एक और माहौल लेते हैं और जानते हैं की कुछ खास तरह के सफल या असफल लोगबाग व्यस्त कहाँ हैं?
विकसित, मतलब ज्यादा पढ़े-लिखे देशों की ज्यादातर बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ दिमाग वालों के हवाले मिलेंगी। टेक्नोलॉजी की दुनियाँ, जो दुनियाँ पे राज करती हैं, अपनी टेक्नोलॉजी की ही वजह से। और दुनियाँ भर के बेहतरीन दिमागों को अपने यहॉँ काम करने के लिए आकर्षित भी करती है। ज्यादा पैसा और सुख-सुविधाएँ देकर। हालाँकि, वहाँ भी बहुत तरह के वाद-विवाद हो सकते हैं। क्यूंकि, हर चीज़ के दो पहलु होते हैं।
जहाँ शिक्षित वर्ग है वहां पथ्थर, रोड़े, खूंटे या खूंटी नहीं, महाबली, बजरंग जैसी blockchain मिलेंगी। ऐसी बाधाएं, जो किसी भी तरह से सामने वाले को आगे बढ़ने से रोक सकें। महाबली, बजरंग जैसे नाम अशिक्षित या कम पढ़े-लिखे वर्ग को जाल में फंसाने के लिए। जाल Fishing जैसे भी हो सकते हैं। जैसे किसी पड़ौसी की खिड़की पे काली डोरी को कांटे की तरह टांगना। आम आदमी की भाषा में। ये यहाँ सिर्फ "दिखाना है, बताना नहीं।" इसके पीछे के कारनामों या जुर्मों को। मतलब, ये सामाजिक सामान्तर घड़ाई है, जिसमें राजनीती गुप्त तरीके शामिल है। उसके असली मतलब या जुर्म को समझने के लिए विज्ञान का सहारा लेना होगा। तभी तो राजनीतिक विज्ञान बनेगा।राजनीती को, विज्ञान वाले जुर्मों या कर्मों को, सामान्तर सामाजिक घढ़ाईयों के साथ, जोड़ने-तोड़ने और मरोड़ने का, जो जाल या ताना-बाना है, उसमें तकरीबन सब तरह के विषय, जीव-निर्जीव और सामाजिक श्रेणियाँ आ जाती हैं। रंक से लेकर राजा तक। कीड़े-मकोड़े से लेकर, इंसान तक। पेड़-पौधे, पक्षी, रेंगने वाले जीव-जंतुओं से लेकर, पानी और पृथ्वी दोनों पर रहने वाले भी। आपके घर और आसपड़ोस से लेकर बगीचों-पार्कों तक, खेतों से लेकर जंगलों तक। सुई-धागे से लेकर हवाई-जहाज तक। और भी वो सब, जो कुछ भी आप अपने आसपास देखसुन सकते हैं या अनुभव कर सकते हैं। है ना कितना अजीबो-गरीब ये राजनीतिक विज्ञान का ताना-बाना? और हम सोचते हैं, हमारा राजनीती से क्या लेना देना? हमें तो ये पसंद ही नहीं। ना कोई इसमें हमारे घर या आसपास से। और फिर भी हमारी ज़िंदगी के हर पहलु को ये प्रभावित करती है। इसीलिए कुछ भी लेना-देना हो या ना हो, कम से कम, कुछ हद तक तो समझाना जरूरी ही नहीं, बल्की बहुत जरूरी है।
चलो थोड़ा विज्ञान और टेक्नोलॉजी से शुरू करते हैं। किसी ने कहा की, "कोई भी आपकी ज़िंदगी में न तो अपने आप आता है और न ही अपने आप जाता है। उसका एक खास मकसद होता है। वो मकसद पूरा हुआ और वो इंसान भी।" आप सोच में पड़ जाएँ की भला इसमें क्या खास है? लगे दार्शनिक बातें झाड़ने। खासकर, जब तक हमें उस दुनियाँ की खबर नहीं होती जो ये सब करती या करवाती है। Migration, वो भी जबरदस्ती? आप कब तक कहाँ रहेंगे और कहाँ नहीं। ये आपका पसंद-नापसंद का विषय ही नहीं है। बल्की, किसी खास जगह पे आपको परोसा क्या जा रहा है और कैसे, वो विषय है। अपने आसपास से इधर-उधर गए हुए या आए हुए लोगों को जानने की कोशिश करोगे तो शायद समझ आ जाए। थोड़ा-सा समझ आने लगेगा, तो शायद थोड़ा बहुत सावधान भी रहने लगोगे, कुछ खास तरह के लोगों से और जगहों से। कौन बच्चों के आसपास नहीं फटकना चाहिए और कौन घर के या आसपास के मौहल्ले के भी। और कौन वहाँ के लिए सही हैं। मगर ज्यादातर इंसान अपने आप बुरे नहीं हो जाते। बहुत से केसों में उन्हें धकेला जाता है, बुरा बनने के लिए। हालाँकि सभी केसों में नहीं। और धकेला ऐसे जाता है, की वो सब तकरीबन अद्रश्य होता है। इसीलिए, कितनी ही सामाजिक सामान्तर घढ़ाईयाँ, यहाँ-वहाँ देखने को मिलती हैं। अलग-अलग लोग, अलग-अलग विचार, अलग-अलग जगहें, अलग-अलग केस। मगर फिर भी लगे, जैसे एक जैसे-से। एक जैसे-से, ना की एक।
