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Tuesday, April 2, 2024

संचार माध्यम और साक्षरता (Media Education)

शिक्षा सिर्फ़ किताबी ज्ञान नहीं है 

और ना ही डिग्रीयों का इकट्ठा करना। 

शिक्षा अगर व्यवहारिक नहीं है, 

अगर वो आपकी ज़िंदगी को आसान नहीं बना रही, 

तो व्यर्थ है।  

शिक्षा, अगर ज़िंदगी को मुश्किल कर रही है, 

तो बेकार है। 

शिक्षा, अगर सच और झुठ का फर्क करना नहीं सिखा रही

तो एक पढ़े-लिखे इंसान और अनपढ़ में फर्क क्या है? 

शिक्षा, अगर नीरे जी हुजूर, 

या नीरे उपद्रवी पैदा कर रही है, 

तो वो भी शिक्षा कहाँ है? 

शिक्षा अगर आपको मुश्किलों से पार जाना, 

मिल बैठ संवाद से मुश्किलों के हल निकालना नहीं सिखा रही, 

तो ऐसी शिक्षा का भी क्या फायदा? 

वो अगर झूठ को झूठ, 

या सच को सच बता पाने की स्तिथि में नहीं है 

तो उसका भी क्या मतलब?


इक्कीशवीं सदी में, 

शिक्षा अगर सोलवीं, सत्तरवीं, अठारवीं, 

या उन्नीशवीं सदी में अटकी है,  

तो वो कैसे इक्कीशवीं सदी के, 

पढ़े-लिखों से तालमेल बिठा पायेगी? 

शायद इसीलिए, संचार माध्यम की नई तकनीकों 

और उनके प्रभावों या दुष्प्रभावों को जानना 

जरुरी ही नहीं, बल्की बहुत जरुरी है। 

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