायद ही किसी का हो। ये राजनीति करने वालों के लिए तो सही हो सकते हैं। मगर आमजन के लिए नहीं। 

जब जाले ही हैं तो बचें कैसे?

हर घर कुछ कहता है। वैसे ही हर गली-मोहल्ला। हर रोड, हर गाँव-शहर। मगर क्या कहता है?  

Show, Don't Tell --सामांतर केसों की घड़ाई। ज्यादातर में आमजन को पता नहीं होता की ऐसा वो खुद नहीं कर रहे, बल्की उनसे करवाया जा रहा है। करवाने के भी तरीके हैं। 

कैसे? 

क्या ऐसा संभव है की कहीं किन्ही फाइल्स में किन्ही कोड्स में Carrot and Stick or Reward and Punishment का cryptic जिक्र हो और --

वो कहीं और प्रत्यक्ष रूप में चल रहा हो?

एक तरफ फाइल्स हैं और ज्यादातर सॉफ्ट लेवल पे ही रहना है। मगर दूसरी तरफ, जैसे पुलिसआ डंडा। 

राजनीतिक पार्टियों को उसे फाइल्स से आगे Show, Don't Tell वाले अवतार में लाना है। सभी राजनीतिक पार्टियों की पहुँच के अपने अलग-अलग बंदोबस्त है -- उस आखिरी आमजन तक। इनमें आपके आसपास के नौकरी करने वाले बन्दों से लेकर, खेत-खलियान में काम करने वाले किसान तक, बागबानी करने वाले माली से लेकर, आपके घरों में काम करने वाले लोगों तक, यूनिवर्सिटी-कॉलेज पढ़ने वाले विधार्थियों से लेकर, स्कूल के बच्चों तक। उसपे यहाँ-वहाँ लगे कैमरों से लेकर, आपके मोबाइल तक के कैमरे और माइक्रोफोन तक की पहुँच भी अहम् है। आपकी गाडी से लेकर, आपके घर के AC, TV तक। आपके लैपटॉप, कम्प्युटर से लेकर उस नन्हे से LED बल्ब तक।        

लोगों ने सॉफ्ट लेवल को किताब-कम्प्युटर तक सिमित कर दिया है। और हार्ड लेवल अलग ही तरह की युद्ध कला है। या कहो कुछ ज्यादा ही ओछी राजनीति है। जहाँ-जहाँ, किताबें-कम्प्युटर पहुँचेगा, वहाँ-वहाँ, कम से कम कुछ अच्छा पहुँचने की संभानाएं तो है।  मगर ये हार्ड लेवल? जहाँ-जहाँ, अच्छी किताबें और कम्प्युटर का उपयोग होगा, वहाँ-वहाँ शायद, शांति और समृद्धि पहुँचेगी। मगर खुरापाती लोग यहाँ भी गड़बड़ घोटाले करने लग जाएँ तो? राजनीतिक Show, Don't Tell  पटल पर वो भी शायद सोडा या हुक्का से ज्यादा न रहे। अब आपको Show, Don't Tell का राजनीतिक मोहरा भर रहना है या उससे अलग अपना कुछ करना है? ये तो आप पर निर्भर है।    

डंडा-युद्ध, पिस्तौल युद्ध (Stick Violence, Gun Violence)

कितनी आकार का डंडा युद्ध हो सकता है? एक बड़ा डंडा और उसके साथ एक छोटा, उल्टा ?  यहाँ एक डंडा। यहाँ दूसरा। यहाँ तीसरा। कोई गिनती ही नहीं है शायद। इतने डंडे यहाँ-वहाँ? बन्दर आते हैं? या बहुत ज्यादा कुत्ते हैं गली में ? अरे उनका इलाज करो न। अपने घरों में क्यों मार-पिटाई का माहौल बना रहे हो?  ये एक तरह से वहाँ रहने वाले, दिमागों की PROGRAMMING है। ऐसे घरों में ज्यादातर नोंक-झोंक और मार-पिटाई ज्यादा देखने को मिलेगी। ये किसी एक जगह की बात नहीं हो रही। गाँव-शहर कई जगह ऐसा कुछ देखने को मिला। 

