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Monday, June 5, 2023

सामान्तर केसों की घड़ाई (ताबीज़-कबीज?)

(ताबीज़-कबीज?) 

FB के होम पेज पे एक विज्ञापन आया -- काला धागा पहने और पैसा ही पैसा पाएँ। पहली बात तो मैं ऐसे चक्रों में पड़ती नहीं। दूसरा, जहाँ कहीं ऐसी-ऐसी लॉटरी का जिक्र हो वो spam के इलावा किसी और जगह के लायक नहीं होते। Online Security में थोड़ा बहुत पढ़ा होगा। 

ऐसा ही कुछ ताबीजों की कहानियाँ हैं शायद। जो दिखाई गयी शुभ हैं, मगर अशुभ हैं। अच्छा, पीछे किन-किन ने काले धागे बाँधे? और कहाँ-कहाँ? हाथ में? पैर में? गले में? या कहीं और? कितना वक़्त हो गया बाँधे हुए? किसने दिया या बताया वो सब बाँधने के लिए? और क्या बोलके बँधवाया गया? वैसा कुछ हुआ क्या? या उसके विपरीत? और फिर भी बाँधे हुए हैं? किसी शुभ कहके बँधवाने वाले के सिर मत होना। उन बेचारों या बेचारियों को भी उतना ही पता होगा, जितना आपको। सबसे बड़ी बात ये की ये पहली बार नहीं हो रहा। ऐसा आपके बड़ों के साथ हो चुका है। इसलिए कभी-कभी बड़ों के अनुभवों को जानना भी सही होता है। शायद भार नहीं होते वो आप पे, रक्षा कवच होते हैं।   

किसी की कहीं कोई समस्या चल रही थी। नौबत, गाइड बदलने तक की आ गयी। समाधान भी पास ही मिल गया। ज्यादातर दोस्त जिस लैब में थी उन्होंने बोला हमारे सर के पास सीट है और शायद वो तुम्हे ले भी लें। क्यूंकि तुम्हारा काम वो है जो उन्हें शुरू करना है। मेरे लिए भी सही था और वहाँ से हाँ भी हो गयी। सब सही जाता लग रहा था। मगर कुछ दिन बाद एक दोस्त ने बोला, शायद तुम इस लैब में नहीं रह पाओगे। मैंने कहा, क्यों, ऐसा क्यों कह रही हो? उसने बताया की मैम किसी के पास भविष्य पूछने या समस्याओं के समाधान पुछने जाते हैं। और उस ब्राह्मण ने बोला है की तुम्हारी लैब में कोई नया बंदा आया है और वो तुम्हारे लिए सही नहीं है। अब तुम्हारे सिवाय तो कोई आया नहीं। और मुझे यक़ीन नहीं हुआ की ऐसा भी होता है। इतने पढ़े-लिखे लोग भी समस्याओं के समाधान या भविष्य पूछने ऐसे किसी ब्राह्मण-पंडों के पास जाते होंगे? और किसी के कहने भर से वो सब कर भी देंगे? मगर, वैसा हुआ। अब क्या सच था या क्या झूठ, मुझे आज तक समझ नहीं आया। 

हाँ! इतने सालों बाद, खासकर पिछले कुछ सालों के अध्ययन के बाद, ये जरूर समझ आया की जब परेशान होते हैं या कुछ ज्यादा की चाहत में, तभी ऐसे लोगों के पास जाते हैं। और उनका कहा हुआ कर भी देते हैं। बिना सोचे समझे, की उनको हमसे ज्यादा पता कैसे हो सकता है। जब इतने पढ़े-लिखे लोग ऐसा कर सकते हैं तो आम आदमी के बारे में क्या बोलें?   

जैसे 2016 में मेरे कैंपस के घर 16 में पीछे आम के पेड़ पे, किसी द्वारा पीछे से कच्चा सूत का धागा लपेटना, मेरे लिए अनपढ़ गँवारों की निशानी था। मगर काफी वक़्त बाद पता चला की वो तो किसी जुर्म की कहानी था। और ऐसे-ऐसे तरीके ज्यादातर जुर्म दिखाने के लिए, Show, Don't Tell की कहानियाँ भी गाते हैं। घुमा फिराकर या चढ़ा बढ़ा कर भी दिखाते  हैं। और होने के सालों बाद भी, जब आप आसपास भी नहीं होते तो भी तरो-ताज़ा रखने की कोशिशें भी होते हैं। चाहे वो शख्स ज़िंदगी के कितने ही और पड़ाव पार क्यों न कर चुके हों। 

शायद इन सबका मतलब ही आम इंसान को इस साइको (Psychology) के जाल में उलझाकर रखना होता है। और राजनीतिक पार्टियों को क्या चाहिए? आम आदमी खामखाँ के जालों में उलझेगा नहीं तो उनसे काम की बातों पे आओ, बकवास पे नहीं, बोलने नहीं लगेगा?

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