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Sunday, April 21, 2024

कैसी ये स्याही (Ink) होगी? कैसा चुनाव और कैसा तंत्र? (Social Tales of Social Engineering)

 पीछे पोस्ट में मेरी तरफ से भारत में चल रहे चुनाव का बहिष्कार था। 

अब ऊँगली पे लगने वाली स्याही का बहिष्कार है। 

कैसा चुनाव और कैसा तंत्र?     


 कैसी ये स्याही (Ink) होगी? 

लोगों को सतर्क करने की ज़रुरत है, शायद?




कैसे-कैसे उजाले?
और कैसे-कैसे अँधेरे?  
2017 Chemicals Abuse? 


2018 या 2019?
Pink Bouganvillea  

और इन chemicals (abuse) के नाम कहाँ से पता चलेंगे? 
In case, anyone can?
Simple high dose pesticides or diluted form of acids?

वैसे तो कितनी ही बीमारियाँ हैं, जिनपे लिखा जा सकता है। ज़्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता, की या तो उन्हें वो बीमारी है ही नहीं, जो diagnose कर दी गई है। या वो लक्षण हैं, आसपास के ज़हरीले वातावरण के। वो ज़हर पानी में हो सकता है। हवा में हो सकता है। और खाने-पीने में भी हो सकता है। या ऐसी किसी भी वस्तु में हो सकता है, जिसके आप जाने या अंजाने सम्पर्क में आते हैं। कॉस्मेटिक्स में हो सकता है, जैसे कोई भी लगाने की क्रीम वगैरह या नहाने-धोने का साबुन, शैम्पू। दवाई में हो सकता है। घर के साफ़-सफाई के सामान में हो सकता है। 

या शायद वो नीली-सी या बैंगनी-सी या थोड़ी काली-सी स्याही में भी हो सकता है, जो आपकी ऊँगली पे वोट डालने के बाद लगती है। थोड़ा बहुत शायद भारत के CJI बता सकें? वैसे ये वाली स्याही ऊँगली पे ही लगती है ना, कहीं कलाई पे तो नहीं?

जैसे सालों-साल फाइल्स में चल रहे ऊटपटाँग रिश्तों को टाटा, बाय-बाय किया था। वैसे ही अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों द्वारा, लोगों पर अपनी-अपनी तरह के भद्दे-धब्बों, ठपों और मोहरों को टाटा, बाय-बाय। एक शुरुवात, इस गुप्त कोढ़ सिस्टम को उखाड़ फ़ेंकने की, ताकी कम से कम आगे की पीढ़ियों को ये ना झेलना पड़ें। थोड़ा मुश्किल है, पर असंभव तो नहीं। कम से कम, एक शुरुआत तो कर ही सकते हैं। 

तो क्यों बात हो इशारों में? क्यों "दिखाना है, बताना नहीं" बनते रहें, लोगों की ज़िंदगियों की बीमारियाँ या मौतों तक की कहानियाँ? क्यों ना खुल कर बात हो, राजनीती या सिस्टम की थोंपी गई बिमारियों की और मौतों की, उनके कोढों के साथ?    

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