यहाँ छोटे-बड़े, बच्चों को खासकर, भड़ाम-भड़ाम करने में बड़ा मजा आता है। कोई नकली में खुश हो लेते हैं। तो कोई देसी कट्टे जैसा कुछ या असली के साथ फोटो करवा के। हरियान्वी में बोलें तो शायद, "घणा अमरीकन होया हांडे सै?" वहाँ ज्यादा होता है क्या gun violence? या शायद UP कट्टा किसने नहीं सुना होगा? कट्टा है मेरै धौरे, बचके रहिए या फलां-फलां जगह का हूँ, अर भुण्डे मार दिया करूँ। ऐसा कुछ सुना है क्या कहीं ? पहुँचने वाले कैसे पहुँचे होंगे इन सब तक? कहीं ये सब शायद फोटो, विडियो तक सिमित रहा हो। और कहीं? Show, Don't Tell? ठीक वैसे ही, जैसे कहीं सिर्फ फाइल्स में Carrot and Stick or Reward and Punishment का cryptic जिक्र हो और -- वो कहीं और प्रत्यक्ष रूप में चल रहा हो? आपको क्या लगा था, की आपसे जो कुछ भी करवाया जा रहा है, वो आपके या आपके अपनों के हित के लिए है? 

Proxy War (जैसे दूसरे की जगह हाज़िरी लगाना, परीक्षा देना, या दूसरे के नाम पे लड़ना या लड़वाना )  

शैतान बच्चे, जैसे क्लास में किसी और की हाजिरी लगवा जाएं। युद्ध में भी ऐसा संभव है क्या? जुए में, cards गेम्स में शायद? कहीं-कहीं तो सुना है, परीक्षाओं में भी? ऐसे बच्चे कैसा तो माहौल बनाएंगे और कैसी डिग्री लेकर नौकरी पाएंगे? जो नौकरी मिल भी गयी तो ज़िंदगी भर आकाओं की गुलामी करेंगे। अब उन्होंने कोई सामाजिक सेवा का ठेका थोड़े ही लिया है? जिनकी सोच ऐसी हो, मान के चलिए, ठेका उन्होंने अपने घर का या अपनों का भी नहीं लिया हुआ। ऐसी सोच मिलजुलकर एक स्वार्थी तबके या समाज से ज्यादा कुछ नहीं बना सकती। 

जुआ और युद्ध

घरों और समाज की बर्बादी। जुए के नाम पे क्या याद आता है? महाभारत? इससे अच्छा उदाहरण, इसके भद्दे और विपरीत प्रभावों का शायद और कोई हो ही नहीं सकता। आपके आसपास जुआ खेलने वाले कुछ घर या शायद इंसान तो जरूर होंगे? हैं, तो संभल जाइये। या शायद उनके आसपास के हालात जानने की कोशिश कीजिए। कम से कम, कुछ बर्बाद घर तो जरूर मिलेंगे। राजनीति के राजे-महाराजों के जुए, समाज के जब आखिरी छोर पे पहुँचते हैं, तो शायद अपने सबसे निर्दयी और क्रूर रूप में होते हैं। क्युंकि वहाँ उन्हें बचाने वाले न तो सिपाही, गार्ड्स होते। न इतना दिमाग और न पैसा। वो सबसे पहले बलि चढ़ते हैं। यहाँ भी फाइल्स और प्रत्यक्ष रूप के भेद जैसी-सी कहानियाँ मिलेंगी। एक तरफ बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ या पार्टियाँ दुनियाँ के पटल पर स्टॉक-मार्किट की उठा-पटक में अभ्यस्त हों और दुसरी तरफ? छोटे से स्तर पर ज्यादातर कम पढ़े लिखे, बेरोजगारों के छोटे-छोटे से स्तर के जुआ अड्डे। बड़े स्तर के सट्टा बाजार मार भी आसानी से झेल जाते हैं। क्यूंकि वो अपने गुजारे-भत्ते के लिए नहीं खेल रहे होते, बल्कि राजपाट और वर्चस्व के लिए खेल रहे होते हैं। मगर छोटे स्तर के ये खिलाड़ी समझ ही नहीं पाते की इनके इस खेल में फायदे से ज्यादा मार है, हर तरह से। ये खेल गुजारे-भत्ते के साधन नहीं हो सकते। आसपास के वातावरण को हर तरह से खराब करने के जरूर होते हैं।             

मतलब ये की Show, Don't Tell --सामांतर केसों की घड़ाई में अच्छा शायद ही कुछ मिलेगा। खासकर, जब आप समाज का सबसे कमजोर और गरीब तबका हों। वो फिर चाहे शहरों की ज्यादातर बाहरी और अनाधिकृत कॉलोनियाँ हों या गाँव। स्लम-एरिया की तो फिर कहानियाँ ही क्या होंगी? 

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