टेक्नोलॉजी को थोड़ा जानने-समझने लगोगे तो पता चलेगा, कितनी ही तो खामियाँ हैं इन घढ़ाईयों में। और सबसे बड़ी बात। इन इतने पढ़े-लिखे और विकसित कहलाने वाले लोगों ने भी दुनियाँ को व्यस्त कहाँ किया हुआ है? और क्या ये खुद कर रहे हैं, इतने सारे resources के दोहन से? चलो थोड़ा-सा ऐसी-ऐसी टेक्नोलॉजी को समझना शुरू करते हैं, जो आम इंसान को बेवकूफ बनाती है।
आओ थोड़ा जादू देखें? जादू मतलब चालाकी (trick) । जिसके पीछे विज्ञान है। आप जो देख रहे हैं, जरूरी नहीं वो सच ही हो। भूतकाल का जो कल्पित विज्ञान (Sci-Fi) है, वो आज की हकीकत भी हो सकता है। या कहो की ज्यादातर ऐसा ही हो रहा है। जैसे कल कोई सोचता की पानी के नल को खोलने या बंद करने की जरूरत ही ना पड़े। हाथ नल के नीचे किए और पानी आ गया। हाथ हटाए और पानी गया। लाल निशान वाले नल के नीचे हाथ किए तो गर्म पानी आ गया। हरे या नीले संकेत वाले नल के नीचे हाथ किए तो ठंडा। ऐसे ही साबुन के डिब्बे के नीचे जितने देर हाथ किए, उतना साबुन, शैम्पू, या डिश वॉशर आ गया। Sanitiser के डिब्बे के नीचे जितनी देर हाथ किए उतना ही Sanitizer आ गया। दरवाजे के पास गए और दरवाजा अपने आप खुल गया। आप अंदर गए और दरवाजा अपने आप बंद हो गया। शावर के नीचे गए और पानी अपने आप आ गया। गर्म शावर के नीचे गए तो गर्म और ठन्डे के नीचे गए तो ठंडा। कोमोड के पास गए और उसका ढक्कन अपने आप खुल गया गया। आप उठे और अपने आप बंद हो गया। आपके बिना हाथ लगाए फ्लश भी हो गया। जादू है क्या ये कोई?
ऐसे ही आपके ड्राइंग रूम से लेकर रसोई घर, शयन कक्ष, खेती-बाड़ी, गाड़ी और अन्य वाहनों में भी कितना कुछ अपने आप होता है या सोचो की हो सकता है? ऐसे ही स्कूल-विद्यालयों और हॉस्पिटलों में। तरह-तरह के व्यवसायों के automation का तो पूछो ही मत। बहुत-सी दुनियाँ है, जिसे ये सब ना सिर्फ मालूम है, बल्की अपने रोजमर्रा के काम में इसे उपयोग भी करती है। तो आज भी दुनियाँ का एक बहुत बड़ा हिस्सा, इसे जादू मान सकता है। या मजाक की तरह ले सकता है। उन्हें नहीं मालूम की ये सब हकीकत है और इसके पीछे है विज्ञान। चलो यहाँ तक तो फिर भी सही है। आप चिल्लाने लगें की शातीर, धूर्त, चालाक पढ़े-लिखे और उसपे कढ़े हुए लोग, आम आदमी की जिंदगी से खेल रहे हैं। उन्हें मानव रोबॉट बना रहे हैं। क्या होगा? वही शायद जो हो रहा है? वो ऐसे इंसानो को बिल्कुल खत्म ना कर पाएँ तो इधर-उधर अवरोध खड़े कर, यहाँ-वहाँ तो खिसका ही सकते हैं।
आम लोगों की समझ के लिए, चलो, ऐसे-ऐसे टेक्नोलॉजी के जादुओं को ABC से समझना शुरू करते हैं। जो आपकी ज़िंदगी को अदृश्य तरीकों से प्रभावित कर रहे हैं, वो भी बुरे के लिए। यहाँ सफल कहे जाने वाले लोग, असफल कहे जाने वाले लोगों की ज़िंदगियों को और कठिन बना रहे हैं। बजाए की उनमें कोई अच्छा बदलाव लाने के। और शायद दुनियाँ के इतने बड़े हिस्से के, कहीं न कहीं पिछड़ेपन की वजह भी यही हैं। तो फर्क क्या पड़ता है, की आप सफल हैं या असफल हैं? आप व्यस्त कहाँ हैं, और दुनियाँ पे अपनी किस तरह की छाप या प्रभाव छोड़ रहे हैं? वो दुनियाँ, आपका आसपास भी हो सकता है, थोड़ा दूर भी और दुनियाँ का दूसरा कोना भी।
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