पहले भी लिख चुकी की मेरी समझ राजनीति की बहुत ज्यादा नहीं है। हाँ। थोड़ा बहुत समझने की कोशिश जरूर है। खासकर, इस उत्सुकता से की राजनीति, सिस्टम और सामानांतर केसों का आपस में जुगाड़ या आम आदमी पर प्रभाव क्या है?
राजनीति के रंगमंच पे पधारते हैं। हरियाणा और किसान? चलो उसके साथ लगाते हैं, आंदोलन। हो गया, राजनीतिक रंगमंच? अब अगर किसान का नाम है, तो शायद चौटाला पार्टी का भी जिक्र कहीं न कहीं तो होगा ही? पुरानी राजनीति के नेतालोग, पढ़े-लिखों को शायद कम ही पसंद आते हैं। तो नई पीढ़ी पे आते हैं ना। पुराने राजनेताओं की नई पीढ़ियां ज्यादातर बाहर पढ़ी-लिखी हैं। अपने बाप-दादाओं की विरासत लिए हुए हैं। पुराने से आगे कुछ नया है उनमें? पता नहीं, मगर पीछे कुछ सोशल पोस्ट पढ़के तो शायद ऐसा लगा।
"शांत दिमाग, मीठी जुबान, आगे बढ़ते कदम, ........ " -- कितना सच, कितना झूठ? ये आम जनता पे छोड़ते हैं। मगर कोई भी लठमार पार्टी शायद आज के वक़्त चल पानी मुश्किल है। हाँ ! खतरे कभी-कभी मीठी जुबान के लठ से भी ज्यादा घातक हो सकते हैं।
किसान आंदोलन --
8, 9 का कोई खेल है क्या ये?
लव-जिहादों से आगे बढ़के,
ज़मीन-जिहादों की दासताएँ जैसे?
हरी-भरी जमीनों को उजाड़के
रेगिस्तानों में बदलना जैसे?
या रेगिस्तानों को बना देना हरा-भरा जैसे?
घरों को बेघर और बेघरों को बसाना जैसा?
जाने क्यों Personal और Home Loan याद आ गया ;)
आप भी सोच रहे होंगे की ये किसान आंदोलन और समांनातर केस गाते-गाते कहाँ पहुँच गए?
Frankly Speaking with Dushyant Chautala
Navika Kumar on TNNB
ये मंडी, ये गेहूं
ये सुरजमुखी, ये MSP
ये कुरुक्षेत्र, ये महाभारत
ये बाजरा, ये सरसों
ये राज के Trans --
और माइक्रोसॉफ्ट वाले चांस?
बहुत पहले कहा था शायद, की नेताओं पे लिखुंगी (किन्हीं suggestions पे)। मगर पहले थोड़ा समझ तो लुं की ये बला क्या हैं? अरविंद केजरीवाल पे लिख चुकी। वो थोड़ा आसान था शायद, क्युंकि अन्ना आंदोलन के वक़्त से पढ़ रही थी।
ये हो गया BJP की सहयोगी JJP पे। अब दो बड़ी पार्टियाँ बच गई। आते हैं उनपे भी, किन्ही और पोस्ट्स में। और भी बहुत हैं, पर कहा ना, अभी रजनीति की समझ बहुत कम है।
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