रोचक किस्से, कहानियाँ और सामाजिक घढ़ाईयाँ
जब गाँव रहने के लिए आई, तो शुरू-शुरू में तो बहुत ज्यादा हैरानी होती थी, उटपटांग पे उटपटांग सुनकर, देखकर, समझकर। वो भी तब, जब अपने आपको पढ़े-लिखे और कढ़े कहने वाले लोगों को, इतने सालों से देख-सुन और भुगत भी चुकी थी। वो उटपटांग यहाँ जब ज्यादा होता लगता था, तो गाड़ी उठाके उड़ जाती थी, उसी जहरीली जगह, जिसको पीछे छोड़ चुकी थी। उसपे, यहाँ के उटपटांग की उस वक़्त समझ भी कम ही थी। क्यूँकि, इस दुनियाँ को इस रूप में कम ही देखा था।
यूँ लग रहा था, जैसे हर कोई, हर किसी का दुश्मन हो। ये इसका भला भी नहीं चाहता या चाहती, उसका भी नहीं, उसका भी नहीं और उसका भी नहीं। यार, क्या खुंदक हो सकती है? ये तेरे घर वालों के भले में हैं और हर किसी को टांगा हुआ है, छोटी-छोटी बुराईयों को या कमियों को बढ़ा-चढ़ा कर, एक दुसरे को गा-गा कर। ये भी बुरा, वो भी बुरा, वो भी बुरी और वो भी। बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बख्सते। कैसे लोग हैं ये? जबकि, इनके अपने हाल कहीं न कहीं, इस घर से ज्यादा बुरे हैं, ऐसी-ऐसी कमियों पे। अपना नहीं दिखता? और फिर आपको लगता है की खामखाँ ज्यादा सोच रहे हैं। उनके अपने हाल बुरे हैं, शायद इसीलिए, ज्यादा जहरीले हो रहे हैं। मगर फिर समझ आता है, सामाजिक घढ़ाईयाँ। जो ज्यादातर राजनीतिक पार्टियाँ करवा रही है। मतलब, जहर भी वही घोल रही हैं? फुट भी? लोग खुशियाँ भी जैसे छुप-छुप के मनाते हैं? कहीं किसी की नजर ना लग जाए? कितना अजीबोगरीब माहौल है ना? हालाँकि सब एक जैसे नहीं हैं। कुछ खास घरों में ही ये ज्यादा है। तो सीधी-सी बात, राजनीतिक जालों का दुष्प्रभाव भी वहाँ ज्यादा है।
राजनीती के षड़यंत्र ने छलाँगे मारनी शुरू की और लोगों को खाना भी, बिलकुल आदमखोरों की तरह। उस ताँडव को इतने पास से देखना और क्या हो रहा था वो जानना-समझना, किसी भी आम इंसान को हिलाने के लिए काफी था। मगर राजनीती के लिए शायद आम बात।
एक जिज्ञास्या जो शुरू हुई थी, कहीं न कहीं उस सोशल पोस्ट से शायद, जहाँ कुत्ता ढेरों हड्डियों के पास बैठा है और उसपे लिखा है (जैसे कह रहा हो), ये सब बिल्ली (या बिल्ला) ने किया है।
कुछ तारीखें, जैसे कुछ कहानियाँ-सी और कुछ बीमारियाँ। सच में बीमारियाँ? बच्चों के बालों का रंग और बनावट (Texture) बदलना। बच्ची को छाती में सीमेंट अटक गया, क्यूँकि घर बन रहा था। बच्चे को एलर्जी हो गई, पाँच साल तक शैंपू या साबुन प्रयोग नहीं करना। ये तो सिर्फ शुरूवात थी, इस अजीबोगरीब जहाँ को जानने-समझने की। इसके बाद तो पता ही नहीं, लोगों को क्या-क्या होते देखा या सुना। उसी जंग में, पढ़े-लिखे और कढ़े हुओं की गुप्त जंग में, एक छोटी-सी बीमारी खुद भी ले आई। बीमारी? या Chemicals Abuse? और कितने ही तो लोग भुगतते हैं, ऐसे-ऐसे और कैसे-कैसे, इन पढ़े-लिखे SMART लोगों को? कहाँ व्यस्त रखते हो, दुनिया को? मतलब खुद भी कहाँ व्यस्त रहते हो? दुनिया को जहर परोसने में और गुप्त तरीकों से मारने-काटने में? इसी को INTELLIGENCE कहते हैं?
सामाजिक घड़ाईयों के सच में छिपा है -- "आप व्यस्त कहाँ हैं?" जब आप किसी को कुछ दिखा-बता या सुना रहे हैं, तो कुछ घड़ भी रहे हैं, खुद अपने लिए और अपने आसपास के लिए।
इन रोचक किस्से-कहानियों में ही सामाजिक घढ़ाईयाँ छिपी हैं।
आशीर्वाद आटा
Happiness Helmet
Comfort Washing Zone
डिब्बा-तंत्र
झंडुलीला
गिरपड़ रहा है झंडा जैसे। कभी यहाँ, तो कभी वहाँ?
दण्डातंत्र
ढ़क्कन-डंडा, जाली पे सफेद पेंट। वैसे क्या संभावनाएं हो सकती हैं, इस सामान्तर घड़ाई की? शायद, फिशिंग वाली घड़ाई तो हो चुकी?
और AC कट्टा कवर?
पंखा स्लेटी, सफेद, गोल्ड या सिल्वर?
कुलर सलेटी, काला या सफेद?
भैंसोलोजी
भैंस ने दूध ना दिया
दिवास-दूध
रवि-लोजी (Ravilogy): बच्चे को नहीं मालूम, उससे क्या करवा रहे हैं और क्यों? उसे मजा आ रहा है और वो कर रहा है। ये Ravilogy शायद बहुत पुरानी है। और ये हिंदी वाला रवि है या शायद R avi?
तेरा दादा, मेरा दादा। मेरा दादा भी, तेरा दादा। वैसे तो कुछ बुरा नहीं, पर ऐसे तो -- Special Kinda Enforcement World
कितने ही तो लोगों को तो काम पे लगाया हुआ है? बताओ और इन राजनीतिक पार्टियों की जान लोगे, अब तुम? राजनीतिक पार्टियाँ आपको मुफ्त में, वो भी उल्टे-पुल्टे कामों पे रखती हैं।
एक होता है संवाद करना और एक लोगों को विवाद या झगड़े पे लगा देना। एक होता है, कोई ढंग का काम देना या बच्चों को खासकर, खेल-खेल में कुछ सीखने को देना। और एक होता है, उल्टे-पुल्टे कामों में लगा देना। तो जिंदगी क्या होंगी उनकी?
Process of Dehumanization of a Society
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