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Sunday, June 11, 2023

कितने अवतार हैं तुम्हारे?

कितने अवतार हैं तुम्हारे? 

रावण के कितने सिर और हाथ थे? 

संतोषी माँ के? दुर्गा के? काली के?  

और भी कितने ही देवी, देवताओं या राक्षसों के कितने सिर और हाथ हो सकते हैं?  

या शायद शरीर ही बदल सकते हैं ? विष्णु के कितने अवतार हैं, हिन्दु धर्म के अनुसार? या कृष्ण के कितने हैं? शरीर बदलने वाले अवतारों को क्या कहते हैं? छलिया? या कुछ और?

चलो ये तो बड़े-बड़े, देवी-देवताओं की बातें हुई। क्या आम आदमी भी ऐसा कर सकता है? सम्भव है? शायद, वैसे ही जैसे बड़े-बड़े, देवी-देवता कर लेते हैं? इंग्लिश में कुछ शब्द हैं, जैसे  

Alter Reality

Alter Ego

Reality Bending


Warping

Reality Warping: To manipulate Reality 

Operation Warp Speed (Corona), USA 

अंग्रेजी के इन खास शब्दों या इसी तरह के और  शब्दों और इनके करने के तरीकों का जिक्र किन्ही और पोस्ट में।  

हकीकत को बदलना या बदलने की कोशिश करना। 

चलो फिर से नाटकों के किरदारों पे आते हैं। या शायद हकीकत के किसी और वयक्ति पर? क्यों न खुद से ही शुरू किया जाए?  

असली ज़िंदगी में विजय दांगी एक लड़की है। टीचर है, बायोटेक्नोलॉजी में। थोड़ा बहुत लिख लेती है। और आगे की उम्मीद भी लिखाई-पढ़ाई के आसपास ही घुमती है।   

क्या वो या उसके साथ कुछ और जोड़-तोड़-मरोड़ कर कोई और इन्सान या किरदार घड़ा जा सकता है? जो लड़की भी हो सकता है मगर किसी और फील्ड में, बहुत अमीर या उससे बहुत गरीब। जरूरी नहीं आसपास ही हो। किसी दूसरे शहर या दूसरे देश में भी हो सकता है। जरूरी नहीं पढ़ाई-लिखाई के आसपास ही हो। हो सकता है, पॉलिटिक्स में हो। बिज़नेस में हो। खेलों में हो। या किसी और फील्ड में। जरूरी नहीं उम्र, सुरत या कुछ और ही मिलता हो। वो बच्चा भी हो सकता है और बुजुर्ग भी।  और ये भी जरूरी नहीं की लड़की ही हो। वो लड़का भी हो सकता है या ट्रांसजेंडर भी। जैसे ?    

जया?

साध्वी?

प्रियंका?

रिया चकर्वर्ती?

श्री देवी?

गोलु?

विजय मालया?

मायावती?

कविता 

बबिता 

नविता और भी पता नहीं क्या-क्या !

हकीकत क्या है? और घड़े हुए किरदार? कुछ भी मेल नहीं खाता ना? मगर क्या हो आम आदमी असली इंसान की बजाय घड़े हुए किरदारों को उस इंसान पे हकीकत में थोपने लग जाए तो? सोचने को तो कुछ भी सोच लो मगर किसी भी असली इंसान को किसी और का किरदार थोपने से बचे। क्यूंकि थोपने की कोशिश मतलब उस इंसान को कुछ-कुछ वैसा ही बनाने की कोशिश। कभी-कभी ऐसा करना खतरनाक भी हो सकता है या कहो की अक्सर होता है। तो जहाँ तक हो सकता है बचें, किसी पे भी कुछ भी थोपने की कोशिशों से। क्युंकि, ऐसे उदाहरण आसपास भरे पड़े हैं, जिनपे कुछ का कुछ थोपने की कोशिशें हुई हैं या अभी भी हो रही हैं। जिनके परिणामस्वरूप वो जिंदगियाँ तबाह हुई हैं या अभी भी हो रही हैं।    

हर इंसान अलग है, विशेष है। अपने आप में अद्भुत है। वो कोई और हो ही नहीं सकता। और न ही कोई उसका स्थान ले सकता। इसलिए कोशिश हर इंसान की खास विशेषताओं को आगे बढ़ाने की होनी चाहिए। न की उसे कोई और बनाने की।   

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